“ Point-NJ-9842 - सियाचिन- “जंगली गुलाब”
कुछ साल पहले मैंने
सियाचिन पर तैनात सैनिको के विषय मे एक लेख पढ़ा था जिससे पढ़कर ज्ञात हुआ कि दुनिया
के सबसे दुर्गम और सबसे ऊंचे हिमखंड पर माइनस 60 डिग्री पर तैनात ये हमारे बहादुर सैनिक किस प्रकार मौत से
आँख मिचौली खेलते हैं। जब वहाँ पर आम आदमी का रह पाना किसी भी द्रष्टि से असम्भव
हो तो उन परिस्थियों मे भारतीय सेना के ये जाबांज सिपाही सिर्फ अपने आप को जिंदा
रखने का यत्न ही नहीं करते वरन वहाँ से कुछ ही दूरी पर स्थित पाकिस्तानी पोस्ट से
भी से भी अपनी पोस्ट की रक्षा पूरी द्रढ़ता और जाबांजी से करते हैं। यह भारतीय सेना
के अदम्य एवम अद्भुत साहस की सोच का परिचय दुनियाँ की अन्य शक्तिशाली सेनाओ को
कराती है। इससे पहले कि मै सियाचिन के विषय मे कुछ और जानकारी साझा करूँ आपको
सियाचिन का अर्थ बताना चाहत हूँ। सियाचिन का एक पास एक बाल्टिस्तान नाम का एरिया
पड़ता है और वहाँ कि local language मे
सियाचिन का अर्थ है (“सिया ’ मतलब “जंगली गुलाब
‘ और “चिन’ जिसे स्थानीय भाषा
मे चुन भी कहते हैं का अर्थ है “बहुत सारा’
यानि ऐसा जंगली गुलाब जो कि बहुतायत मे पाया जाता हो। “सियाचुन’ धीरे धीरे स्थानीय भाषा मे बिगड़ते बिगड़ते सियाचिन कहलाया जाना लगा और ऐसा
भारत द्वारा 1984 मे वहाँ पर अपनी सेना की तैनाती के पश्चात ज्यादा प्रचलित हुआ।और
ये मसला विश्व परिदृश्य छा गया ।
सियाचिन
काराकोरम के जो पाँच बड़े हिमनद हैं उनमे सबसे बड़ा है इसे दुनियाँ का दूसरा सबसे बड़ा हिमनद होने का भी गौरव प्राप्त
है। सियाचिन का स्रोत इन्दिरा कोल पर 5753 मीटर और अंतिम छोर पर 3620 मीटर है। यह
काराकोरम रेंज मे भारत और पाकिस्तान की नियंत्रण रेखा के निकट देशांतर -77.10 (East) और अक्षांश -35.42(North)
मे स्थित है। सामरिक रुप से यह भारत और पाकिस्तान के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। यह विश्व का
सबसे ऊंचा युद्ध क्षेत्र है। इस पर सेनाएँ तैनात रखना दोनों ही देशों के लिए महंगा
सौदा साबित हो रहा है। सूत्रों का कहना है कि सियाचिन में भारत के 10 हजार सैनिक
तैनात हैं और इनके रखरखाव पर प्रतिदिन ५ करोड़ रुपये का खर्च आता है। यहाँ की
भोगोलिक और प्राक्रातिक स्थिति ऐसी है कि सैनिको को अपने आप को सहेज कर रखना ही एक
कठिन चुनौती है अगर उनकी एक उंगली भी विशेष ड्रेस से बाहर आ जाए तो वो काटकर गिर
जाएगी और ऐसी परिस्थिति मे हमारे ये जवान स्वम को फिट रखने के साथ साथ अपने
हथियारों को भी समय समय पर गर्म करते रहते हैं ताकि अगर कभी इनके इस्तेमाल कि
आवशयकता आन पड़े तो ये काम कर सके। 1985 से अभी NJ-9842 पॉइंट पर लगभग 2000 सैनिको को विपरीत मौसम के कारण अपनी जान से हाथ धोना
पड़ा है ।
आखिर
क्या कारण है कि उजाड़, वीरान और सदा बर्फ
से ढके रहने वाले इस हिमखंड “सियाचिन ‘ मे भारत, प्रतिदिन 5 करोड़ से ज्यादा रूपये खर्च कर रहा है और अपने 10 हजार के
लगभग सैनिको को मौत से आँख मिचौली करवा
रहा है। ऐसा इसलिए कि 1972 मे भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद जब श्रीमति इन्दिरा
गांधी और पाकिस्तान के प्रधामन्त्री जुल्फिकर भुट्टो के मध्य शिमला समझोता हुआ तो
सियाचिन के NJ-9842 नामक स्थान पर युद्ध विराम की सीमा तय कि
गई किन्तु सियाचिन के NJ-9842 के आगे के बारे मे कुछ भी
स्पष्ट नहीं लिखा गया और न कहा गया। किन्तु 1970 और 1980 के दशक के प्रारम्भ मे
बहुत सारे पर्वतारोहियों को पाकिस्तान ने सियाचिन के NJ-9842 से आगे जाने कि इजाजत देने शुरू कर दी।1978 मे जारोसलाव पोंकर की लीडरशिप
मे (जारोसलाव पोंकर के अतिरिक्त Volker stllboh, wolfgng Kohl और मेजर असद रज़ा
जो की पाकिस्तानी liaison officer थे) German Siachen-Kondus Expedition की
इजाजत पाकिस्तानी सरकार द्वारा प्रदान कर दी गई। ये सभी लोग सियाचिन वाया Bilafond
La पहुंचे और उन्होने अपना बेस कैंप सियाचिन और तेरम शेहर के संगम (confluence) पर स्थापित किया। इस मिशन पर बनी डॉक्युमेंट्री का प्रसारण जर्मन टीवी पर
1979 के चैनल 3 पर किया गया था।
उपरोक्त
के अतिरिक्त 1977 मे श्री नरेंद्र कुमार जो कि इंडियन आर्मी मे कर्नल थे इस बात से
बड़े ‘offended’ नाखुश थे कि अंतराष्ट्रीय लोग तो हिमखंडो
पर साहसिक अभियानो के लिए पाकिस्तान कि तरफ से जा सकते हैं किन्तु भारतीय नहीं।
उन्हे शायद शक था कि इस तरह के अभियानो का मकसद oropolitics (पर्वतारोहण का गलत प्रयोग) था। इसलिये उन्होने अपने उच्चाधिकारियों से 70
सदस्यीय एक दल (जिसमे ‘Climbers’ पहाड़ो पर चढ़ाई करने वाले
लोग और ‘porters’ कुली शामिल थे) का नेत्रतत्व करने कि
अनुमति मांगी। उन्होने ये अभियान पूर्ण किया और 1981 मे वापिस आ गए। इस बाबत उस
समय कि प्रसिद्ध पत्रिका Illustrated Weekly of India मे चित्र और खबर प्रकाशित हुई थी।इस विषय मे जोयदीप
सिरकर का एक लेख “High Politics in the काराकोरम” टेलीग्राफ
न्यूज़ पेपर कलकत्ता मे 1982 मे छ्पा था। बाद मे वही लेख रिप्रिंट होकर Alpine
जर्नल,लंदन मे 1984 मे भी प्रकाशित हुआ था।
ऐसा माना जाता है कि पाकिस्तान द्वारा जारी
नक्शों मे उस स्थान को दर्शाया जाने लगा। पाकिस्तान के पिछले इतिहास से सबक लेते
हुए भारत ने अप्रैल 1984 मे Lt. Gen। छिबबर, मेजर जनरल शिव शर्मा और Lt. जनरल पी.एन.हून को पाकिस्तान
के प्लान (जिसमे वे सियाला और बिलफ़ोंड ला पॉइंट्स जो कि हिमनद पर मौजूद थे को बंद
करना चाहते थे।) को असफल करने के लिए आपरेशन मेघदूत के तहत लद्दाख स्काउट
जो कि इंडियन आर्मी की ही एक फोर्स यूनिट है और कुमाऊँ रेजीमेंट के जवानो द्वारा
बिलफ़ोंड ला को 13 अप्रैल 1984 पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया और 17 अप्रैल को
सिया ला 1984 को अपने अधीन कर लिया इसमे इंडियन एयर फोर्स कि मदद ली गई । इसके
जवाब मे पाकिस्तानी आर्मी ने 25 अप्रैल1984 को स्पेशल सर्विसेस ग्रुप और नॉरदन
लाइट इंफेंटरी के सहयोग से भारतीय सैन्य दल को वहाँ से हटाने का प्रयत्न किया
किन्तु इस पहली सैन्य मुठभेड़ मे पाकिस्तानी आर्मी को मुँह की खानी पड़ी । और इस
प्रकार भारतीय आर्मी ने सियाचिन के NJ-9842
के North Side पर अपना नियंत्रण स्थापित कर
लिया। भारत की सेनाओ ने सियाचिन के जिस हिस्से NJ-9842के पर
नियंत्रण किया उसे सालटोरो कहते हैं। इसे वाटेरशेड भी कहते हैं अर्थात इस पॉइंट से
आगे लड़ाई नहीं होगी। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि काराकोरम का कुछ भाग पाकिस्तान के
पास और कुछ भाग चीन के पास भी है। सियाचिन के NJ-9842 को
भारत और पाकिस्तान के बीच Line of Actual Control यानि वास्तविक नियंत्रण रेखा है।
सियाचिन के NJ-9842 पॉइंट के भारत के पास होने
से भारत लेह,लद्दाख के साथ साथ चीन के कुछ महातपूर्ण हिस्सो
पर नज़र रखने मे सहायता मिलती है। कश्मीर क्षेत्र में स्थित इस ग्लेशियर पर भारत और
पाकिस्तान के बीच विवाद बहुत पुराना है। सियाचिन विवाद को लेकर पाकिस्तान, भारत पर बार –बार आरोप लगाता है कि 1989 में दोनों देशों के बीच यह सहमति
हुई थी कि भारत अपनी पुरानी स्थिति पर वापस लौट जाए लेकिन भारत ने ऐसा कुछ भी नहीं
किया। पाकिस्तान का कहना है कि सियाचिन ग्लेशियर में जहां पाकिस्तानी सेना हुआ करती
थी वहां भारतीय सेना ने 1984 में कब्जा कर लिया था। उस समय पाकिस्तान में जनरल
जियाउल हक का शासन था। पाकिस्तान का कहना है कि भारतीय सेना ने 1972 के शिमला
समझौते और 1949 में हुए करांची समझौते का उलंघन किया है। पाकिस्तान कहता है कि भारतीय
सेना 1972 की स्थिति पर वापस जाए और वे इलाके खाली करे जिन पर उसने कब्जा कर रखा
है।
मेरी अपनी राय ये है कि 1972 कि स्थिति ही
क्यों ? सत्य तो यह है कि 1948 मे काबलियों के भेष मे पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर
मे घुसपैठ कि थी और चूंकि उस समय दोनों ही देशो मे सेनाध्यक्ष की कुर्सी पर
अंग्रेज़ सेनाध्यक्ष मौजूद थे इस कारण दोनों ही सेनाओ के सेनाध्यक्ष हारने के डर से
एक दूसरे से सैनिक जानकारी साझा करते थे जिस कारण जब 1949 मे युद्ध विराम की
स्थिति बनी तो पाकिस्तान द्वारा जो हिस्सा कब्जाया गया जिसे आज भी लोग “PAK Occupied
Kashmir” के नाम से जानते हैं। कुछ इसी तरह की कहानी 1971 की
बांग्लादेश बनने के समय की है जब पाकिस्तान के 92000 से ज्यादा सैनिको ने मेजर
जसजित सिंह अरोरा (उस समय भारत के सेनाध्यक्ष सैम मानेकशा थे) के समक्ष आत्मसमर्पण
किया था जो आज भी एक विश्व रेकॉर्ड है, के पश्चात 1972 मे जुल्फिकर
अली भुट्टो और श्रीमती इन्दिरा गांधी के मध्य 1972 मे जो शिमला समझोता हुआ था तब लगभग
टूटते हुए समझोते को श्रीमान भुट्टो द्वारा रूआँसा होकर यह कहना कि अगर मै खाली
हाथ पाकिस्तान गया तो पता नहीं वहाँ कि जनता मेरे साथ कैसा बर्ताव करेगी तब श्रीमाती गांधी ने तरस खाकर भारतीय सेना द्वारा
जीत लिए गए इलाको को वापिस ही नहीं किया वरन 92000 हजार सैनिको को भी वापिस कर
दिया था ताकि भुट्टो पाकिस्तान जाकर अपनी इज्ज़त बचा सके । तात्पर्य यह है कि अगर
दोनों ही देशो को वास्तविक स्थिति मे आना ही है तो 1972 क्यों 1947 कि स्थिति मे
क्यों नहीं।
दुनिया के सबसे उजाड़, वीरान और ऊँचे
रणक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर पर सैन्य गतिविधियाँ बंद करने के मुद्दे पर भारत और
पाकिस्तान के बीच काँग्रेस शासन के दौरान एक बार फिर बातचीत हुई है। इस बातचीत में
भारतीय रक्षा सचिव अजय विक्रम सिंह भारतीय दल के मुखिया थे जबकि पाकिस्तानी
शिष्टमंडल का नेतृत्व वहाँ के रक्षा सचिव सेवानिवृत्त लैफ़्टिनेंट जनरल हामिद
नवाज़ ख़ान ने किया। किन्तु पूर्व मे हुई सात वार्ताओ की भाँति नतीजा
कुछ नहीं निकला। 1984 से अभी तक Point-NJ-9842 – सियाचिन के लिए भारत और
पाकिस्तान के मध्य कई बार सैन्य मुठभेड़ हो चुकी है जिनका विवरण निमन्वत है:-
पाकिस्तानी आर्मी द्वारा बिलफ़ोंड ला जिसका दूसरा
नाम “क्वेद पोस्ट” भी था पर जून –जुलाई -1984 के
आखिरी दिनो मे कब्ज़ा कर लिया गया था जिस
पर वे लगातार 3 वर्ष तक काबिज रहे। पॉइंट से पाकिस्तानी सेना भारतीय सेना की हर
गतिविधि पर सूक्ष्म द्रष्टि रख सकती थी और भारतीय पॉइंट ऑफ व्यू से ये पोस्ट वापिस
भारतीय सेना के अधिकार मे आनी अतिआवश्यक थी अतएव 1987 मे भारतीय सैन्य दल द्वारा आपरेशन राजीव जिसे ब्रिगेडियर जनरल
चन्दन नुगयाल द्वारा लीड किया गया और जिसमे मेजर वरिंदर सिंह,Lt.राजीव
पाण्डे और नायाब सूबेदार बना सिंह ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए “क्वेद पोस्ट”
पर पुन: भारतीय ध्वज फहराने मे सफलता पाई।यहाँ यह उल्लेख करना
आवश्यक है कि नायाब सूबेदार बना सिंह ने जिस तत्परता से “क्वेद पोस्ट” पर
अचूक हमला (Assault) किया उससे
पाकिस्तानी आर्मी भौचक रह गई और इससे पहले कि उन्हे कुछ समझ मे आता “क्वेद पोस्ट”
पर भारतीय ध्वज फहराया जा चुका था। नायाब सूबेदार बना
सिंह के इस अदम्य साहस को सलाम करते हुए भारत सरकार द्वारा उन्हे भारतीय सेना के
सबसे बड़े सम्मान “परमवीर चक्र” से सम्मानित किया गया।
सितम्बर-1987 मे ब्रिगेडियर जनरल परवेज़
मुशर्रफ (जो बाद मे नवाज शरीक को पद्चुयत कर पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने) ने
पाकिस्तानी आर्मी की SSG की पहली और तीसरी बटालियन (खपलू गैरीसन ) को
मिलाकर “आपरेशन कैडद” के तहत एक बड़े
हमले के तहत “क्वेद पोस्ट”
को वापिस लेने बाबत हमला किया किन्तु “आपरेशन व्रजशक्ति” चलकर भारतीय सैनिको ने उनकी
एक न चलने दी और अपनी पोस्ट को बचा लिया तदुपरान्त उन्होने उसका नया नाम “बाना
पोस्ट” रख दिया।
मार्च –मई -1989 मे भारतीय सेना द्वारा “आपरेशन ल्बेक्स” के
तहत ‘चूमिक ग्लेसियर पोस्ट’ से पाकिस्तानी सेना को
खदेड़ा जाना था किन्तु प्रथम प्रयास मे आपरेशन ल्बेक्स” मे सफलता हाथ नहीं
लगी ये इसलिए भी आवश्यक था क्यों कि पाकिस्तानी सेना उस पोस्ट से भारतीय सैनिको पर
आसानी से नज़र ही नहीं रख रही थी वरन वे नुकसान भी पहुंचा सकते थे। तब ब्रिगेडियर
आर के नानावटी के नेत्रतत्व मे ‘कौसर बेस’ पर आर्टिललेरी
से हमले को अंजाम दिया गया और पाकिस्तानी सैन्य बलों को ‘चूमिक
ग्लेसियर पोस्ट’ से खदेड़ दिया गया।
28 जुलाई 1992 को पाकिस्तानी सेना ने भारी हथियारो से लैस होकर “चुलुंग
की बहादुर पोस्ट” पर हमला किया जिसमे पाकिस्तान एयर फोर्स के हेलिकोप्टेर्स का
इस्तेमाल किया गया। भारतीय सेना ने “आपरेशन त्रिशूल” के तहत प्रतिरोधात्मक
धावा बोला और मसूद नक़वी, सीनियर assault commanders (Northern Area) के साथ कई और
सीनियर commanders इस हमले मे मारे गए। ये सब 28 जुलाई से 3 अगस्त
1992 के मध्य घटा।
मई - 1995
मे पाकिस्तानी आर्मी के एनएलआई यूनिट द्वारा Saltoro defense line के दक्षिणी ओर से “त्याक्षी पोस्ट
“ पर अचानक हमला किया गया किन्तु भारतीय सैन्य दल द्वारा उन्हे वापिस पीछे खदेड़
दिया गया ।
जून 1999 मे पाकिस्तानी सैन्य दल द्वारा घुसपैठ करने पर भारतीय सेना
के ब्रिगेडियर पी सी कटोच के नेत्रतत्व मे कर्नल कोंसम,हिमालय सिंह पॉइंट -5770 (नवीद टॉप
/चीमा टॉप /बिलाल टॉप) द्वारा Saltoro defense line के दक्षिणी ओर से हमला कर उसे पाकिस्तानी सैन्य दल के लिए अवरुद्ध कर दिया।
भारतीय सेना को इस बात का श्रेय जाता है कि उसने विश्व के सबसे ऊंचे
बर्फीले स्थान (समुद्र तल से 21000 फीट,6400 मीटर) पर हेलीपैड का निर्माण कर दिया है और अब
उसे सोनम पॉइंट के नाम से जाना जाता है। इस हेलीपैड के द्वारा भारतीय सेना अपनी आर्मी
को,उसके लिए आवश्यक सामान (हथियारो और खाने पीने कि चीजे शामिल
हैं) को किसी भी मौसम मे हर पॉइंट तक पहुँचने के काबिल हो गई है यहाँ यह विशेष है कि
इस पुनीत कार्य को अंजाम भी भारत मे ही निर्मित MK-III ध्रुव
हेलीकाप्टर जिसमे स्वदेशी इंजन (शक्ति) लगा है के द्वारा ही पूरा किया जा रहा है। यही
नहीं भारत ने वहाँ विश्व के इस सबसे ऊंचे हिमनद पर टेलीफ़ोन बूथ भी स्थापित कर दिया
है जिससे जवान वहाँ से अपने घर आसानी से बात कर सकते हैं।
चूंकि सियाचिन विश्व का सबसे ऊंचा हिमनद है और वहाँ पर सैनिको के अतिरिक्त
कोई भी survive नहीं कर सकता। सियाचिन मे 97 प्रतिशत मौतें विषम मौसम और Avalanche
(बर्फीले तूफान ) आने के कारण होती हैं। 11 फ़रवरी 2010 को southern
glacier पोस्ट पर Avalanche आने के कारण 2 लद्दाखी
स्काउट्स के अलावा 1 भारतीय सैनिक भी वीरगति को प्राप्त हुआ। इसी तरह 2011 मे 24 भारतीय
जवान मौसम और दुर्घटना मे अपनी जान गंवा बैठे।12 दिसम्बर 2012 को एक Avalanche के चपेट मे आकार 6 भारतीय सैनिक शहीद हुए। 2015 मे 4 भारतीय सैनिक तब शहीद हो गए जब एक Avalanche कि चपेट
मे उनका स्नो स्कूटर आ गया।इसी प्रकार 4 जनवरी -2016 मे तीसरी लद्दाख स्काउट्स के चार
जवान मारे गए जब वे पेट्रोल ड्यूटि कर रहे थे।
इस महीने कि 3 फ़रवरी-2016 को प्रात: उत्तरी
ग्लेशियर में भारतीय सेना की सबसे महत्वपूर्ण पोस्टों में से एक सोनम पोस्ट के 10 फौजी 3 फरवरी को रूटीन पैट्रोल पर गए, और लौटकर दोपहर को लगभग 1:30 बजे उन्होंने रिपोर्ट
किया... दोपहर बाद 3:30 बजे उन्होंने रेडियो के जरिये सब कुछ
ठीक होने की जानकारी भी दी... लेकिन शाम को 5:30 बजे सोनम
पोस्ट नामक की कोई पोस्ट बची ही नहीं थी... वहां थी तो सिर्फ 1,000 फुट चौड़ी, 800 फुट लंबी और 50 फुट ऊंची बर्फ की दीवार। 19600 फीट कि ऊंचाई पर स्थित 6th मद्रास बटालियन
के 10 जवान एक Massive Avalanche के आने से मौत के मुँह मे समा
गए । इस विषय मे भारत सरकार द्वारा उन सभी 10 जवानो को शहीद घोषित कर दिया गया किन्तु
भारतीय सेना द्वारा चलाए गए रेसक्यू आपरेशन जिसमे प्रशिशित कुत्ते ने अहम भूमिका निभाई
और आपरेशन के छटवें दिन 35 फीट बर्फ के नीचे लांस नायक हनुमंथप्पा कोप्पड़ को जीवित ढूंढ निकालने मे सफलता पाई। हनुमंथप्पा कोप्पड़
को तुरंत ही ज़रूरी चिकित्सीय सहायता प्रदान करने के बाद देल्ही स्थित RR hospital जो कि आर्मी का है मे भर्ती किया गया लगभग 4 दिन ज़िंदगी और मौत कि आँख मिचौली
के उपरांत गुरुवार 11 फरवरी -2016 को इस वीर सपूत ने इस संसार से विदाई ले ली।
:::::प्रदीप
भट्ट ::::::::09.02.2016
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