Saturday, 15 February 2025

Master of All के बाद Master of Non

रिपोतार्ज

"Master of all के बाद Master of Non "

         कभी कभी यूँ भी होता है कि आप किसी कार्यक्रम में सहभागिता की स्वीकृति तो प्रदान कर देते हैं किंतु तभी समय का अह्म जाग जाता है और वो आँखों को गोल गोल😵‍💫 घुमाते हुए बुदबुदाता है अच्छा बेटा हमसे ही पंगे। हमें ही चेलेंज कर रहे हो और हम तुरन्त समय की शरण में लोट पोट होते हुए घिघियाते हैं🙏🏾 न माहराज न म्हारा जे मतबल कतई न था किंतु समय तो समय ठहरा दिल है कि मानता नहीं कि तर्ज़ पर झटका दिए बिना मानता ही नहीं😇। हमने विश्व पुस्तक मेले में 8 फ़रवरी को अपनी सहभागिता की स्वीकृति मित्र मण्डली को दे दी साथ ही 9 फ़रवरी को डॉक्टर श्वेता सिंह उमा पर निकल रहे प्रज्ञान विश्वम के विशेषांक में हाज़िर रहने की भी स्वीकृति प्रदान कर दी, लेकिन जे क्या एक दुःखद ख़बर और.....😢 आगे क्या बताना मियां जानते तो तुम भी हो ख़ैर वहाँ से निपटकर थोड़ा संयत हुए तो महफ़िल ए बारादरी का आमंत्रण प्राप्त हो गया अब चूँकि हम तो हम ठहरे पक्के वाले वफ़ाउद्दीन😘 जहाँ से पहला आमंत्रण मिला वहीं उपस्थित रहने का निर्णय किया।

         सो पहली फ़ुर्सत में 9 की सुबह 7.45 की ब्ला ब्ला बुक करके निफ़राम हो गए,अंदाज़ा ये था कि बन्दा हमें 9.30 तक तो सुप्रीम🙏🏾 कोर्ट पहुंचा ही देगा वहाँ से तीन पहिए अरे भाई चौकिऐं मत मतबल ऑटो से ही है किन्तु किस्मत में हों तो कंकर क्या करेंगे शंकर की तर्ज़ पर बन्दे ने राइड कैंसिल कर दि बस फिर क्या था भगियाते भगियाते 🦨 भैंसाली अड्डे से कश्मीरी गेट की बस पकड़ी लेकिन जब बस आनन्द विहार मेट्रो रुकी तो मेट्रो की आवाज़ हमारे कानों में गूँजने लगी जैसे कहना चाह रही हो अबे जित्ती देर में तू कश्मीरी गेट पहुँचेगा उत्ती देर में तो हम तुझको सेंट्रल सेक्ट्रेट फ़ेंक देंगे बे बस हमने तुरन्त बस से छलाँग लगाई पीछे से कंडक्टर की आवाज़ सुनाई दे रही थी सर जी आपका टिकिट तो कश्मीरी गेट का है लेकिन हमें सुनाई दे रहा था जैसे कह रहा हो कि किसकी जेब काट ली बे जो इत्ती तेज दुड़की लगा रिया है 😅। दौडते भागते हमने ख़ुद को मेट्रो में धकेल दिया फिर श्वांस पर थोड़ा काबू पाया और फिर मंडी हाऊस से चेंज कर सीधे प्रेस क्लब ऑफ इंडिया वो भी 10.35 पर इज्ज़त बच गई रे बाबा🤣🤪🤪🤪🤪

         थोड़े से व्यवधान के बाद ठीक 11 बजे कार्यक्रम शुरू हो गया। डॉक्टर श्वेता सिंह उमा पूर्व की भाँति गज़ब ढा रही थीं, सदा की तरह हँसता मुस्कुराता चेहरा उमंग सरीन जी का, वीणा अग्रवाल, ओम्कारेश्वर पाण्डेय, राजेश रघुबर, आस्ट्रेलिया से पधारे कुँवर बैचेन के पुत्र प्रगीत कुँवर एवम भावना कुँवर, मात्र अस्सी वर्षीय खुशमिजाज शख्सियत मंजू गुप्ता जो फूलों पर कविताई रचती हैं,🌹🌹🌹 मधु मिश्रा जी और चौहान दम्पत्ति जो हमारे साथ नागालैंड प्रवास पर भी साथ थे और भी कुछ लोग पर नाम न याद आरिया है भैय्या। अभी पण्डित सुरेश नीरव जी ने कार्यक्रम में समा बाँधा ही था तभी हास्य सम्राट सुरेंद्र शर्मा जी ने घूँघट के पट खोल की तर्ज़ पर मीटिंग हॉल के पट खोलकर सभागृह में प्रवेश किया, सभी की निगाहें उनकी तरफ़ उठनी लाज़मी थीं सो निगाहें उठी, चेहरों पर हल्की सी स्मित लिए सुरेन्द जी ने भी सभी का अभिवादन स्वीकार किया। कार्यक्रम ने पुनः अपनी  रवानी पकड़ी और डॉक्टर श्वेता सिंह उमा के व्यक्तित्व एवम कृतित्व पर उपस्थित सुधीजनों ने प्रकाश डाला।🦥 डॉक्टर श्वेता से मेरी पहली मुलाक़ात 2022 में मेरठ मेरठ लिटरेरी फ़ेस्टिवल में हुई थी फिर पुनः दिसम्बर 2023 में केरल में एबीएस 4 के कार्यक्रम के दौरान हमने मंच साझा किया था सो जो देखा समझा जाना कि तर्ज़ एक शेर

"पढ़ लिया देख लिया समझ लिया
बासी अख़बार हुई ज़िन्दगी" 

न जी न श्वेता जी के विषय में बासी का कोई सीन ही नहीं है जब भी मिलोताज़ा बिलकुल ताज़ा ताज़ा रेड roz। सो कुल जमा तीन मुलाकातों के निचोड़ स्वरूप पहले तो उनकी आँखों की तबियत पूछी अब उनकी आँखे हैं ही इत्ती सुन्दर क्या बोले जी हम तो बस... अजी पूछो मति 🤓 फिर जो सच था कह दिया बिलकुल शफ्फाक सच की तरह, झूठी तारीफ़ हमसे होने की भी न है। अजी ब्लड में ही न है तो क्या करें😎 सुरेंद्र जी ने अपने उदबोधन की शुरुआत Masters of all के बाद Master of Non से की जिसको हमने रिपोर्ताज का शीर्षक बना दिया, permissions है न सुरेंद्र जी 🌹🌹🌹🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾

गर्मा गर्म भोजन की खुशबु तो भैय्या पेट पूजा की और ऑटो लेकर निकल लिए पुस्तक मेले की ओर,  

       पुस्तक मेले में पिछले वर्ष दीक्षित दनकौरी जी एवम अन्य के साथ काफ़ी सैर सपाटा किया था। आज चूँकि अंतिम दिन था तो भीड़ भी कुछ हॉल में ज़्यादा थी और कुछ में इतनी कि बच्चे हॉल क्रिकेट तो नहीं वरन यहाँ वहाँ बैठकर लूडो साँप सीढ़ी या फिर शतरंज़ जरूर खेल सकते थे।  एक सरसरी सी निग़ाह हर स्टॉल पर डालते हुए कुछ को हमने और कुछ ने हमें अभिवादन किया। इंडिया नेटबुक पर संजीव जी से मुलाक़ात हुई साथ ही विनय से भी। चूँकि अंतिम ठिकाने के तौर पर अद्विक पब्लिकेशन में स्वाति चौधरी जी से मिलने का प्लान था किंतु हॉल नम्बर 2 के अलावा स्टॉल नंबर याद नहीं था सो ढूंढ़ते रहे। तभी 30 - 35 वर्ष की महिला ने टोका सर आप प्रदीप देवीशरण भट्ट हैं। मुझे मेरे पूरे साहित्यिक नाम से पुकारने वाली देवी जी कौन हैं मैंने घूमकर उन्हें ऊपर से नीचे गौर से देखा एक सम्भ्रांत महिला साथ में 7,8 बरस की लड़की मैंने हाँ भरी तो बोली मैंने आपका कहानी संग्रह "काला हंस"  पढ़ा है। उसमें कई कहानी अच्छी लगी लेकिन लेकिन लेकिन काला हंस और ड्रग डे सबसे बढ़िया लगीं। मैंने हाथ जोड़कर धन्यवाद कहा फिर उनकी इच्छा का मान रखते हुए बेटी सहित एक सेल्फ़ी ली फिर बताया कि काला हंस को लखनऊ की संस्था द्वारा पुरस्कृत भी किया जा रहा है। अपनी आदत अनुसार मैंने उनकी बिटिया को दो बच्चों की पुस्तकें ख़रीदकर दी उन्हें संकोच में देखकर कहा देवी जी सिर्फ़ आपकी नहीं हम लेखकों की भी ज़िम्मेदारी है कि बच्चों को कहानियां पढ़ने के लिए प्रेरित करें।

         आख़िर मेहनत सफ़ल हुई सामने से आवाज़ आई मिल गई फ़ुर्सत? देखा तो मुस्कुराते हुए डॉक्टर स्वाति चौधरी थीं, कभी इस स्टॉल पर कभी उस स्टॉल पर पुस्तकों को उलटते पलटते कब 6 बज गए पता ही नहीं चला इसी मध्य नेशलन ट्रस्ट बुक के लालित्य ललित जी, आचार्य राजेश जी, शिवराज जी संग दो तीन पुस्तकों के लोकार्पण में भी सहभगिता हो गई डॉक्टर स्वाति चौधरी तो थीं ही हुज़ूर। बडे पाव की दावत के मध्य एक बेटी अपनी माँ से कहती हुई नज़र आई कि ममा हिन्दी पढ़ते हुए मुझे नींद आती है🤓🤓 फिर उसने मेरी तरफ़ देखा तो sry बोला मैंने मुस्कुराते हुए कहा बेटा क़ुसूर आपका नहीं है बल्कि तभी मां की आवाज़ आई सर इन बच्चों का नहीं हमारा क़ुसूर है। बात सीधी सपाट थीं किन्तु कहीं न कहीं उस लड़की की माँ की आवाज़ के दर्द को मैंने अपने भीतर भी महसूस किया। 🥹🥹 शिवराज जी ने सिटी सेंटर नोएडा छोड़ा वहाँ से बस और खरामा खरामा ऑटो बदलते हुए 9.45 घर। न्यूज़ देखी औऱ फिर हम और हमारा बजाज की तर्ज़ पर हम और हमारा बैडवा😝😝😝😝


प्रदीप डीएस भट्ट-13225

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