Saturday, 24 September 2016

राजभाषा हिन्दी




"अपनी अस्मिता के लिए लड़ती हमारी राजभाषा “हिन्दी”

      पिछले कई दशकों से सरकारी कार्यालयों मे हिन्दी पखवाड़ा मनाया जाता है या ये कहें की हम प्रत्येक वर्ष अपनी राजभाषा का “जन्मदिन मानते हैं” कहना ज्यादा श्रेयस्कर होगा। 14 सितंबर ,1949 को भारत की सवींधन सभा ने हिन्दी को संधि की राजभाषा घोषित किया आखिर 26 जनवरी 1950 जब से इसे राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ तब से अब तक हम क्यों की पूरे भारतवर्ष में अपनी राजभाषा को स्थापित नहीं कर सके? इसके लिए बहुत से तर्क-वितर्क दिये जा चुके हैं और आगे भी दिये जाते रहेंगे। लेकिन पिछले साढ़े छे साल में अगर आज भी अपना वजूद तलाश रही है तो इसके लिए और कोई नहीं सिर्फ हम भारत के लोग ही ज्यादा दोषी हैं और उससे भी ज्यादा हिन्दी भाषी प्रदेश के लोग। बात कुछ अटपटी सी लगेगी किन्तु सत्य है। हिन्दी प्रदेशों को छोडकर अन्य प्रदेशों के लोगों को इसके लिए इसलिए दोष देना ठीक नहीं क्यों कि वहाँ उन्हें अँग्रेजी भाषा भारत के अन्य प्रदेशों के लोगों से संवाद स्थापित करने में हिन्दी से ज्यादा सहज लगी। वो तो भला हो 1991 में आए उदारीकरण का जिसने विश्व व्यापार के लिए भारत के दरवाजे खोल दिये और जिन जिन देशों के लोगों को भारत में व्यापार करना था उन्होने अपने उत्पाद बेचने और उन्हें आम जन तक लोकप्रिय बनाने हेतु अपने देश के लोगों को भारत में भेजने से पूर्व हिन्दी भाषा का ज्ञान अनिवार्य कर दिया और इसके लिए उन्होने अपने अपने देश में हिन्दी के संक्षिप्त कोर्स प्रारम्भ किए। इसमें दक्षिण कोरिया प्रमुख रहा जिसने इसकी अगुवाई की। भारतीय जनमानस में अँग्रेजी एक भाषा न होकर प्रतिष्ठा की भाषा बन गई है।अगर आपको अँग्रेजी का ज्ञान नहीं है तो आप अनपढ़ समान समझ लिए जाएंगे और अगर आपको अच्छी अँग्रेजी आती है तो आपको सभी विषयों का जानकार मन लिया जाएगा।मैं व्यक्तिगत रूप से इसे एक बीमार मानसिकता मानता हूँ॥ जिसमें हमारे समाज के ज़्यादातर लोग जकड़े हुए हैं। इससे पहले कि मैं हिन्दी भाषा के विषय में कुछ जानकारी साझा करूँ ये जानना आवशयक है कि भारत में क्यों लोग इंग्लिश भाषा के इतने दीवाने हैं या ये उनकी मजबूरी है।




      आपको जानकार आश्चर्य होगा कि सन 1540 तक ग्रेट ब्रिटेन कि आधिकारिक राजभाषा फ्रेंच थी। ये तो भला हो वहाँ की कुछ ताकतवर लॉबी का जिन्होने तय किया कि वे अबसे फ्रेंच को राष्ट्र भाषा के रूप में स्वीकार नहीं करेंगें। इसी क्रम से वहाँ एक बिल लाया गया जिसमें फ्रेंच भाषा और फ्रेंच लोगों को देश निकाला दे दिया गया और 1540 अंगेजी इंग्लैंड की आधिकारिक राष्ट्र भाषा बन गई।  इंग्लिश एक West जर्मेनिक भाषा है जिसकी उत्पत्ति एंग्लो Frisian   और  Lower Saxon बोलियों से हुई है। इन बोलियों को Britain में 5 वीं शताब्दी में जर्मन खानाबदोशों और रोमन सहायक सेनाओं द्वारा वर्त्तमान के उत्तर पश्चिमी जर्मनी और उत्तरी Neither Land के विभिन्न भागों से लाया गया था। इन जर्मेनिक जनजातियों में से एक थी Angles, जो संभवतः Angolan   से आये थे।बीड लिखते हैं कि उनका पूरा देश ही, अपनी पुरानी भूमि को छोड़कर, ब्रिटेन आ गया था। 'इंग्लैंडऔर 'इंग्लिश ' नाम इस जनजाति के नाम से ही प्राप्त हुए हैं।Anglo Saxon ने 449 ई. में  डेन्मार्क और Jutland से आक्रमण करना प्रारंभ किया था।उनके आगमन से पहले इंग्लैंड के स्थानीय लोग ब्रायोथिनिक  सेल्टिक भाषा बोलते थे। ये विषय अलगा हैं कि बोली में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन 1066 के  नॉर्मन आक्रमण  के पश्चात् ही आये, परन्तु भाषा ने अपने नाम को बनाये रखा और नॉर्मन आक्रमण से  पूर्व की बोली को अब पुरानी अँग्रेजी  कहा जाता है।शुरू शुरू में विविध बोलियों का एक समूह थी जो की ग्रेट ब्रिटेन के एंग्लो-सेक्सन राज्यों की विविधता को दर्शाती है। इनमें से एक बोली, लेट वेस्ट सेक्सन, अंततः अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल हुई. मूल पुरानी अंग्रेज़ी भाषा फिर आक्रमण की दो लहरों से प्रभावित हुई। पहला जर्मेनिक परिवार के  उत्तरी जर्मेनिक  शाखा के भाषा बोलने वालों द्वारा था ।उन्होंने 8 वीं और 9 वीं सदी में ब्रिटिश द्वीपों के कुछ हिस्सों को जीतकर उप-निवेश बना दिया. दूसरा 11 वीं सदी के नोर्मस  थे, जो की पुरानी नॉर्मन भाषा बोलते थे।समय बीतने के साथ, इसने अपने विशिष्ट नॉर्मन तत्व को पैरिसियन फ्रेंच और, तत्पश्चात, अंग्रेजी के प्रभाव के कारण खो दिया. अंततः यह एंग्लो फ्रेंच  विशिष्ट बोली में तब्दील हो गयी। इन दो हमलों के कारण अंग्रेजी कुछ हद तक "मिश्रित" हो गयी (हालाँकि विशुद्ध भाषाई अर्थ में यह कभी भी एक वास्तविक मिश्रित भाषा नहीं रही; मिश्रित भाषाओँ की उत्पत्ति अलग अलग भाषाओँ को बोलने वालों के मिश्रण से होती है। वे लोग आपसी बातचीत के लिए एक मिली जुली जबान का विकास कर लेते हैं) आठवीं और नवीं सदी में उत्तर से वाइकिंग्स और नोर्स क़बीलों के हमले भी आरंभ हो गए थे और इस प्रकार वर्तमान इंगलैंड का क्षेत्र कई प्रकार की भाषा बोलने वालों का देश बन गया और कई पुराने शब्दों को नए अर्थ मिल गए। जैसे ड्रीम (dream) का अर्थ उस समय तक आनंद लेना था लेकिन उत्तर के वाइकिंग्स ने इसे सपने का अर्थ दे दिया। इसी प्रकार स्कर्ट का शब्द भी उत्तरी हमलावरों के साथ यहाँ आया। लेकिन इसका रूप बदल कर शर्ट (shirt) हो गया। बाद में दोनों शब्द अलग-अलग अर्थों में प्रयुक्त होने लगे और आज तक हो रहे हैं।स्कैंदिनेवियंस के साथ सह निवास के परिणामस्वरूप अंग्रेजी भाषा के एंग्लो-फ़्रिसियन कोर का शाब्दिक अनुपूरण हुआ; बाद के नॉर्मन कब्जे के परिणामस्वरूप भाषा के जर्मनिक कोर का सुन्दरीकरण हुआ, इसमें रोमैन्स भाषा से कई सुन्दर शब्दों को समाविष्ट किया गया। यह नोर्मन प्रभाव मुख्यतया अदालतों और सरकार के माध्यम से अंग्रेजी में प्रविष्ट हो गया। इस प्रकार, अंग्रेजी एक "उधार" की भाषा” के रूप में विकसित हुई जिसमें लचीलापन और एक विशाल शब्दावली थी।

      आपको जानकार आश्चर्य होगा कि अँग्रेजी भाषा हिन्द-यूरोपीय भाषा परिवार में आती है और इस प्रकार हिन्दी उनर्दू फारसी आदि भाषाओं के साथ इसका दूर का सही लेकिन समन्ध तो है ही। इसे दुनिया की सर्वप्रथम अन्तर्राष्ट्रीय भाषा माना जाता है। ये दुनिया के कई देशों की मुख्य राजभाषा है और आज के दौर में कई देशों में (मुख्यतः भूतपूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में) विज्ञान, कम्प्यूटर, साहित्य, राजनीति और उच्च शिक्षा की भी मुख्य भाषा है। इतिहास की दृष्टि से, अंग्रेजी भाषा की उत्पत्ति 5वीं शताब्दी की शुरुआत में इंग्लैंड  में बसने वाले  एंग्लो सेकसन  लोगों द्वारा लायी गयी अनेक बोलियों, जिन्हें अब  OLD ENGLISH  कहा जाता है, से हुई है। वाइकिंग हमलावरों की  पुरातन नोर्स भाषा का अंग्रेजी भाषा पर गहरा प्रभाव पड़ा है। नॉर्मन विजय के उपरांत पुरानी अंग्रेजी का विकास  Middle English के रूप में हुआ, इसके लिए नॉर्मन शब्दावली और वर्तनी के नियमों का भारी मात्र में उपयोग हुआ। वहां से Modern English का विकास हुआ और अभी भी इसमें अनेक भाषाओँ से विदेशी शब्दों को अपनाने और साथ ही साथ नए शब्दों को गढ़ने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। एक बड़ी मात्र में अंग्रेजी के शब्दों, खासकर तकनीकी शब्दों, का गठन प्राचीन ग्रीक और लैटिन की जड़ों पर आधारित है।

      हिन्‍दी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है। हिंदी शब्द की उत्पति 'सिन्धु' से जुडी है। 'सिन्धु' 'सिंध' नदी को कहते है। सिन्धु नदी के आस-पास का क्षेत्र सिन्धु प्रदेश कहलाता है। संस्कृत शब्द 'सिन्धु' ईरानियों के सम्पर्क में आकर हिन्दू या हिंद हो गया। ईरानियों द्वारा उच्चारित किये गए इस हिंद शब्द में ईरानी भाषा का 'एक' प्रत्यय लगने से 'हिन्दीक' शब्द बना है जिसका अर्थ है 'हिंद का'। यूनानी शब्द 'इंडिका' या अंग्रेजी शब्द 'इंडिया' इसी 'हिन्दीक' के ही विकसित रूप है। हिंदी का साहित्य 1000 ईसवी से प्राप्त होता है। इससे पूर्व प्राप्त साहित्य अपभ्रंश में है इसे हिंदी की पूर्व पीठिका माना जा सकता है। आधुनिक भाषाओं का जन्म अपभ्रंश के विभिन्न रूपों से इस प्रकार हुआ है:-

अपभ्रंश 
आधुनिक भाषाएं
शौरसेनी
पश्चिमी हिंदी, राजस्थानी, पहाड़ी , गुजराती
पैशाची
लहंदा, पंजाबी
ब्राचड
सिंधी
महाराष्ट्री
मराठी
मगधी
बिहारी, बंगला, उड़िया असमिया
पश्चिमी हिंदी
खड़ी बोली या कौरवी, ब्रिज, हरियाणवी, बुन्देल, कन्नौजी
पूर्वी हिंदी
अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी
राजस्थानी
पश्चिमी राजस्थानी (मारवाड़ी) पूर्वी राजस्थानी
पहाड़ी
पश्चिमी पहाड़ी, मध्यवर्ती पहाड़ी (कुमाऊंनी-गढ़वाली)
बिहारी
भोजपुरी, मागधी, मैथिली 

       प्रारंभिक, 1000 से 1100 ईसवी के आस-पास तक हिंदी अपभ्रंश के समीप ही थी। इसका व्याकरण भी अपभ्रंश के सामान काम कर रहा था। धीरे-धीरे परिवर्तन होते हुए और 1500 ईसवी आते-आते हिंदी स्वतंत्र रूप से खड़ी हुई। 1460 के आस-पास देश भाषा में साहित्य सर्जन प्रारंभ हो चुका हो चुका था। इस अवधि में दोहा, चौपाई ,छप्पय दोहा, गाथा आदि छंदों में रचनाएं हुई है। इस समय के प्रमुख रचनाकार गोरखनाथ, विद्यापति, नरपति नालह, चंदवरदाई, कबीर आदि है।अपने प्रारंभिक दौर में हिंदी सभी बातों में अपभ्रंश के बहुत निकट थी इसी अपभ्रंश से हिंदी का जन्म हुआ है। आदि अपभ्रंश में अ, , , , उ ऊ, , औ केवल यही आठ स्वर थे।ऋ ई, , स्वर इसी अवधि में हिंदी में जुड़े।
मध्यकाल -(1500-1800 तक) इस अवधि में हिंदी में बहुत परिवर्तन हुए। देश पर मुगलों का शासन होने के कारन उनकी भाषा का प्रभाव हिंदी पर पड़ा। परिणाम यह हुआ की फारसी के लगभग 3500 शब्द, अरबी के 2500 शब्द, पश्तों से 50 शब्द, तुर्की के 125 शब्द हिंदी की शब्दावली में शामिल हो गए। यूरोप के साथ व्यापार आदि से संपर्क बढ़ रहा था। परिणाम स्वरूप पुर्तगाली, स्पेनी, फ्रांसीसी और अंग्रेजी के शब्दों का समावेश हिंदी में हुआ। मुगलों के आधिपत्य का प्रभाव भाषा पर दिखाई पड़ने लगा था। मुगल दरबार में फारसी पढ़े-लिखे विद्वानों को नौकरियां मिली थी परिणामस्वरूप पढ़े-लिखे लोग हिंदी की वाक्य रचना फारसी की तरह करने लगे। इस अवधि तक आते-आते अपभ्रंश का पूरा प्रभाव हिंदी से समाप्त हो गया जो आंशिक रूप में जहां कहीं शेष था वह भी हिंदी की प्रकृति के अनुसार ढलकर हिंदी का हिस्सा बन रहा था। इस अवधि में हिंदी के स्वर्णिम साहित्य का सृजन हुआ। भक्ति आंदोलन ने देश की जनता की मनोभावना को प्रभावित किया। भक्ति कवियों में अनेक विद्वान थे जो तत्सम मुक्त भाषा का प्रयोग कर रहे थे। राम और कृष्ण जन्म स्थान की ब्रज भाषा में काव्य रचना की गई, जो इस काल के साहित्य की मुख्यधारा मानी जाती हैं। इसी अवधि में दखिनी हिंदी का रूप सामने आया। पिंगल, मैथिली और खड़ी बोली में भी रचनाएं लिखी जा रही थी। इस काल के मुख्य कवियों में महाकवि तुलसीदास, संत सूरदास, संत मीराबाई, मलिक मोहम्मद जायसी, बिहारी, भूषण हैं। इसी कालखंड में रचा गया 'रामचरितमानस' जैसा ग्रन्थ विश्व में विख्यात हुआ।  हिंदी में क, , , , , ये पांच नई ध्वनियां, जिनके उच्चारण प्रायः फारसी पढ़े-लिखे लोग ही करते थे। इस काल के भक्त निर्गुण और सगुन उपासक थे। कवियों को रामाश्रयी और कृष्णाश्रयी शाखाओं में बांटा गया। इसी अवधि में रीतिकालीन काव्य भी लिखा गया।आधुनिक काल (1800 से अब तक )हिंदी का आधुनिक काल देश में हुए अनेक परिवर्तनों का साक्षी है। परतंत्र में रहते हुए देशवासी इसके विरुद्ध खड़े होने का प्रयास कर रहे थे। अंग्रेजी का प्रभाव देश की भाषा और संस्कृति पर दिखाई पड़ने लगा। अंग्रेजी शब्दों का प्रचलन हिंदी के साथ बढ़ने लगा। मुगलकालीन व्यवस्था समाप्त होने से अरबी, फारसी के शब्दों के प्रचलन में गिरावट आई। फारसी से स्वीकार क, , , , फ ध्वनियों का प्रचलन हिंदी में समाप्त हुआ। अपवाद स्वरूप कहीं-कहीं ज और फ ध्वनि शेष बची। क, , ग ध्वनियां क, , ग में बदल गई। इस पूरे कालखंड को 1800 से 1850 तक और फिर 1850 से 1900 तक तथा 1900 का 1910 तक और 1950 से 2000 तक विभाजित किया जा सकता है।

      संवत 1830 में जन्मे मुंशी सदासुख लाल नियाज ने हिंदी खड़ी बोली को प्रयोग में लिया। खड़ी बोली उस समय भी अस्तित्व में थी। खड़ी बोली या कौरवी का उद्भव शौरसेनी अपभ्रंश के उत्तरी रूप से हुआ है। इसका क्षेत्र देहरादून का मैदानी भाग, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरुत , दिल्ली बिजनौर ,रामपुर ,मुरादाबाद है। इस बोली में पर्याप्त लोक गीत और लोक कथाएं मौजूद हैं। खड़ी बोली पर ही उर्दू, हिन्दुस्तानी और दक्खनी हिंदी निर्भर करती है। मुंशी सदा सुखलाल नियाज के आलावा इंशा अल्लाह खान इसी अवधि के लेखक है। इनकी रानी केतकी की कहानी पुस्तक प्रसिद्ध है। लल्लूलाल, इस काल खंड के एक और प्रसिद्ध लेखक हैं। इनका जन्म संवत 1820 में हुआ था कोलकाता के फोर्ट विलियम कॉलेज के अध्यापक जॉन गिलक्रिस्ट के अनुरोध पर लल्लूलाल जी ने पुस्तक 'प्रेम सागर' खड़ी बोली में लिखी थी। प्रेम सागर के आलावा सिंहासन बत्तीसी, बेताल पचीसी, शकुंतला नाटक भी इनकी पुस्तकें हैं जो खड़ी बोली में, ब्रज और उर्दू के मिश्रित रूप में हैं। इसी कालखंड के एक और लेखक सदल मिश्र हैं। इनकी नचिकेतो पाख्यान पुस्तक प्रसिद्ध है। सदल मिश्र ने अरबी और फारसी के शब्दों का प्रयोग न के बराबर किया है। खड़ी बोली में लिखी गई इस पुस्तक में संस्कृत के शब्द अधिक हैं। संवत 1860 से 1914 के बीच के समय में कालजयी कृतियां प्राय: नहीं मिलती। 1860 के आसपास तक हिंदी गद्य प्राय: अपना निश्चित स्वरुप ग्रहण कर चुका था। इसका लाभ लेने के लिए अंग्रेजी पादरियों ने ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए बाईबल का अनुवाद खड़ी बोली में किया यद्यपि इनका लक्ष्य अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करना था। तथापि इसका लाभ हिंदी को मिला देश की साधारण जनता अरबी-फारसी मिश्रित भाषा में अपने पौराणिक आख्यानों को कहती और सुनती थी। इन पादरियों ने भी भाषा के इसी मिश्रित रूप का प्रयोग किया। अब तक 1857 का पहला स्वतंत्रता युद्ध लड़ा चुका था अतः अँग्रेजी शासकों की कूटनीति के सहारे हिंदी के माध्यम से बाइबिल के धर्म उपदेशों का प्रचार-प्रसार खूब हो रहा था। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी नव-जागरण की नींव रखी। उन्होंने अपनें नाटकों, कविताओं, कहावतों और किस्सा गोई के माध्यम से हिंदी भाषा के उत्थान के लिए खूब काम किया। अपने पत्र 'कविवचन सुधा' के माध्यम से हिंदी का प्रचार-प्रसार किया। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कविता को ब्रज भाषा से मुक्त किया उसे जीवन के यथार्थ से जोड़ा। 

     
सन 1866 की अवधि के लेखकों में पंडित बद्री‍नारायण चौधरी, पंडित प्रताप नारायण मिश्र, बाबू तोता राम, ठाकुर जगमोहन सिंह, पंडित बाल कृष्ण भट्ट, पंडित केशवदास भट्ट ,पंडित अम्बिका दत्त व्यास, पंडित राधारमण गोस्वामी आदि आते हैं। हिंदी भाषा और साहित्य को परमार्जित करने के उद्देश्य से इस कालखंड में अनेक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इनमें हरिश्चन्द्र चन्द्रिका, हिन्दी बंगभाषी, उचितवक्ता, भारत मित्र, सरस्वती, दिनकर प्रकाश आदि। 1900 वीं सदी का आरंभ हिन्दी भाषा के विकास की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इस समय देश में स्वतंत्रता आंदोलन प्रारंभ हुआ था। राष्ट्र में कई तरह के आंदोलन चल रहे थे। इनमें कुछ गुप्त और कुछ प्रकट थे पर इनका माध्यम हिंदी ही थी अब हिंदी केवल उत्तर भारत तक ही सीमित नहीं रह गई थी। हिंदी अब तक पूरे भारतीय आन्दोलन की भाषा बन चुकी थी। साहित्य की दृष्टि से बांग्ला, मराठी हिन्दी से आगे थीं परन्तु बोलने वालों के लिहाज से हिन्दी सबसे आगे थी। इसीलिए हिन्दी को राजभाषा बनाने की पहल गांधीजी समेत देश के कई अन्य नेता भी कर रहे थे। सन 1918 में हिंदी साहित्य सम्मलेन की अध्यक्षता करते हुए गांधी जी ने कहा था की हिंदी ही देश की राष्ट्रभाषा होनी चाहिए। सन 1900 से लेकर 1950 क हिंदी के अनेक रचनाकारों ने इसके विकास में योगदान दिया इनमे मुंशी प्रेमचंद ,जयशंकर प्रसाद, माखनलाल चतुर्वेदी , मैथिलीशरण गुप्त, सुभद्राकुमारी चौहान, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पन्त, महादेवी वर्मा आदि।

      और अब अंत में 2004 के आंकड़ो पर यदि द्रष्टि डाली जाए तो इस समय देश में भाषायी अनुपात इस प्रकार है:-
भाषा
बोलने वाले प्रतिशत में (2004 के अनुसार)
वर्ष 2016 अनुमान के आधार पर
हिन्दी
80.5 करोड़
100 करोड़ से ऊपर
उर्दू
6 करोड़
6.5 करोड़
मैथिली
2.4 करोड़
2.75 करोड़
मारवाड़ी
1.2 करोड़
1.3 करोड़
मगधी
1.1 करोड़
1.5 करोड़
हरियाणवी
1.3 करोड़
1.7 करोड़
छतीसगढ़ी
1.1 करोड़
1.4 करोड़

 अगर हम विशुद्ध हिन्दी बोलने वाले देखना चाहे तब भी ये आंकड़ा लगभग 63 करोड़ बैठता है।

      2015 के आंकड़े के अनुसार 50 मिलियन या उससे ज्यादा बोली जाने वाली 26 भाषाओं में हिन्दी 5वें नंबर पर है, बंगाली भाषा 7वें पायदान पर,  उर्दू 12 स्थान पर, पंजाबी 13वें स्थान पर,तमिल सत्तरहवें स्थान,  तेलगु 20 वें स्थान पर और मराठी 23वें पर अपना कब्जा जमाये हुए हैं।

       चलते चलते एक खुशखबरी ये कि मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है जहां engineer की पढ़ाई अब हिन्दी माध्यम से भी की जाएगी।



::: प्रदीप भट्ट :::

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