Friday, 14 July 2017

चीन चिंता में या चिंतन मेँ





चीन चिंता में या चिंतन में


पिछले कुछ दिनों में भारत और चीन के मध्य सिक्किम सीमा के पास भूटान के डोकलाम क्षेत्र से शुरू हुआ सीमा विवाद उभरकर सामने आया है।लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। 1962 के भारत चीन के मध्य हुए युद्ध के बाद जब तब भारत और चीन के सैनिक सीमा पर एक दुसरे के आमने सामने आते रहते हैं। इसमें अच्छी बात यह है कि अपने चिरपरिचित शत्रु पाकिस्तान के साथ जहाँ दिन में कई कई बार अकारण ही पाकिस्तान की ओर से गोली बारी की जाती है वहीँ भारत और चीन की सीमाओं पर कभी कोई गोली नहीं चली। यही आज के दौर की सबसे अच्छी बात है दोनों सेना के सैनिक पता नहीं कितनी ही बार आमने सामने हुए गाली गलोच भी हुई धक्का मुक्की भी हुई किन्तु किसी भी तरफ़ से कभी कोई गोली नहीं चली। पिछले ५५ वर्षों में जहाँ भारत और चीन में व्यापारिक साझेदारी बढ़ी है भारत चीन सीमा पर एक भी गोली का न चलना ये बताता है कि दक्षिण एशिया के दोनों बड़े देशों को युद्ध करने के नुकसान और ना करने के फायदे पता हैं। वैसे भी आज के परिवेश में जो देश आर्थिक द्रष्टि से मजबूत हैं या ये कहें कि विकाशील देशों के पांत में हैं वे कभी भी युद्ध नहीं चाहते सिर्फ़ अपनी मजबूती का अन्य विकासशील देशों या तीसरी दुनियां के देशों को अपनी धोंस पट्टी में रखकर अपना काम करते या करवाते रहना चाहते हैं।अभी जो भारत चीन सीमा विवाद गरमाया है वक्त के साथ साथ वो भी स्वत: धीरे धीरे दोनों देशों की आपसी समझदारी से आज नहीं तो काल सुधर ही जायेगा क्यों कि चीन को भी पता है कि भारत वो पुराने वाला 1962 वाला नहीं है और भारत को भी पता है कि उसकी आजादी के दो साल बाद चीन जापान से आजाद हुआ। जहाँ भारत ने आज लोकतंत्र की नीवं पर खड़े होकर विकास किया है वहीँ चीन ने शुरू से ही लोकतंत्र को अपने देश में पनपने ही नहीं दिया ताकि उसे किसी भी प्रकार के विरोध का सामना ही न करना पड़े।आगे पढने से पहले आइये चीन के विषय में कुछ जान लेते हैं।


पुरातात्विक सबूतों के आलोक में चीन में  मानव बसाव लगभग  22.5 लाख साल पुराना है। चीन की सभ्यता भी विश्व की  पुरातनतम सभ्यताओं में से एक है। यह उन गिने-चुने सभ्यताओं में एक है जिन्होनें प्राचीन काल में अपना स्वतंत्र लेखन पद्धति का विकास किया। चीनी परम्पराओं में ज़िया वंश को प्रथम माना जाता है और इसे मिथकीय ही समझा जाता रहा जब तक की हेनान प्रान्त के एर्लीटोउ में पुरातात्विक खुदाइयों में कांस्य युगीन स्थलों के प्रमाण नहीं मिले। पुरातत्वविदों को अब तक की खुदाइयों में नगरीय स्थलों के अवशेष, कांसे के औज़ार और उन स्थानों पर समाधी स्थल मिले है जिन्हें प्राचीन लेखों में ज़िया वंश से सम्बंधित माना जाता है, लेकिन इन अवशेषों की प्रमाणिकता तब तक नहीं हो सकती जब तक की ज़िया काल से कोई लिखित अवशेष नहीं मिलते।युद्ध कला में मध्य एशियाई देशों से आगे निकल जाने के कारण चीन ने मध्य एशिया पर अपना प्रभुत्व जमा लिया, पर साथ ही साथ वह यूरोपीय शक्तियों के समक्ष कमजोर पड़ने लगा। चीन शेष विश्व के प्रति सतर्क हुआ और उसने यूरोपीय देशों के साथ व्यापार का रास्ता खोल दिया। ब्रिटिश भारत और जापान के साथ हुए युद्धों तथा गृहयुद्धो ने क्विंग राजवंश को कमजोर कर डाला। अंततः 1912 में चीन में गणतंत्र की स्थापना हुई।

      1 जनवरी 1912 के दिन चीनी गणराज्य की स्थापना हुई और किंग वंश के पतन का आरम्भ भी। KMT या राष्ट्रवादी दल के सुन यात सेन   को अनंतिम अध्यक्ष चुना गया लेकिन बाद में अध्यक्षता युआन शिकाई को सौंपी गयी जिसने ये सुनिश्चित किया की क्रांति के लिए पूरी बेईयांग सेना किंग साम्राज्य का साथ नहीं देगी। 1915 में युआन ने स्वयं को चीन का सम्राट घोषित कर दिया लेकिन बाद में उसे राज्य को त्यागने और गणराज्य को वापस सौंपने के लिए बाधित किया गया और उसने स्वयं भी ये अनुभव किया की ये अलोकप्रिय कदम है, न केवल लोगों के लिए बल्कि स्वयं उसकी बेईयांग सेना और सेनाअध्यक्षों के लिए भी। 1916 में युआन शिकाई की मृत्यु के बाद चीन राजनेतिक रूप से खंडित हो गया, यद्यपि अन्तराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यताप्राप्त लेकिन वास्तविक रूप से शक्तिहीन सरकार बीजिंग में स्थापित थी। सिपहसालारों का उनके द्वारा नियंत्रित क्षेत्रों पर वास्तविक अधिकार था। 1920 के अंतिम वर्षों में चियांग काई-शेक द्वारा कुओमिन्तांग (राजनेतिक दल) की स्थापना की गयी जिसने चीन को पुनः एकीकृत किया और राष्ट्र की राजधानी नानकिंग (वर्तमान नानजिंग) घोषित की और एक "राजनीतिक संरक्षण" का कार्यान्वयन किया जो सुन यात-सेन द्बारा चीन के राजनेतिक विकास के लिए निधारित किये गए कार्यक्रम का मध्यवर्ती स्टार था जिसका उद्देश्य चीन को आधुनिक और लोकतांत्रिक राष्ट्र बनाना था। प्रभावी रूप से, "राजनीतिक संरक्षण" का अर्थ कुओमिन्तांग द्वारा एक-दलीय शाशन था।


1937 से  1945 के  चीन और जापान के मध्य युद्ध होने के कारण राष्ट्रवादियों और साम्यवादियों के बीच एक असहज गठबंधन हुआ जिसके परिणाम स्वरूप लगभग 1  करोड़ चीनी नागरिक भी मारे गए। 1945 में जापान के समर्पण के साथ, चीन विजयी राष्ट्र के रूप में तो उभरा लेकिन वित्तीय रूप से उसकी स्तिथि बिगड़ गयी। राष्ट्रवादियों और साम्यवादियों के बीच जारी अविश्वास के कारण चीनी गृह युद्ध की नींव पड़ी। 1947 में, संवैधानिक शासन स्थापित किया गया था, लेकिन ROC संविधान के बहुत से प्रावधानों के विरोध स्वरूप और  गृह युद्ध के कारण इसे मुख्य भूमि पर कभी भी लागू नहीं किया गया।1 अक्तूबर 1949 को चीन लोक गणराज्य की स्थापना से मई 1951 तक मात्र एक साल से अधिक समय के अंतराल में चीन ने क्रमश: 19 देशों के साथ राजनयिक संबंधों की स्थापना की थी। इनमें भारत भी शामिल है।चीन में हुए भयंकर गृह युद्ध के बाद, मुख्य भूमि चीन विघटनकारी सामाजिक आंदोलनों के दौर से गुजरा जिसका आरम्भ 1950 में "ग्रेट लीप फॉरवर्ड" से हुई और जो 1950 के दशक की "सांस्कृतिक क्रांति" के साथ जारी रही जिसने चीन की शिक्षा व्यवस्था और अर्थव्यवस्था का बिखराव कर दिया। माओ ज़ेदोंग और झोउ एनलाई जैसे अपनी पहली पीढ़ी के साम्यवादी दल के नेताओं की मृत्यु के साथ ही, चीनी जनवादी गणराज्य ने देंग जियाओपिंग की वकालत में राजनीतिक और आर्थिक सुधारों की एक श्रृंखला आरम्भ की जिसने अंतत: 1990 के दशक में चीनी मुख्य भूमि के तीव्र आर्थिक विकास की नींव रखी।

   1 अप्रैल 1950 को चीन औऱ भारत के बीच राजनयिक संबंध कायम हुए अप्रैल 2005 में चीन और भारत ने आपसी राजनयिक संबंधों की स्थापना की 55वीं वर्षकांठ धूमधाम से मनाई. चीनी प्रधान मंत्री वन च्या-पो ने नयी दिल्ली में आयोजित एक संबंधित समारोह में भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के साथ शुभ का प्रतीक वाले दीप को प्रज्ज्वलित किया और कहा कि चीन और भारत एक दूसरे के निकट पड़ोसी और दोस्त है। दोनों के बीच आवाजाही का इतिहास बहुत पुराना है,जो 2000 वर्षों से भी ज्यादा पुराना है. वर्तमान इतिहास में चीन और भारत दोनों देशों की जनता ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता तथा जनमुक्ति के लिए संघर्षों में एक दूसरे से हमदर्दी रखकर एक दूसरे की मदद की।वन च्या-पो ने यह भी कहा कि वर्ष 2003 में दोनों देशों के प्रधान मंत्रियों द्वारा हस्ताक्षित चीन-भारत संबंधों के सिद्धांतों व पूर्ण सहयोग संबंधी घोषणा-पत्र इस बात का प्रतीक है कि चीन-भारत संबध विकास के एक नए दौर में दाखिल हो गया है।

सिक्किम सन 1642 में वजूद में आया, जब फुन्त्तोंग नाग्य्मल  को सिक्किम का पहला चोग्याल (राजा) घोषित किया गया। नामग्याल को तीन बौद्ध भिक्षुओं ने राजा घोषित किया था। इस तरीके से सिक्किम में राजतन्त्र का की शुरूआत हुई. जिसके बाद नाम्ग्याल राजवंश ने लगातार 333 सालों तक सिक्किम पर राज किया। भारत ने 1947 में स्वाधीनता हासिल की. इसके बाद पूरे देश में सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में अलग-अलग रियासतों का भारत में विलय किया गया. इसी क्रम में 6 अप्रैल, 1975 की सुबह सिक्किम के चोग्याल को अपने राजमहल के गेट के बाहर भारतीय सैनिकों के ट्रकों की आवाज़ सुनाई दी। भारतीय सेना ने राजमहल को चारों तरफ़ से घेर रखा था। सेना ने राजमहल पर मौजूद 243 गार्डों को पर तुरंत काबू पा लिया और सिक्किम की आजादी का खात्मा हो गया।इसके बाद चोग्याल को उनके महल में ही नज़रबंद कर दिया गया। इसके बाद सिक्किम में जनमत संग्रह कराया गया. जनमत संग्रह में 97.5 फीसदी लोगों ने भारत के साथ जाने की वकालत की। जिसके बाद सिक्किम को भारत का 22वां राज्य बनाने का संविधान संशोधन विधेयक 23 अप्रैल, 1975 को लोकसभा में पेश किया गया और उसी दिन इसे 299-11 के मत से पास कर दिया गया। वहीं राज्यसभा में यह बिल 26 अप्रैल को पास हुआ और 15 मई, 1975 को जैसे ही राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने इस बिल पर हस्ताक्षर किए, नाम्ग्याल राजवंश का शासन समाप्त हो गया।

जब सिक्किम के भारत में विलय की मुहिम शुरू हुई तो चीन ने इसकी तुलना 1968 में रूस के चेकोस्लोवाकिया पर किए गए आक्रमण से की जिसके बाद इंदिरा गांधी ने चीन को तिब्बत पर किए उसके आक्रमण की याद दिलाई। हालांकि, भूटान इस विलय से खुश हुआ। ऐसा इसलिए क्योंकि इसके बाद से उसे सिक्किम के साथ जोड़ कर देखने की संभावना खत्म हो गईं। नेपाल ने भी सिक्किम के विलय का जबरदस्त विरोध किया था।

अब आते हैं भारत और चीन के असली विवाद की जड़ में जो इन दिनों सुर्खिया बटोर रहा है वास्तव में ये तनाव एक दो दिन पुराना नहीं वरन काफी पुराना है जब से सिक्किम का विलय भारत में हुआ है तब से चीन लगातार इस विषय पर जब तब कुछ न कुछ हरकत करता रहा है दरअसल, भारत-चीन के बीच कुल 3500 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है। सीमा विवाद को लेकर दोनों देश 1962 में युद्ध लड़ चुके हैं मगर सीमा पर तनाव पर आज भी जारी है. यही वजह है कि अलग-अलग हिस्सों में अक्सर भारत-चीन के बीच सीमा विवाद उठता रहा है।फिलहाल जो सीमा विवाद है, वो भारत-भूटान और चीन सीमा के मिलान बिन्दु से जुड़ा हुआ है. सिक्किम में भारतीय सीमा से सटी डोकलाम पठार है, जहां चीन सड़क निर्माण कराने पर आमादा है। चीन इस इलाके को अपना मानता है मगर भारतीय सैनिकों ने पिछले दिनों चीन की इस कोशिश का विरोध किया था। डोकलाम पठार का कुछ हिस्सा भूटान में भी पड़ता है. भूटान ने भी चीन की इस कोशिश का विरोध किया है।  आख़िर हर देश को अपनी संप्रभुता की रक्षा करने का अधिकार है चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने हाल ही में कहा कि सिक्किम में भारत के साथ सीमा का निर्धारण 127 साल पहले क्विंग साम्राज्य और ग्रेट ब्रिटेन के बीच हुई संधि-एंग्लो-चाइनीज कंवेंशन ऑफ 1890, पर आधारित था। लू ने कहा,'चीन और भारत की सभी सरकारें ये स्वीकार करती हैं कि सिक्किम खंड का सीमा-निर्धारण हो चुका है। भारतीय नेता, भारत सरकार के प्रासंगिक दस्तावेज और सीमा के मुद्दे पर चीन के साथ विशिष्ट प्रतिनिधियों की बैठक में भारत के प्रतिनिधिमंडल ने इस बात की पुष्टि की है कि भारत और चीन सिक्किम खंड के सीमा निर्धारण को लेकर 1890 के समझौते के प्रति एक जैसा विचार रखते हैं। चीन का मानना है कि भारत इस समझौते और दस्तावेज का पालन करने के अंतरराष्ट्रीय दायित्व से मुंह नहीं मोड़ सकता लेकिन वह खुद ही इस समझोते का पालन करने में कोई रूचि नहीं दिखा रहा है।
      और अंत में भारत और चीन के बीच लगभग चार हज़ार किलोमीटर लंबी सीमा पर विवाद पुराना है और 1962 में दोनों देशों के बीच जंग भी हो चुकी है "चीन दुनिया के पैमाने पर एक बड़ी आर्थिक शक्ति हैं. वह युद्ध तभी चाहेगा जब पूरी तरह से जीत हो इसी प्रकार की स्थिति  भारत की भी है वह भी अपनी ओर से पूरी कोशिश करेगा कि इस समस्या का जितनी जल्दी हो समाधान हो जाये जब कि चीन भी इस तथ्य को अच्छी तरह से जानता है कि वह भारत को युद्ध में हरा नहींसकता हैदोनों देशों में गतिरोध बरकरार है जब कि भारत ने अनावश्यक बयान देने से परहेज किया है लेकिन चीन की ओर से हर रोज़ बयान आ रहे हैं जो उसकी अपरिपक्वता ही दिखाते हैं। आज जब दोनों ही देश पुरे विश्व की अर्थव्यवस्था को कण्ट्रोल करने की राह पर हैं तो ये संभव ही नहीं है कि भारत और चीन अनावश्यक युद्ध में उलझना चाहेंगे।
-प्रदीप भट्ट –

Friday, JULY 14, 2017

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