Thursday, 18 April 2024

"लोकतंत्र की अलख जगाती आंग सान सू "

      "लोकतंत्र की अलख जगाती आंग सान सू"

         दैनिक अख़बार के बारहवें प्रष्ठ के एक कोने में एक समाचार कि म्यांमार में प्रचंड लू के कारण आंग सान सू  को जेल से नज़रबंद करने का फ़ैसला लिया। आज जब ये ख़बर ट्रेंड कर रही है कि 15,16,17 अप्रैल को दुबई में हुईं लगभग 120 सेंटीमीटर बारिश ने पूरे दुबई की हालात ख़राब कर दी है। बाढ़ के हालात से निपटने के लिए वहाँ का प्रशासन जहाँ एड़ी चोटी का ज़ोर लगा रहा है वहीं म्यांमार में भयंकर लू का चलना एकदम विपरीत ख़बर है। आगे बढ़ने से पहले थोड़ा म्यांमार के इतिहास के विषय में कुछ जानकारी।

        9वीं शताब्दी में बामर लोगों द्वारा इरावदी घाटी में प्रवेश फ़िर1050 बुत परस्त समाज की स्थापना थेरवा बौद्ध धर्म फ़िर मंगोलों द्वारा बुतपरस्ती की खिलावत, 16वीं सदी में ताउन्ग राजवंश द्वारा बर्मा को पुनः एक छातरी के नीचे लाना।19वीं सदी में कोनबांग शासन का आना।19वीं सदी में ही एंग्लो बर्मी युद्ध के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा म्यांमार पर कब्ज़ा किया गया। 1937 में अंग्रेजों द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया। दूसरे विश्वयुद्ध के मध्य जापानी कब्ज़े के बाद 4 जनवरी-1948 को म्यांमार ने आजा़दी -1947 अधिनिमय के तहत आजा़दी का ऐलान कर दिया।1962 में तख़्ता पलट के बाद सैन्य शासन फ़िर 1988 के सैन्य शासन के विद्रोह के दो वर्ष बाद सैन्य परिषद ने सत्ता छोड़ने से इंकार।2011 के आम चुनाव के बाद सैन्य जुंटा को भंग कर दिया गया। इसी दौरान आंग सान सू को भी अन्य राजनैतिक कैदियों के साथ रिहा कर दिया गया।2015 में आम चुनाव हुए।इस दौरान बौद्ध और रोहिंग्या संघर्ष हुआ।2020 में फ़िर आम चुनाव है जिसमें आंग सान सू की पार्टी ने दोनों सदनों में बहुमत प्राप्त किया किंतु बर्मी सेना (टाटमाडॉ) ने तख्ता पलट कर दिया। इस तख़्ता पलट की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख़ूब आलोचना हुईं। तख़्ता पलट से अब तलक लगभग 6 लाख लोग विस्थापित हुए हैं। आंग सान सू को फ़िर से जेल भेज दिया गया। वो तो भला हो म्यांमार में चलने वाली प्रचंड लू का जिसने अन्य कैदियों के अतिरिक्त राजनैतिक क़ैदी के तौर पर बंद आंग सान सू को जेल से नज़रबंदी में शिफ़्ट किया गया है।

आंग सान सू सिर्फ़ एक राजनेता ही नहीं हैं वरन बल्कि वे राजनयिक भी हैं और साथ ही लेखक भी हैं। 79 वर्षीय आंग सान सू को नॉर्वेजियननोबेल समिति द्वारा 1991 में लोकतंत्र एवम् मानवाधिकारों के लिए सततअहिंसक संघर्ष के लिए नोबेल पुरुस्कार प्रदान किया गया है।

         आंग सान सू का (आंग सान उनके पिता का नाम, सू उनकी दादी का नाम व की उनकी माँ खिन की) जन्म 19 जून-1945 को बर्मा की राजधानी रंगून में हुआ था। कालांतर में इनके पिता को ही इंग्लैंड से बर्मा की आजा़दी के विषय में बात चीत का श्रेय जाता है। इनके पिता द्वारा ही आधुनिक बर्मी सेना की स्थापना की थी। यहाँ ये उल्लेखनीय है कि म्यांमार का पुराना नाम बर्मा (Burma) है जिसकी राजधानी यांगून थी किंतु 1989 में तात्कालिक जुंटा सरकार द्वारा लोकतंत्र समर्थकों को बेरहमी से कुचल दिया गया और अगले ही वर्ष बर्मा का नाम बदलकर म्यांमार कर दिया गया।आंग सान सू म्यांमार में लोकतंत्र स्थापित करने के लिए जहां कटिबद्ध हैं वहीं सैनिक सरकार अपनी सरकार बरकरार रखना चाहती है। इसी लिए आंग सान सू को बार बार जेल में बंद कर दिया जाता है।

         अंत में विश्व में लगभग 40 प्रतिशत देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था है। भारत विश्व में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। भारत को मदर ऑफ़ डेमोक्रसी भी कहा जाता है। पिछले कुछ वर्षो में भारत विश्व पटल पर इस स्थिति में आ गया है जहाँ वह अन्य देशों को विदेश निति के तहत प्रभावित कर रहा है। अमेरिका को विश्व का दूसरे सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का तमग़ा मिला हुआ है तो फ़िर क्या कारण है कि पड़ोसी देश में एक राजनेता को जो कि स्त्री है को लोकतंत्र की अलख जगाने के लिए बार बार जेल में ठूस दिया जाता है और दुनिया की दो शक्तियां अपना प्रभाव डालने में असफ़ल रही हैं।अमेरिका जोअपने को दुनिया का थानेदार बताने का कोई मौक़ा नहीं चूकता वह भी मौन धारण किए हुए है।  किसी भी देश में लोकतंत्र होना अच्छा है किंतु लोकतांत्रिक देशों की यह भी ज़िम्मेदारी है कि वे इस लोकतंत्र को अपने पड़ोस में भी पनपनेदें। उम्मीद है भारत और अमेरिका चुनाव के बाद इस पर ध्यान देंगे।

-प्रदीप डीएस भट्ट-19424
लेखक,कवि, ब्लॉगर,स्तंभकार

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