Monday, 9 May 2016

मेरी माँ




बचा-खुचा खाकर सो जाती, ऐसी मेरी प्यारी माँ,
मुझको सूखे मे सरकाकर, गीले मे सो जाती माँ “

कल 8 मई को मदर्स डे था। सोचा क्यूँ न कुछ लिखा जाए। बस एक बात का खयाल रखना चाहता था कि इस लेख मे कोई उपदेश न हो, न ही कौन क्या करता है इसका उल्लेख किया जाए। सीधा सीधा अपनी माँ के प्रति जो दिल मे है  उसे एक पन्ने पर उतार दिया जाए।प्रयास किया है।

      हमारा मुखारबिंद जैसे ही माँ शब्द का उच्चारण करता है। एक नेक और सुशील ग्रहणी की तस्वीर हमारी आँखों के आगे आ जाती है। फिर वो गाय माता हो या भारत माता और हमारी आस्थाओं के प्रतीक रूप मे दुर्गा माँ,वैष्णो देवी माँ,माँ लक्ष्मी इसी प्रकार की ढेरों माँयेँ। किन्तु जिस कोख से हम जन्म लेते हैं उस माँ के विषय मे कुछ भी कहना ऐसा है जैसे हम सूर्य को दीपक दिखा रहे हों।

                            -मै और मेरी माँ संतोष भट्ट

      महत्वपूर्ण प्रश्न ये नहीं कि कौन कौन अपनी माँ की चरण वंदना करते हैं, प्रश्न ये है कि कितने लोग माँ के प्रति समर्पित हैं। उनके कहे वाक्य उनके जीवन मे क्या स्थान रखते हैं। हम अपनी माँ के प्रतिदिन चरण छूएँ या न छूएँ बल्कि आवश्यक यह है कि हम अपनी माँ का किन्ही भी परिस्थिति मे अपमान न करें। माँ तो माँ है उसने हमे जन्म दिया है हमारी परवरिश की है। जिन लोगों के सर से पिता का साया उठ जाता है वे भली भाँति जानते हैं कि माँ ही वो शख्सियत होती है जो विषम परिस्थितियों मे भी बच्चों को पाल पोसकर इस योग्य बनती है जिससे वे समाज मे सर उठाकर चल सके।

      भगवान गणेश ने माता पार्वती के आदेश की अवहेलना नहीं होने दी इसके लिए उन्हे अपने शीश का बलिदान करना पड़ा। ये विषय अलग है कि बाद मे स्थिति का भान होते ही भगवान भोलेनाथ ने उन्हे गज शीश प्रदान किया ।

      कौन अपने माता-पिता का आदर करता है या कौन नहीं हमे इस बहस मे कदापि नहीं पड़ना चाहिए। क्यों कि व्यक्ति जैसा बोता है वैसा ही काटता है। जो भी व्यक्ति अपने माता पिता का तिरस्कार करते हैं उन्हे उनके बच्चे वैसे ही तिरस्कृत करते हैं वो भी ब्याज सहित।

      मैंने जब से होश संभाला है प्रतिदिन तो नहीं हाँ त्योहारों पर और यदि कभी घर से दो या तीन दिनो के लिए बाहर जाना पड़ा तो आते और जाते समय माँ के पैर छूना कभी नहीं भूला। एक विशेष बात का खयाल मै जरूर रखता रहा हूँ कि अपने झूटे बर्तन माँ या अन्य जो भी मुझसे बड़ा है कदापि न दूँ ।
::: प्रदीप भट्ट :::

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