रिपोर्ताज
" पक्षी विहीन नागालैंड "
पिछले वर्ष दिसम्बर-2023 की तमिलनाडु एवं केरल की साहित्यिक यात्रा के पश्चात ABS4 द्वारा जून-2024 में आयोजित नेपाल यात्रा में मैं सहभागिता नहीं हो सकी क्यूँ कि घर में धार्मिक आयोजन था किन्तु जब अगस्त में तय हुआ कि इस बार नागालैंड में आयोजन प्रस्तावित है तो हमने तुरन्त हामी भर दी। पहली फुर्सत में डिसाइड किया कि यात्रा ट्रेन से करेंगे और लो जी जैसे ही हमने डिसाइड किया कुछ और साथियों ने भी ग्रुप में अपनी सहमति प्रदान कर दी। 🫠 चूँकि बुकिंग 4 महीने पहले करवाई जा सकती है और अभी समय शेष था सो हम तो रिलेक्स थे तभी नीरव जी का संदेश प्राप्त हुआ कि तो राधा बिष्ट जो कि लखनऊ की हैं और कभी जर्मनी, कभी बंगलौर कभी नोएडा प्रवास पर रहती हैं के टिकिट की जिम्मेदारी आप ले लें, सो भैय्या जिम्मेदारी ले ली। 😝आने जाने के टिकिट बुक किए साथ ही दीमापुर रेलवे-स्टेशन पर एक ठो कमरा भी बुक कर दिया ताकि रात 12 बजे भटकना न पड़े,🙂↔ किन्तु ये क्या दो दिन बाद due to रिनोवेशन work booking कैंसिल का mag हमारे मुबलिया में आ धमका। क्या करें क्या न करें के बीच हमने राधा बिष्ट जी से मुबलिया पर संवाद किया और होटल सेब towar में ही एक कमरा बुक कर दिया चूँकि उनकी रूम पार्टनर अमीना खातून थीं सो एक कमरे की जगह दो कमरे कर लिए, जैसे जैसे 17 दिसम्बर की तिथि नजदीक आ रही थी थोड़ा सा एक्साइटमेंट भी हो रहा था लेकिन जे क्या 14 को खबर लगी कि राधा जी परिवार में क्षति होने के कारण नहीं जा पाएंगी🤤 सो उनका टिकिट कैंसिल किया, तभी waiting लिस्ट में अनीता प्रसाद जी से बात कर सूचित किया गया कि आपका नगालैंड का कार्यक्रम confirm हो गया है आप राधा बिष्ट की जगह अमीना जी के साथ कमरा साझा कर सकती हैं, ट्रेन फ्लाईट जैसे भी सम्भव हो देख लें, तीन दिन यूं ही गुजर गए तभी राश दादा राश का आग्रह कि मैं बिटिया के साथ हूँ एक कमरा हमारा भी कर दें ख़ैर आनन् फानन में फोन किया तो उन्होंने क्रिसमस के कारण होटल फूल होने का हवाला देकर हाथ खड़े कर दिए सो एक्स्ट्रा बेड के साथ दो कमरे 6 लोगों के लिए फ़ाइनल। 17 को मेरठ से दिल्ली NDRS से 16:20 की ट्रेन ली और राजधानी दौड़ पड़ी अपने गंतव्य की ओर लोहे की सड़क पर धड़क धड़क करते हुए। रात्रि 10 बजे अनीता जी का फोन कि टिकिट confirm नहीं हुई क्या करें 😱हमने भी उनींदे से में ही कह दिया current टिकिट लेकर रत्ननेश्वर जी, राश दादा या अमीना खातून के साथ बैठ जाएं TT आवे तो मैनेज करें । चूँकि राजधानी सुबह 4 बजे पटना पहुंचती है तो सभी उन्हें मिल गए वे बैठ भी गईं लेकिन जब 8,9 बजे TT 😢 आया तो उसने घोषित कर दिया आप पक्के तौर पर बिना टिकिट हैं रत्नेश्वर, राश दादा अमीना सब TT को समझाने में नाकामयाब हुए तब
"जब कोई भी तरकीब मेरे काम न आई प्रदीप
सो यूँ किया कि ख़ुद को हवाले तिरे किया "
सो भैय्या 17 कम्पार्टमेंट😇😇 को कूदते फांदते AC 3 tire की स्थिति जनरल बोगी से बदतर। ख़ैर टीटीई को ढूंढ़ते ढूंढ़ते पैंट्री कार जा पहुंचे वहां का नज़ारा बस पूछो मति, गरमा गर्म चाय की चुस्कियां लेते सभी TT साथ कुछ पुलिस ब्रदर्स। खैर तेजपाल जी से ही पूछा तेजपाल जी कहां मिलेंगे🤥 माजरा जानकर उन्होंने तुरन्त अनीता जी और मुझे चाय ☕ ऑफर की। इधर उधर की बातें करते हुए उन्होंने बताया वो खेकड़ा कस्बे के हैं सो मैंने बागपत का होने का हवाला देते हुए तुरन्त गुज़ारिश की कि इन मोहतरमा के लिए कुछ करें। किन्तु अफ़सोस दिल ब्लैक होल में, उन्होंने बताया कि उन्होंने बाबू रत्नेश्वर सिंह जी की सहमति से ही अपने टैबलेट में एंट्री कर ली है इसलिए वो कुछ नहीं कर सकते ख़ैर पेमेंट के लिए जब अनीता वाई फाई कनेक्ट करने के बाद भी पेमेंट न कर पाईं तो हम थे न😻 सो तुरन्त 7200 की पेमेंट कर दी किंतु रकम 7200 ना ना ना 7020 ऐसा इसलिए कि जब हिसाब किया तो पता पता चला कि अंजाने में ही सही हमने अनीता जी को 7020 की जगह 7200 बोल दिए थे, न भैय्या गुस्सा न कि करो, हिसाब किताब में अपना हाथ शुरू से ही अंग्रेज़ी की तरह तंग रहा है। खेकड़ा बागपत का रिश्ता इतना काम आया कि उन्होंने AC 3Tire की यात्री अनीता जी को 2tire में बैठने की इजाज़त दे दी। 👏अनीता जी का मूड थोड़ा खराब हुआ जो कि होना स्वाभाविक भी था सो बोल दिया पैंट्री में जो दो चाय पी हैं समझिए उन 2 चाय की क़ीमत 7200 न न 7020 समझें जब लगा कि वो मुस्कराने से बच रही हैं तो हमने दूसरा जुमला उछाल दिया चलिए यूं समझिए कि आपने प्रथम श्रेणी में यात्रा की है किंतु परन्तु लेकिन समझा ही तो नहीं जाता न प्रभु।🙀 ख़ैर रात्री 12:30 पर दीमापुर पहुंचे, ऑटो लिया और अपने आपको कमरों में धकेल दिया।
गद्दे इतने ज्यादा अनस्टेबल थे कि लगा ज़्यादा जोर की करवट ली तो कहीं उछलकर खिड़की के रास्ते कोहिमा न पहुंच जाएं। राश दादा के साथ उन्हीं गद्दों पर लगभग दुई घंटे गुफ्तियाने के बाद पता नहीं कब सो गए। खटर पटर की आवाज़ ने जगा दिया देखा सूर्य 🌞 देवता लतिया रहे हैं हमने आंख मलते हुए कहा प्रभु थोड़ा सोने दें तो और जोर से लतिया दिए फिर गरज कर बोले अबे हमें उदित हुए डेढ़ घंटा हो गया है बे हम यहां जल्दी उदित हो जाते हैं यानि 4 सवा चार बजे और हां अस्त भी जल्दी होते हैं। सोना था तो घर रहते यहां क्या...... आगे के शब्द डॉट से समझ लें। प्रभु पूरे गुस्से में थे सो हमने उठने में ही भलाई समझी, आँखें मलकर पुनः खोली तो खुर्शीद मियां आकाश में फिर चमक दमक बिखेर रहे थे। आनन फानन में तैयार हुए रत्नेश्वर बाबू और राश दादा को उठाया तभी तुम में लगा फोन घनघना उठा दूसरी ओर से मधुर सी आवाज़ में बताया गया कि भुक्कड़ो नाश्ते का समय 7.30 से 9.00 बजे तक है इससे पहले कि नाश्ता खत्म हो जाए टूट पड़ो। 😾लो जी नाश्ते की बात सुनते ही दोनों बंधुओं ने तय किया कि पहले पेट पूजा बाक़ी काम दूजा। छोले भटूरे, कॉन्फ्लेक्स bred buttar, हलुआ, चाय कॉफी, भर पेट खा लिया क्या पता लंच कब मिले न मिले।
19 की प्रात :7.30 बजे परम प्रिय मित्र श्यामल मजूमदार दादा उत्तराखंड की आठ सदस्यीय टीम को वाया लखनऊ लेकर होटल 🏨 सेब टॉवर आ पहुंचे। चूंकि रूम 12 बजे से आरक्षित थे सो हमने ऑफर दे डाली जब तक तुम नहीं मिलता तब तक महिलाएं तुम नंबर 207 में एवम् पुरुष 206 में फ्रेश हो सकते हैं। साढ़े बारह के क़रीब नीरव जी सैनी धर्मपाल धर्म भी आ पहुंचे, चूंकि प्रोग्राम स्थल दूर था सो चेंज किया और जा पहुंचे पद्मपुखरी स्थित राष्ट्रभाषा हिन्दी संस्थान परिसर जिसे पद्म श्री तेजमेन जमीर द्वारा हिन्दी की अलख जगाए रखने हेतु स्थापित किया गया था। नागालैंड की सुरम्य वादियों में स्थित राजधानी दीमापुर के पद्मपुखरी में तीन दिवसीय इक्कीसवें राष्ट्रीय अधिवेशन का शुभारम्भ या ये कहें कि स्वागत नागालैंड के पारम्परिक लोकनृत्य से किया गया तत्पश्चात सम्मोहित करने वाला लोक गायन प्रस्तुत किया गया तत्पश्चात वेणु मण्डप में दीप प्रज्जवलन सरस्वती वंदना पुस्तकों के लोकार्पण एवं पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया तत्पश्चात बहुभाषीय कवि सम्मेलन का आयोजन। प्रथम दिन सुहावना एवं आनन्द प्रदान करने वाला था। होटल आकर तय किया कि भैय्या आज काली जबान वाले प्रदीप भट्ट के कारण लंच नसीब नहीं हुआ सो डिनर इसके सर ही ठोको सो राश दादा उनकी बिटिया पूजा अनीता प्रसाद अमीना खातून और हम आ पहुंचे होटल के ही डिनर रूम में सर्वसम्मति से तय हुआ खिचड़ी और आलू के पराठे साथ में दही, हमने झिझकते हुए जैसे ही ये कहा ये न हो कि कल नाश्ते में आलू पराठा ही मिले चार जोड़ी घूरती हुई आंखों को अपने चेहरे पर गड़ते हुए पाया सो चुप्पी साधने में ही भलाई समझी। आर्डर 20 मिनिट में ही सर्व करने बंदा आया मैंने कहा ओ तेरे की आर्डर खिचड़ी और आलू पराठे का और आया है अंडा करी और रोटी, प्रोनॉन्सिएशन की धक्का मुक्की का परिणाम था अंडा 🥚 करी ख़ैर इस बार 30 मिनिट का टाइम कहकर बंदा गया तो वहीं टेबल पर एक छुटका कवि सम्मेलन शुरु हो गया। लगभग 40 मिनिट बाद मनचाहा ऑर्डर नसीब हुआ। खा पीकर सब अपने कमरों में जा घुसे अगली सुबह जल्दी उठने के वायदे के साथ। डर भी था कहीं भास्कर ☀️ महोदय देर तक सोने पर गुस्से में पिछवाड़ा ही न जला दें।
20 की सुबह पूरी भाजी का नाश्ता किया और साढ़े नौ बजे पद्मपुखरी स्थित वेणु मण्डप में। चूंकि प्रथम सत्र का संचालन हमारे ही जिम्मे था सो गुरु हो जा शुरु की तर्ज़ पर माइक पकड़ा और शुरु हो गए। राष्ट्रभाषा संस्थान की निदेशिका पी ताकालीला, अनिल सुलभ जी एवं सुरेश नीरव जी द्वारा सभी साहित्यकारों को सम्मानित किया गया। द्वितीय सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें देश के विभिन्न भागों से पधारें कवियों ने रचना पाठ किया। हमने सोचा क्यों न इस शुभ अवसर पर हिन्दी विषय पर ही कुछ पढ़ा जाए आखिर तेजमेन जमीर जी की आत्मा जहां कहीं भी होगी वो ये देखकर प्रसन्न तो होवेगी कि 30,35 लोगों में कोई तो है जो उनकी तरह हिन्दी की अलख जगा रहा है।
गीत
" हिन्दी है तो है हिन्दी "
सुबह से शाम अंग्रेज़ी, मग़र दिल में बसी हिन्दी
सजी जो भाल पर माँ के, वही प्यारी मेरी हिन्दी
कि सब व्यापार की बातें,मगजमारी क्यूँ करनी है
मेरी हिन्दी, तेरी हिन्दी,मग़र हिन्दी तो है हिन्दी!
तमिल है तेलुगू है और मलयालम,भी कन्नड़ भी,
कि कुछ विकसित हुईं हैं, और बाक़ी कुछ है अनगढ़ भी,
भले दक्षिण में बोली जा रही, पर सब समझ आता,
अगरचे सीखना चाहो तो, सीखन में मज़ा आता,
इन्हीं से संस्कृति अपनी,ये जिन्दी हैं तो सब जिन्दी! !
मराठी और गुजराती, अलग संदेश हैं देती,
मिले पंजाबी जब संग में, तो एक दूजे को हैं सेंती,
असमिया और उड़िया, बात बंग्ला की करूँ मैं क्या,
सभी कल्चर समेटे, बात फ़िर दिल्ली करूँ मैं क्या,
मिला लो सिंध भी इसमें,ये सिंधी है सब सिंधी! !!
कोई कुछ भी कहे लेकिन,सभी भाषाएं बढ़िया हैं,
कहो कुमाऊँनी या फ़िर, कहो गढ़वाली बढ़िया है,
सभी का सार है इसमें, कि कम प्रचार है इसमें,
मग़र जो प्रेम है बसता, सदी का साथ है इसमें,
लड़ो आपस में कितना भी, मग़र सन्धि तो है सन्धि ! !! !
कि छोड़ो भाषा के झगड़े, गले मिल बात तो कर लो,
कि थोड़ा हम सबर कर लें, औ थोड़ा तुम सबर कर लो,
सभी भाषाओं की जननी, है संस्कृत देव भाषा जी,
यही संदेश है इसका, करो जीवन में आशा जी,
करो निश्चय अभी मन में,अमर हिन्दी तो है हिन्दी!
-प्रदीप देवीशरण भट्ट -14923
इसके बाद तो बस चला चली ही बचती है और कुछ अलग है तो महिलाओं का फ़ोटो सेशन जिसमें कुछ पुरुष भी अपनी भड़ास निकाल लेते हैं। सो राष्ट्र गान न कि राष्ट्र गीत के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
तीसरा दिन चूंकि शैक्षिक पर्यटन को समर्पित था तो टीम उत्तराखंड मजूमदार दादा की अगुवाई में कोहिमा के लिए सुबह सवेरे निकल गई बाकी कॉम्प्लीमेट्री नाश्ते का मोह न त्याग सके सो तय किया कि लोकल ही रमणीय स्थलों का प्रवास किया जाए। हम अनिल सुलभ जी, शशि प्रेम देव, अनीता प्रसाद और अमीना खातून गाड़ी लेकर निकल पड़े। पहला पड़ाव ग्रीन पार्क जहां रमणीय वातावरण में सभी ने कविताओं की वीडियो बनाई, वहां से निपटकर निकल ही रहे तो सुमन जी टकरा गए जिनसे कल शाम ही मुलाक़ात हुई थी वे मैथ टीचर हैं जो 1997 से यहीं जमे हुए हैं। हमने सोचा लोकल हैं तो ज्यादा जानकारी मिलेगी गाइड का खर्चा भी बचेगा सो उनकी मोटर साईकिल को कहा कि आप यहीं 1 घंटे विश्राम करो हम इन्हें लेकर 4 घंटे में आते हैं। उस बिचारी को क्या पता ह्यूमर क्या होता है सो जब तक उसे कुछ समझ आता हम उन्हें लेकर फुर्र। अब हम सबकी बागडोर सुमन मोदी जी के हाथ में और दूसरा पड़ाव बैंबू रिसॉर्ट वहां लकड़ी से बहुत कुछ बनाया जा रहा था हम जैसे ही घुसने लगे एक श्वान 🐕 🐶 दिख गया, उसने हमें देखा भी और देखा भी नहीं उसने भौंकने के धर्म का पालन भी नहीं किया, वहां से निपटे तो उसी प्रांगण में वुड इंपोरियम चले गए वहां दूसरा श्वान 🐕 🐕 स्थिति फ़िर पहले श्वान की तरह, सब आगे बढ़ गए लेकिन हम तो हम ठहरे सीटी बजाई तो उसने एक आँख खोलकर हमारा नीचे से ऊपर तक का जायज़ा लिया फिर आंखों ही आंखों में बोला कि चाईदा तैन्नू जल्दी दस मैन्नू मैंने थोड़ा स्टाइल मारते हुए पूछ लिया तुम कुत्ते हो बे कुत्ते काटो न काटो कमसकम भौंकने 🐶 का धर्म तो निभाओ। उसने एक अगड़ाई ली फिर बोला सुनो बे मुसलमान बरसों तक बकरे को पालते हैं फिर ईद में उसका झटका मटका कर देते हैं। यहां नागालैंड में स्थिति विकट है यहां के लोगों की पहली पसंद हम हैं फिर हमारा बहुत दूर का रिश्तेदार वराह है हमने सर खुजाते हुए पूछा वराह तो वो श्वान और बिगड़ गया बोला अबे शूकर 🐖 हमने कहा नहीं हमारा नाम भट्ट है प्रदीप भट्ट अब उसे और गुस्सा आ गया बोला अबे ये सब सुअर 🐷 के पर्यायवाची शब्द हैं वराह और शूकर और ये क्या बे भट्ट नाम है प्रदीप भट्ट सुनो ये कहते हुए तुम गंदे वाले जेम्स बॉन्ड लगते हो। हमने तुरन्त हाथ जोड़े तो श्वान महाराज आगे बोले कि कितने दिनों से हो हींया हमने कहा तीन दिन से उसने बड़ी गम्भीरता से कहा तीन दिनों में कोई चिड़िया, छिपकली कॉकरोच,कबूतर, टिड्डा टिड्डी फ़िर हांफते हांफते उसने नाम की जगह चित्र उकेर दिए और बोला,🕊️🦩🐇🐿️🦨🦡🦫🦜🦢🐉🐲🦔🐿️🐀🐁🦥🕊️🐇🦌🐐🐂🐄🫏🐎🐏🐑🦙🐈⬛🐈🐕🦺🦮🐩
देखे हो, हमने ना में मुंडी हिलाई तो बोला ये ससुरे इंसान छोड़कर सब कुछ खा जाते हैं और तुर्रा ये कि हम प्रकृति प्रेमी हैं। और हां ये तितलियों की चटनी बनाकर खाते हैं।हमने पूछा हमने तो यही सुना है नागालैंड वाले आदमी भी खा जाते हैं इस बार उस श्वान 🐕 ने हल्की सी बत्तीसी दिखाई फिर बोला अगर ये सच होता तो तुम जिंदा थोड़े ही रहते फिर एक दम से उदास होते हुए बोला अब तुम खुदई सोचो जिस कुत्ते को ये पता न हो कि वो कितने पल का मेहमान हो वो भौंकेगा या आने वाली मौत को आँख बंद कर गच्चा देने का प्रयास करेगा।अच्छा सुनो अब तुम पतली गली से निकल लो बेटा वरना हम अपना सिर्फ धर्म निभाएंगे नहीं वरन पिछवाड़े पे काट खायेंगे फिर लगवाते रहना 14 ठो इंजेक्शन। हमने अभी कदमों को जुंबिश दी ही थी कि मरी मरी आवाज में वो श्वान 🐕 फिर बोला यहां से तीसरा ठिकाना तुम्हारा शिव मंदिर है वहां शिवजी से कहना कि अगले जनम हमें नागालैंड ने पैदा कीजौ।
वास्तव में हमारा तीसरा ठिकाना शिव मन्दिर ही था जो कि रँगा पहाड़ है वहां कबूतर मस्ती में दाना चुगते मिले जैसे उन्हें पता हो यहां नागाओं की हद खत्म हो जाती है फिर हैंडीक्राफ्ट इंपोरियम, छेत्री रिवर ब्रिज, noune रिसॉर्ट जहां हमने फ्राइड राइस के साथ कविताएं पढ़ी। राज बारी आर्कियोलाजी हिडिम्बा, कूडा गाँव, शाम को लौटते हुए thaihku village decoration और दीमापुर बाज़ार। रास्ते में खेतों में मुर्गियां 🐓🐓 दाने चुगते बहुत दिखीं, पूछने पर सुमन जी ने बताया एक महीना खिलाएंगे फिर हैप्पी वाला बर्थडे। कुछ लोग कुछ खरीदारी करना चाहते थे लेकिन पता चला यहां दुकानें सुबह 8 बजे से सायं 6 बजे तक ही खुलती हैं। संडे प्रे डे घोषित होता है सिर्फ़ बेकरी और मेडिकल शॉप खुल सकती हैं। कोई अन्य दुकान खुली मिली तो ग्यारह हज़ार फाइन। अगले दिन यानि 22 को 12 बजे होटल छोड़ना था और हमारी ट्रेनवा मिडनाइट यानि 23 दिसम्बर की वेरी अर्ली मार्निंग 2.08 पर चूंकि हम अकेले थे सो कोहिमा जा नहीं सकते थे सो तय किया कि रूम एक दिन के लिए एक्सटेंड करते हैं किंतु ये क्या रिसेप्शनिस्ट ने बड़े अदब से कहा हुज़ूर ए आला कल कहते तो मैनेज हो जाता क्रिसमस के कारण होटल फूल टू फूल है फ़िर बड़े प्यार से कहा आप चेक आउट करके सामान लॉकर में रख सकते हैं वो भी फ्री बिलकुल फ्री। चूंकि सुमन जी की बिटिया मेरठ में BDS कर रही है तो तय हुआ था कि उसके लिए एक पैकेट गर्म कपड़े उसको पहुंचा दूं तो उन्हें फोन कर वस्तु स्थिति बताई वे कुछ ही देर में लेने आ गए। खाना खाया और जो स्थान कल देखने से रह गए थे उन्हें उनके साथ देखा फिर रात्रि में उन्होंने ही स्टेशन ड्रॉप भी किया और 24 को मंगल टू मंगल करते वाया दिल्ली मेरठ और इस तरह नागालैंड की यात्रा सम्पन्न।
मास्टर पास्टर डॉक्टर
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और अंत में आप सोच रहे होंगे कि क्या नागालैंड में कुछ रोचक भी देखा या सुना। जी हां हुज़ूर नागालैंड में शादी के बाद लड़का लड़की के यहां आकर रहता है एक दो दिन नहीं वरन जीवन भर जैसे यहां लड़की अपने ससुराल में जीवन भर रहता है। टीचर नागी हो या दूसरे प्रदेश का उसे पूरी इज़्ज़त बख़्शी जाती है चूंकि यहां क्रिश्चियन बहुलता में हैं तो यहां चर्च की भरमार है। फादर हो या डॉक्टर उन्हें भी पूरी इज़्ज़त वो भी टैक्स फ्री जी हां नागालैंड को स्पेशल राज्य का दर्ज़ा हासिल है सो सर्विस क्लास की बल्ले बल्ले लेकिन बाहर का व्यक्ति ज्यादा शो ऑफ़ करे तो कुछ भी हो सकता है इसलिए पैसा कमाओ लेकिन दिखाओ नहीं नई ते। अब एक और रोचक पहलू नागालैंड को त्यौहारों की भूमि भी कहा जाता है इसका दूसरा नाम नागा हिल्स है, दीमापुर नाम हिडिंबा के नाम पर है। 1 दिसम्बर 1963 को आसाम से अलग होकर नागालैंड अस्तित्व में आया। नागालैंड का हॉर्नबिल फेस्टिवल प्रमुख है। नागालैंड में कोन्याक, ए ओ, लौथा, अंगामी, चोकरी, संगतम, बंगाली, जेमे, यिमखिउग्ररु, चांग के अतिरिक्त भी 6,7 भाषाएं बोली जाती हैं। लगभग 17भाषाएं नेपाली भी है किंतु आश्चर्य इनमें से एक भी इस राज्य की भाषा नहीं है वरन अंग्रेजी है। निश्चित क्रिश्चियन सोसाइटी के प्रभाव का असर है। एक और महत्वपूर्ण जैसे मुसलमानों में बहत्तर फिक्रे होते हैं और अहमदिया, शिया, सुन्नी वगैरह वगैरह की मस्जिद अलग हैं वैसे ही यहां चर्च भी अलग अलग एक बानगी देखिए: Mao bapist church, angami bapiest church, ao bapist church, rengma, sumiyimchunger, lotha,konyak,nagamis church, Bengali church, Nepali, Spirits of faith church for new born क्रिश्चियन आदि आदि। लोग विदेशों की तरफ़ आकर्षित होते हैं उनके लिए हुज़ूर भारत में इतना कुछ है कि उसे देखने और समझने के लिए एक जीवन पर्याप्त नहीं है।
तो कीजिए अगले रिपोर्ताज का इंतेज़ार।
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