‘अतुल्य
भारत को असहिष्णु और असंवेदनशील भारत
बनाने का कुत्सित
प्रयास करते कुछ पोंगा पंडित ‘
अब जब बिहार चुनाव खत्म हो चुके हैं तो मुझे यही लगा कि चलो देश मे पिछले कुछ दिनो से
जारी प्रलाप कि देश मे असहिष्णुता और असंवेदनशीलता बहुत है या बढ़ गई है जैसे
मुद्दे गौण हो चुके होंगे किन्तु तभी गोयनका के एक
मीडिया कार्यक्रम मे श्रीमान आमिर खान जिन्हे लोग वास्तविक बुद्धिजीवी और Mr. perfectionist
के नाम से से भी पुकारते है ने
सवाल जवाब के दौरान यह कहकर हंगामा खड़ा कर दिया कि उनकी दूसरी धर्मपत्नी किरण राव
आजकल के (पिछले सात –आठ माह ) असहिष्णुता
और असंवेदनशीलता माहोल मे समाचार पत्र पढ़ने से डरती है और उसे अपनी और बच्चो कि
फ़िक्र रहती है साथ ही उन्होने किसी दूसरे देश मे शिफ्ट होने कि भी संभावना जताई। कुछ कहने सुनने
से पहले आइये हम कुछ बातो पर गौर कर लेते हैं। प्रथम तो आमिर कि 1984 से आज तक कि
स्थिति क्या है और दूसरे देश छोडने कि संभावना के बारे मे। क्यों कि भारत मे
मुस्लिमो का आगमन 711 ईस्वी मे हुआ था । आइये प्रथम आमिर कि उपलब्धियों के विषय मे
:-
1984 मे केतन मेहता कि होली फिल्म से आमिर ने
आगाज किया।1988 मे कयामत से कयामत तक से प्रसिद्धि का स्वाद चखा ।1989 के फिल्म
राख के लिए उन्हे स्पेशल जूरी अवार्ड मिला । मोहम्मद आमिर हुसैन खान को अब तक 7 फिल्म फेयर अवार्ड और
4 बार नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। 2003 मे पदमश्री और 2010 मे पदम विभूषण से भारत सरकार ने उन्हे सम्मानित
किया है ।प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वच्छ भारत अभियान के प्रथम 9
राजदूतों मे उन्हे शामिल किया गया है । अतुलय भारत अभियान के ब्रांड एंबेसडर और
जाने क्या क्या । अब बात करते हैं भारत छोडने के विषय कि तो पहले ये देख ले कि
भारत मे मुस्लिम कब आए उनकी पहले और अब क्या स्थिति है।
भारत मे लगभग 711 ईस्वी मे मुसलमानो का प्रवेश हुआ।
इसी वर्ष वे स्पेन मे भी दाखिल हुए ।उनके प्रवेश का कारण भी समुद्री लुटेरो के
द्वारा उनके पानी के जहाजो लूट लिया जाना
था । जब सभी प्रयास विफल हो गए तो बगदाद
के हज्जाज बिन युसुफ ने एक छोटी सेना के साथ मोहम्मद बिन कासिम ने राजा दहिर को हरा कर 713 ईस्वी मे जीत हासिल ही नहीं
की वरन सिंध और पंजाब के अनय राज्यो से
लेकर कश्मीर तक अपना राजी स्थापित किया ।
मलबार
में ही एक कम्युनिटी ऐसी भी थी जो वहां चक्रवर्ती
सम्राट फ़र्मस के हज़रत मुहम्मद (ईश्वर की उन पर शांति हो) के हाथों इस्लाम कुबुल
करने के बाद से रह रही थी. सन् 713 CE से भारत में
मुस्लिम साम्राज्य का आगाज़ हो चुका था जो की सन् 1857 तक
जारी रहा, यह सफ़र कुछ ऐसे रहा कि कई और मुस्लिम शासक आये जो
कि अपने ही मुस्लिम भाईयों से लड़े और अपना साम्राज्य फैलाया फिर चाहे वो मध्य
एशिया के तुर्क हों,अफ़गान हों, मंगोल
की संताने हों या मुग़ल.
ग्यारहवीं शताब्दी में मुस्लिम शासकों ने
दिल्ली को भारत की राजधानी बनाया जो कि बाद में मुग़ल शासकों की भी देश की राजधानी
रही और सन् 1857 तक रही जब बहादुर शाह ज़फर
को अंग्रेजों ने पदच्युत कर दिया. अल्हम्दुलिल्लाह, दिल्ली
आज भी हमारे वर्तमान भारत देश की राजधानी है. दो सदी पहले
भारत के सम्राट अकबर के द्वारा कुछ अंग्रेजों को यहाँ रुकने की इजाज़त दी गयी थी.
इसके दो दशक बाद ही अंग्रेजों ने भारत के छोटे छोटे राजाओं और नवाबों से सांठ-गाँठ
कर ली और मुग़ल और मुग़ल शासकों के खिलाफ़ राजाओं और नवाबों की सेना की ताक़त
बढ़ाने की नियत से उन पर खर्च करना शुरू कर दिया और मुग़ल शासक अंग्रेज़ों से दो
सदी तक लड़ते रहे और आखिरी में सन् 1857 में अंग्रेज़ों ने
मुग़ल साम्राज्य का अंत कर दिया.
1947 मे अंग्रेज़ो द्वारा और कुछ फिरकापरस्त
लोगो की महत्वकान्शओ के फलस्वरूप भारत वर्ष के धार्मिक आधार पर दो हिस्से हुए
तत्पश्चात पाकिस्तान द्वारा पूर्वी पाकिस्तान के लोगो पर ज़ुल्म की इंतेहा की
गई।लाखो की तादाद मे औरतों और बच्चियो के साथ पाशविक तरीके से बलात्कार किया गया
मर्दो को सारे आम गोली से उड़ा दिया गया परिणाम स्वरूप 1971 मे पाकिस्तान के टूट कर
बंगदेश नमक देश का जन्म हुआ । आज भी
भारत मे मुसलमानो की दूसरी सबसे ज्यादा आबादी निवास करती है। पूरे विश्व मे भारत
का मुसलमान ज्यादा अधिकार सम्पन्न ज्यादा स्वतंत्र व अपने आप को और कहीं से ज्यादा
सुरक्षित महसूस करता है।
अब बात करते हैं मोहम्मद आमिर
हुसैन खान की। आमिर खान ने जो भी कुछ कहा
मुझे तो वो उनकी upcoming फिल्म ‘”दंगल “ की पब्लिसिटी
ज्यादा लगती है । क्यो की जो लोग उन्हे जानते हैं वो समझ सकते हैं आमिर अपनी फिल्म
के लिए कोई भी रूप धारण कर लोगो के बीच पहुँच जाते हैं निश्चित रूप से अपनी
फिल्मों को प्रमोट करने का उनका अपना अलग तरीका रहा है जिसमे आज तक वे कामयाब भी
रहे हैं। किन्तु इस उनकी टाइमिंग गलत हो गई है । जिसका नतीजा तो उन्हे भुगतना ही
पड़ेगा ।अब ऐसा तो हो नहीं सकता न कि ‘मीठा मीठा गप्प गप्प और कड़वा कड़वा थू थू ‘ अब वो लाख कहते फिरे कि ये देश मेरा है, मै इसका हूँ और मै इसे छोडकर
कही नहीं जाऊंगा ।
जिस देश कि जनता ने उन्हे तीन
दशको से सिर पर बैठकर रखा है वो एक ही झटके मे कैसे नीचे गिरती है उन्हे इसका भी
तो अहसास होना चाहिए। उनका ये कहना कि मैंने तो अपने दिल कि बात कही उस पर इतना
बवाल क्यों। अरे भाई जनता भी तो अपने दिल कि बात कह रही है फिर आपको इतना परेशान
होने कि क्या ज़रूरत है।
अंत मे उनकी मंद बुद्धि कि
जानकारी के लिए कि भारत मे जब 1975 मे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इन्दिरा
गांधी ने देश मे आपातकाल लगाया था तब उनके पुत्र स्वर्गीय संजय गांधी ने प्रसिद्ध गायक किशोर कुमार के
गानो पर आकाशवाणी व दूरदर्शन पर पाबंदी लगा दी थी । तब थी देश मे सही मायनों मे असहिष्णुता
और असंवेदनशीलता।1984 मे जब सिक्खो को जिंदा ही जला दिया गया तब थी देश
मे सही मायनों मे असहिष्णुता और असंवेदनशीलता।1988 से शुरुआत करते
हुए लाखो कश्मीरी पंडितो को मार दिया गया उनकी बहू बेटियो कि इज्ज़त लूट ली गई
उन्हे घर से बेघर कर दिया गया तब थी
देश मे सही मायनों मे असहिष्णुता और असंवेदनशीलता।
कश्मीर कि विधानसभा पर हमला,13/12/2001 देश की संसद पर हमला, देश मे अलग अलग स्थानो पर बम
धमाके,13/7/2006 मुंबई मे ट्रेन मे बम विस्फोट और 26/11/2008
मुंबई पर पाकिस्तान से आए 10 आतंकवादियो का हमला और अंतिम भारत की सीमा पर
पाकिस्तनी सेना द्वारा अकारण फाइरिंग हमारे जवानो का सिर कलाम करना और भारत द्वारा
प्रतिवाद न कर बातचीत के रास्ते तलाशना। इसे आप क्या कहेंगे महाराज ?
अब आते हैं अंतिम बात पर आपने रीना दत्ता से
जो की हिन्दू है शादी की उससे हुए दो बच्चो का हिन्दू नाम न रखकर मुस्लिम नाम रखा
फिर रीना को तलाक देकर आंध्र प्रदेश की किरण राव से शादी की जिससे आपको एक संतान
प्राप्त हुई । ये सब आप कर सके क्यों की आप भारत जैसे सहिष्णु एवम संवेदनशील देश
मे पैदा हुए। अब असहिष्णुता और असंवेदनशीलता तो किरण राव
के अंदर होनी चाहिए कि क्या पता आप उसे कब तलाक तलाक तलाक बोले और तीसरी ले आएँ।
इसके बावजूद भी अगर आपको और किरण राव को ऐसा लगता है कि उन्हे भारतवर्ष छोड़ देना
चाहिए तो छोड़ दें। जाने कितने लोग भारत वर्ष छोडकर विदेशो मे बस चुके हैं इसके लिए
मीडिया के कार्यक्रम कि क्या ज़रूरत है। और हाँ देश छोडने से पहले ये विचार अवश्य
कर ले कि अगर वहाँ जहां आप जाकर बसना चाहते हैं वास्तव मे महोल आपके अनुरूप न होकर
असहिष्णुतादी और असंवेदनशीलता से लबरेज मिला तो आपकी स्थिति क्या होगी । “धोबी का
...... न घर का न घाट का “ अपने साथ सईद मिर्जा और महेश भट्ट जैसे पोंगा पंडितो को
अवशय ले जाए ।
::: प्रदीप भट्ट
:::: 26/11/2015
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