Monday, 9 December 2024

"अति सर्वदा वर्जियेत"

रिपोर्ताज 
              "अति सर्वदा वर्जियेत"

"वफ़ा क्या है जफा क्या है मुझे तू क्यूं बताता है 
खफा होना है हो जा बेवजेह क्यूं तिलमिलाता है"

         सितम्बर 2022 में मेरे मित्र ने आग्रह किया कि साहित्योदय संस्था द्वारा अयोध्या में रामायण का आयोजन किया जा रहा है आप अवश्य भाग लें। मित्रों को मना करना शास्त्र सम्मत नहीं है🤪, इसलिए अगले दिन पंकज प्रियम जी से फ़ोन पर गूफ्तगू की और अजीवन कार्यकारी सदस्य के रूप में साहितोदय से जुड़ाव हो गया। शायद 19,20 नवंबर 2022 को कार्यक्रम होना था मैंने 17 नवंबर की लखनऊ की फ्लाइट की टिकट भी निकाल ली लेकिन अफ़सोस 14 की मध्य रात्रि मेरठ से फ़ोन आया कि अम्मा को हॉस्पिटल में भर्ती किया है जल्दी पहुंचो। हड़बड़ाहट में टैक्सी ली सीधे हैदराबाद एयरपोर्ट, फ्लाइट ली और दिल्ली फ़िर सीधे मेरठ लगभग 17,18 दिन बाद जब अम्मा स्थिर हुई तो विदा ली और वापिस हैदराबाद। वहां पहुंचने के कुछ दिन बाद ज्ञात हुआ कि इस प्रकरण में हैदराबाद लखनऊ की टिकिट कैंसिल करना ही भूल गया था, मेरे साथ ऐसा होता ही रहता है 2020 में तो कुछ ज़्यादा ही हुआ कुल मिलाकर 25000/= का फटका पड़ा। 😝😝😝

         जुलाई 2023 में मैं सेवा निवृत होकर मेरठ में आन बसा यदा कदा साहित्योदय का व्हाट्सअप देख लेता था किंतु मथुरा में कृष्णायन कब हुआ पता ही नहीं चला🙃  यही हाल शिवायन का भी रहा वो तो भला हो मेरी एक मित्र का जिन्होने व्यक्तिगत तौर पर फ़ोन किया कि शिवायन में तो जा रहे हो न। मैने ऐसे किसी भी कार्यक्रम की जानकारी से अनभिज्ञता ज़ाहिर की तो बोली यार तुम तो आजीवन कार्यकारी सदस्य हो तुम्हें कैसे जानकारी नहीं है हमने मोबाईल पर ही फ़िर मुंडी हिलाकर अपनी अनभिज्ञता ज़ाहिर की तो बोली पंकज से अभी बात करो। अब चूंकि मेरा जन्म रुड़की में हुआ है सो अपने आप को उत्तराखंड कहने में कोई गुरेज नहीं है। सो पंकज जी बात हुई और तय हुआ कि हम शिवायन में अपने हिस्से की साहित्यिक आहुति देने उपस्थित रहेंगे। पंकज जी ने पूछा था कि आप सत्र में रहेंगे या शिव पर कुछ पढ़ेंगे या दोनों में हमने दोनों के लिए हामी भर दी और 4 दिसंबर को टैक्सी लेकर सुबह 9.15 पर सीधे निष्काम सेवा ट्रस्ट पहुंच गए। कुछ देर बाद पंकज प्रियम से मुलाक़ात हुई तो हमने उन्हें सूचित कर दिया कि चूंकि मैं अपने लेखन से संतुष्ट नहीं हूं अतएव मैं अपना नाम वापिस लेता हूं किंतु किसी भी सत्र में सहभागिता कर सकता हूं।👏 डॉक्टर बुद्धिनाथ दादा एवम् आचार्य देवेंद देव जिनसे मैं झांसी कार्यक्रम में मिल चुका था के कर कमलों से विधिवत कार्यक्रम आरम्भ हुआ तत्पश्चात बारह ज्योतिर्लिंग के नामों से बारह ग्रुपों ने अपने अपने हिस्से की साहित्यिक आहुति डालनी शुरु की। 

         हर सत्र का एक अध्यक्ष 6,7,8  सदस्य और दो संचालक। कुल बारह सत्रों के लिए दो दिन आरक्षिति। 151 लोगों में से कुछ अनुपस्थित भी थे तो अगर मैं 110,120 भी उपस्थित सदस्य मानू तो कुल 120 रचनाएँ वो भी सिर्फ़ शिव पर आप ख़ुद ही सोचिए शिव के हाथ में त्रिशूल है, जटा में गंगा है, गले में सर्पों की माला, शरीर पर भभूत है आदि आदि। एक दो को छोड़कर सभी ने अपनी रचनाएँ इसी के इर्द गिर्द पढ़ीं। वो तो भला हो आशा शैली दीदी का जो हल्द्वानी से आई थीं और अपनी बेहतरीन ग़ज़ल से महफ़िल लूट ली। सामान्यतः मैं अनावश्यक रूप से सुझाव देने से बचता हूं किंतु साहित्योदय गीत गाने वाली किशोरी जी स्वर सुनकर लगा ही नहीं कि ये प्रोफेशनल गायिका नहीं हैं सो झिझकते हुए और इजाज़त लेकर सुझाव दे ही डाला कि आप अपनी आवाज़ का प्रोफेशनली इस्तेमाल करें बेहतर होगा लोकगीत। अब सुझाव तो उन्होनें मान लिया अब फलीभूत कब होगा राम जाने लेकिन मधुर स्वर को जाया नहीं जाना चाहिए।

         प्रथम दिन 6 सत्रों में से एक सत्र में डॉक्टर सविता मोहन जी ने अध्यक्षता की, संचालिका ने उनकी शान में इतने कसीदे पढ़े कि मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि मैं अब तक इनसे क्यूं नहीं मिला। 🙊🙊🙊लेकिन लेकिन लेकिन जब सत्र के सभी सदस्यों ने शिवलिंग पर अपने हिस्से की आहुति दे दी तो उन मोहतरमा ने माइक पकड़कर जैसे ही अपनी चोंच खोली मैं समझ गया ये पक्की लेफ्टिस्ट है, लोग दो मिनिट में ही असहज हो गए किंतु सविता जी अपनी चोंच को विश्राम देने के मूड में कतई नहीं दिखीं, 😩😩😩😩अनर्गल प्रलाप करती रहीं मैंने पास बैठे सज्जन से कहा अब अगर इन्होंने और प्रवचन दिया तो मैं...... शायद भोले मेरी और चल रही स्थिति से स्वयं असहज हो गए थे सो जैसे ही सविता जी ने अपने अनर्गल प्रलाप में मां गंगा की ठेकदार बनकर उद्घोष करने लगी कि गंगा को नहाकर मैली न करें एक मोहतरमा हत्थे से उखड़ गई और उन्हें खरी खोटी सुना डाली वे तुरन्त सतर्क हुईं और कवर करने की असफल चेष्टा करते हुए धन्यवाद कहकर अपनी सीट पर जा बैठी। एक सत्र में विजय कुमार द्रोणी जो कि gst में dy कमिश्नर हैं से इन मोहतरमा को सीख लेनी चाहिए कि मंच पर कैसा व्यवहार करना चाहिए विषयांतर होना अलग है और अपनी कुंठित मानसिकता का प्रदर्शन करना अलग।

         लंच के बाद अचानक गहमा गहमी बढ़ने पर मैंने भी उत्सुकता वश पीछे देखा तो पता चला ये पर्वतारोही संतोष यादव हैं, ख़ैर एंकर ने फ़िर गलत बताया कि ये भारत की प्रथम पर्वतारोही हैं जब कि प्रथम पर्वतारोही बछेंद्री पाल हैं जिन्होंने 1984 में प्रथम बार एवरेस्ट फतह किया था, संतोष यादव विश्व की प्रथम पर्वतारोही हैं जिन्होंने दो बार एवरेस्ट फतेह की है वो भी मई 1992 में एवं पुनः मई 1993 में।  किंतु किंतु किंतु संतोष यादव भी विषयांतर हो गईं उन्हें ये बताने में हर्ष हुआ कि वे बिहार से हैं किंतु फ़िर अपनी व्यक्तिगत नियमों कायदों को उपस्थित जन समूह पर थोपने का प्रयास करती नज़र अंत। ये जानने में किसी को इंट्रेस्ट नहीं है कि संतोष यादव सफ़ेद कपड़े ही क्यों पहनती हैं, वे साबुन क्यों नहीं लगाती, उनका ये कहना कि मैं उत्तराखंड के लोगों से कहती हूं कि आप दूसरे राज्यों से आए हुए लोगों के कपड़े न धोएं क्यों कि आप देव भूमि से हो वरन उत्तराखंड आने वाले सैलानी अपने साथ एक तौलिया दो चादर लेकर आवें। अगर सब ऐसा करेंगे तो उत्तराखंड के लोग क्या करेंगे जिनकी आय का महत्वपूर्ण हिस्सा सैलानियों से प्राप्त होने वाली आय ही है। गज़ब है ऐसी बुद्धिमता पर ✊✊।  ख़ैर प्रथम दिन की अंतिम प्रस्तुति के तौर पर दो बालिकाओं का नृत्य आकर्षक का केंद्र रहा।
         
         रात को स्वप्न में भोले नाथ ने दर्शन दिए मुझे लगा थोड़े गुस्से में हैं पूछने पर कहने लगे अच्छा हुआ तुमने कुछ नहीं पढ़ा वरना तुम्हें इस त्रिशूल से कोंच देते 
अगर कल भी यही सब हुआ तो...... आगे के शब्द उन्होंने जान बूझ कर हवा में तैरने के लिए छोड़ दिए। हमने सबकी ओर से क्षमा मांगी और बताया प्रभु कल भी यही सब होगा तो कहने लगे हम सुबह चार बजे ही गंगा स्नान कर पार्वती के साथ कैलाश को चले जाते हैं अन्यथा अगर कहीं हमें गुस्सा आ गया तो दस पाँच को समय से पहले ही अपने पास बुलवा लेंगे। 🤤🤤🤤हम आगे कुछ कहते इससे पहले ही बोले सुनो ये इन दोनों बुद्धिमान स्त्रियों को बता देना हरिद्वार में ज़्यादा प्रवचन न दें यहां सब पहले से ही ज्ञानी हैं कहीं ज्ञान उल्टा न पड़ जाए। हम पहले दिन की भांति सुबह उठे फ्रेश हुए और 8 बजे नाश्ता 🍰🍰🍰🥘🥘 पेट में डाल कर सुबह की ताज़ी हवा का आनंद लेने बाहर निकल पड़े। दूसरा दिन भी पहले दिन की ही तरह ठीक ठाक बीता। बस किसी ने भी अनर्गल प्रलाप नहीं किया। पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड एवम् पूर्व राज्यपाल महाराष्ट्र भगत सिंह कोश्यारी जी के हाथों दो दीनी शिवायन का समापन हुआ। इसी अवसर पर पंकज प्रियम ने अगले वर्ष 2025 में 8 नवंबर को कुरुक्षेत्र में कृष्णायन की घोषणा कर दी साथ ही 
कृष्णायन में भागीदारों का लक्ष्य 251 लोगों का रक्खा। ख़ैर ये उनका अपना लक्ष्य है किंतु मेरा मानना है कि कम लोगों की भागीदारी रखने से कार्यक्रम में पकड़ बनी रहती है अन्यथा रायता फैलता ही है। कार्यक्रम कोई भी हो अर्थ तो लगता ही है।

         और अंत में इस कार्यक्रम की उपलब्धि के तौर पर प्रिय प्रेरणा सिंह एवम् अनुरानी शर्मा का बेहतरीन संचालन देखने को मिला। ऐसा इसलिए नहीं कि बाक़ी ने संचालन ठीक नहीं किया वरन इन दोनों ने ही मंच पर असहज होती व्यवस्था को बेहतर ढंग से संभाला। एक एंकर का यही श्रेष्ठ गुण होता है कि वह स्थिति को किन्हीं भी परिस्थितियों में अपने हाथ से जाने न दे। कुछ प्रस्तुतियां बेहद शानदार रहीं। कुल मिलाकर शिवायन की कुछ मधुर स्मृतियों में संस्कृति मिश्रा, बुद्धिनाथ दादा से मिलन। बाकी सब चंगा है जी।😄😄😄😄😄😄😄😄

अंत में साहित्योदय उत्तराखंड की अध्यक्ष शोभा पाराशर एवम् सचिव अर्चना झा एवम् उनकी टीम( बाक़ी सदस्य क्षमा करें, उनसे मिलना नहीं हुआ तो नाम नहीं मालूम) द्वारा किए गए प्रयासों इंतज़ामों के लिए हार्दिक शुभकामनाएं!!!!!🌹🌹🌹🌹🌹


प्रदीप डीएस भट्ट 91224


         
  

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