Friday, 30 October 2015

गीता प्रेस गोरखपुर










अनवरत राष्ट्र  व सनातन धर्म की सेवा मे तत्पर एक संस्थान ”गीता प्रैस गोरखपुर "

गोरखपुर का नाम जहन मे आते ही जो सबसे पहले सूक्ति आती है वह है “ जाग मच्छन्दर गोरख आया “। जी हाँ गुरु गोरखनाथ के नाम पर ही गोरखपुर शहर बसा है। लेकिन गोरखपुर का इतिहास बताता है की पहले यहाँ इक्ष्वावु वंश का राज वर्षो तक कायम  रहा। क्ष्त्रीय गण संघ जो वर्तमान मे सन्थ्वार के रूप मे भी जाना जाता है। राप्ती और रोहिणी नदियो का संगम भी इसी गोरखपुर शहर मे होता है। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर गौतम बुद्ध ने अपने राजसी वस्त्रो का त्याग भी इसी गोरखपुर शहर मे किया था । भगवान महावीर भी इसी गोरखपुर शहर के नजदीक ही पैदा हुए थे। इसी गोरखपुर शहर के सोने और चाँदी के तजिए भी जग प्रसिद्ध हैं। राहुल संस्कृतयन भी यही पैदा हुए। पंडित रामप्रसाद बिस्मिल को इसी गोरखपुर शहर मे फासी पर चढ़ाया गया। मशहूर शायर फिराख गोरखपुरी और मशहूर हास्य कलाकार और पहलवान असित सेन यही पैदा हुए। और अंत मे मुंशी प्रेमचंद की कर्मभूमि भी यही  गोरखपुर शहर रहा है।




      किन्तु आज के दौर मे इन सबसे हटकर एक और ऐसी गाथा जिसके परिचय के बिना गोरखपुर शहर अधूरा जान पड़ता है। वह है गीता प्रैस गोरखपुर जिसकी स्थापना 1920 में एक मारवाड़ी  सेठ जय दयाल गोयंदका  द्वारा की गई। इस पवित्र कार्य मे  उनका सहयोग किया घनश्याम दास जालान ने।  उनही के सुझाव व प्रयास से मात्र दास रुपए के किराए के मकान मे गीता प्रैस के प्रिंटिंग का कार्य शुरू किया गया। आज यहाँ हर वर्ष 5000 टन से ज्यादा  कागज़ पर गीता, मानस और दूसरे ग्रंथ छपते हैं। श्री हनुमान चालीसा जिसकी हर वर्ष 50 लाख प्रतियाँ छपती हैं जिसका मूल्य मात्र 2 रुपए है। शंकराचार्य की टीका वाला क्ठोपनिष्ठ मात्र 20 रुपए मे उपलब्ध। आज तक गीता प्रैस से छापने वाली 2000 पुस्तकों की 60 करोड़ से ज्यादा  प्रतियाँ छ्प कर प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमे भी 21 करोड़ से अधिक तो केवल गीता और मानस की ही हैं।
                             

      गीता प्रैस गोरखपुर के बारे मे और भी बहुत  कुछ सत्य लिखा जा सकता है इसकी एक बानगी प्रस्तुत है। एक व्यक्ति गुजरात से  अपने दिवंगत पिता की अंतिम इच्छा पूर्ति हेतु गीता प्रैस कार्यालया पहुँचा और मैनेजर से निवेदन किया कि कृपया मेरे पिता कि अंतिम इच्छा स्वरूप  (चेक जो कि एक करोड़ से ज्यादा राशि का )इस राशि को कृपया स्वीकार करे  किन्तु मैनेजर महोदय ने उसे लेने से विनम्रता पूर्वक मना कर दिया। क्यों कि पूर्व मे ही सेठ जय दयाल गोयंदका  द्वारा यह सुनिश्चित किया गया था कि गीता प्रैस के लिए किसी भी प्रकार की बाहरी सहायता लेना निषिद्ध होगा।

गीता प्रैस गोरखपुर द्वारा जो भी कागज़ छपाई हेतु खरीदा जाता है वह खुले बाज़ार भाव पर न की सरकारी रेट पर। इसी प्रकार ग्राहको को जो पुस्तके देश –विदेश मे भिजवाई जाती हैं उन पर  भी सरकार की ओर से कोई रियायत प्राप्त नही की जाती।

और अंत मे गीता प्रैस गोरखपुर न तो किसी प्रकार का चंदा ग्रहण करती है न विज्ञापन छापती है और न ही किसी भी जीवित व्यक्ति का चित्र ही छापती है। गीता प्रैस गोरखपुर की पुस्तकों मे किसी प्रकार की अशुद्धियाँ न हो इसलिए गीता प्रैस गोरखपुर ग्राहको को अशुद्धियाँ पकड़ो, पुरुसकर पाओ जैसी योजनाएँ भी चलती है।


:::::::प्रदीप भट्ट ::::::

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