“Not My Name, lynching”
(“दोगले लोगों की जात न पूछो”)
पिछले कुछ दिनों से फ़िर एक सेलेक्टिव गैंग चर्चा
में आना चाहता हैं इस गैंग का मकसद सिर्फ़ इतना है कि देशी में जो कुछ भी अच्छा हो
रहा है उस पर मिट्टी कैसे डाली जाये इन बेहुदे लोगों का सिर्फ़ एक ही प्रयास है कि
किसी भी तरह देश में कांग्रेस पार्टी अपनी सरकार बना ले ताकि ये फ़िर से अपनी
कहिलियत का प्रदर्शन कर सके। इन्हें इस
बात से कोई लेना देना नहीं कि देश वर्तमान सरकार के विषय में क्या सोच रहा है
इन्हें बस तकलीफ़ इस बात से है कि देश के लोग वर्तमान सरकार के कार्यों से क्यूँ कर
खुश हैं या ये कहूँ कि ये इस बात से ज्यादा परेशान है की भारत के लोगों की इतनी
हिम्मत कि बिना कांग्रेस के भी ये खुश रह सकते हैं।जब कि ये विषय अलहदा है कि देश
के काफी लोग वर्तमान सरकार से नाराज़ भी हैं लेकिन वे अच्छे कार्यों का समर्थन भी
कर रहे हैं फ़िर चाहे वो नोट्बंदी हो या १ जुलाई से लागू जी एस टी। लेकिन इस गैंग के हिसाब से देश में ये सब-कुछ ठीक नहीं हो रहा है।
सम्पूर्ण विपक्ष इसी उधेड़बुन में लगा हुआ है कि ऐसा क्या दांव खेला जाये जिससे
वर्तमान सरकार और ज्यादा परेशान हो जाये लेकिन कहते हैं ना कि “कौव्वे
के कोसने से हाथी नहीं मरा करते”
आज वर्तमान सरकार और विपक्ष की स्थिति उस कौव्वे से ज्यादा कुछ भी नहीं है जो
निरंतर कांव कांव किये जा रहा है किन्तु उसकी कांव कांव से ज्यादा लोग कोयल की कूक
सुनना पसंद कर रहे हैं और यही विपक्ष की हताशा का मुख्य कारण है।
स्वतंत्रा के बाद से जयादातर समय कांग्रेस
ने ही इस देश की सत्ता का स्वाद लिया है। राष्टपति चुनाव हो या उपराष्ट्रपति चुनाव
या कुछ और अहम् निर्णय कांग्रेस ने कभी भी विपक्ष को अधिक तव्वजो नहीं दी एवं सदैव
अपने ही प्रत्याक्षी मैदान में उतारे और उन्हें साम दाम दण्ड तीनों तरह की नीतियों
से जितवाया भी। चूँकि अब विपक्ष के पास कुछ करने को है नहीं अतएव वह इसी प्रयास
में रहता है कि कैसे सत्ता पक्ष के अच्छे कार्यों में अडंगा लगाया जाये। आप सबको याद योग 2015
में दादरी में एक घटना हुई थी जिसमें गाँव के कुछ लोगों ने बीफ़ रखने और खाने के
संदेह में एक मुस्लिम परिवार अनाचार किया जिसकी विपक्ष द्वारा बड़ी तीखी
प्रतिक्रिया पर्दर्शित की गई फ़िर राजस्थान में पहलूँ खां (समझ नही आता सारे के
सारे खां ही क्यूँ है और भी जातियां हैं न मुस्लिम में) का मरना और अब एक नया
किस्सा जिसमें बताया जा रहा है कि कुछ लोगों ने लोकल ट्रेन में कुछ लोगों ने एक
सोलह साल के लड़के जुनैद को मार दिया ,अब वो लड़का चूँकि मुस्लिम है इसलिए कुछ छद्म
पैरोकारों ने तुरंत प्रभाव से अपनी अपनी ढपली निकाली और लगे बजाने कि भारत में
रहने वाले अल्पसंख्यों के साथ ज्यातती हो रही है। वैसे तो मुझे इस अल्पसंख्यों? पर
भी आपत्ति है जिस देश में मात्र 50 लाख जैन
धर्म के लोग रहते हों वहां वो अल्पसंखक नहीं है और ना ही पारसी समुदाय बस वोटों की
राजनीती ने 20-22 करोड़ लोगों को अल्पसंखक का दर्जा
दे डाला ताकि चुनाव में इनको बेवकूफ बनाया जा सके और ये छद्म मुस्लिम भी ऐसे हैं
कि वास्तविकता को समझने का यत्न ही नहीं करते। आख़िर कब तक ये लोग राजनैतिक
पार्टियों द्वारा छले जाने के लिए अभिशप्त रहेंगे।
पिछले कुछ दिनों से एक वर्ड बार
बार कानों को सुनाई दे रहा है कि समाज के तबके के कुछ सेंसेटिव लोग लिंचइंग के
विरोध में “नोट माय नाम:
के एक आडम्बर के तहत अलग अलग शहरों में मार्च निकाल रहे हैं क्यों? क्यों कि ये इस
बात से आहत हैं कि इन दिनों भीड़ द्वारा लोगों को निर्मम तरीके से मारा जा रहा है
और इसके शिकार ज्यादातर मुस्लिम और दलित है?
मुझे इस बात पर खीज भी आती है और हसीं भी क्यों कि ये पहली नज़र में कुछ
दिग्भ्रमित लोगों द्वारा देश में फैलाये जा रहे अंट शंट या बे सिरपैर वाली बातों का जमावड़ा ज्यादा लगता
है। इनकी नियत भी साफ नहीं है ऐसा करके ये सिर्फ़ लोगों को व्यक्ति विशेष या जाति
विशेष के लोगों को भड़काना मात्र चाहते हैं । इनकी मजबूर भी साफ है क्यों कि
वर्तमान परिस्थिति में इनके करने के लिए कुछ बचा नहीं है। ये इनकी हताशा को ज्यादा
दर्शा रहा है।
कल ही मैं बालासुब्र्ह्मन्यम जो कि
टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व संपादक हैं का खुला पत्र जो उन्होंने शबाना आज़मी के नाम
संबोधित किया है पढ़ रहा था उसमें उन्होंने वही सब शामिल किया है जिसकी मैं स्वम भी
अपने पूर्व के लेख में पहले ही लिख चुका हूँ। जब दादरी कांड होता है तो भारत के
कुछ दुष्ट लोग अपना अवार्ड वापस करने का ढोंग करते हैं, जब पहलु खां के साथ
राजस्थान में एक दुर्घटना होती है तब ये सब गैंग पता नहीं किस खोल से बाहर आकर
अपने अवार्ड वापिस करने लगते हैं इसी प्रकार एक मोमबत्ती गैंग हैं जो डेल्ही में
निर्भया के समय काफी मुखर हो जाता है और फ़िर चादर तान के सो जाता है। इस तरह के
हजारों नहीं लाखों लोग हैं जो सिर्फ़ अपनी तुष्टिकरण की नीतियों के कारण ही आज तक
समाज में बचे हुए हैं क्यों कि उन्हने पता है कि अगर उन्हें कोई कुछ कहेगा तो
अवार्ड वापिसी गैंग, मोमबत्ती गैंग सड़कों पर उतर कर
सरकार को घेरने के लिए तैयार बैठा है जैसे कि भारतीय सेना के द्वारा आतंकवादियों
के विरुद्ध किया जा रहे अभियानों में काश्मीर के नामुराद और ना शुक्रे लोग उसी
सेना को पत्थरों से नवाजते हैं जो उन्हें बाढ़ से बचाती है जो उन्हें उन
आतंकवादियों से बचाती है जो उनके सामने ही उनकी बहु बेटियों की इज्ज़र को तार तार
करते हैं।
आख़िर जो बोया है उसी को तो काटना
पड़ता है 1990
के दशक के समय कैसे 5 लाख हिन्दुओं को जिनमें ज्यदातर
पण्डित थे मार मार के काश्मीर से बाहर फ़ेंक दिया जाता है तब उस समय की सरकार क्या
करती है ये किसी से छिपा हुआ नहीं है। इन 27 वर्षों में
कश्मीरी हिन्दुओं की पूरी की पूरी पीढ़ी ही बदल गई उनमें से ज्यादातर को ये पता ही
नहीं की उनकी माँ बहनों के साथ काश्मीर के मुसलमानों ने कैसा वीभत्स अत्याचार किया
था उनके भाइयों,चाचा,ताऊओं और ज्यादातर के तो माँ और बाप दोनों को बड़ी बेरहमी से
मार दिया गया था। उस वक्त कितने मोर्चे निकाले गए थे,उस वक्त कितने लोगों ने अपने
अवार्ड वापस किये थे, कितने लोगों ने आज तक इस वाक्य का प्रयोग किया कि “ये
घटना देखकर मेरा खून खौल जाता है “
जैसा कि परसों ही प्रियंका गाँधी और राहुल गाँधी इन घटनाओं पर स्यापा कर रहे थे।
जब 1984
में सिखों का सारे आम कत्ले आम हुआ तब कांग्रेस की ही सरकार थी तब किसी का ना तो
खून खुला और ना ही कोई मोमबत्ती गैंग सामने आया और ना ही किसी ने अपने अवार्ड
वापिस किये । आख़िर क्यों इसका जवाब किसी के पास नहीं है और कांग्रेस के पास तो
बिलकुल भी नहीं,क्यों की देश की आज जो ज्वलंत समस्याएं हैं उनका बीजारोपण कांग्रेस
के समय में ही हुआ था। वैसे भी ढाई साल जनता पार्टी एवं नौ साल भाजपा का शासन छोड़
भी दिया जाये तो बाकी इन 70 सालों में कांग्रेस ने ही इस देश
पर शासन किया है वह यह कहकर नहीं बच सकती की कुछ हमारी भी कमियां रहीं या
मजबूरियां रहीं।
पिछले दिनों ही एक विडियो वायरल हो
रही थी जिसमें दिखया गया है कि कैसे कुछ मुस्लिम युवक (उनमें दो या तीन नाबालिक भी
थे) कैसे दो लड़कियों के साथ वहशियाना हरकत कर रहे थे। उम्र में बड़ी लड़की दूसरी
छोटी उम्र की लड़की को उन मानसिक रोगियों से बचाने का का प्रयास करती नज़र आ रही है।
यह विडियो पुरे देश और शायद विदेशों में भी खूब वायरल हुआ कितने गैंग इस वहशियाना
हरकत के लिए सड़कों पर आये? पश्चिम बंगाल में ट्रकों में भरकर मुस्लिम हिन्दुओं के
गांवों में जाते हैं और पूरा का पूरा गाँव लूट लेते हैं या जला देते हैं किन्तु
आश्चर्य देश के किसी भी हिस्से से विरोध की कोई भी आवाज नहीं आती ऐसा क्यों ? पहली
बात तो पश्चिम बंगाल में वर्तमान सरकार हिन्दुओं के साथ जैसा व्यवहार कर रही है और
जिस प्रकार वहां का मीडिया और देश का मुख्य मीडिया जो पक्षपात पूर्ण रवैय्या रहा
है वह असहनीय है। आपको याद है पिछले साल कोलकत्ता में रिहर्सल के दौरान अभिमन्यु नाम के एक
सैनिक को मुस्लिम विधायक की गाड़ी द्वारा रौंद दिया गया,बस एक खबर बस छपी और चैनल
पर दिखाई दी उसके बाद क्या हुआ कोई नहीं जानता। डेल्ही में भजनपुरा की एक घटना
जिसमें मुस्लिम युवक से गाड़ी के पेपर दिखाने का आग्रह करने पर पुरे झुण्ड ने कैसे
उस हवालदार को धुन दिया था । राम लला के दर्शन करने जा रहे उन रामभक्तों को जब
ट्रेन में जलाकर मार दिया जाता है तब और काश्मीर में जिस तरह आये दिन वहां पर
हिन्दू हो या मुस्लिम या सिख जवान उनके साथ वहां के लोग कैसा बुरा बर्ताव करते हैं
वो किसी से छुपा हुआ नहीं है। पहले जम्मू काश्मीर में सेना के एक लेफ्टिनेंट उमर
फैय्याज मार दिया जाता कुछ समय बाद जम्मू काश्मीर में डार को मार दिया जाता है फ़िर
डी एस पी अयूब पण्डित को मस्जिद के सामने ही वहशी भीड़ द्वारा मार दिया जाता है लेकिन
फ़िर से आश्चर्य सिवाय नेशनल टीवी पर गर्मा गरम चर्चा के अलावा कोई कार्रवाई नहीं
होती। आख़िर ऐसा सेलेक्टिवनेस कब तक चलेगी।
उपरोक्त घटनाओं पर नेशनल टीवी पर बड़े
बड़े डिबेट आयोजित करते हैं जिसमें देश के जाने माने पत्रकार,नेता कुछ सर्वोच्च
न्यायालय के अधिवक्ता बड़ी बड़ी बातें करते नज़र आते हैं। इस तरह की डिबेटों में शबनम
लोन जो सर्वोच्च न्यायालय की अधिवक्ता कम और जम्मू और काश्मीर वर्तमान स्थिति की
परोकर ज्यादा लगती हैं ऐसा ही हाल हैं इंजिनियर राशिद जो जम्मू काश्मीर से विधायक
हैं? इनके अतिरिक्त और भी हैं जिन्हें शायद एजेंडा ही काश्मीर की अर्तमान स्थिति
को और बिगड़ना मात्र है। रामपुर उत्तर प्रदेश से विधायक आजम खां सदैव नकारात्मक ही
बोलते हैं ताज़ा उदाहरण उनका सेना पर दिए उनके बयान से ताल्लुक रखता है इसी प्रकार
डेल्ही के संदीप दीक्षित है जो पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र हैं,
चर्चा में बने रहने के लिए ये जनरल रावत को गुंडा तक कह देते है और पूरा देश का
छद्म मीडिया बुद्धिजीवी सब सुट्टा मार कर बैठ जाते हैं। इसी प्रकार हैदराबाद से छोटे
बड़े ओवेसी। भगवान जाने ये लोग क्या साबित करना चाहते हैं। इनकी हरकते देखकर मुझे
तो ऐसा प्रतीत होता है कि ये हिन्दुओं के नहीं वरन मुसलमानों के ज्यादा दुश्मन हैं।
इनका एक मात्र उद्देश्य सत्ता में बने रहने का है। इसके लिए किसी भी हद तक अपनी ही
कौम को बर्बाद करने से भी पीछे नहीं रहने वाले।
और अंत में ये प्रश्न उन चैनल वालों से भी है कि
जब उन्हें पता है कि इनकी फ़ितरत नियत सब कुछ पाकिस्तान से संचालित होती है तो ये
भारत का अच्छा तो कभी सपने में भी नहीं सोचने वाले फ़िर क्यूँ इन्हें नेशनल टीवी पर
पूरे देश का मूड ख़राब करने के लिए बुलाया जाता है। कहीं इसका कारण टी आर पी तो
नहीं है अगर ऐसा है तो इन चैनल को डिबेट में भाषण बाजी बंद करनी चाहिए। ये लोग
क्यूँ अपना और देश के देशभक्त लोगों को अपने व्यवहार से आहात करने का काम करते हैं।
आवश्यकता हैं इन्हें अपने अंतर्मन में झाँकने की। देश से बढ़कर कभी भी कुछ भी नहीं
हो सकता शायद ये बात कुछ नेशनल टीवी के एंकरिंग करने वालों को भी आम जन से सिखने
की आवशयकता है।
-प्रदीप
भट्ट –
Tuesday, JULY 04,
2017
No comments:
Post a Comment