रिपोतार्ज़
“गाँधीनगर आ रहा हूँ मैं”
“असलियत में चाँद मेरे पास है”
आप सब मित्रों से इस बात को साझा करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है कि मेरी दूसरी कृति “असलियत में चाँद मेरे पास है” “सन्मति प्रकाशन” से छ्प कर मेरे पास पिछले सप्ताह ही पहुँच गई है। पढते लिखते और समझने का प्रयस करते हुए यूँ तो चार दशक निकल गये। लेकिन आज भी लगता है न कुछ लिखा न कुछ पढा और किया तो कुछ भी नहीं। पहले भी सिफर पर ही खडे थे और आज भी उस सिफर से आगे एक इंच भी नहीं बढ पाए। हाँ उन दशकों में ये उपल्ब्धि अवश्य रही कि अन्य के अतिरिक्त विष्णु प्रभाकर जी, यशपाल जी के कर कमलों द्वारा प्रथम पुरुस्कार से सम्मानित अवश्य हुआ जो कि गर्व की बात कही जा सकती है।
दिल्ली से मुम्बई बारह वर्ष फिर पिछले चार वर्षो से हैदराबाद में हूँ। मुझे मुम्बई में काफी सराहना मिलती रही है। फिल्म राइटर्स एसोसिएशन से जुडाव भी हुआ कुछ किया भी लेकिन वो सिरे नहीं चढा। पुस्तक छपवाने से सदा बचता रहा क्यों कि मेरा मानना रहा कि “ छपना और खपना” न जी न हमसे न हो पाएगा किंतु जब यहाँ हैदराबाद की साहित्यिक गतिविधियों में भाग लेना शुरु किया तो कुछ अग्रजों का आग्रह न टाल सका और मेरी पहली कृति “ दरिया सूखकर सहरा हुआ है” का लोकार्पण 29 फरवरी-2020 को उर्दु हाल, हिमायत नगर, हैदराबाद में सम्पन्न हो गया। प्रतिसाद अच्छा ही मिला काफी अग्रजों द्वारा इसे सराहा गया फिर मन में एक और छपवाने का ख्याल उमड घुमड करने लगा (लालच है,आ ही जाता है)
तभी मार्च-2020 से कोरोना बाबू ने भारत में दस्तक दे दी । सब कुछ बिखर सा गया किंतु साहस हो तो कुछ भी असम्भव नहीं सो वर्चुअल माध्यम ने कवियों को एक दूसरे से जोडे रखा। अब जब धीरे धीरे स्थिति बेहतर होने लगी है तभी आज ही खबर आई है फिर कोरोना बाबू पुन: एक बार अपनी छिछालेदर करवाने भारत में एंट्री मारने की कोशिश कर रहे हैं। प्रभु अब बहुत हो गया बस भी करो। इस कोरोना काल में भी हमने भी कुछ अलग किया और चार दशकों का लेखा जोखा खंगालना शुरु किया। कुछ नया कुछ पुराना, कित्ता बेदर्द ज़माना। सो उसे सूची बद्ध किया और क्रम बद्ध किया और पहली फुर्सत में ही दो चार प्रकाशक टटोलते हुए आखिर सन्मति प्र्काशन से बात पक्की हो गई। बाईस वर्ष पुरानी घटना पर लिखी कविता को किताब का शीर्शक दिया और थोडी बहुत अडचनों के बाद आखिरकार पिछले सप्ताह पुस्तक मेरे हाथों में आ ही गई।
जब तलक अडचन मिले न,
राह मिलती ही नहीं।
राह मिल भी जाए तो फिर,
वाह मिलती ही नहीं।
मैं नहीं कहता मुताबिक,
मेरे दुनिया भी चले।
दुनिया मिल भी जाए तो फिर,
चाह मिलती ही नहीं॥
(प्रदीप देवीशरण भट्ट)
23.12.2022
“असलियत में चाँद मेरे पास है” का लोकार्पण देश की प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्था "अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के गाँधीनगर गुजरात में आयोजित होने वाले 17 वें राष्ट्रीय अधिवेशन जो की गुजरात की राजधानी गाँधीनगर में 28,29 व 30 दिसम्बर को समपन्न होगा में किया जाएगा। इस बार का राष्ट्रीय अधिवेशन आजादी के 75वें अमृतवर्ष पर प्रधानमंत्री के “स्वस्थ भारत स्वच्छ भारत कार्यक्रम” को समर्पित होगा। इस राष्ट्रीय अधिवेशन में देश के विभिन्न हिंदी भाषी और अहिंदी भाषी राज्यों के साहित्यकार, संगीतकार और शिक्षाविद सम्मलित होगें। निश्चित रुप से ये हर्ष का विषय है।
आपकी पुस्तक “असलियत में चाँद मेरे पास है” अमेज़न पर उप्लब्ध रहेगी।
आप सभी मित्रों से अनुरोध है कृपया पुस्तक पढें एवम अपनी प्रतिक्रिया से मुझे अवगत भी कराने का कष्ट करें।
अमेजन लिंक
https://amzn.to/3BrfaqK
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-26.12.2022
No comments:
Post a Comment