" ऊहापोह "
सुनो एक बात कहूँ
तुम बहुत अच्छे हो
शायद हद से ज्यादा
तुम अपना अच्छा पन
बरकरार रखना ऐसे ही
तुम्हें मेरी कसम है!
सुनो मेरी इक उम्र बीत गई
एक अच्छे की तलाश में
कुछ तल्ख अनुभवों से
बाबिस्ता भी हुई हूँ बारहा
बस एक उम्मीद के सहारे
कभी कोई मिलेगा अच्छा!!
कुछ अच्छे मिले, कुछ बुरे भी
खुछ खोटे मिले कुछ खरे भी
जैसा जिसने दिया लौटा दिया
बुरे को बुरा औ अच्छे को अच्छा
मगर खुद को न लौटा सकी
कभी भी अपना अच्छा पन !!!
मगर भाग्य की बलिहारी
मैं और मेरी टूटती उम्मीदें
कभी मिल न सके एक दूजे से
जैसे नहीं मिलते नदी के किनारे
तल्ख अनुभवों से मैं भी तल्ख हो गई
दूसरों के बनिस्पत खुद से ज्यादा!!!!
कहते हैं न भाग जागते हैं कूड़ी के
मेरे भी जगे पर बारह बरस में नहीं
पूरे पैंतीस बरस गुजरने के बाद
तुम मुझे मिले समन्दर के तीर!!!!!!
मेरी उम्मीदें फिर से बलवती हुई
और मैं बन गई तुम्हारी प्रिय प्रिया
पर ये चित्त है न थोडा बावरा है
अच्छा मिले तो और अच्छा माँगता है
मैं भी इस चित्त के फेर में आ गई
निकल पडी ढूँढने तुमसे अच्छा
पर तुमसे अच्छा कोई हो तो मिलता
सो टिका दी सभी उम्मीदें तुमसे!!!!!
कभी इससे कभी उससे
न जाने बातें की किस किस से
तुम समझते रहे मग़र रहे मौन
कभी न पूछा मेरे इलावा कौन
पर अब और कहीं नहीं जाना है
तेरा दिल ही अब मेरा ठिकाना है
बहुत हुई ऊहापोह की स्थिति
अब कुछ नहीं चाहिए किसी से
बस तुम और सिर्फ तुम ही हो
मेरे जीवन रुपी नाव के खिवैय्या
अब न कोई प्रश्न न कोई उत्तर
‘दीप’ तुम ही हो मेरे वृहत्तर
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-16:01:2023
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