Friday, 6 November 2015

माहौल ठीक है



“ गुलामो का हौसला तो देखिये कहते हैं मौहल ठीक नहीं है ” ?

भारतवर्ष ने जिस  तेजी से विश्व पटल पर जोरदार तरीके से अपनी उपस्थिती दर्ज कारवाई है । उससे कुछ देशो को अपने  पैरो के नीचे से ज़मीन ही खिसकती नज़र आ रही है। परिणाम स्वरूप कुछ देशो ने  असहिष्णुता और असंवेदनशीलता के मुद्दे पर भारत सरकार के विरुद्ध एक अभियान ही छेड़ दिया है जिसमे कुछ अहमक़ लोग उनका साथ देते दिखाई दे रहे हैं। निश्चित रूप से भारत सरकार के लिए ये एक चुनौती पूर्ण समय है जिससे वे देर सवेर  निकाल ही आएगी ।

       मुंबई मे पिछले दिनो जो  दो घटनाएं हुई, जाने अनजाने मे फालतू लोगों और संगठनों द्वारा दो धर्मो के मध्य  वैमनस्य फैलाने का और कुचक्र रचने का एक असफल प्रयास किया गया है। जिसे अभी तक असमाजिक तत्वो द्वारा ज्यादा हवा नहीं लग पाई या ये कहना ज्यादा उपयुक्त होगा की भारत सरकार/राज्य सरकार  ने ऐसे किसी भी प्रयास को फलीभूत नहीं होने दिया।

                     -खुर्शीद महमूद  कसूरी-

  पहली घटना श्रीमान खुर्शीद महमूद  कसूरी जो कि पाकिस्तान के पूर्व विदेशमंत्री रह चुके हैं की किताब  'Neither A Hawk Nor a Dove'.के विमोचन  की है जिसकी भारत मे समस्त तैयारियो को श्रीमान सुधिन्द्र कुलकर्णी  जो कि श्री अटल बिहारी बाजपई के नेत्रत्व मे बनी  एनडीए सरकार मे एक महतवपूर्ण पद पर आसीन रहे, देखरेख कर रहे थे, कुछ शिवसेनिकों ने उन पर स्याही फेंकी ही नहीं वरन स्याही मे उन्हे नहला ही दिया गया । आखिर ऐसा करने की उन्हे ज़रूरत ही  क्यों पड़ी, कारण स्पष्ट है। जब आपकी सरहद पर लगातार फायरिंग की जाती रही हो, आपके सैनिकों के सर कलाम किए जाते रहे हों  तो ये कैसे संभव है की भारत का आम आदमी चैन के साथ गुलाम अली की गजलों का लुत्फ उठाता रहे और श्रीमान कसूरी की किताब का विमोचन महज़ इसलिए करवाता रहे ताकि उन्हे भारत मे इस किताब की मार्केटिंग से धन की प्राप्ति हो सके । आखिर सहनशीलता की भी तो एक सीमा होती है ।


     दूसरी घटना  गुलाम अली जो पाकिस्तान नामक देश के गज़ल गायक हैं, का कार्यक्रम शिवसेना के विरोध के कारण रद्द कर दिया गया। इससे बस कुछ छद्म बुद्धिजीवियों और छद्म राजनैतिक पार्टियो को चिल-पों करने का अवसर मिल गया। ऐसा प्रतीत हुआ की यही वे  लोग हैं जो कलाकारों के क़द्रदान हैं। आनन फानन मे दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पश्चिम पंगल की सरकारों ने घोषणा कर दी की हम गुलाम अली के गज़ल कार्यक्रम को अपने – अपने प्रदेश मे करवाएँगे गोया वे ही सच्चे सहिष्णुता और संवेदनशीलता के धव्ज वाहक हों। इसी कडी मे 8 नवम्बर -2015 को दिल्ली मे  गुलाम अली का कार्यक्रम भी निश्चित कर दिया गया। किन्तु होनी को कौन टाल सकता है ।

      अब आप पाकिस्तान के गुलामो का हौसला  देखये जब तक भारत मे वे प्रवास पर थे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से मिलने पहुँच गए कि भैया हमारा गजल का प्रोग्राम करवा लो लेकिन जैसे ही वो वापिस पाकिस्तान पहुँच गए दिनक 4 नवम्बर -2015 को तुरंत  घोषणा कर दी कि भारत मे माहौल ठीक नहीं है। अतएव 8 नवम्बर 2015 को दिल्ली मे  होने वाला गजल का कार्यक्रम रद्द किया जाता है। अब इस स्थिति मे उन छद्म बुद्धिजीवियों और छद्म राजनैतिक पार्टियो के आला प्रवक्ताओ को निश्चित ही सुकून प्राप्त हुआ होगा क्यो कि वो यही तो चाहते हैं। मगर इससे भी ज्यादा कमाल ये जानकार हुआ कि 3 दिसम्बर -2015 को उत्तर प्रदेश सरकार  लखनऊ मे जनाब गुलाम अगली का गजल कार्यक्रम करवा रही है। इसका तरत्पर्य तो ये हुआ कि 3 दिसम्बर तक भारत मे असहिष्णुता और असंवेदनशीलता का मौहल खत्म हो जाएगा। अगर ऐसा है तो ये विचारणीय प्रश्न है कि कहीं वर्तमान माहौल को बिगड़ने मे कुछ असहिष्णुता और असंवेदनशीलता लगा का हाथ तो नहीं अगर ऐसा है तो मेरी आशंका सही है। क्यो कि ऐसे लोगों को  अपने देश कि इज्ज़त कि  चिंता न पहले थी न अब है।

     नित नये विवाद उत्पन्न करना कुछ लोगों का शगल बन गया है। दूसरों के इशारो पर चलने वाले इस देश मे पहले भी थे और अब भी बहुत हैं। ज़रूरत है ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार करने की।इस पुनीत कार्य मे मीडिया का सहयोग अत्यावश्यक है। क्यों कि वर्तमान समय मे अपने व्यकितगत अंतर्विरोधों को एक तरफ रखकर देश हित मे कार्य करना ही वक्त कि मांग है ।

::::प्रदीप भट्ट::::06.11.2015

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