“मौका मौका करते करते मौका ही
गँवा दिया”
“चैम्पियन ट्राफी”
इस बार जब बड़े जोशों खरोश से चैम्पियन ट्राफी का आगाज़ 4 जून -2017 को इंग्लैंड में हुआ तो भारत का पहला मुकाबला
ही अपने चिरपरिचित प्रतिद्वंदी पाकिस्तान के साथ हुआ।
इस मैच से पहले इस मैच को लेकर जितना हो हल्ला सोशल मीडिया पर हुआ और इंडिया न्यूज़
पर तो भारत-वर्ष और पाकिस्तान के मध्य बाकायदा तेज और बेमतलब की बहस छेड़ी गई
जिसमें दोनों तरफ़ के कुछ कविओं तक ने अपनी अपनी टीम को न केवल चियर किया बल्कि टीम
के लिए अपनी भावनाएं कविताओं और शेरों के माध्यम से व्यक्त भी की गई। इस सबका कोई
नतीज़ा तो निकलने वाला नहीं था लेकिन दोनों ही तरफ़ के मीडिया हाउस अपनी टी आर पी
बढ़ाने में अवश्य कामयाब हो गए और ये सिलसिला 18 जून तक हर
मैच से पहले लगभग हर चैनल पर होता रहा। मेरी व्यक्तिगत राय में भारत और पाकिस्तान
के मैच को इतनी तव्वकों देने की ज़रूरत नहीं थी लेकिन आदत है न जाते जाते ही जाती
है ये बात और किसी विषय में भले ही लागू हो जाये लेकिन भारत-पाक क्रिकेट मैच में
तो बिलकूल भी और कभी भी लागू नहीं होने वाली।
जब चैम्पियन ट्राफी की घोषणा हुई
थी तब भारत अकेला देश था जिसने इस चैम्पियन ट्राफी में भेजने के लिए टीम की घोषणा
ही नहीं की। शायद बी सी सी आई भारत सरकार
के रुख का इंतजार कर रहा था कि कहीं वो टीम की घोषणा करे और भारत सरकार बॉर्डर पर
पाकिस्तानी बैट (बॉर्डर एक्शन टीम,टीम जिसमें ज्यादातर आतंकवादी शामिल हैं) टीम
द्वारा भारत के सैनिकों के सर काटे जाने की घटना को गंभीरता से लेते हुए पाकिस्तान
के साथ क्रिकेट न खेलने का फ़ैसला कर ले तब ऐसी स्थिति में बी सी सी आई की स्थिति
उस सांप जैसी हो जाती जिसने छछूंदर निगलने की कोशिश की और वह उसके हलक में अटक गया
था अब अगर वो छछूंदर को बाहर उगल दे तो अँधा हो जाये और अगर निगल ले तो मर जाये। खैर
काफ़ी उहापोह के पश्चात् बी सी सी आई ने मई के अंतिम सप्ताह में टीम की घोषणा कर दी
और उसे चैम्पियन ट्राफी के लिए लंदन रवाना भी कर दिया गया। शुरुआत में भारतीय टीम
ने अपने दो प्रैक्टिस मैच भी खेले ताकि वहां के माहोल में ढला जा सके ताकि
पाकिस्तानी टीम को 4 जून के मुक़ाबले में हराया भी जा
सके।
अप्रत्याशित तौर पर अफ़गानिस्तान
क्रिकेट टीम जो अभी अपने शैशव काल में ही है ने अधिकारिक तौर पर ये घोषणा कर दी कि
चूँकि पाकिस्तान अफ़गानिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है जिससे उसे सपने देश
में शांति स्थापित करने में अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पढ़ रहा है अतएव
अफ़गानिस्तान की सरकार ने इन परिस्थितियों में पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने से
इंकार कर दिया। है न आश्चर्य ? भारत पाकिस्तान के बीच जो तनाव चल रहा है उसकों
देखते हुए लोग ये अपेक्षा कर रहे थे कि भारत देर सवेर ज़रुर ये घोषणा करेगा कि वो
चैम्पियन ट्राफी में पाकिस्तान के साथ क्रिकेट नहीं खेलेगा लेकिन हुआ इसके बिलकुल
विपरीत। निश्चित रूप से पैसा देश की भावनाओं पर ज्यादा भारी पड़ गया। लेकिन शायद
भारत के लोग भी बॉर्डर पर जो स्थिति है उसमें भारतीय सेना द्वारा दिए जा रहे जवाब
से संतुष्ट नहीं है इसलिए लोग ऐसा सोचते हैं कि क्यों न खेल के मैदान पर ही
पाकिस्तान को पटकनी दे दी जाये। और ऐसा हो भी गया चैम्पियन ट्रॉफी के आगाजी मैच
में ही भारत ने पाकिस्तान को बुरी तरह हरा दिया किन्तु अगले ही मैच में वो
श्रीलंका से हार भी गया किन्तु उसका इतना हो हल्ला नहीं हुआ क्यों कि बांग्लादेश
को हराकर भारत ने फाइनल में अपनी जगह पक्की कर ली और इससे पहले अप्रत्याशित तौर पर
पाकिस्तान ने इंग्लैंड को सेमेफिनल में हराकर फाइनल में अपनी जगह पक्की कर ली और
ये निश्चित हो गया कि फाइनल का मुकाबला भारत और पाकिस्तान के बीच ही होगा क्यों की
बांग्लादेश को हराना भारत के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं था और ऐसा हुआ भी।
लेकिन पाकिस्तान के हाथों इंग्लैंड की पिटाई ये
किसी से हजम नहीं हो रही थी तभी पाकिस्तान के एक पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी ने घोषणा कर
दी कि पाकिस्तान और इंग्लैंड के बीच खेला गया फर्स्ट सेमिफिनल फिक्स्ड था। इसके
उपर हो हल्ला तो हुआ लेकिन जितना अपेक्षित था उतना नहीं किन्तु लोगों ने अपने अपने
कयास लगाने शुरू कर दिए कि चूँकि आई सी सी को मालूम है कि फाइनल मुकाबला अगर और
किन्हीं दो देशों के बीच खेला गया तो स्टेडियम खाली ही रहने वाला है और अगर ये
मुकाबला भारत पाकिस्तान के मध्य हुआ तो पैसा कमाने के मामले में आई सी सी की बल्ले
बल्ले हो जानी है। और देखिये 18 जून 2017
को पूरा का पूरा स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था अगर दोनों टीमों के सपोटर्स की बात
करें तो जहाँ भारत के सपोटर्स 70-75 प्रतिशत
रहे वहीँ पाकिस्तान के ज्यादा से ज्यादा 15-20
प्रतिशत। ये भी जगजाहिर है कि भारत के सपोटर्स पूरी दुनियां में फैले हुए हैं और
वे महंगी से महंगी टिकेट लेकर भी दूर दूर से भारत का मैच देखने आते हैं।
18 जून 2017
को जो फाइनल हुआ उसमें भारत के टॉस जितने के बावजूद कोहली का पाकिस्तान टीम को
पहले बल्लेबाजी करने का निमंत्रण देना लगभग सभी की समझ से परे था माना कि कोहली की
इमेज चेज़र की है लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि परिस्थितियां सदैव आपके अनुकूल ही
रहने वाली हैं। अच्छी टीम और अच्छे खिलाड़ी की पहचान तो विपरीत परिस्थितियों में भी
असाधारण प्रदर्शन कर अपने देश को विजयी करवाने में है न कि परिस्थितियों के अनुकूल
होने की प्रतीक्षा करने में। कई बार ज्यादा समझदार आदमी भी गलती करता है और कोहली ने
उस दिन फाइनल में यही गलती की। जब आप पहले बैटिंग करते हैं तो आपके ऊपर कोई दबाव
नहीं रहता है और चेज़ करने में हमेशा ये दबाव रहता है कि अब अगर रनगति नहीं बढाई तो
मैच हाथ से जा सकता है। इस तरह के पल इस तरह के महत्वपूर्ण मैच में आते ही रहते
हैं ।
“बीती
ताहिं बिसार दे,आगे की सुध ले”अब
कोहली और भारतीय टीम के लिए यही बेहतर है कि वो इस हार को एक हार की तरह लें और 23
जून से शुरू हो रहे वेस्टइंडीज़ के विरुद्ध एक दिवसीय मैचों की तरफ़ अपना ध्यान
लगाये। एक मैच हारने से ज़िन्दगी ख़त्म नहीं हो जाती और एक मैच जितने भर से ज़िन्दगी
सम्पूर्ण नहीं हो जाती। ये तो जीवन है और हार जीत तो लगी रहती है किन्तु महत्पूर्ण
मैच हो तो अपने सभी वरिष्ठों से सलाह मश्विरा किया जा सकता है जो कि व्यक्तिगत तौर
पर भले ही अच्छा ने लगे किन्तु देशहित में वो सर्वोपरि होता है।
-प्रदीप
भट्ट –
Tuesday, June 20,
2017
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