Wednesday, 5 June 2024

"आओ लखनऊ की लू का आनंद लें"

रिपोतार्ज 

"आओ लखनऊ की लू का आनंद लें "

शहर ए लखनऊ में आदाब करके बात बोलो न 
अगर दिन है तो दिन बोलो नहीं तुम रात बोलो न 

         नागपुर से मित्र राम कृष्ण सहस्रबुड्ढे जी का फोन आया कि नागपुर कार्यक्रम की खुमारी उतर गई हो तो लखनऊ की सरजमीं पर मुलाकात करें। हमने भी अच कचा कर भोपालिया अंदाज़ में पूछ ही लिया "क्या कै रियो हो मियां"। इत्ती जल्दी मुलाकात? कोई ख़ास बात है क्या मियां। उन्होंने तुरंत गाने की एक पंक्ति दोहरा दी दिल दिया है जां भी देंगे तेरे लिए😊  ख़ैर बात आगे बढ़ी तो मालूम पड़ा युगधारा का वार्षिक कार्यक्रम है 26 मई को। अब हमारी बारी थी हमने कहा जलती भुनती प्रचंड वेग की लू में साहित्यिक कार्यक्रम वो भी लखनऊ में भैय्या अभी अप्रैल में ही दिल्ली गोरखपुर लखनऊ की यात्रा से गर्मी का पूर्ण अहसास लिए पहुंचे हैं। वो बोले हमने पूछा नहीं बताया है। आना तो पड़ेगा ही अभी सौम्या मिश्रा भी प्रदीप दादा को नॉक नॉक करने वाली है। मना करके दिखाओ ज़रा। स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए हमने तुरंत हथियार डाले और बोल दिया जय श्रीराम मतलब लखनऊ को बोलो तैय्यार रहे हम पधार रहे हैं। चूंकि 25 मई को दिल्ली में एक कार्यक्रम में सहभागिता भी करनी थी सो टिकिट दिल्ली से ही बुक किया वो भी रात्रि 11.25 AC स्पेशल ट्रेन से ताकि 26 की प्रात: लखनऊ को सुबह की राम राम कह सकें।

         मई की खुबसूरत गर्मी और बढ़िया वाली लू के क्या कहने हुज़ूर लेकिन "कमिटमेंट है तो है" का पालन करते हुए दिल्ली/गाजियाबाद में दो चार कार्यक्रमों में अपनी सहभागिता सुनिश्चित भी की। चूंकि 25 मई को एक कार्यक्रम अटेंड करना था तत्पश्चात मित्र का हैप्पी 😁 वाला बर्थडे 3 दिन पहले ही सेलिब्रेट करना था। न न ना चौंकिए मत भई हम तो 25 की रात्रि को लखनऊ निकल रहे थे सो 🤪🤪🤪🤪। ख़ैर 23 मई को एक अन्य मित्र का फोन आ गया कि शनिवार को,"पधारो म्हारे देश" हमने असमर्थता व्यक्त की तो थोड़ा बुरा मान गए। समझाया कि देखो भईया हम वादे के बड़े पक्के वाले हैं "तुमई से पहले उनई को वादा कर चुके हैं"  सो इस शनिवार बख्श दो। थोड़ी सी झिक झिक के बाद वो मान गई तब जाकर हमने राहत वाली पूरी  श्वांस ली 😂।
         
         करेला ऊपर से नीम चढ़ा कहावत सुनी है न। एक तो भीषण गर्मी के प्रकोप से वैसे ही हैप्पी बर्डे हुआ पड़ा था ऊपर से 23 मई को नौतपा भाईसाहब आ पहुंचे। अब जे मत पूछना ये नौतपा क्या होता है। सच्ची बोल रिए हैं श्राप दे देंगे।(फोटो डाल रिए हैं खुदई पढ़ लेना)😡😈 तो भैय्या ब्ला ब्ला बुक की जिसने हमें वसंत कुंज छोड़ दिया। थोड़ी देर नई गाड़ी के साथ मित्र आ धमकी वो भी उंगली में वोटिंग निशान लिए। भैय्या किस्मत अच्छी रही कि बेल पत्थर का शर्बत पीने को मिल गया। एक एक गिलास गटक लिया सच कहूं आत्मा तृप्त हो गई। फिर सीधे कनॉट प्लेस तभी फुनवा घन घना उठा पता चला वोटिंग के चलते प्रोग्राम पोस्टपोंड हो गया।

         हमने और हमारी मित्र ने एक दूसरे की तरफ देखा और सीधे कनॉट प्लेस की तरफ गाड़ी मोड़ दी। कॉफी होम की पार्किंग में गाड़ी पार्क की और सीधे रिवोली सिनेमा, पता चला श्रीकांत का शो शुरू होने वाला है तो भैय्या प्रचंड गर्मी से राहत लेने हेतु 3.15 शो की 1275/- में दो ठो टिकिट ली और घुस गए। सच कहूं एक लम्बे अरसे बाद सिनेमा की टिकिट खरीदी काफी महंगी लगी। 😝 सच्ची घटना का सुंदर चित्रण अभिनय के हिसाब से भी एक दम फिट। राजकुमार यादव/राव ज्योतिका, शरद केलकर और जमील खान ने ए पी जे अब्दुल कलाम के रोल के साथ बढ़िया न्याय किया है। फिल्म समाप्त हुई फिर रात दस बजे तक एक अरसे बाद कनॉट प्लेस में मटर गश्ती की। गजब गज़ब गज़ब। मित्र को विदा किया और सीधे एनडीएलएस जा पहुंचे। ट्रेन भी शायद प्लेटफार्म पर लगने से पहले हमारा ही रस्ता देख रही थी इधर हम पहुंचे उधर ट्रेन ने सीटी बजाकर हमारा स्वागत किया। सुबह 7.15 पर लखनऊ उतरे और स्टेशन के सामने ही होटल विश्वनाथ जा पहुंचे।

         नागपुर की ही तरह रिसेप्शन पर प्रिय सौम्या और राम कृष्ण जी तैयारियों में व्यस्त दिखे। नमस्कार उपरांत सौम्या ने कहा दादा जितनी जल्दी हो तैय्यार होकर मीटिंग हॉल पहुंचे। कार्यक्रम समय से ही शुरू करना है और नाश्ता भी वहीं। हमने हां में मुंडी हिलाई और रूम नम्बर एक सौ एक की तरफ लपक लिए। छत्तीस गढ़ से गुप्ता जी, जौनपुर से निडर दादा देहरादून से शिवमोहन सिंह जी तैयार होकर बैठे थे, हमारे एंट्री मारते ही बोले आइए भट्ट साहब आपका ही इंतज़ार था, चाय पियेंगे? हमने मना किया तो बोले पीनी ही पड़ेगी हमने फिर हां में मुंडी हिला दी 😂 निडर दादा का आदेश जब तक चाय आती है कुछ सुना दें।  अब भैय्या जो आधा अधूरा याद था वो सब वहां उडेल दिया। चाय पीते पीते सबने कुछ न कुछ सुना ही दिया। आज्ञा ली और सीधे बाथरूम में, हम अन्दर फ्रेश हो रहे थे और बाहर कविताओं का दौर बदस्तूर जारी था। चाय पे कविता, खाने पे कविता लेकिन बाथरूम के अंदर कवि और बाहर सुना रहे कवि अपनी कविता। शास्त्रों में इसे ही गजबई कहा गया है 😝 ख़ैर बाथरूम से कविता सुनते सुनते बाहर आए और जा पहुंचे सीधे मीटिंग हॉल में।

         मीटिंग हॉल में एक जाना पहचाना चेहरा दिखा दिमाग़ पे जोर डाला (वैसे तो अपना ऊपरी माला खाली ही है 🤪) याद आया ये ही वो मोहतरमा हैं जो स्वच्छंद रूप से गोरखपुर वाले कार्यक्रम में सक्रिय थीं। ख़ैर गुफ्तगू शुरू हुई तो उन्होंने बताया कि वो उस कार्यक्रम की सर्वेसर्वा होने के बाद भी असहज महसूस कर रही थीं। जब उन्होंने हमने अनुभव पूछे तो हमने एक शब्द में सत्य बयान कर दिया और वो शब्द था "अराजक माहौल" उन्होंने बेसाख्ता हाथ जोड़कर माफ़ी मांगी और भविष्य के लिए सहयोग मांगा। हमने भी "तथास्तु" कह दिया जिस पर उनके मुखमंडल पर हल्की सी मुस्कान तैर गई। तभी प्रिय सौम्या ने नाश्ते का आह्वाहन किया। इससे अच्छा कुछ हो नहीं सकता था 😊 सो प्लेट ली और ढक्कन उठाया ऐं ये क्या नागपुर की तरह पोहे ने मुस्कुराकर स्वागत किया बगल में दो तीन तरह की छोटी छोटी टिकिया। हमने पोहा प्लेट में उड़ेला और पूछा नारियाल चटनी आज भी नहीं तो पोहा कड़क कर बोला चुपचाप चेप लो बेटा। मुंबई में हमीं तुम्हारा पेट भरे हैं वो भी बिना चटनी वटनी के।भूल गए क्या?😘 बस आगे मति पूछो नई तो बेजत्ती में दाग लग जाएगा।
    
         कार्यक्रम का शुभारंभ तय समय से पंद्रह मिनट देर से हुआ। मंच पर पद्मश्री विद्या बिंदु सिंह, प्रो विशंभर शुक्ल, राम कृष्ण सहस्र बुड्ढे एवम शिवमोहन सिंह मौजूद रहे। सत्र की अध्यक्षता डॉक्टर उमाशंकर शुक्ल ने की। सरस्वती वंदना की ज़िम्मेदारी मुंबई से पधारी किरण तिवारी ने संभाली तत्पश्चात प्रिय सौम्या ने युगधारा संस्था के छः वर्षो का लेखा जोखा प्रस्तुत किया साथ ही कार्यक्रम में उपस्थित सभी सुधिजनों का शानदार ढंग से स्वागत सत्कार भी किया। इसी अवसर पर "गुल्लक टूटी छलके आसूं", "छुपे द्रगो में हज़ार बादल" एवम युगधारा के साझा संकलन समकालीन सृजन के सशक्त हस्ताक्षर (इसमें मै भी शामिल हूं) पुस्तको का लोकार्पण भी किया गया। वहां उपस्थित सभी सुधीजन साहित्य के रसपान के साथ साथ राइट साइड से आ रही सुगंध का भी आनंद ले रहे थे। ठीक डेढ़ बजे लंच घोषित हुआ और भैय्या सब टूट पड़े उस सुगंध के रस्वादन के लिए 😊   

         दूसरे सत्र में जैसा कि होता है कवि सम्मेलन ! और वही अनुरोध कि भैय्या 3 , 4 मिनिट में प्रतिनिधि रचना पढ़े। लेकिन सुनता कौन है और मानता कौन है, माईक हाथ में आ जाए फिर तो कवि हो शायर संबोधन हो या भाषण फेवी क्विक की तरह लोग चिपक ही जाते हैं 😝 हम जैसे सीधे साधे लोगों का इस निर्दई जमाने में क्या काम।🤪 ख़ैर डायस की शोभा बढ़ाने में निडर जौनपुरी, डॉक्टर किरण सिंह, कविता सूद और साथ में हम भी। सभी ने अपनी अपनी प्रस्तुति दी जब हमारा नम्बर आया तो हमने भी प्यारे शहर लखनऊ पर एक  नज़्म प्रस्तुत कर दी। आप भी आनंद लें 

 ग़ज़ल 
गज़ल-2122 21 22


"आह लखनऊ वाह लखनऊ"

 शहरे लखनऊ में आदाब करके, बात बोलो ना
अगर दिन है तो दिन बोलो, नही तुम रात बोलो ना

कहीं लू के थपेडे, ये आज, अपनी जान ना ले ले
मिले राहत करो अहसां, ये अपनी ज़ुल्फ खोलो ना

जिधर भी देखिए बस शोर ही, दिखता है सडको पर
ज़रा कानों में मेरे प्यार की, मिसरी सी घोलो ना

नही आदत किसी से, पेश बे-अदबी से जो आएं 
हिदायत सख्त मेहमां से, ज़ुबां मीठी में बोलो ना

जिसे भी देखिए बस, दे रहा तकरीर नफरत पर
चलो आगे बढो तुम, प्यार पर तहरीर दे लो ना

सभी अपने मगर कोई, कभी भी काम न आता
चलो जैसा भी है रिश्ता, इसे एक बार ढो लो ना

हुआ जो कुछ भी माज़ी में, उसे बस भूलना बेहतर
यही अच्छा है जब बोलो, उसे तुम पहले तोलो ना

नही अच्छी उदासी चेहरे पे तुम, सज सँवर जाओ
नही घर में अगर पानी, तो पय से नैन धो लो ना

नही फुर्सत करे जो मोल, ग्राहकों से मियां अच्छन
रुपैया हो न हो खा लो, पर पहले आम धो लो ना

कि गलियां तंग लखनऊ की, अभी भी याद आती हैं 
कहीं छूटा है कुछ अंदर, मगर दिल साथ हो लो ना

नही भरता मेरा मन, सुनने को, बेताब रहता है
जुबां अवधी में फिर से ‘दीप’ तुम एक बार बोलो ना

      -प्रदीप देवीशरण भट्ट-

         अगर कार्यक्रम समय से समाप्त हो जाए तो क्या कहना। इसके लिए प्रिय सौम्या को 10/10 नंबर। खाने के लिए बाहर निकले लेकिन गर्मी अभी भी हमारी परीक्षा लेने के लिए तैयार थी सो होटल के सामने ही AC रेस्टोरेंट में घुसे, खाया और फिर वापिस होटल के कमरे में। रात 1 बजे तक फिर कवि गोष्ठी फिर जाकर सोना नसीब हुआ। अगले दिन जिनसे मिलना था कह दिया यहीं आ जाओ भईया हम वहां ना आंगें। 😘 होटल छोड़ सीधे रेलवे स्टेशन ट्रेन पकड़ी और सीधे घर। जब गर्मी झेलनी ही है घर ही सही 😊

प्रदीप डी एस भट्ट -5624

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