Monday, 2 September 2019

"गणेश चतुर्थी सिर्फ़ उत्सव नहीं वरन स्वतंत्रता प्राप्ति क़ा अजेय अस्त्र भी"






            "गणेश चतुर्थी सिर्फ़ उत्सव नहीं वरन 
            स्वतंत्रता प्राप्ति क़ा अजेय अस्त्र भी"

"गणेश चतुर्थी सिर्फ़ उत्सव नहीं वरन स्वतंत्रता प्राप्ति क़ा अजेय अस्त्र भी"

जब महर्षि वेदव्यास ने महाभारत काव्य लिखने क़ा निर्णय किया तो उसे निर्बाध गति से लिखने हेतु वेदव्यास जी ने त्रिमूर्ति (ब्रह्मा विष्णु महेश) से किसी सुपात्र को यह दायित्व देने की प्रार्थना की तब त्रिमूर्ति की आज्ञा से भगवान गणेश ने इस कार्य हेतु अपनी सहमति दी किंतु एक शर्त रक्खी कि मेरी क़लम रुकनी नहीं चाहिए अन्यथा मैं कार्य छोड़ दूंगा, तब महर्षि वेदव्यास ने भी एक शर्त रक्खी कि जब तक गणेश श्लोक की विवेचना कर अर्थ ना समझ लें तब तक वे उसे लिखेंगे नहीं।

महाभारत जैसे महाकाव्य को लिखने हेतु भगवान गणेश जी ने भगवान परशुराम जी से हुए युद्ध के दौरन उनके फरसे के प्रहार से टुटे हुए एक दाँत को कलम के रुप में प्रयुक्त किया। तभी से भगवान गणेश को एकदंत कहा जाने लगा। जब लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ तो वेदव्यास जी ऐसे श्लोकों की रचना करते जिन्हें समझने और विवेचना करने में गणेश जी बहुत समय लगता और वेदव्यास तब तक आगे के श्लोकों क़ा निर्माण कर लेते।  

आइए अब भगवान गणेश के उत्सव की करते हैं जो की गणेश चतुर्थी सो प्रारम्भ होकर दस दिनों तक चलता रहता है। लोग अपनी श्रद्दा अनुसार ढाई दिन पाँच दिन सात दिन या फिर पूरे दस दिनों के लिए  श्री गणेश की मूर्ति की स्थापना अपने घरों में करते हैं। इस उत्सव को शुरु करने का श्रेय बाल गंगाधर तिलक को जाता है जिनका जन्म 23 जुलाई-1856 में महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के  एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। 16 वर्ष की आयु में उनके पिता का साया उनके सर से उठ गया तत्पश्चात ही उन्होंने अपनी हाई स्कूल की परिक्षा उत्तीर्ण की। अपने मित्र अगरकर के साथ मिलकर उन्होंने  ये  निश्चय किया कि देश को स्वत्ंत्र कराने हेतु कुछ अभिष्ठ कार्य किया जाए। तब उन्होंने निश्चय किया कि वे जीवन पर्यंत सरकारी नौकरी नहीं करेगें। तिलक जी ने लेखक, राजनेता, स्वतंत्रता सैनानी, समाज सुधारक, शिक्षक, वकील इन  सभी  क्षेत्रों में बडे लगन के साथ कार्य किया। उनके द्वारा बडे पैमाने पर किया जा रहे सामाजिक कार्यो के कारण ही उन्हें लोकमान्य की उपाधि से विभूषित किया गया।
   
1916 में जिन्ना के साथ मिलकर होम रूल लीग कीकी स्थापना की एवम लखनऊ में इसकी बैठक कर आजादी की लडाई में हिंदू एवम मुस्लिमों की सहभागिता सुनिश्चित की। इसी क्र्म में अंग्रेजों द्वारा चलाए जा रहे दमनात्मक कार्यो का विरोध करने के लिए तिलक ने गणेश चतुर्थी को चुना एवम लोगों से आवाहन किया कि वे अपनी एकता दर्शाने ने लिए इसे त्यौहार के रुप में वृहत स्तर पर मनाएं ताकि अंग्रेजो को भारतियों की शक्ति का अंदाजा हो।तिलक जी ने देशभक्ति के साथ सामाजिक सरोकारों के साथ भी भारतियों को जोडने का कार्य किया। उन्होंने गणेश पूजन को एक जन आंदोलन बना दिया. उन्होंने एक प्रसिद्ध नारा दिया स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैं और मैं इसे पा कर रहूँगावर्तमान में ये पर्व सिर्फ़ महाराष्ट्र, आन्ध्रप्रदेश तेलागंना तक सीमित नहीं है वरन संपूर्ण भारत वर्ष में उल्लास के साथ मनाया जाता है ।
जैसे जैसे इस पर्व की मान्यता बढती गई वैसे वैसे लोगो में इसके प्रति रुचि पैदा होती गई। वैसे भी भारतीय सनातनी परम्परा में पूजन चाहे किसी भी देवता का किया जाए किंतु प्रथम पूजन भगवान गणेश का ही किया जाता है, शादी विवाह के मौके पर तो विशेष रुप से। आज जब विश्व पर्यावरन की चुनौतियों से दो चार हो रहा है तो इस महान उत्सव में श्री ग़णेश की प्रतिमाएं भी प्लास्टर औफ पेरिस के स्थान पर खालिस मिट्टी की कहीं कहीं फल सब्जियों की नारियल की बनाई जा रही हैं जो कि भारत के लोगों के पर्यावरण को लेकर दृष्टिकोण को दर्शाता है। इसी क्र्म में लोग अब इस बात पर भी ध्यान देने लगे हैं कि गणेश प्रतिमाओं के विसर्जन से नदी या समुद्र प्रदुषित ना हों इस विषय में पहली बार भारत की राजधानी देल्ही में नये प्रयोग के तौर पर 128 कत्रिम तालाबों का निर्माण किया गया है ताकि लोग गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन यमुना नदी के स्थान पर इन तालाबों में करें। निश्चित रुप से देल्ही सरकार के इस प्रयास की प्रशंसा की जानी चाहिए।

                                                 
                                                  -प्रदीप देवीशरण भट्ट- 03.09.2019

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