Wednesday, 24 July 2024

"विषय पर भी बोलिए हुज़ूर"

रिपोर्ताज 

"कहां कब बोलना कितना, समझ में गर जो आ जाए 
तो निश्चित मानिए साहिब, कि क़िस्मत भी बदल जाए"

      "विषय पर भी बोलिए हुज़ूर" 
 
    24 मई को आलोक यात्री जी का व्हाट्सअप पर संदेश मिला कि कृपया 13 जुलाई को कथा रंग के कार्यक्रम के लिए आरक्षित कर लें। चूंकि तब तक किसी अन्य कार्यक्रम का आमंत्रण/ निमंत्रण नहीं आया था इसलिए हमने सहर्ष स्वीकृति दे दी साथ ही ऊपर वाले माले 😹 जिसे भेजा भी कहते हैं को समझा भी दिया कि देखो भैय्या अमुक तिथि से दो दिन पहले को हमें याद दिला देना 🤪 नई तो दुनिया में हमसे बुरा कोई न होगा। लगता है ससुरा भेजा भी बिलकुल फ्राई हुए बैठा था। एक दम विस्फोटक अंदाज़ में बोला अबे तुमसे बुरा इस दुनियां में कोई हैय्ये नहीं तो तो दूसरे की बात बार बार काहे करते हो बे। सच बात तो ये है बाबू पूरी धरती तुमसे परेशान है। जिस दिन किसी के हत्थे चढ़ गए न बेटे उस दिन तुम्हारा हैप्पी बर्डी पक्का।😘 सच कहें तों ये सच सुनकर हम थोड़ा झुंझला तो गए लेकिन फिर ये सोचकर चुप हो गए कि बिना भेजे के प्रदीप बाबू कैसे दिखेंगे। बस कुछ न सूझा तों खींसे निपोर दीं।

       अब भैय्या जी 25 मई को एक कार्यक्रम में शिरकत करने लखनऊ जाना जरूरी था तो जा पहुंचे। गर्मी की भयंकरता देखते ही बनती थीं इसलिए मिलने जुलने का कार्यक्रम रद्द कर दिया और चुपचाप होटल विश्वनाथ में पड़े रहे। जून में कहीं भी न जाने का फ़ैसला कर लिया था। इंतज़ार था कथा रंग की मीटिंग का तो पता चला इस बार कार्यक्रम की तैयारियों के चलते मासिक मीटिंग मुल्तवी है। अलबत्ता इसी बीच मित्र के आग्रह पर उनकी पुस्तक के लोकार्पण के साथ साथ हमारे तीसरे काव्य संग्रह "उर नाद" का भी लोकार्पण 30 जून को हिन्दी भवन में संपन्न हो गया। बाकी किसी कार्यक्रम में जाने से हमने परहेज़ ही रक्खा। दिन भी है न काटे नहीं कटता और वो भी बढ़िया वाली गर्मी के साथ। AC हो लेकिन दामिनी ही जब तब दर्शन दे तो कोई क्या करे। एक दिन नीचे वाले फ्लैट में रहने वाले अरुण त्यागी जी अड़ गए कि आप मेरे कहने से कोटक महिंद्रा ज्वाइन कर लें। बात तो सही थी अब घर में आदमी बीवी और टीवी एक साथ कब तक झेल सकता है सो ज्वाइन कर लिया ट्रेनिंग भी हो गई और एग्जाम भी क्लियर हो गया। तो भैय्या दिन घर में न काटकर कोटक लाइफ इंश्योरेंस के वातानुकूलित ऑफिस में काट रहे हैं। कोई मिला तो जो समझा दिया जो सीखा है वो आगे ट्रांसफर कर रहे हैं और खाली समय में कहानी या गीत गजल। है न बढ़िया "न हींग न फिटकरी, और रंग भी चोखा"।

        इंतज़ार की घड़ियां खत्म हुई और भेजे में सुरक्षित तिथि से दो दिन पूर्व ही घंटी बज उठी कि लो भैय्या जी हो जाओ तैय्यार पुरूस्कार/ अलंकरण समारोह बस आया ही चाहता है। हमने भी अंगड़ाई लेते हुए कहा सुनो बे हमें भी याद है। इस बार सर्दी में बादाम अखरोट किशमिश के साथ थोड़े से मखाने भी खाए थे। हमारे भेजे ने घूरकार😡 हमारी देखा फिर बोला बेटा भरी पूरी वाली सर्दी में 500 बादाम 500 ग्राम मखाने और 500 ग्राम किशमिश ? कुछ ज्यादा तो नहीं खा लीए तुमने।  हमने भी बात टालने के उद्देश्य से कहा अबे काहे हमारी बेज्जती में दाग लगवाने पर तुले हो। कभी कभी एडजस्ट भी कर लिया करो। ख़ैर साहब 13 की सुबह सुबह नहा धोकर तैय्यार हो ही रहे थे हमने अलमारी से ब्लैक जेड कलर वाला कुर्ता पायजामा निकाला और जैसे ही पहनने को हुए तो भेजा फिर चीखा अबे तुम सुधरोगे नहीं क्या। माना तुम्हरा कहानी संग्रह "काला हंस" काफ़ी लोगों द्वारा पसंद किया गया है लेकिन बेटा तुम वहां निखालिस दर्शक की हैसियत से जा रहे हो और हां हमारी जानकारी के मुताबिक़ तुम्हें पुरुस्कार भी न मिल रिया है फिर किस पर बिजली गिराने की फ़िराक में हो। अब हम गुस्से में तमतमा गए देखो बेटा जल्दी अपनी जगह वापिस पहुंचो वरना हम बिना तुम्हारे ही खिसक लेंगे फिर देखे किसे गरियाते हो 😎 शायद भेजे को बात समझ में आ गई इसलिए वो तुरन्त अपने खोल में वापिस और हम सुबह साढ़े छः बजे भैसाली बस अड्डे। न न न न भैंस वाला कोई सीन नहीं है मित्रों भैंसाली बस अड्डे का नाम है जहां से दिल्ली गाजियाबाद देहरादून वगैरह की बसें मिलती हैं।

         अभी बस चली भी नहीं थी कि झमाझम बारिश शुरु। जैसे तैसे गाजियाबाद के पुराने बस अड्डे पर पहुंचे। ऑटो पकड़ा और सीधे सिल्वर लाइन प्रेस्टिज स्कूल। लेकिन ये क्या बुलंदशहर रोड़ की जगह ऑटो वाले महाशय नेहरू नगर लेकर आ पहुंचे थे। पता चला प्रोग्राम बड़े स्कूल में है तो ऑटो वाला बड़े इत्मीनान से बोला वो स्कूल तो नीरे जंगल में है हम छोड़ देंगे लेकिन 100 रूपया और लगेगा और हां वापिसी में कोई सवारी नहीं मिलने वाली। हमने बारिश की वृद्धि को देखते हुए कहा माहराज छोड़ दीजीए हम लेट नहीं होना चाहते। ख़ैर जिक जैक करते हुए उसने जैसे तैसे कार्यक्रम स्थल तक छोड़ा। स्कूल की सड़क पर ही पानी इतना भरा हुआ था कि ऑटो अब पलटा कि तब पलटा की स्थिति के बीच ऑटो वाले को पैसे दिए।बचपन में छलांग लगाने की आदत आज काम आई। चार पांच बार में सीधे स्कूल के गेट पर। हॉल में पहुंचे तो यात्री जी ने स्वागत किया फिर रिंकल से मिले फिर शिवराज जी से। यात्री जी आने वालों का स्वागत भी कर रहे थे साथ ही अपनी टीम को निर्देश भी दे रहे थे कभी प्रत्यक्ष रूप से कभी मोबाइल के माध्यम से। जिम्मेदारी इसी का नाम है। तभी प्रिंसिपल डॉक्टर माला कपूर गौहर से आत्मीय मुलाकात हुई। धीरे धीरे ही सही लोग आ रहे थे। इसी बीच माला कपूर जी के निर्देश पर अलग अलग कक्षाओं के विद्यार्थी दो दो की श्रेणियों में उपस्थित साहित्यकारों से अभिवादन के पश्चात अपने अंदाज़ में सवाल जवाब कर रहे थे। मेरे पास भी दो बच्चियां आईं। लगभग पंद्रह मिनट तक वो मेरे विषय में मेरी साहित्यिक यात्रा के विषय में सवाल जवाब करती रहीं। बाद में उनमें से एक ने फ़ोटो लेने की इच्छा जताई तो माला कपूर जी स्वयं भी आकर खड़ी हो गईं। निश्चित रूप से कथा रंग के लिए ये एक बड़ी उपलब्धि है। अगर ये प्रोग्राम किसी होटल में आयोजित होता तो ये नन्हें कलमकार कहां आ पाते। यात्री जी इसके लिए बधाई के पात्र हैं। एक और चीज़ यात्री जी के अलावा माला जी जो कि कथा रंग की संरक्षिका भी हैं पूरे कार्यक्रम पर लगातार नजर बनाए हुए थीं। बच्चों को साहित्य के प्रति कैसे आकर्षित किया जाए इसके लिए उनके द्वारा की गई पहल काबिले तारीफ़ है।

        अभी बच्चों से बात कर ही रहे थे कि घोषणा हो गई कि नाश्ता तैय्यार है कुछ पेट पूजा कर लीजिए। मैं और अन्य नाश्ता स्थल के लिए चले तो एक छोटी बच्ची जो शायद 8th स्टैंडर्ड में होगी हमारे पीछे पीछे चल रही थी मैंने उसे रास्ता देते हुए कहा बेटा आप आगे आ जाओ तो उस बच्ची ने कहा सर मैं आप के प्रोटोकॉल में हूं। एक सेकेंड में मुझे अपनी दिल्ली की प्रोटोकॉल ऑफीसर की ड्यूटी याद हो आई। 😁 मैंने कहा इसकी ज़रूरत नहीं है बच्चा तो उसने फिर विनम्रता से हाथ जोड़कर कहा सर प्रिंसिपल मैम का आदेश है। इससे पहले मैं कुछ कहता तब तक गरमा गर्म कचौरी की खुशबू नथुनों से आ टकराई सो उस बच्ची के सर पर हाथ घर आशीष दिया और पिल पड़े नाश्ते पर। अब भैय्या कचौरी संग आलू की सब्जी, पोहा और जलेबी देखकर तो भरा पेट भी डकार लेना भूल जाए। ख़ैर बढ़िया नाश्ते के बाद हल्की सी बारिश में गरमा गर्म कॉफी प्रदीप बाबू कुछ ज्यादा ही बढ़िया है। 😊

         11 बजे कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत हुई। चार सत्रों में आयोजित कथा रंग कहानी महोत्सव एवम अलंकरण समारोह की शुरुआत सरस्वती वंदना एवम से रा यात्री जी की तस्वीर पर माल्यार्पण से हुई। प्रथम सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार अब्दुल बिस्मिल्लाह ने की। इस सत्र में वर्तमान कहानी की चुनौतियों पर सार गर्भित विमर्श हुआ। अन्य के अतिरिक्त बिस्मिल्लाह जी ने गोरखपुर के एक वाक्ये का जिक्र किया जिसमें उन्होंने अपने लिए एक नई कहानी ढूंढने पर प्रकाश डाला। जिन पर मां सरस्वती की कृपा है वो किसी भी विधा अनुधा में लिखें फिर वो कहानी हो या गीत गजल या अन्य, ऐसे ही लिखने के लिए कुछ न कुछ ढूंढ लेते हैं। मैं स्वयं मानता हूं कि कहानी का प्लॉट मिलते ही लेखक कहानी को बुनने लगता है फ़र्क बस इतना होता है कि लेखक के पास स्वेटर बुनने वाली सलाई न होकर कलम होती है। वी एन राय हों या ममता कालिया सभी ने  इस विषय पर अपने विचार रक्खे। अल्का सिन्हा के बाद पाखी पत्रिका के पंकज शर्मा ने भी उक्त विषय पर विचार प्रकट किए। सच कहूं तो पंकज शर्मा क्या कहना या परिभाषित करना चाहते थे मेरी समझ में तो कुछ नहीं आया के अतिरिक्त भी कुछ प्रतिष्ठित विभूतियां भी विषयांतर होते रहे।यही कुछ हाल द्वितीय सत्र के सदर आबिद सुरती का भी रहा वे भी विषय को छोड़कर अपने घर गृहस्थी की यादों में खोए नज़र आए। क्या ये ज़रूरी है कि अच्छा साहित्यकार विषय से इतर सब कुछ कहे और विषय को तन्हा ही छोड़ दे अन्य साहित्यकारों या दर्शकों के लिए। कुछ तो गड़बड़ है प्रदीप बाबू।

       तीसरे सत्र की शुरुआत अद्विक प्रकाशन द्वारा से रा यात्री जी की स्मृति में प्रकाशित ग्रंथ के लोकार्पण से हुई तत्पश्चात 2023 के कथा रंग कहानी प्रतियोगिता के विजेताओं को हंस पत्रिका के संपादक संजय सहाय, डॉक्टर माला कपूर "गौहर" अब्दुल बिस्मिल्लाह हिन्दी अकादमी के उप सचिव ऋषि शर्मा, कायनात काजी अशोक मैत्रेय आलोक यात्री द्वारा पुरस्कृत किया गया। प्रथम पुरुस्कार वन्दना वाजपई को प्रदान किया गया। इसके अतिरिक आशीष ददोतर, दिव्या शर्मा, रेणु हुसैन, सुधा गोयल, तौसीफ़ बरेलवी, अरुण अर्णव मनु लक्ष्मी मिश्र, डॉक्टर असलम जमशेदपुरी, रिंकल शर्मा, शकील अहमद सैफ , वीना चुनावत, शिवजी श्रीवास्तव, राम नगीना मौर्य, डॉक्टर रंजना जायसवाल, राष्ट्र वर्धन अरोड़ा व बीना शर्मा जी को सम्मानित किया गया। डॉक्टर माला कपूर गौहर जी ने धन्यवाद ज्ञापन प्रेषित किया। कुछ बातों को इग्नोर कर दें तो कार्यक्रम के तीनों सत्र बेहद शानदार रहे। एक बात जो मैंने नोट की वो ये कि जहां लोग स्टेज शेयर करने को लेकर मारा मारी करने से भी नहीं चूकते वहीं यात्री जी सहजता लिए हुए स्टेज से दूरी बनाए रखते हैं।

        तीसरा सत्र सम्पन्न हो चुका था और जैसा कि अपेक्षित था सभी उपस्थित के पेट में चूहे पूरा उधम उतारे हुए थे सो मौके की नज़ाकत को देखते हुए मंच से भोजनावकाश की घोषणा हो गई। हम भी भोजन स्थल की तरफ लपक लिए 🤪 भैय्या हमें शुरु से ही लाइन में लगकर खाना खाना पसंद नहीं सो या तो प्रथम पंक्ति में या अंतिम। सो भईया प्लेट पकड़ी और मिसी रोटी दाल सब्जी सहित एक टेबिल पकड़ ली जहां मुलाकात हुई कमलेश भट्ट कमल जी से। इधर उधर की बात की और वापिस हॉल में " बन्ने की दुल्हनियां" देखने। चूंकि बारिश पुनः आ धमकने की संभावनाएं ज्यादा थीं सो साढ़े चार तक नाटक का आनंद लिया और सुभाष जी की गाड़ी में आ धमके। इससे पहले की वो कुछ कहते हम बोल पड़े प्रभु अगर अंत तक नाटक के लिए रुकेंगे तो......... सुभाष जी तो सुभाष ठहरे हास्य व्यंग्य के सरताज सो अट्टहास लगाते हुए बोले अब कार में घुस ही गए हो तो हिंदी भवन स्थित अट्ठाहस कार्यक्रम में चलो जब तक मन लगे बैठो वरना खिसकने के हज़ार रास्ते हैं। हमने आसमान की तरफ देखा तो बदल घुरड घुरड कर डरा रहे थे सो माैसम के मिजाज़ को देखते हुए हमने तुरंत हां में अपनी मुंडी हिला दी और जा पहुंचे हिंदी भवन। इसी बहाने कुछ परिचित चेहरों से मिलना जुलना हो गया। लगभग एक घंटा बिताने के बाद हमने लोकल की वोकल पकड़ी और जा पहुंचे द्वारका।

         अगले दिन चूंकि कोलकत्ता से पधारी हिम्मत चौरड़िया जी की पुस्तक के लोकार्पण में विशेष अतिथि आमंत्रित थे सो लक्ष्मी नगर वाया वसंत विहार संतोष संप्रिति के की कार में ढूंढते ढूंढते कार्यक्रम स्थल जा पहुंचे। लगभग दो ढ़ाई घंटे के कार्यक्रम में जमकर कविताओं का दौर चला। कम कवि ज्यादा कविताएं। वहां से निफराम हुए सीधे आनंद विहार बस पकड़ी और मेरठ।  दो दिनों का सफल साहित्यिक प्रवास। प्रदीप बाबू बढ़िया है।


प्रदीप डीएस भट्ट -24725

No comments:

Post a Comment