"थोड़े लिखे को ज्यादा समझना"
आप भी सोच रहे होंगे ये क्या शीर्षक हुआ। 🙃ना ना भैया मैं तो सोशल मीडिया के उद्भव से पूर्व जब खुशी हो या गम बस एक ही जरिया था अपनी बात एक दूसरे तक पहुंचाने का और वो था पत्र/पाती/रुक्का/चिट्ठी/ चिट्ठिया या अंग्रेज़ी में लेटर। गांव में जिसने चार अक्षर अंग्रेज़ी के पढ़ लिए वो पूरे पत्र में कहीं न कहीं अंग्रेज़ी की टांग ज़रूर तोड़ता था। 😊इधर डाकिए की साईकिल की घंटी की आवाज़ और उधर लगभग पूरा मोहल्ला इस आस में कि शायद हमारी भी चिठिया हो दरवज्जे पर आ खड़ा हो जाता था और जब डाकिया हाथ के इशारे से बताता तोहार लेटरवा नहीं है तो मन मायूस होकर कोने में दुबक जाता था। ऐसा लगता था जैसे सब कुछ लुट गया हो और पार्श्व में किशोर दा का गाना कानों में गूंजने लगता था।😌
कोई हमदम न रहा कोई हमारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा ।
और अब आते हैं शीर्षक पर तो भैय्या पत्र की शुरुआत कुछ यूं हुआ करती थी। अत्र कुशलाम तत्रास्तु तदुपरांत समाचार यह है कि......घर परिवार की सुखद दुःखद घटनाओं का विवरण इसकी उसकी चुगली वगैरह😝 वगैरह और अगर प्रेम पत्र होता था तो लड़का हो या लड़की जान छोड़कर सब कुछ पत्र में उडेल देते थे फिर भी लगता था पत्र में कुछ कमी रह गई और अंत में एक पंक्ति चिपका देते थे। "कम लिखे को ज्यादा समझना" 🤝
और उस ज़माने में पोस्ट कार्ड, नीले रंग का इनलैंड लेटर या फिर लिफाफा। जिसमें प्रेम पत्र लिखने वाले कॉपी के पन्ने ठूस ठूस कर भर देते थे। जब प्रेमी या प्रेमिका को पत्र मिलता डाकिया कहता लाओ भैय्या इतने वजन के इतने एक्स्ट्रा पैसे दो तब प्रेम पाती मिलेगी। जिन्हें सब खुशी खुशी चुका भी देते थे किन्तु एक आध केस में जिसे समंध विच्छेद करना होता था वो पत्र वापिस उसी पते पर और भैय्या गजब तो तब होता जब डाकिया वो पत्र मां बाप को दे देता था। आप खुदई कल्पना कर लो तब क्या सीन होता होगा।😆🥹
तो हुआ यूं कि लखनऊ से मित्र ने फुनवे पर बताया कि गोरखपुर में एक कार्यक्रम है आ जाओ एक पंथ दो काज हो जायेंगे गोरखपुर भी घूम लेना और कार्यक्रम भी अटेंड कर लेना। म्ंबई के 12 बरस के प्रवास के दौरान जब हमने 2016 में ब्लॉग लिखना शुरु किया तो पहला ब्लॉग गोरखपुर पर "जाग मछिंदर गोरख आया" शीर्षक से लिखा था सो मन में प्रबल इच्छा थी कि गोरखपुर घूमेंगे सो प्रस्ताव मुफीद लगा और हमने तुरंत टिकिट कटवा ली। लेकीन दो दिन पहले ही मित्र ने अन्यत्र कारणों से आने में असमर्थता प्रकट कर दी। 😂लेकिन हम तो हम ठहरे सोच लिया जाएंगे तो 6 अप्रैल को सुबह दिल्ली पहुंच गए। हमारी मित्र स्कूल निबाटकर हमें लेने गाड़ी सहित लाजपत नगर पहुंच गई। वहां से मण्डी हाउस में पूर्व निर्धारित मीटिंग अटेंड की फिर थोड़ी सी पेटपूजा साथ में आवारागर्दी फिर सीधे मेट्रो द्धारा आनंद विहार और लीजिए हुज़ूर अगले दिन सुबह 9.30, गोरखपुर की पावन धरती को नमस्कार किया। ये सोचकर कि क्या पता संस्था ने रहने का इंतज़ाम कैसा किया हो ऑनलाइन होटल बुकिंग टटोली फिर वही दूसरी यूनिवर्सिटी में कार्यरत्त Mr XYZ से बात की उन्होंने अगले दिन स्टेशन पर लेने आने का आश्वासन दिया। और वादे के मुताबिक़ वे हाज़िर भी हुए। रहने की व्यवस्था अच्छी नहीं जानकर उनकी बाइक पर बैठकर दो तीन होटलों की ख़ाक छानी तो पता चला ऑनलाइन में जितने अच्छे वास्तविकता में उतने ही भद्दे। ख़ैर होटल पार्क रीजेंसी में डेरा डाला फ्रेश हुए और सीधे गोरखपुर यूनिवर्सिटी जहां प्रोग्राम था। रास्ते में Mr XYZ जनाब ने अपनी कई गजले कविता सुनाई। हमने कहा हुज़ूर "भूखे भजन न होई गोपाला पकड़ ये अपनी कंठी माला " कुछ नाश्ता हो तो इस ब्राह्मण की जान में जान आए। ख़ैर माफ़ी मांगते हुए उन्होंने यूनिवर्सिटी गेट पर ही नाश्ता करने में सहयोग दिया ।🥘🫕🍰🌶️
मीटिंग हॉल में पहुंचते ही वही चिर परिचित नज़ारा महिला मित्रों का फोटो सेशन। राम राम श्याम श्याम के बाद सूचना मिली कि कार्यक्रम के अध्यक्ष अतिथि वगैरह अभी तक नहीं आए हैं । 11.30 जैसे तैसे बिना सरस्वती वन्दना के कार्यक्रम शुरु हुआ। मंच पर 9 कुर्सियां बैनर पर रवि शुक्ला, सांसद का फ़ोटो साथ में कुछ अन्य का भी। तभी वे दो भद्र महिलाएं जो कार्यक्रम संचालित करने का असफल प्रयास कर रही थी उनमें से एक ने आकर निवेदन किया आप काव्य पाठ के लिए तैयार रहें। मैंने अचकचा कर उन्हें निहारा फिर कहा मंच खाली पड़ा है मैम आप मुझे बख्श दें। 🙊उन्होंने पुन: आग्रह किया तो मैंने पुन: विनम्रता से उन्हें मना कर दिया। डेढ़ घंटे बाद दो तीन अतिथि आए, कार्यक्रम अध्यक्ष पैर फैलाकर पसर गए जैसे फिल्मी नेता जी। सच कहूं तो पूरे दिन कार्यक्रम में अराजकता फैली रही कोई कहीं भी आ जा रहा था। मंच पर अतिथि आए और गए और दर्शक दीर्घा से लोग उठे मंच पर बैठे फ़ोटो खिंचवाए फिर कोई और फिर कोई और शानदार लगातार अराजक माहौल। बार बार आग्रह पर हमने भी प्रस्तुति दे दी और Mr XYZ ने भी। मेरी प्रस्तुति छोड़िए हुज़ूर Mr XYZ पर ध्यान दें। सुबह से कई कविताओं का डोज पिलाने वाले Mr XYZ ने 1996 में आई दो कैसेटों में गजलों "सजदा" की एक गजल
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी
सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ
अपनी ही भीड़ का ख़ुद मकाम आदमी
😈
भई Mr XYZ का कॉन्फिडेंस देखकर जगजीत भी बंदे के पैर छू लेते। मुझे सहसा जनवरी 2024 में मुंबई में आयोजित गज़ल कुंभ याद हो आया जहां दो दिनों में 150 से अधिक लोगों ने गज़लें पढ़ी। एक मोहतरमा नज़्म पढ़ गई। दीक्षित दनकौरी जी जो मेरे पास ही बैठे थे, टोका तो बोली ये गज़ल ही है। कॉन्फिडेंस है भई कॉन्फिडेंस। मैं जहां स्तब्ध था वहीं ये देखकर और स्तब्ध हो गया कि क्या दर्शक क्या संचालिकाएं क्या सो कोल्ड जाजिस किसी को पता ही नहीं बंदा क्या पढ़ रहा है। मेरे बाजू में एक मोहतरमा ने मुझे कहा सर क्या हुआ आपने माथे पर क्यूं हाथ मारा तो मैंने कारण बताया, बोली अच्छा सर ऐसा है क्या वैसे ये जगजीत क्या गाने लिखते हैं।😡 अब सहन करना मुश्किल हो रहा था। सो Mr XYZ को बाहर ले जाकर जब अवगत कराया कि आपने जगजीत सिंह की गज़ल पढ़ी है तो तुरन्त बोले ये मैने लिखी है ये देखिए और उन्होंने मुझे तीन चार सादे कागज़ों में तरतीब से लिखी कई गज़लें दिखाई उनमें ये भी थी मैंने पूछा कब लिखी तो बोले ढ़ाई तीन साल पहले। भई सच कहूं मन किया सरयू में अपना तर्पण कर दें। 😢बस भैय्या अब आगे कुछ न "थोड़े लिखे को ज्यादा समझना"।
वैसे तो रिपोतार्ज को इसी नोट पर छोड़ना मुनासिब होगा किंतु पिक्चर अभी बाक़ी है मेरे दोस्त। कार्यक्रम से रूखसती लेकर गोरखपुर भ्रमण पर निकल गया। शाम को होटल पहुंचा चूंकि ट्रेन 8 की सायं 7.15, पर थी सो फ्रेश हुए और पैर फैलाकर सीधे बैड पर। अभी कमर सीधी भी नहीं की थी फ़ोन घनघना उठा। बैंगलौर से वरिष्ठ दर्शन बेज़ार जी लाइन पर थे। राम राम के बाद सूचना मिली की उनकी नई तेवरी पुस्तक " खतरे की भी आहट सुन "का लोकार्पण 18 जून=2024( रानी लक्ष्मीबाई का जन्मदिन) के स्थान पर 8 जून=2024 ( मंगल पाण्डेय की पुण्यतिथि) पर हज़रत गंज स्थित केरल रेस्टोरेंट में होगा। हमने कहा हुज़ूर हम तो गोरखपुर में हैं तो तय हुआ कि वे स्वयं मेरठ आ जाएंगे। लेकिन लेकिन लेकिन वादा तो वादा है हुजूर। जुट गए व्यस्था में और लखनऊ चंडीगढ़ एक्सप्रेस में टिकिट लेकर ही माने। अब ये और बात की कंफर्म टिकिट लखनऊ से सहारनपुर की मिली गोरखपुर से दिल्ली की ट्रेन कैंसल की। 🚂 सोचा कट फट के रेलवे जो देगी ले लेंगे। होटल तो दो दिन के पूरे 6000 पहले ही ले चुका था सो रात्रि साढ़े ग्यारह बेजार जी को सूचना दी कि कल सुबह बस से लखनऊ पहुंच रहा हूं। उन्होंने भी वही कहा जो इस स्थिति में मैं कहता कि इसकी क्या ज़रूरत है। लेकिन अपनी गज़ल का ही मतला है भई
खता मेरी मुझको, बतानी पड़ेगी
अगर दोस्ती है, निभानी पड़ेगी
सो बस में बैठे और पांच घण्टे बाद लखनऊ। आलमबाग स्थित पत्रकार मित्र मनीष शुक्ल से संक्षिप्त मुलाकात फिर मेट्रो पकड़कर सीधे केरल रेस्टोरेंट। बढ़िया प्रोग्राम एक से बढ़कर एक हस्ती। हैदराबाद प्रवास की याद ताज़ा करते हुए डिनर में डोसा फिर गुलाब जामुन खाकर आत्मा और पेट दोनों तृप्त किए। टैक्सी पकड़ी और सीधे स्टेशन। ट्रेन से गजरौला फिर बस द्वारा सीधे मेरठ।खाया पीया और जय श्रीराम। अगले दिन बेड से उठे तो उठा न जारिया। उठते बैठते लेटते कमर में आहा उह्हु क्या कहूं। बस आहा उह्हू पर ही जय श्रीराम!!!🌹🌹🌹😊
प्रदीप डी एस भट्ट=14227
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