"किस बात का सेलिब्रेशन है"
राजनीति की बिसात पर जब चुनाव के समर में जीत के लिए चालें चली जाती है तब अपने पराए का कुछ भी भान नहीं रहता है। आज़ादी के बाद के भारतीय राजनीति के इतिहास पर यदि नजर डालें तो पाएंगे कि सत्ता के संघर्ष में कुछ लोग व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने के लिए या ये कहें कि अपनी पिपासा शांत करने के लिए पार्टी से इतर जाकर अपनी भड़ास निकालने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। 2024 का लोकसभा चुनाव भी इससे अछूता नहीं रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुजफ्फर नगर सीट इसका जीता जागता उदाहरण है। एक कहावत है भैंसो की लड़ाई में झुंडो का नुकसान। संगीत सोम और संजीव बालियान के अहम की लड़ाई मे नुकसान भारतीय जनता पार्टी का हुआ। जहां तक बात पूरे उत्तर प्रदेश की है तो भारतीय जनता पार्टी को 80 में से 33 सीट प्राप्त हुई हैं, समाजवादी पार्टी को 37, कांग्रेस को 6 सीटें, राष्ट्रीय लोकदल को 2 एवम अन्य को 2 सीटें यानि बीजेपी को 2019 से 29 सीटें कम मिली। निश्चित ही बीजेपी के लिए ये एक सेटबैक से कम नहीं है, मेनका गांधी स्मृति ईरानी अगर हार गई तो बचा ही क्या। लेकिन उत्तर प्रदेश की अयोध्या सीट का परिणाम सबसे ज्यादा चौंकाने वाला रहा। बीजेपी के लल्लू सिंह चुनाव हार गए। बीजेपी किसी भी उम्मीदवार को टिकिट देने से पहले पूरी छान बीन करती है। लल्लू सिंह पिछली दो बार से चुनाव जीत रहे थे लेकिन इस बार फैज़ाबाद के लोग उनके व्यवहार से दुःखी थे। एक कहावत है "करेला ऊपर से नीम चढा" लल्लू सिंह के अंट संट बयान ने आग में और घी डाल दिया। नतीजा सामने है।
जरा वोटो की स्थिति देखिए:-
SP -554289
Bjp-499722
Bsp-46407
Nota - 7536
जीत का अंतर=54567
ये ठीक है अखिलेश यादव ने वोटर को जातियों में उलझा दिया लेकिन ये तो सभी पार्टियां करती हैं तो फिर वोटर कैसे भूल गया कि 500 वर्षो के बाद भगवान राम का शानदार मंदिर बन रहा है तो उसमें बीजेपी का क्या और कितना योगदान रहा है। अयोध्या की हार से राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं वरन विश्व भर में बसे राम भक्तों के दिलों पर इस समय क्या बीत रही है वो संतो के आसुओं से समझा जा सकता है।
अब बात करते हैं उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे राज्य राजस्थान की तो बीजेपी ने वहां 2019 में 24 सीटें जीती थीं। 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रचंड जीत दर्ज़ कर वसुंधरा राजे को दर किनार करते हुए एक नए चेहरे को मुख्यमंत्री बना दिया। मुझे याद है राजस्थान में वसुंधरा राजे के प्रति लोगों में इतनी नाराज़गी थी कि जयपुर जैसे शहर की दीवारों को पोस्टरों से पाट कर केन्द्रीय नेतृत्व को लाउड एण्ड क्लियर मैसेज दिया गया कि "मोदी तुझसे बैर नहीं वसुंधरा तेरी ख़ैर नहीं" इस मेसेज को समझते हुए राजस्थान विधानसभा का चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर लड़ा गया और प्रचंड जीत भी हासिल की गई। इसी कारण केन्द्रीय नेतृत्व ने भजन लाल शर्मा के नाम की पर्ची वसुंधरा राजे के हाथ से ही निकलवाकर वसुंधरा को भी लाउड एण्ड क्लियर मैसेज दे दिया की मोहतरमा अब घर बैठ कर आराम कीजिए। लेकिन वसुंधरा राजे ने इसका बदला भजन लाल शर्मा से ऐसे निकाला कि उन्हें कोई सहयोग ही नहीं दिया जिससे भजन लाल शर्मा जितनी मेहनत मशक्कत कर सकते थे की किन्तु अच्छा रिजल्ट देने में असमर्थ रहे। वसुंधरा का सारा ध्यान झालावाड़ सीट से अपने पुत्र दुष्यंत सिंह की तरफ ही रहा। यही मेन कारण रहा जिससे बीजेपी 2019 में 24 के मुकाबले 2024 में सिर्फ़ 17 सीट पर सिमट गई। इसमें कोई शक नहीं की कुछ गल्ती सीट सलेक्शन को लेकर भी रही।
जहां तक बात महाराष्ट्र की है तो बीजेपी और शिवसेना ने फ़रवरी 2019 में पुन: लोकसभा चुनाव साथ लड़ने का संकल्प दोहराया और शानदार प्रदर्शन करते हुए बीजेपी ने जहां 23 सीटें जीती वहीं शिवसेना ने 18 यानि दोनों ने मिलाकर 48/41 सीटों पर अपना प्रभुत्व कायम रखा लेकिन विधानसभा चुनाव में शिवसेना ने हिंदूवादी विचार धारा को दर किनार करते हुए बीजेपी से गठबंधन तोड़ कर कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली। निश्चित इससे महाराष्ट्र की जनता ने अपने आपको ठगा सा महसूस किया। इसकी निंदा सिर्फ़ महाराष्ट्र ही नहीं वरन देश के अन्य भागों में भी हुई। लेकिन कहते हैं न सब दिन होत न एक समाना सो शिवसेना से एक गुट अलग हो गया और बाला साहिब ठाकरे की शिवसेना का निशान भी ले गया। शिवसेना (शिंदे गुट) ने बीजेपी के साथ सरकार बना ली। कुछ दिनों बाद यही हाल एनसीपी का भी हो गया। शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने एनसीपी तोड़ी और एनसीपी का निशान भी अपने कब्जे में कर लिया। ख़ैर लोकसभा का चुनाव बीजेपी एनसीपी अजीत गुट और शिवसेना शिंदे गुट मिलकर लड़ा। महाराष्ट्र की जनता इसी में उलझी रही कि असली शिवसेना कौन सी, असली एनसीपी कौन सी। इसी के साथ बीजेपी का मुख्यमंत्री की दौड़ मे शिंदे को देवेंद्र फडनवीस पर तरजीह देना भारी पड़ा। बीजेपी के महाराष्ट्र के कार्यकर्ता स्वयं को अजीब सी स्थिति में फंसा पाया। ये सब कारक ऐसे रहे जिससे बीजेपी आशा के विपरीत 2019 की 23 सीटों के मुकाबले सिर्फ़ 9 सीटों पर सिमटकर रह गई।
कई बार दूसरों को चौंकाने की आदत खुद पर भी भारी पड़ जाती है। ऐन चुनाव से पहले दो बार के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को हटा देना राजनैतिक दृष्टि से गलत साबित हुआ। 2019 के लोकसभा चुनाव में मनोहर लाल खट्टर की मेहनत को बीजेपी ने क्यूं और कैसे नजर अंदाज कर दिया गया ये समझ से अभी तक परे है। माना हरियाणा में जाटों के बाद सैनी वोटों की संख्या अधिक है तो ब्राह्मणों बनियों को क्यूं भुला दिया गया। ऐसे कई अन्य कारण और भी हैं जिनके कारण बीजेपी इस बार 10 में से केवल 5 सीट ही जीत सकी। निश्चित रूप से बीजेपी के लिए हरियाणा में ये बहुत बड़ा झटका लगा है।
अब पश्चिम बंगाल की स्थिति पर गौर करें और विश्लेषण करें तो पाएंगे कि 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां बीजेपी 18 सीटें जीतने में कामयाब रही थी वहीं उसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में उसने 294 में से 77 सीटें जीतकर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को कड़ी टक्कर दी थी। ED टीम पर हमला, संदेशखाली कांड, शाहजहां शेख़ की गिरफ़्तारी। लगा इस बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सीटें 18 से बढ़कर 25 हो जाएंगी किन्तु हुआ बिलकुल आशा के विपरीत। 2024 के लोकसभा चुनाव बीजेपी 42 में से 12 सीटों पर ही सिमटकर रह गई। यानि कुल पिछली बार से 6 सीटों का नुकसान। यानी बीजेपी पश्चिम बंगाल में दीदी की मां मानुष माटी की काट ढूंढने में नाकामयाब रही।
अंत में ये ठीक है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 303 सीटें मिली थी जो 2024 घटकर 240 रह गई हैं यानि पिछ्ले बार से 63 सीटें कम मिली हैं किंतु कोंग्रेस 99 सीटें पाकर अपनी जीत का इतना डंका क्यूं पीट रही है। जरा 1989 से कांग्रेस/बीजेपी की स्थिति तो देखिए :-
1989 में 197 कांग्रेस
1991 में 232 कांग्रेस
1996 में 161 बीजेपी
1998 में 182 बीजेपी
1999 में 182 बीजेपी
2004 में 145 कांग्रेस
2009 में 206 कांग्रेस
2014 में 288 बीजेपी
2019 में 303 बीजेपी
2024 में 240 बीजेपी
अब देखिए मध्य प्रदेश में बीजेपी 29/29
उत्तराखंड में 5/5
दिल्ली 7/7
हिमाचल 4/4
गुजरात 26/25
तेलांगना 8
केरल 1
बीजेपी ने जहां उपरोक्त राज्यों में लगभग विपक्ष का सूपड़ा ही साफ़ कर दिया बल्कि पहली बार केरल में अपना खाता भी खोल दिया फिर भी बीजेपी शांति से विपक्ष का अनर्गल प्रलाप सुन रही है।
उपरोक्त चार्ट देने का यही कारण है कि लोग समझें कि कांग्रेस ने समय से सबक लेना कभी नहीं सीखा है। 234 लेकर जश्न में डूबे विपक्षी नेताओं की जब तंद्रा भंग होगी तो मोदी प्रधानमंत्री पद की शपथ ले रहे होंगी।
प्रदीप डी एस भट्ट -8624
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