Thursday, 23 February 2017

मियां बीवी का झगड़ा bjp शिवसेना




मियां बीवी का झगडा
(शिवसेना-बीजेपी)



        मियां बीवी जब दिन में लड़ते हैं तो वो लड़ाई रात में बेड पर जाते-जाते ही खात्म हो जाती है। कुछ ऐसा ही बीजेपी और शिवसेना के साथ हो रहा है। शिवसेना हमेशा से महाराष्ट्र में अपने को बड़ा भाई और बीजेपी को छोटा भाई समझने के भ्रम में रहती आयी है। जब कि यही स्थिति अन्तराष्ट्रीय स्तर पर चीन अपने को बड़ा और भारत को छोटा समझता है और भारत अपने को बड़ा और पाकिस्तान को छोटा समझता है। कुछ कुछ यही स्थिति पूरे देश में बनती जा रही है। और इसी ग़लतफ़मी में कई बार उल्टा सीधा भी हो जाता है।




     21 फ़रवरी को हुए पूरे महाराष्ट्र की 10 महानगरपालिकाओं जिसमें मुंबई महानगरपालिका भी शामिल है के हुए चुनावों में बड़ा भाई छोटा भाई जैसे जुमलों की हवा निकलती नज़र आयी। शिवसेना जहाँ 84 सीटें जीतने में कामयाब रही वहीँ बीजेपी ने 82 सीटें जीतकर ये दर्शाने की कोशिश की है कि बड़ा, बड़ा ही होता है और छोटा, छोटा। 82 सीटें जीतकर बीजेपी ने  शिवसेना को ये स्पष्ट सन्देश दिया है कि शिवसेना बीजेपी के बिना कुछ भी नहीं है न मुंबई में न महाराष्ट में और पूरे भारत में तो कहीं नहीं। इस चुनाव से बीजेपी ने मराठी और गैर मराठी दोनों ही मतदाताओं में अपनी अच्छी पैठ बनाई है वहीं शिवसेना की जीत में गैर मराठियों का प्रतिशत ज्यादा नजर आता है। कांग्रेस और अन्य दलों का जिक्र करना ही बेईमानी होगी।


     मुंबई के बाद ठाणे ही ऐसा रहा जहाँ शिवसेना ने कुल 131 में से 67 सीटों पर कब्ज़ा किया और वो वहां महानगरपालिका में अगले 5 वर्षों तक अपना वर्चस्व कायम रख पायेगी। बीजेपी को 23 और एनसीपी को मात्र 34 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है। मुंबई से सटा सिंधिओं का गढ़ उल्हास्नगर जहाँ कुल 78 सीटें हैं बीजेपी ने 33 सीटें जीती हैं और शिवसेना के हिस्से में केवल 25 सीटें ही आयी हैं। पिछले चुनाव में नासिक एम् एन एस का गढ़ हुआ करता था किन्तु इस बार नासिक में भी बीजेपी ने ही जीत का परचम फ़हराया है । इसी प्रकार बीजेपी ने नागपुर अकोला में जहाँ अपना पुराना दबदबा कायम रक्खा है वहीँ पुणे और उल्लासनगर में जीत हासिल कर एनसीपी को बड़ी चोट दी है। इसी के साथ पूरे महाराष्ट्र में जिला परिषद् के चुनाव भी हो रहे हैं जहाँ बीजेपी ही ज्यादातर में अपना विजयी अभियान जारी रक्खे हुए हैं ।


     अब प्रश्न ये है कि चुनाव से पहले जो शिवसेना और बीजेपी एक दूसरें को पानी पी पी कर शाब्दिक बाणों के प्रहार से एक दूसरे को बेहाल किये हुए थे क्या वर्तमान स्थिति या कहें कि वोटरों द्वारा बनाई गई परिस्थिति में वे पुन: एक साथ मुंबई महानगर पालिका में साथ साथ बैठकर मुंबई शहर की दशा और दिशा बदलने का प्रयास करेंगें या अन्य कोई विकल्प जैसे कि शिवसेना और कांग्रेस मिलकर साथ काम करेंगे या बीजेपी और अन्य मिलकर साथ काम करने का फैसला करेंगे। बेहतर तो यही होगा कि पिछले 20 वर्षों से जैसे ये एक दूसरे के साथ मिलकर कार्य कर रहे थे वैसे ही करते रहे क्यों कि वोटरों ने तो यही जनादेश दिया है। अगर दोनों ही पार्टियों ने और कोई युति बनाने का प्रयास किया तो वो भविष्य के लिए बिलकुल भी ठीक नहीं होगा।


     आज ज़मान या भविष्य एक दूसरे को नीचा दिखाने का नहीं वरन साथ साथ चलने का है। एक दूसरे को आँख दिखाने से बेहतर है कि एक दूसरे से आँख मिलकर बातें कीजिये ताकि किसी में भी  हीन भावना न घर पाए। सारा झगड़ा पावर का था अब अगर जनता चाहती है कि दोनों ही पार्टियाँ (बीजेपी और शिवसेना) साथ में काम करें तो हर्ज ही क्या है आखिर जनता जनार्दन से बड़ा कौन है और इतिहास गवाह है जिस भी पार्टी ने जनता जनार्दन का आदेश शिरोधार्य नहीं किया वो आगे भविष्य में इस काबिल ही नहीं रहता या रहती कि दुबारा वो जनता के समक्ष जा सके।


     बेहतर होगा कि शिवसेना और बीजेपी अपने सास बहु और मिया बीवी के झगड़े का निबटारा जितना जल्दी हो सके करे और मुम्बईकर की भावनाओं का सम्मान करते हुए जल्द से जल्द अपना कार्यभार संभाले।

                                                    ::: प्रदीप भट्ट :::
                                                                                                                                             24:02:2017

No comments:

Post a Comment