“रेशम का मार्ग यानि silk rout“
सिल्क रूट नाम को मैंने पहली बार शायद 3rd या 4th स्टैंडर्ड
की किताब मे पढ़ा था। तब अपनी समझ के हिसाब से मैं यही समझता था कि ये कोई रेशमी
मार्ग हो जिस पर रेशम के कपड़े या थान बिछे हुए होंगे। मैं ये सोचकर रोमांचित हो
जाता था कि रेशमी कपड़ों को बिछाने के लिए कुल कितने मीटर या किलोमीटर कपड़े कि
आवश्यकता पड़ी होगी या उस मार्ग पर क्या सिर्फ पैदल ही चला जा सकता है या उस पर
घोडा-गाड़ी या कोई मोटर भी चलती होगी। बाल सुलभ मन की इन्हीं ढेरों आकांशाओं और
शंकाओ को समेटे हम कब बड़े हो गए पता ही नहीं चला। खैर 2014 मे जब भारत के प्रधानमंत्री
की चीन के राष्ट्रपति से लगातार दो मुलाकातें हुईं और ये चर्चा हुई कि उत्तराखंड
के अतिरिक्त भी सिक्किम के रास्ते अगर कैलाश मानसरोवर यात्रा की अनुमति अगर चीन
सरकार सिल्क रूट के द्वारा दे दे तो रास्ता कुछ सुगम और कम हो जाएगा ।जिस पर चीनी
राष्ट्रपति ने सकारात्मक नजरिया पेश किया। बस तभी से बचपन मे पढे गए उस सिल्क रूट
की यादें फिर ताजा हो गई और बाल सुलभ मन की इन्हीं ढेरों आकांशाओं और शंकाओ ने फिर
सिर उठा लिया और निश्चित किया कि क्यों न इस पर एक लेख लिखा जाए। आइये जानते हैं ये सिल्क रूट क्या है और कब से है:-
सिल्क रूट या रेशमी मार्ग को प्राचीन चीनी
सभ्यता के व्यापारिक मार्ग के रूप में जाना जाता है. दो सौ साल ईसा पूर्व से दूसरी
शताब्दी के बीच हन राजवंश के शासन काल में रेशम का व्यापार बढ़ा. पहले रेशम के
कारवाँ चीनी साम्राज्य के उत्तरी छोर से पश्चिम की ओर जाते थे. लेकिन फिर मध्य
एशिया के क़बीलों से संपर्क हुआ और धीरे-धीरे यह मार्ग चीन, मध्य एशिया, उत्तर भारत, आज के ईरान, इराक़
और सीरिया से होता हुआ रोम तक पहुंच गया. ग़ौरतलब है कि इस मार्ग पर केवल रेशम का
व्यापार नहीं होता था बल्कि इससे जुड़े सभी लोग अपने-अपने उत्पादों का व्यापार
करते थे. कालांतर में सड़क के रास्ते व्यापार करना ख़तरनाक हो गया तो यह व्यापार
समुद्र के रास्ते होने लगा।
रेशम मार्ग प्राचीनकाल और मध्यकाल
में ऐतिहासिक व्यापारिक-सांस्कृतिक मार्गों का एक समूह था जिसके माध्यम से एशिया, यूरोप और अफ्रीकाजुड़े हुए थे। इसका सबसे जाना-माना हिस्सा उत्तरी रेशम मार्ग है जो चीन से होकर पश्चिम की ओर
पहले मध्य एशिया में और फिर यूरोप में जाता था और जिस से
निकलती एक शाखा भारत की ओर जाती थी। रेशम
मार्ग का जमीनी हिस्सा 6,500 K॰M॰ लम्बा था और इसका नाम चीन के रेशम के नाम पर पड़ा जिसका व्यापार इस मार्ग की मुख्य विशेषता
थी। इसके मध्य एशिया, यूरोप, भारत और ईरान में
चीन के हान राजवंशकाल में पहुँचना शुरू हुआ। रेशम मार्ग का चीन, भारत, मिस्र,
ईरान,
अरब और प्राचीन रोम की महान सभ्यताओं के विकास पर गहरा असर पड़ा। इस
मार्ग के द्वारा व्यापार के आलावा,
ज्ञान,
धर्म,
संस्कृति, भाषाएँ, विचारधाराएँ, भिक्षु,
तीर्थयात्री, सैनिक, घूमन्तू कबीले जातियाँ,
और बीमारियाँ भी फैलीं। व्यापारिक नज़रिए से
चीन रेशम, चाय और
चीनी मिटटी के बर्तन भेजता था,
भारत मसाले, हाथीदांत, कपड़े, काली मिर्च और कीमती पत्थर भेजता था और रोम से सोना, चांदी,
शीशे की वस्तुएँ, शराब,
कालीन और गहने आते थे। हालांकि 'रेशम मार्ग' के नाम से लगता है कि यह एक ही रास्ता था। वास्तव में बहुत कम लोग इसके
पूरे विस्तार पर यात्रा करते थे। अधिकतर व्यापारी इसके हिस्सों में एक शहर से
दूसरे शहर सामान पहुँचाकर अन्य व्यापारियों को बेच देते थे और इस तरह सामान एक हाथ से दूसरे हाथ
मे बदल-बदलकर हजारों मील दूर तक चला जाता था।
शुरू में रेशम मार्ग पर व्यापारी अधिकतर भारतीय और बैक्ट्रियाई थे,
फिर सोग़दाई हुए और मध्यकाल में ईरानी और अरब ज़्यादा थे। रेशम मार्ग से समुदायों के
मिश्रण भी पैदा हुए, मसलन तारिम द्रोणी में बैक्ट्रियाई, भारतीय और सोग़दाई
लोगों के मिश्रण के सुराग मिले हैं।
चीनी
इस शहर को पहले शिव-फु कहा जाता था और ये सन् 206 ईसा पूर्व से 220 ई0 पू तक हान और 618
से 907
ईसवी तक तंग ख़ानदान के ज़ेर-ए-इक़तिदार रहा। 751ईस्वी में जंग तआलास में चीनीयों को अरबो के हाथों ज़बरदस्त शिकस्त हुई
और काशगर मिल्लत-इस्लामीया में शामिल होगया और आज भी यहां मुसलमानों की अक्सरीयत
है। ये शहर 1219 ईस्वी में चंगेज़ ख़ान के हमलों से तबाह हुआ। मार्को पोलो ने 1273 ईस्वी में काशगर की सैर की। 1389 ईस्वी में काशगर अमीर तैमूर के अताब का निशाना बिना।तर्क, उइग़ुर, मंगोल और दीगर वुस़्त एशियाई सल़्तनतों का हिस्सा
बनने के बाद 1759 ईस्वी में चंग ख़ानदान के एद में काशगर एक मरतबा फिर चीन का हिस्सा बन गया, यूं मशरक़ी
तुर्किस्तान चीनी
तुर्किस्तान बन गया। मुसलमानों ने कई मरतबा हुकूमत-ए-वक्त के ख़िलाफ़ बग़ावत की, लेकिन हर मरतबा उसे कुचल दिया गया। इन में मशहूर-तरीन बग़ावत याक़ूब बेग की ज़ेर-ए-क़यादत हुई थी, जिन के एद में आज़ाद तुर्किस्तान की हुकूमत 1865 ईस्वी से 1877 ईस्वी तक कायम रही और इस का दारुलहकूमत काश्गर ही था।
याक़ूब बेग के इंतिक़ाल के बाद 1877 ईस्वी में चंग ख़ानदान ने इलाके पर मुकम्मल नियंत्रण
हासिल करलिया।
उत्तरी
रेशम मार्ग
वर्तमान जनवादी गणतंत्र चीन के उत्तरी क्षेत्र में स्थित एक ऐतिहासिक मार्ग है
जो चीन की
प्राचीन राजधानीशिआन से पश्चिम की ओर जाते हुए टकलामकान रेगिस्तान से उत्तर निकलकर मध्य एशिया के प्राचीन बैक्ट्रिया और पार्थिया राज्य और फिर और भी आगे ईरान और प्राचीन रोम पहुँचता था। यह मशहूर रेशम मार्ग की उत्तरी शाखा है और इस पर हज़ारों सालों से चीन और मध्य
एशिया के बीच व्यापारिक, फ़ौजी और सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती रहीं हैं। पहली
सहस्राब्दी ईसापूर्व में चीन के हान राजवंश ने इस मार्ग को चीनी व्यापारियों और सैनिकों के लिए
सुरक्षित बनाने के लिए यहाँ पर सक्रीय जातियों के खिलाफ़ बहुत अभियान चलाए जिस से
इस मार्ग का प्रयोग और विस्तृत हुआ। चीनी सम्राटों ने विशेषकर शियोंगनु लोगों के प्रभाव को कम करने के बहुत प्रयास किये।
1) टकलामकान रेगिस्तान से उत्तर में गुज़रता है
और दूसरा उसके नीचे से और फिर यह दोनों कशगार शहर के नख़लिस्तान (ओएसिस) में फिर एक हो जाते हैं। कशगार से आगे
यह फिर बंट जाते हैं।
2) एक शाखा किरगिज़स्तान की अलई वादी से होते हुए उज़बेकिस्तान के तिरमिज़ क्षेत्र और अफ़्ग़ानिस्तान के बल्ख़ क्षेत्र जाती है। दूसरी शाखा फ़रग़ना वादी में ख़ोक़न्द से होकर काराकुम रेगिस्तान से निकलती हुई मर्व पहुँचती है।
3)
तीसरा मार्ग तियान शान के पर्वतों से उत्तर निकलकर तूरफ़ान और फिर कज़ाख़स्तान के अल्माती शहर पहुँचता है।
4) इनमे एक शाखा ऐसी भी है जो उत्तरपश्चिम की तरफ़ निकलकर पहले अरल सागर और कैस्पियन सागर और फिर उस से आगे कृष्ण सागर पहुँचती है।
काश्गर, कशगार, काशगुर या काश मध्य एशिया में चीन के शिनजियांग प्रांत के पश्चिमी भाग में स्थित एक नख़लिस्तान (ओएसिस) शहर है, जिसकी जनसंख्या लगभग 3,50,000 है। काश्गर शहर काश्गर विभाग का प्रशासनिक केंद्र है जिसका क्षेत्रफल 1,62,000 K॰M॰ और जनसंख्या 35 लाख है।
काश्गर शहर का क्षेत्रफल 15 K॰M॰ है और यह समुद्र तल से 1,289.5 मीटर की औसत ऊँचाई पर स्थित है। यह शहर चीन के
पश्चिमतम क्षेत्र में स्थित है और तरीम बेसिन और तकलामकान रेगिस्तान दोनों का भाग है, जिस वजह से इसकी जलवायु
चरम शुष्क है। पुरातन काल से ही काश्गर व्यापार तथा राजनीति का केंद्र रहा है और इसके भारत से गहरे सांस्कृतिक,
धार्मिक और व्यापारिक सम्बन्ध रहे हैं। भारत
से शिनजियांग का व्यापार मार्ग लद्दाख़ के रास्ते से काश्गर जाया करता था। ऐतिहासिक रेशम मार्ग की एक शाखा भी,
जिसके ज़रिये मध्य पूर्व, यूरोप और पूर्वी एशिया के बीच व्यापार चलता था, काश्गर से होकर जाती थी। काश्गर अमू दरिया वादी सेखोकंद, समरकंद, अलमाटी, अक्सू, और खोतान मार्गो के बीच स्थित है।
काशगर
अवामी जमहूरीया चीन के
ख़ुदमुख़तार इलाके शिनजियांग का एक शहर है जिस की आबादी 1999 के मुताबिक लगभग 2 लाख है । ये शहर सहरा-ए-तकलामकान के मग़रिब की जानिब कोह तयाँ शान के दामन में दरया-ए-काशगर के किनारे पर बसा हुआ है। समुद्र-सतह से इस की
बुलंदी 1.290 मीटर है। वादी जीहओ- की तरफ
से खोक़ंद, समरक़न्द, अलमाते और दीगर शहरों से आने वाले रास्तों के वुस़्त में
स्थित होने की वजह से माज़ी में ये शहर राजनैतिक ओर कारोबारी मरकज़ रहा है। मौजूदा
शहर के 200 K॰M॰ दूर मग़रिब से करगज़स्तान की सरहद के क़रीब शाहराह रेशम गुज़रती है जहां से जनूब मग़रिब की जानिब बलख और
शुमाल मग़रिब की जानिब फरगाना के आसान रास्ते जाते हैं। काशगर शाहराह कराकोरम ओर दर्रा-ए-ख़न्जराब के ज़रिए पाकिस्तान के दारुलहकूमत इस्लामाबाद से मुनसलिक है और दर्राह तौरगुरत और अरक्षतिअम से करगज़स्तान से मिला हुआ है।दरया-ए-काशगर से ज़रख़ेज़ होने वाली
ज़मीनों पर कपास, अनाज और फल काश्त किए जाते हैं। अलावा अज़ीं क़रीबी चुरा गउहूं में गुला बानी
मबानी भी की जाती है। क़दीम शाहराह रेशम के किनारे वाक़िअ इस शहर में सदीयों से ताजिरों के
कारवानों के लिए रवायती हाथ से बने कपास और रेशम के पारचा जात, कालीन,
चमड़े की मसनूआत और जे़वरात तैयार किए जाते थे
जो आज भी यहां की अहम सनअत हैं। तुर्कों के उईग़ुर क़बीले से ताल्लुक रखने वाले मुसलमान यहां अक्सरीयत में हैं।
आखिर ये सवाल उठना लाजिम है कि पुराने जमाने
मे जब लोग सिल्क रूट का प्रयोग करते रहे होंगे तो वे रास्ते मे क्या-क्या खाते थे क्यों
कि रेशमी मार्ग इतना सरल तो था नहीं। गानसू प्रांत के दुनहुआंग में मोगावो की गुफाओं की
भित्तिचित्रों से उस समय के यात्रियों के भोजन के बारे में पता चलता है। प्राचीन
व्यापार मार्ग पर दुनहुआंग व्यवसाय का केंद्र था।
प्राचीन सिल्क मार्ग पर गुफाओं पर करीब 70 हजार वर्गमीटर में भित्तिचित्र हैं। कुछ इलाकों में पता चली ये दीवार और करीब 50 हजार प्राचीन किताब साहसिक यात्रियों के विविध विवरणों की जानकारी मिलती है कि वे इस व्यापार मार्ग पर क्या खाते थे। यह मार्ग चीन के जियान शहर को रोम से जोड़ता था। लानझोउ यूनिवर्सिटी ऑफ फिनांस एंड इकोनॉमिक्स में शोधकर्ता गाओ कियान ने शिन्हुआ संवाद समिति से कहा कि कई पेंटिंग में दिखता है कि लोग डोनर कबाब खा रहे हैं। यह भोजन अब पूरी दुनिया में प्रचलित है। शोधकर्ताओं को खाने के कुछ बर्तन भी मिले हैं, जो इन व्यंजनों को तैयार करने में प्रयोग होते थे।
अंत मे प्राचीन रेशम मार्ग बहाल करने की चीन और
मध्य एशिया के उसके पड़ोसी देशों की कोशिशों के बीच इसे यूनेस्को की विश्व विरासत
स्थलों की सूची में शामिल किया है। इसके साथ ही बीजिंग में स्थित विश्व के सबसे
लंबे कृत्रिम जलमार्ग ग्रेट कैनाल को भी यूनेस्को की इस सूची में शामिल किया गया
है।चीन, कजाकिस्तान और
किर्गिस्तान ने संयुक्त रूप से रेशम मार्ग के हिस्से को विश्व विरासत स्थल में
शामिल करने के लिए आवेदन किया था। यह मार्ग 2,000 साल पहले एशिया और यूरोप के बीच व्यापार
एवं सांस्कृतिक आदान प्रदान का रास्ता रहा है।विश्व विरासत समिति ने कतर की
राजधानी दोहा में एक सत्र के दौरान यूनेस्को की सूची को मंजूरी दी। वैसे चीन का
इसमें अपना स्वार्थ है। चीन अपनी धीमी होती अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए
रेशम मार्ग बहाल कर रहा है।दुनिया
के कुछ सबसे लंबे रेल रास्तों में से एक है युक्सिनाउ। यह एशिया और यूरोप के बीच
यातायात को तेज और आसान बनाकर दोनों महा-द्वीपों के बीच व्यापार को नई ऊंचाइयों तक
पहुंचने का प्रयास कर रहा है।
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प्रदीप भट्ट :::
18.06.2016
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