“बीमार मानसिकता का कोई इलाज नहीं”
पिछले दिनों एक लेख पढ़ रहा था जिसमे राम राज उर्फ़ उदित राज भारतीय खिलाड़ियों पर कुछ लिखने की
चेष्टा कर रहे थे किन्तु जब कुछ ज्यादा समझ नहीं आया तो वही पुराना आरक्षण रूपी
अस्त्र को चला बैठे। समझ नहीं आता हमारे देश मे हर वो व्यक्ति जिसका राजनीति से
कुछ लेना देना हो या न हो आरक्षण पर अपनी विद्यता दिखने से क्यों बाज नहीं आता। अब
यही एक क्षेत्र छुट गया है जहाँ इनका बस चले तो स्पोर्ट्स मे भी कोटा सिस्टम लागू
करवाकर ही माने। उदाहरण अगर उच्च जाति का खिलाड़ी 200 मीटर भाला फेंक सकता है तो
आरक्षित खिलाड़ी को 150 मीटर मे ही पास माना जाएगा, अगर हॉकी मे उच्च जाति का खिलाड़ी 5 गोल करेगा तो आरक्षित खिलाड़ी को 2 गोल
पर ही पदक देना होगा, अगर वेट लिफ्टिंग मे उच्च जाति का
खिलाड़ी 400 पॉण्ड वजन उठाता है तो आरक्षित खिलाड़ी को 250 पॉण्ड पर ही पदक से नवाजा
जाना आवश्यक होगा आदि आदि। और ये सब नियम राष्ट्रीय ही नहीं वरन अंतर्राष्ट्रीय
संस्थाओं जैसे एशियन गेम्स और ओलंपिक मे भी मान्य करने होंगे अन्यथा भारतीय खिलाड़ी
भाग नहीं लेंगे। ये सब बेहूदगियाँ क्यों और कब तक ? एक शोभा डे कम हैं जो अनर्गल प्रलाप करती फिरती हैं जो अब
उस जमात मे उदितराज भी शामिल हो गए हैं।
उदित राज का हालिया बयान कि उदित राज ने ट्वीट किया, "जमैका
के यूसैन बोल्ट ग़रीब थे और तब उनके ट्रेनर ने उन्हें बीफ़ खाने की सलाह दी,
जिसके बाद यूसैन बोल्ट ने ओलंपिक में कुल नौ गोल्ड मेडल जीते."
या “पी वी सिंधु और साक्षी मलिक” के ओलंपिक मे पदक जीतने
पर लगभग 9 लाख लोग गूगल मे ये ढूंढ रहे थे कि इन दोनों खिलाड़ियों कि जाति क्या है ये
कहकर वो क्या साबित करना चाहते हैं।अब प्रश्न ये है कि भई ये उदित
राज कौन हैं और ऐसा प्रलाप क्यों कर रहे हैं। आइये कुछ जानकारी साझा करते हैं।
अब यही एक क्षेत्र छुट गया है जहाँ इनका बस
चले तो स्पोर्ट्स मे भी कोटा सिस्टम लागू
करवाकर ही माने। उदाहरण अगर उच्च जाति का खिलाड़ी 200 मीटर भाला फेंक सकता है तो आरक्षित खिलाड़ी को 150 मीटर मे ही
पास माना जाएगा, अगर हॉकी मे उच्च जाति का खिलाड़ी 5 गोल करेगा तो आरक्षित खिलाड़ी को 2 गोल पर ही
पदक देना होगा, अगर
वेट लिफ्टिंग मे उच्च जाति का खिलाड़ी 400 पॉण्ड वजन उठाता है तो आरक्षित खिलाड़ी को 250 पॉण्ड पर ही पदक से
नवाजा जाना आवश्यक होगा आदि आदि। और ये सब नियम राष्ट्रीय ही नहीं वरन अंतर्राष्ट्रीय
संस्थाओं जैसे एशियन गेम्स और ओलंपिक मे
भी मान्य करने होंगे।
उदित राज का
जन्म 1 जनवरी 1958 को खटीक जाति मे रामनगर (उत्तर प्रदेश) में हुआ। उदित राज ने भारतीय राजनीति मे अपना
भविष्य तलाशने के उद्देश्य से इंडियन जस्टिस पार्टी की स्थापना की। किन्तु अनंत इच्छाओं के रथ पर सवार उदित राज को जब ज्यादा कामयाबी हाथ नहीं
लगी तो फ़रवरी 2014 में उदितराज ने इंडियन जस्टिस
पार्टी का विलय भारतीय जनता पार्टी मे कर लिया और आज वो भाजपा के लोकसभा सांसद
हैं। इससे पहले कि मैं खटीक समाज पर कुछ प्रकाश डालूँ यहाँ ये बताना आवश्यक हो
जाता है कि श्रीमान उदितराज कि पत्नी (सीमा खत्री)एक उच्च जाति “खत्री” से हैं। अगर वो आरक्षण के इतने ही समर्थक हैं तो क्यों नहीं महादलित स्त्री
विवाह किया। इसका अर्थ ये भी हो सकता है कि सीमा खत्री से विवाह उपरांत भी उदित
राज अपने मन से हीन भावना निकाल पाने मे असमर्थ रहे।
इतिहास के आलोक मे अगर नज़र दौड़ाए तो पाएंगे
कि खटिक जाति के लोगों ने धर्मांतरण के विरोध स्वरूप शस्त्र को उठाया और वीरता कि
अनेकों गाथाएँ लिखी किन्तु उदित राज जी को शायद इस का भान नहीं हैं।आज जिसे दलित और अछूत आप मानते
हैं न, उस जाति के कारण हिंदू धर्म का गौरव पताका हमेशा फहराता रहा है। हिंदू
खटिक जाति: एक धर्माभिमानी समाज की उत्पत्ति,
उत्थान एवं पतन का
इतिहास, लेखक- डॉ विजय सोनकर शास्त्री के अनुसार खटिक जाति मूल रूप से वो ब्राहमण जाति है, जिनका
काम आदि काल में याज्ञिक पशु बलि देना होता था।किन्तु इसमें थोड़ा बहुत नहीं बहुत
ज्यादा मतभेद हैं ।
आदि काल में यज्ञ में बकरे की बलि दी जाती थी। संस्कृत में इनके लिए शब्द है, 'खटिटक'।
इसी
खट्टिक का अप्रभंश खटीक है। खटीक जाति के लोग कितने अदम्य साहसी थे इसका जिक्र प्रभात प्रकाशन एवम आजादी से पूर्व कोलकाता में हुए
हिंदू मुस्लिम दंगे में खटिक जाति का जिक्र, पुस्तक 'अप्रतिम नायक: श्यामाप्रसाद मुखर्जी' में
आया है। यह पुस्तक भी प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है। डॉ विजय सोनकर शास्त्री के लिखे।
ऐतिहासिक द्रष्टिकोण से देखने पर आपको इस जाति की महानता और कर्मठता का पता
चलता हैं । आजादी से पूर्व जब
मोहम्मद अलि जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन की घोषणा की थी तो मुसिलमों ने कोलकाता
शहर में हिंदुओं का नरसंहार शुरू किया, लेकिन एक दो दिन में ही पासा पलट गया और खटिक
जाति ने मुस्लिमों का इतना भयंकर नरसंहार किया कि बंगाल के मुस्लिम लीग के मुख्यमंत्री
ने सार्वजनिक रूप से कहा कि हमसे भूल हो गई। बाद में इसी का बदला मुसलमानों ने
वर्तमान बंग्लादेश में स्थित नाओखाली में लिया। इसी प्रकार 1857
की लडाई में मेरठ व उसके आसपास अंग्रेजों के पूरे के पूरे परिवार को मौत के घाट
उतारने वालों में खटिक समाज सबसे आगे था। इससे गुस्साए अंग्रेजों ने 1891
में खटिक जाति को अपराधि जाति घोषित कर दिया। अपराधी एक व्यक्ति होता है, पूरा
समाज नहीं। लेकिन जब आप मेरठ से लेकर कानपुर तक 1857 के विद्रोह की दासतान पढेंगे तो
रोएं खडे हो जाए्ंगे। जैसे को तैसा पर चलते हुए खटिक जाति ने न केवल
अंग्रेज अधिकारी, बल्कि उनकी पत्नी बच्चों को इस निर्दयता से मारा कि
अंग्रेज थर्रा उठे। क्रांति को कुचलने के बाद अंग्रेजों ने खटिकों के गांव के गांव
को सामूहिक रूप से फांसी दे दिया गया और बाद में उन्हें अपराधि जाति घोषित कर
समाज के एक कोने में ढकेल दिया।
आज हम आप खटिकों को अछूत मानते हैं,
क्योंकि हमें खटीक जाति का सही इतिहास न बताकर उस इतिहास को
दबा दिया गया है।
आप यह जान लीजिए कि दलित शब्द का सबसे पहले प्रयोग अंग्रेजों ने 1931
की जनगणना में 'डिप्रेस्ड क्लास' के रूप में किया था। उसे ही बाबा साहब अंबेडकर ने अछूत
के स्थान पर दलित शब्द में तब्दील कर दिया। इससे पूर्व पूरे भारतीय
इतिहास व साहित्य में 'दलित' शब्द का उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। हमने और आपने मुस्लिमों के डर से
अपना धर्म नहीं छोडने वाले, हिंसा और सूअर पालन के जरिए इस्लामी आक्रांताओं का कठोर
प्रतिकार करने वाले एक शूरवीर खटिक जाति को आज दलित वर्ग में रखकर अछूत की तरह व्यवहार
किया है और आज भी कर रहे हैं। हमें शर्म भी नहीं आती, जिन
लोगों ने हिंदू धर्म की रक्षा की, वो लोग ही हमारे समाज से बहिष्कृत हैं। मध्यकाल में जब
क्रूर इस्लामी अक्रांताओं ने हिंदू मंदिरों पर हमला किया तो सबसे पहले खटिक जाति
के लोगों
ने ही उनका प्रतिकार
किया। राजा व उनकी सेना तो बाद में आती थी। तैमूरलंग को दीपालपुर व अजोधन में खटिक
योद्धाओं ने ही रोका था और सिकंदर को भारत में प्रवेश से रोकने वाली सेना में भी
सबसे अधिक खटिक जाति के ही योद्धा थे। तैमूर खटिकों के प्रतिरोध से इतना भयाक्रांत
हुआ कि उसने सोते हुए लाखों खटिक सैनिकों की हत्या करवा दी और एक लाख सैनिकों के
सिर का ढेर लगवाकर उस पर रमजान की तेरहवीं तारीख पर नमाज अदा की।मध्यकालीन बर्बर
दिल्ली सल्तनत में गुलाम, तुर्क, खिलजी, तुगलक, सैयद, लोदी वंश आदि और बाद में मुगल शासनकाल में जब डरपोक
हिंदू जाति मौत या इस्लाम चुनने में से इस्लाम का चुनाव कर रही थी तो खटिक
जाति ने खुद के धर्म और अपनी बहु बेटियों को बचाने के लिए अपने घर के आसपास सूअर
बांधना शुरू किया। इस्लाम में सूअर को हराम माना गया है और खटिकों ने मुस्लिम
शासकों से बचाव के लिए सूअर पालन शुरू कर दिया। उसे उन्होंने हिंदू के देवता विष्णु
के वराह (सूअर) अवतार के रूप में लिया। मुस्लिम जब गो हत्या करने
लगे तो उसके प्रतिकार स्वरूप खटिकों ने सूअर का मांस बेचना शुरू किया और धीरे
धीरे यह स्थिति आई कि वह अपने ही हिंदू समाज में पद-दलित होते चले गए।
ऐसी महान
जाति जिसने हिन्दू समाज को आक्रांतियों से बचाने का कार्य किया उस जाति मेन
पैदा हुआ एक व्यक्ति अपनी जाति के इतिहास के विषय मे कैसे नहीं जनता या जानना नहीं
चाहता। शायद इसलिए कि अगर उसने इतिहास का हवाला दिया तो वर्तमान मे जो उसकी जो साख
या पहचान बनी हुई है वो धूल-धूसरित होने का भय तो नहीं। उदित राज का बैडमिंटन
खिलाड़ी के विषय मे यह कहना कि “जहां एक तरफ पी वी सिंधु के नाम का जयकारा लग
रहा था वहीं दूसरी तरफ भारी संख्या में लोग गूगल पर यह खोजने में जुटे थे कि वह
किस जाति कि है” और ये सिलसिला क्वाटर फ़ाइनल से ही शुरू हो गया था,उदित राज का
यह कहना कि जब सिंघू केरोलिना मरीन से फ़ाइनल में खेल रही थी तब 9 लाख लोग गूगल पर
उनकी जाति ढूंढ रहे थे और जैसे ही वे सेमीफिनल मे पहुंची तो ये संख्या 10 गुना तक
बढ़ गई। कुछ ऐसा ही साक्षी मालिक के बारे में भी टिप्पणी की गई है। शायद उदितराज जी
को यह इल्म नहीं है कि साक्षी मालिक हरियाणा से हैं और हरियाणा में मालिक मतलब ‘जाट’ मालिक वैसे मालिक सरनेम पंजाबी भी लिखते
हैं और converted मुस्लिम भी तो साक्षी के विषय मे तो clear-cut
है कि वो जाट है और हिन्दू भी है अब प्रश्न रहा पी वी सिंधु का तो
उदित राज जी कृपया ये समझाएँ कि उन 9 लाख या दस गुना 90 लाख लोगों मे से से कितने
दलित थे कितने उच्च जाति से संबंध रखते थे शायद दलित ही ये खोजबीन कर रहे हों कि
चलो दोनों मे से अगर एक भी दलित खिलाड़ी निकली तो वो उसे अपने राजनीतीक तवे पर कुछ
रोटियाँ सेंकने का साधन बना पाएँ।
इसी लेख मे आगे उदित राज क्रिकेट में
कांबली(दलित) और तेंदुलकर (ब्राह्मण) का जिक्र करना नहीं भूले। फिर उन्होने प्रणव
धनवाडे और अर्जुन तेंदुलकर का भी जिक्र किया। ये विषय अलग है कि अर्जुन का चयन
पूर्व में ही किया जा चुका था। मतलब आज पढे लिखे लोगों मे जाति को लेकर इतने विकार
भर गए हैं कि अनपढ़ों को मैं उनसे ज्यादा बेहतर मानने लगा हूँ। ऐसा इसलिए भी कि आज
तक दलित, महादलित का कार्ड खेलकर पहले
काँग्रेस और अब तो सभी राजनैतिक पार्टियां अपनी रोटियाँ सेकने में कोई कसर नहीं
छोडती। परसों ही “आप” के विधायक संदीप कुमार सेक्स स्केण्डल में पकड़े गए अरविंद
केजरीवाल ने तुरत फुरत उन्हे मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया और कल उनका वक्तव्य
आया कि चूँकि मैं दलित हूँ इसलिए मेरे खिलाफ साजिश रची गई है। आजकल तो ये फैशन बन
गया है कि आप पर कोई कानूनी कार्रवाई हो तो आप तुरंत प्रभाव से प्रलाप करना शुरू
कर दीजिये कि चूँकि आप दलित हैं इसलिए उच्च जातियाँ आपके विरुद्ध षड्यन्त्र रच रही
हैं। मतलब बेहूदगियों को पराकाष्ठा।
:: प्रदीप
भट्ट :::
02:09:2016
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