रिपोर्ताज
"नाम में क्या रक्खा है"
कथा रंग का आठवां रंग
अरे भाया नाम में ही तो सब कुछ रक्खा है। अगर अमिताभ का नाम बलराम या ऊदल सिंह होता या नरेंद्र मोदी का नाम प्रणीत राणा होता या अरविंद केजरीवाल का नाम बिंदु मल्होत्रा होता या या या।😁 बच्चा अपनी मां को बाप को दादा दादी को चाचा मामा को अगर इन संबोधनों से न पहचानकर किसी ऐसे रिश्ते से पहचाने जो समाज को स्वीकार न हो। या फिर हमें ही रुचिकर न लगे तो सोचिए क्या होगा।😉 मैं जिस डिपार्टमेंट में था वहां एक अधिकारी महोदया निश्चित रूप से बेहतरीन पेंटिग करती थीं और हम ठहरे शब्दों के बाजीगर तो एक बार चर्चा में उन्होंने कहा कि अपने मन की प्रसन्नता या अप्रसन्नता को अभिव्यक्त करने में चित्रकारी के द्वारा जो इंपैक्ट पड़ता है वह किसी अन्य माध्यम से नहीं। महत्त्वपूर्ण दर्द है खुशी है उसे किसने तूलिका के माध्यम से कैनवास पर उकेरा महत्त्वपूर्ण नहीं है। हमने कहा आप अपना नाम तो नीचे लिखती हैं एग्जिबिशन में भी अपने नाम का उपयोग करती हैं। उन्होनें बताया मजबूरी है। हमने भी चुटकी लेते हुए कहा मैम ऑफिस की गैलरी में जो चित्र लगे हैं उन्हें मालती महुआ ने बनाया है वास्तव में सुन्दर चित्र हैं। वे एकदम चमक कर बोलीं🤣 वे चित्र मेरे द्वारा बनाए हुए हैं नीचे नहीं देखा मेरा नाम भी लिखा है। मैं सिर्फ़ मुस्कुरा दिया तो उनको बात चुभ गई वे समझ चुकी थीं मैंने उनकी फिलासफी की हवा निकाल दी थी। ख़ैर अब आते हैं असली मुद्दे पर ये तो रिपोतार्ज का स्टार्टर था मेन कोर्स अभी बाक़ी है।
हैदराबाद से मेरठ आए हुए लगभग 9 महीने होने को आए हैं। हैदराबाद और मुंबई प्रवास के दौरान देश के कई शहरों में प्रस्तुति दी। हैदराबाद में साढ़े चार वर्ष के प्रवास में मैंने और सुहास भटनागर जी ने मिलकर "कहानीवाला" के लिए काफ़ी काम किया और कोशिश की कि लीक से हटकर कुछ किया जाए।💪 निश्चित रूप से हमें कामयाबी मिली भी। सिर्फ़ गीत गजल ही नहीं वरन छोटी छोटी कहानियों का प्रस्तुतिकरण भी किया गया। किस्सो कहानियों के लिए मुझे इसके अतिरिक्त और कोई मंच नहीं दिखाई दिया। दिल्ली, गुरुग्राम केरल, लखनऊ, वड़ोदरा, जयपुर,नासिक मुंबई एवम नागपुर की अपनी साहित्यिक यात्राओं के सिलसिले में कई बेहद उम्दा लोगों से मिलना जुलना हुआ। कई संस्थानों द्वारा आमंत्रित किया गया था। गोरखपुर को छोड़ दूं तो सभी अनुभव बेहतरीन रहे। 😏किंतु कहानी कहने सुनने समझने और सीखने की लिए कोई मंच नहीं। तभी फ़ेसबुक पर रिंकल शर्मा जी 🌹ने एक लिंक साझा किया। जुड़ा तो देखा "कथा रंग" सच कहूं तो मुझे इसके नाम ने ज्यादा आकर्षित किया बिल्कुल यूनिक। सो दरियाफ़्त की और जुड़ गए। अब प्रतीक्षा थी प्रथम मीटिंग में उपस्थिति दर्ज़ करवाने की सो मौका मिला 13 अप्रैल को एस डी कॉलेज गाजियाबाद में। अब समस्या आन पड़ी कि एक दिन में दो मीटिंग कैसे अटेंड की जाए। रामगोपाल भारतीय जी ने एक माह पूर्व ही आमंत्रित किया हुआ था सो सुबह 10 से 1.40 तक वहां उपस्थिति दर्ज़ कराई फिर आज्ञा ली और 3.40 पर गाजियाबाद स्थिति शंभू दयाल इंटर कॉलेज जा पहुंचे।
के पी सक्सेना जी के अवतरण दिवस पर इससे अच्छा और क्या हो सकता है की कथा रंग की मीटिंग में लेखकों द्वारा दर्शकों को सभी नौ रसों का रसास्वादन कराया जाए। के पी सक्सेना मेरे पसंदीदा रहे हैं उनका गद्य को पढ़ने का स्टाइल गज़ब गज़ब और गज़ब !
बेहतरीन माहौल में तीसरी पंक्ति में सीट पकड़ी और संयत होकर सांय 7.40 उपस्थिति बरक़रार रक्खी। कुछ ही देर में एक सज्जन ने रजिस्टर आगे कर दिया हमने नाम वगैरह दर्ज़ कराए फिर एक एक कर श्रोताओं में से कहानीकार मंच पर अपनी कहानी पढ़ते गए और श्रोताओं में बैठे अन्य कहानी कार उनकी कहानियों पर टिप्पणी देते। फिर उस कहानीकार से उन टिप्पणियों पर टिप्पणी देने को कहा जाता। कुछ कहानियों पर हुए पोस्टमार्टम से असहज भी दिखे। ये दौर लगभग 7.15 तक चला जब तक मंचासीन अतिथियों को अपने विचार रखने हेतु आमंत्रित नहीं किया गया। एक लड़की ने शायद पहली बार कहानी पढ़ी जिस कारण वो थोड़ा घबरा रही थी शायद कांप भी रही थी। नवोदित के साथ ऐसा होता है। जिसका आभास रिंकल शर्मा जी को हुआ और उन्होनें संचालक का महत्त्वपूर्ण कर्तव्य निभाते हुए उन्हें सांत्वना दी। 🌷🌷एक अच्छा साइन। चूंकि एक दो को छोड़कर मेरे लिए सभी नए चेहरे थे इसलिए मैं पीछे की पंक्ति में आ बैठा ताकि पूर्ण आनंद ले सकूं। मैं पानी पीने के लिए बाहर आया तो एक सज्जन को देखकर सहसा चौंक गया उनका काफ़ी कुछ चेहरा स्वर्गीय के पी सक्सेना जी से मिलता जुलता मिला (मुझे तो मुंबई में नेपाल में दिल्ली में भी और अभी गोरखपुर में जगजीत सिंह का भाई समझ लिया गया) ख़ैर उनसे परिचय हुआ तो उन्होनें शायद सुभाष चंद्र नाम बताया जिनकी अब तक , 53 पुस्तकें आ चुकी हैं। उनसे काफ़ी देर गुफ्तगू होती रही। दूसरी बार पानी पीने उठा तो यात्री जी से परिचय हुआ। एक मोहतरमा नाम याद नहीं अपनी कहानी की समीक्षा से थोड़ा असहज हो गई थीं किंतु उनको दूसरों की कहानियों पर टिप्पणी करते देख मन बड़ा आनंदित हो गया ? शायद वो जैसे को तैसा फिल्म से प्रभावित थीं। 🙆♂️मेरे बराबर में एक सज्जन ने मुझसे मेरा परिचय पूछा तो मैंने बताया तो कहने लगे सर आपको भी कहानियों पर समीक्षा करनी चाहिए। हमने हाथ जोड़ते हुए उत्तर दिया हुज़ूर अभी हम इस लायक नहीं। वैसे भी कथा रंग के कई रंग हैं इसलिए कम से कम आज तो हमें सिर्फ श्रोता बने रहने दीजिए।
फिर उन्होंने एक मोहतरमा की तरफ इशारा कर पूछा इन्हें जानते हैं। हमनें ह्यूमर का प्रयोग करते हुए कहा जी बहुत बड़ी व प्रसिद्ध लेखिका हैं। इनके बस्ते लगभग 7,8 कहानियां जमा हो चुकी हैं ।😵 उन्होंने हमारी तरफ देखते हुए कहा काफ़ी गुरू टाइप के व्यक्ति हो आप। मैंने कहा ना जी ना ऐसा कुछ भी नहीं है हुजूर उन्होनें केला और खरबूजों के कुछ टुकड़ों को खाते हुए हमे अपना यही परिचय दिया है। वो फिर मुस्कुराए और हाथ जोड़ दिए।
अब कार्यक्रम समाप्त हो चुका था हमने जाने से पहले रिंकल जी से मिलना मुनासिब समझा। मिले परिचय हुआ तो उन्होंने भेंट स्वरूप अपनी पुस्तक बुरे फंसे की एक प्रति हमे दे दी। फिर यात्री जी से थोड़ा और गुफ्तगू की। एक बात जो आज की सभा में अच्छी लगी वो ये थी कि किसी को जाने की जल्दी नहीं सभी ने अपना पूरा समय दिया (2,4 को छोड़कर)। मैं इस बात पुनः दोहरा रहा हूं साहित्य से सिर्फ़ लेना नहीं उसे देना भी सीखिए। कम से कम समय तो दीजिए !!!!
कथा रंग और टीम को सुन्दर संचालन के लिए, अच्छी व्यव्स्था के लिए ढेरों बधाई।।।🌷🌷🌹🌹🍁🍁🍁🍁
प्रदीप डी एस भट्ट -17424
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