Friday, 1 December 2023

शब्दों के बाज़ीगर शब्दाक्षर महोत्सव में

रिपोतार्ज़

शब्दों के बाज़ीगर शब्दाक्षर महोत्सव में

जब अक्षर अपनी यात्रा प्रारंभ करते हैं तो वे शब्दों बन जाते हैं, जब शब्द अपनी यात्रा आरंभ करते हैं तो वे वाक्य में परिवर्तित हो जाते हैं और कुछ वाक्यों से मिलकर कविता का निर्माण हो जाता है जो अपनी अनवरत यात्रा के दौरान काव्य संग्रह या कहनी संग्रह उपन्यास,काव्य या महाकाव्यों तक का निर्माण हो जाता है। लेकिन इस पूरी यात्रा में अगर एक चीज़ महत्वपूर्ण है तो वो है शब्द और अक्षर यानि कि शब्दाक्षर। 

पिछ्ले वर्ष अगस्त की 6,7,8 को हम सभी शब्दाक्षर महोत्सव में सम्मिलित होने हेतु चेन्नई में मिले थे। मैंने भी तेलांगना इकाई का उपाध्यक्ष होने के नाते उस महत्वपूर्ण आयोजन में अपनी सहभागिता सुनिश्चित की थी। इस तरह के महोत्सव में सहभागिता करना ही अपने आप में महत्वपूर्ण होता है। केवल कोठरी जी का साहित्य के प्रति समर्पण देखकर निश्चित मन गदगद हो गया था।

इस बार भी 25, 26, 27 नवंबर को हरिद्वार में आयोजित शब्दाक्षर महोत्सव में ज्योति नारायन जी अध्यक्ष तेलांगना इकाई के अतिरिक्त मैंने भी उपाध्यक्ष तेलांगाना ईकाई की हैसियत से ही प्रतिनिधित्व किया। कोठारी जी पूरी तन्मयता के साथ प्रिय अमन शुक्ला, अध्यक्ष हरिद्वार के सहयोग से सारी व्यवस्थाओं में पूर्व की भांति लगे रहे। प्रिय निशांत एवम सागर दोनों ही अपनी अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन हेतु सदैव तत्पर दिखे। पिछली बार टीम दिल्ली अनुपस्थित थी किंतु इस बार पूरी टीम स्मृति कुलश्रेष्ठ जी के नेतृत्व में दिए गए कर्तव्यों को पूर्ण करने में सजग दिखी। इस सजगता को देखकर मैं मन ही मन प्रफुल्लित हो रहा था।😊 आख़िर साड्डी दिल्ली की मेहनत सफ़ल रही।

मैं 25 को योगा एक्सप्रैस से 11.30 हरिद्वार पहुंच गया कुछ ही देर में शताब्दी से दिल्ली टीम भी पहुंच गई और हम सब लगभग 12=15 होटल शर्मा परिवार (निकट शांति कुंज) पहुंच गए। मुझे कमरा नंबर 302 अलॉट किया गया 😁 सांय को रवि प्रताप सिंह जी के आग्रह पर मैं भी मनसा देवी के मंदिर में दर्शन करने चल पड़ा। मंदिर के मध्य में पहुंचकर तय हुआ कि हम सभी अक्षर एवम शब्दों के चंद पुष्प माता जी के चरणों में अर्पित करते चलें और परिणाम स्वरूप मेरी अध्यक्षता में एक कवि गोष्ठी आयोजित हुई। हमारी कविताएं सुनकर दर्शकों के तौर पर जुड़ी मेरठ की एक लड़की नेहा ने भी अपनी एक अच्छी कविता सुनाई। गोष्ठी उपरांत माता जी के दर्शन किए फिर एक ही स्टांस में सभी नीचे उतरे और सीधे होटल। खाना खाया और होटल के लॉन में सभी एकत्र हुए। देहरादून से पधारे डॉक्टर बुद्धिनाथ मिश्र जो कि शब्दाक्षर उत्तरखंड राज्य के अध्यक्ष भी हैं से सभी कवियों का परिचय रवि प्रताप सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष शब्दाक्षर ने कराया फिर आदतानुसार एक कवि गोष्ठी। लगभग 1 बजे वापिस कमरे में आया तो थोड़ी देर बाद ही दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण राही जी आ पहुंचे। एक घण्टे तक बतियाते रहे। अभी सोए ही थे कि 4 बजे मुबलिया घनघना उठा। दूसरी तरफ़ संतोष संप्रति थी, सीधे बोली नीचे रिसेप्शन पर हूं xy फोन नही उठा रहा क्या करूं 😇 हमने भी नींद में ऊंघते हुए कह दिया 302 में आ जाओ दो घंटे आराम करो फिर सुबह देखते हैं 🥰 ख़ैर थोड़ी ही देर में अमन की आवाज़ सुनकर मैंने कमरे से बाहर आकर देखा तो संतोष संप्रिति 301 में शिफ्ट हो चुकी थीं। 

26 को नाश्ते के बाद थर्ड फ्लोर पर हॉल में जा पहुंचे। पहले सेशन में परिचय, सम्मान इत्यादि में 4 बज गए। खाना खाया फिर अनवरत 8,9 कवियो के ग्रुप में सभी को स्टेज़ शेयर करने का मौक़ा दिया गया। ये अच्छा निर्णय था। रात 11 बजे तक तीन ग्रुप ही हो पाए। डिनर के बाद फिर अनौपचारिक कविताओं का दौर। 12 या 1 बजे सोए और सुबह संतोष संप्रति 7 बजे हाज़िर। सीधे सीधे चलो भाई गंगा नहाने चलना है। मना करने की गुंजाइश बिलकुल नहीं थी सो चुपचाप ऑटो लिया स्नान किया और 8.30 वापिस होटल पहुंच गए। नाश्ता किया और हॉल में। वही प्रक्रिया प्रथम सत्र में भी , प्रिय स्मृति कुलश्रेष्ठ का बढ़िया संचालन। पूरे दिन में लगभग 7,8 ग्रुप अपनी प्रस्तुति दे चुके थे। सेकेंड लॉस्ट में हमारा नंबर था सो एक गीत और एक गजल पढ़कर हमने भी साहित्यिक यज्ञ में अपनी आहुति दे दी।

🌷नमक दरिया में थोड़ा सा मिला दूं
मैं अपनी आंख का आंसू गिरा दूं

🌷गमों के साए में जीना है मुश्किल
खुशी के वास्ते तुमको भुला दूं 

श्यामल मजुमदार दादा एवम राजीव खरे ने अपने सत्र में अच्छा संचालन किया। मैंने विश्वजीत जी के इस आग्रह को कि एक सत्र का संचालन मुझे करना है के लिए बड़ी ही विनम्रता से अस्वीकार कर दिया। प्रिय लखन कटनी का संचालन या कहूं कि प्रस्तुति करण बहुत अच्छा है किंतु उन्हें अभी बहुत अधिक सीखना शेष है। एंकर मतलब अपनी वाकपटुता से सभी कुछ साधने की कला अगर एंकर ही मंच पर क्रोध प्रकट करेगा तो रायता बिखरना तय है। मुझे उम्मीद है लखन भविष्य में अपने तैश पर नियंत्रण करना सीख लेंगे।🌹

खाने के बाद होटल के कवर्ड लॉन में कोठरी दादा की अध्यक्षता में फिर गोष्ठी जुड़ गई। विश्वजीत, लखन, स्मृति कुलश्रेष्ठ, सविता बांगड़,वंदना चौधरी, सीमा त्रिवेदी, बिट्टू जैन, राज पुरोहित,
मधु पारख और है हम यानि शाहंशा ए दिल्ली 🤪 अब हम तो हम ठहरे ठंड से बचने के लिए सभी को सुझाव दे रहे थे, सिर ढक लो भैया पैर ढक लो सीना भी कवर कर लो। हमारी बात को सिरयसली लेते हुए विश्वजीत जी ने तुरन्त आधी अधूरी बुक्कल मार ली। चित्र देखें 😝 सुबह चार बजे तक चली गोष्ठी का आनंद शब्दों में बयां करना मुश्किल है। कोठरी दादा कमरा नहीं खुला तो मैंने उन्हें अपने कमरे में सोने का आग्रह किया। वो तो दस मिनिट में ही सो गए। मैं भी प्रयास कर ही रहा था तभी किसी ने मेरा पैर हिलाया देखा तो एक धुंधली सी परछाई दिखी। हमने अपने तेवर में ही पूछा कौन हो देवी यहां क्या कर रही हो तैन्नु की चाइदा। उसने न सुनाई देने वाला अट्टहास लगाया और बोली बहुत प्रवचन दे रहे थे वहां। बच के रहो सर्दी है बुड्ढा जवान नहीं देखती बस चिपक जाती है जिससे चिपकना होता है। तो बेटा हम वही सर्दी हैं अब देखो हम तुमसे कहां कहां चिपकते हैं। हमने हाथ जोड़ते 🙏🏾 हुए कहा देवी रहम करो हमें तीन दिवसीय कार्यक्रम में सम्मिलित होने 5 दिसंबर को केरल जाना है। हमने बड़ी अनुनय विनय की लेकिन उसका दिल न पासीजा बोली हमारे ग्राहक को हमसे बचाओगे तो हम तुम्हे ही अपना ग्राहक न बनाएंगे। कुछ देर बाद कमर में सिहरन सी महसूस हुई हम समझ गए कि अपना हैप्पी बर्डे पक्का। और अगले दिन घर पहुंचते पहुंचते जय श्री राम। सो भैय्या गला चॉक हो गया है। हाथ पैरों में जान सी न लग री, खांसी कौन से सुर की है पता नी चल रिया 😎😦 कोरोना के बाद फिर से काढ़ा पी रहे हैं। लगे है डॉक्टर बाबू को दिखाना भी पड़ेगा नई तो......... चेन्नई से वापिसी में भी कुछ कुछ ऐसा ही हुआ था। 16 अगस्त को हैदरावाद मेट्रो में गिर गए सो अलग। कुछ दिनों तक पट्टी बांधकर और लटकाकर 😏😏😏 वो भी क्या सीन था मेट्रो में चढ़ते ही सीट ऑफर हो जाती थीं।

कुछ लोगों को मन में बसाए और कुछ को घटाए 28 की सांय को घर वापिसी । कल सांय को मजूमदार दादा का फोन आया तो मन प्रफुल्लित हो गया। सीधे बोले राष्ट्रीय कवि प्रदीप भट्ट दादा को प्रणाम 🌷🙏🏾🌹 गले की तो एमसी बीसी हुई पड़ी हुई थीं फिर भी काफ़ी देर तक बतियाते रहे ।
चर्चा के दौरान प्रोग्राम के विषय में मजूमदार दादा ने पूछा तो मैंने बोला प्रोग्राम बहुत अच्छा और स्तरीय हुआ है दादा और अगर फिर भी कोई व्यक्ति इतने अच्छे प्रोग्राम में कमी ढूंढता है तो ये उसकी आंखों का दोष है या फिर मानसिकता का।

तो दोस्तों फिर मिलेंगे किसी नए वैन्यू पर नए मैन्यू के साथ और हां किसी ने वादा किया है दोस्ती निभाने का, देखते हैं भैय्या सिर्फ़ वादा है या दावा। एक शेर याद आ गया।
दावा करूंगा हिज़्र में मूसा के खून का
क्यूं उसने मेरे कातिल के खंजर को बाड़ दी 

प्रदीप DS भट्ट, 011023

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