रिपोतार्ज़
"एक शाम वड़ोदरा के नाम"
गुजरात की राजधानी गांधीनगर में तीन दिवसीय 28,29,30 दिसंबर को गुजरात साहित्य महोत्सव अविस्मरणीय स्aमृतियां संजोए वडोदरा से हैदराबाद के लिए हम सफर ट्रेन (ऐसा हमसफ़र जिसके टॉयलेट में न पानी हो और न ही लिक्विड सोप, बाकी सुविधाएं तो चड्डडो जी )प्रस्थान करना था। इसी बीच २८ दिसंबर को सृजन की सर्वेसर्वा रश्मि रंजन ने सूचित किया कि आपके संक्षिप्त वडोदरा आगमन के स्वागत में ३ से ५ बजे तक "HODOPHILE CAFE,"
11 12 13 M CUBE MALL,BESIDE VIJAY SALES, JETALPUR ROAD, VADODARA 390007
एक गोष्ठी का आयोजन किया है कृपया आप स्वीकृति देवें। मैंने भी सहर्ष स्वीकृति दे दी।
इसी बीच एक अन्य पारावरिक मित्र का आदेशात्मक आग्रह आ गया कि हमसे बिना मिले गए तो आपकी ट्रेन को कहीं और डायवर्ट करा देंगे फ़िर देखें कैसे हैदराबाद पहुंचोगे ......… हमें तुंरत एक अन्य मित्र की याद हो आई जिन्होंने नेपाल प्रवास पर हमसे इसी अंदाज़ में कहा था हमारा बर्थडे.... है अगर हमें विश न किया तो आपको विष देंगे। 😡 ख़ैर हमने मारे डर के इस पंक्ति को पकड़कर एक नज़्म लिखी और नियत तिथि को बर्थडे विश भी किया और उपहार स्वरूप नज़्म भी भेंट कर दी। भगवान का शुक्र मनाया जान बची 😃। इस बार भी यही फीलिंग आ रही थी सो हम मन ही मन बुदबुदाए रजिया गुंडों में फंस गईं। ख़ैर मेनेजमेंट के असल फार्मुले का उपयोग किया और मित्र के परिवार के साथ मॉल का नाम याद नहीं आ रहा लंच किया उन्हें पुस्तक भेंट की विदा ली और पहुंच गए ।
"HODOPHILE CAFE,"
राब्ता के प्रिय शिवम एवम सृजन की रश्मि ने स्वागत किया। कुछ विलंब से ही सही कार्यक्रम की शुरुआत हुई जिसमें सुखन याराना से जुड़े सदस्यों द्वारा अपने अपने कलाम पढ़े गये और महफ़िल में इंद्रधनुषीय छटा बिखेर दी गईं । फर्टाईल माइंड के प्रसन्ना जी भी इसी बीच मौजूद रहे।
सृजन की रश्मि एवम राब्ता के शिवम ने भी अपनी अपनी रचनाएं पढ़ी। अध्यक्षीय टिप्पणी के साथ मैंने भी अपनी दो गज़ल प्रस्तुत की जिसे उपस्थित सुमधुर दर्शकों द्वारा अच्छा प्रतिसाद मिला। संक्षिप्त वडोदरा प्रवास की एक अच्छी शाम कुछ मुस्कुराते चेहरों के साथ। विदा होते वर्ष से और कि चाईदा। रश्मि जी ने रंजन जी को दोनों बच्चों सहित वैन्यू पर ४:३० पर हाज़िर होने का फ़रमान सुना दिया ताकि मुझसे मुलाक़ात हो सके । बच्चों से मिलकर अच्छा लगा। स्नेही रंजन जी मुझे स्टेशन ड्रॉप किया लेकिन अभी एक सरप्राइज़ बाकी था मैंने रंजन जी को विदा किया और अपने बैग को उठाया तो स्टेशन की सीढ़ियों पर फिर से हंसते मुस्कुराते चेहरे को देखकर आश्चर्य चकित चूंकि बच्चों के अपने अपने प्रोगाम फिक्स थे इसलिए मित्र महोदय मुझसे पहले ही खाना वगैरह लेकर स्टेशन पर हाज़िर। मोबाइल से चिपके रहने वाले युग में एक सुखद अनुभूति का अनुभव हुआ। बेसाख्ता कुछ पंक्तियां याद हो आईं।
दोस्ती में प्रेम का स्थान होना चहिए
क्या ज़रूरी है कि कोई नाम होना चाहिए
खून के रिश्ते वफ़ा न जान पाएंगे कभी
दूर से ही उनका अहतराम होना चहिए
अभी अभी सोलापुर स्टेशन क्रॉस हुआ है सोचा क्यूं न वड़ोदरा प्रवास का एक रिपोतार्ज ही बनाकर २०२३ का शुभारंभ करदूँ 😊।
प्रदीप देवीशरण भट्ट
हमसफ़र से ०१:०१:२०२३
No comments:
Post a Comment