Tuesday, 6 February 2024

नागपुर विजिट

रिपोतार्ज़ 

"दोस्ती में प्रेम का स्थान होना चाहिए 
 क्या ज़रूरी है कि कोई नाम होना चाहिए" 

आप भी सोच रहे होंगे कि इस बार के रिपोतार्ज़ में दोस्ती 🤝के ऊपर ही ग़ज़ल का मतला ठोक दिया। तो मित्रों आप सही सोच रहे हैं। नागपुर में 27,28 जनवरी को युगधारा के दो दिवसीय साहित्यिक महोत्सव हेतु आमंत्रण मिला तो मैं उस वक़्त केरल प्रवास पर था और होटेल के कमरे में आराम फ़रमा रहा था। मैंने अत्यधिक व्यस्तता के चलते बड़ी ही विनम्रता से मित्र राम कृष्ण सहस्रबुड्डे जो कि अब संतरा🍑 नगरी नागपुर में सेट्ल हो चुके हैं को कार्यक्रम में उपस्थित न हो पाने के लिए क्षमा माँग ली। कुछ देर तो शान्ति रही फ़िर उधर से आवाज़ आईं आपके ऊपर मेरा विशेष आधिकार है और अगर मैं चाहूँ तो अपने विशेषाधिकार 👏का भी प्रयोग कर सकता हूँ बाक़ी आपकी सद इच्छा।  सच कहूँ तो दिसंबर -2021 के बाद उनसे मिलना भी नहीं हुआ तो मैंने फ़िर विनम्रता के साथ एक हफ़्ते का समय माँगा फ़िर 21 दिसंबर को उन्हें सूचना दी कि मैंने आने जाने का टिकिट रिज़र्व करा लिया है। मैं 26 जनवरी को चलूँगा और 29 जनवरी को वापसी तय है। उधर से रामकृष्ण जी बोले गुरु हमें पता था हमारे आग्रह को टाल नहीं पाओगे। 

जैसा कि आपको पता ही है मित्रों नॉर्थ में मिड नवंबर से मिड फ़रवरी तक कितनी ख़ूबसूरत सर्दी 🫥पड़ती है। कोहरा इतना कि सड़क के उस ओर का मकान न दिखाई पड़े। सूर्य देवता की मर्ज़ी है दर्शन दें न दें। इनर वियर चार पाँच जोड़ी भी हों तो कम ही हैं।  बस एक ही रास्ता होता है स्त्री का सहारा लिया जाए 😜 ग़लत मत समझियो भैइय्या स्त्री यानि आयरन यानि प्रेस। वैसे ज्यातर स्त्रियाँ ही स्त्री कर इन गीले इनर/आउट वियर की अकड़ ढीली करती हैं। ख़ैर 26 जनवरी को पहले भतीजी को उसके जन्मदिन पर विश् किया फ़िर एक साल का रिचार्ज (ये मेरा स्टाइल है जिस बच्चे का जन्मदिन होता है उसका एक साल का रिचार्ज 😄 नो cash) कर दिया फ़िर सीधे बस स्टैंड और noida होते हुए सीधे सरोजनी नगर मार्किट जहाँ मित्र से मिलना तय था। लेकिन ये क्या पूरा मार्किट बंद और भूख अपने पूरे तामझाम के साथ सताने लगी। ख़ैर मित्र आईं चाय पीते हुए तय किया कि कनॉट प्लेस चला जाए वहीं घूमेंगे फिरेंगे ऐश करेंगे और क्या 🤗🤗🤗🤗🤗

आश्चर्य कनॉट प्लेस का खादी भवन 26 जनवरी को खुला हुआ था सो एक दो पुराने मित्रों से मिले कुछ अपने लिए ख़रीदा फ़िर अपना सामान वहीं रक्खा और मित्र को लेकर पहुँच गये जनपथ मार्किट। दो तीन घण्टे इधर उधर गपशप करते हुए स्ट्रीट फूड का आनंद लिया और वापिस खादी भवन। सामान लिया मित्र से विदाई ली और चल पड़े नई दिल्ली रेलवे स्टेशन आंध्र प्रदेश एक्सप्रेस पकड़ने। लेकिन ये स्टार्टिंग पॉइंट होने के बाद भी  ट्रेन आधा घंटा लेट। ये तो ज़ुल्म है भाई हाड कपाती ठंडी में  बेचारा प्रदीप 😫। B-1/9 में पहुँचे चारों तरफ़ बच्चे ही बच्चे। एक लड़की ने टूटी फूटी हिन्दी में बताया कि "हम कुल 33 बच्चे include एक ladies टीचर और एक male हैं अंकल जी 😏 हम सब विशाखापट्टनम से भी 150 km से 26 जनवरी देखने आए थे आज़ घऱ वापिस जा रहे हैं।" उनका I  कार्ड देखा तो पाया कि ये आदिवासी मंत्रालय के आमंत्रण पर आए हैं। सारा खर्च सरकार कर रही है। सुनकर अच्छा लगा 😄। रात्रि 12-1 बजे तक बच्चे तेलगू में गपियाते रहे। न जाने कब अपुन को निंद्रा रानी ने अपने आगोश में ले लिया। 

अगले दिन 8 बजे आँख खुली तो पाया कि कोहरे ने ट्रेन की रफ्तार को कुंद सा कर दिया है। एक तेलगू परिवार से प्लेटफॉर्म पर बात हो रही थी कि अगर ट्रेन आधा घंटा यहीं से लेट चलेगी तो रास्ते में दो चार घण्टे लेट होनी निश्चित है।उन्होंने बताता सर ये सुबह 4:15 भोपाल पहुँचती है थोड़ा लेट हो जाए तो अच्छा है हमने भी मस्ती में कह दिया😉 हमने ड्राइवर से बात कर ली है अब ये ट्रेन 4:15 की जगह  8:15 पहुँचेगी।  वे हँस पड़े तो हमने कहा आपने दिल्ली पुलिस का स्लोगन नहीं पढ़ा क्या।  "दिल्ली पुलिस आपके लिए सदैव आपके साथ" तो क्या भारतीय ट्रेन ये स्लोगन नहीं अपना सकती " भारतीय ट्रेन आपके लिए सदैव आपके साथ"  इस बात पर हमारे साथ उसी बेंच पर बैठे सरदार जी भी ठहाका लगाए बिना न रह सके। ये फॅमिली अपने बॉस की बेटी की शादी में भोपाल जा रहे थे बामुश्किल चार महीने का बच्चा होगा जिसे उसके वज़न से ज्य़ादा कपड़े पहनाए हुए थे। ख़ैर हमें जैसे ही कल रात्रि की बात याद आई हम मन ही मन मुस्कुरा पड़े।  पोहे के नाश्ते के बाद मोबाइल पर सदमा फ़िल्म के बारे में एक आर्टिकल पढ़ रहे थे। उस आर्टिकल में एक वाक्य आया "उसकी एड़ी भी गीली नहीं हुईं " बस मिल गया मसाला और दतिया स्टेशन आने तक सिर्फ़ पंद्रह मिनिट में एक नज़्म लिख डाली।  सायं 4:45 भोपाल आया तब जाकर गाड़ी ने रफ़्तार पकड़ी उधर लगातार फ़ोन पर सहस्र बुध्दे जी update ले रहे थे गुरु कहाँ तक पहुँचे। आख़िर हमने कह दिया देखो हुज़ूर हमें  इस ट्रेन के लच्छन ठीक न लग रे अब ये ससुरी ट्रेन जब पहुंचाएगी तभी पहुंचेगे वैसे अफीशियल ये ट्रेन 13-14  घण्टे लेट हो चुकी है। सो कुल मिलाकर आज का कार्यक्रम तो अटेंड न हो पावेगा। बाक़ी जय श्रीराम। सायं को मैसेंजर पर एक मोहतरमा का मैसेज जिसमें उन्होंने नज़्म की काफ़ी तारीफ़ लिखी थी साथ ही आग्रह कि समय निकालकर बात कर लें। ऐसा अक्सर होता है किन्तु इन मोहतरमा की विनम्रता ने ध्यान आकर्षित किया। सो उत्तर स्वरूप लिख दिया कि पहली फुर्सत में कॉल करता हूं। ख़ैर जैसे तैसे ट्रेन ने हमें 9:45 संतरा नगरी यानि  नागपुर फ़ेंका।  बाहर आए ऑटो लिया और सीधे होटेल गुलशन प्लाज़ा। रिसेप्शन पर ही प्रिय सौम्या, पूनम मिश्र एवम् रामकृष्ण सहस्र बुड्ढे जी ने स्वागत किया।हमारे वाली ट्रेन में ही ब्रजेश गुप्ता बांदा से भी थे जो लगभग साथ साथ ही होटेल पहुँचे थे। दोनों को कमरा नंबर 207 अलॉट हुआ। फ्रेश हुए नीचे आए खाना खाया और फ़िर वापिस कमरे में। 

28 को सुबह तैय्यार होकर सीधे पाँचवें माले स्थित मीटिंग हॉल में। नाश्ता हुआ और फ़िर 10:20 पर प्रोग्राम शुरू। संचालन की कमान क्रमशः सहस्र बुड्डे अविनाश बाग़डे एवम् चन्द्रिका प्रसाद मिश्र जी ने संभाली।प्रिय सौम्या ने युगधारा संस्था का पिछले छः बरस का लेखा जोखा प्रस्तुत किया। भविष्य की योजनाओं का ख़ाका खींचा तदुपरांत 
उद्घाटन कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो विश्वम्भर  शुक्ल ने की, मुख्य अतिथि के रूप में नगर के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ सागर खादीवाला और विशिष्ट अतिथि श्री अजय पाठक उपस्थित थे। पुस्तक लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता डॉ श्रीनिवास शुक्ल सरस ने की, मुख्य अतिथि डॉ प्रमोद शुक्ल तथा विशिष्ट अतिथि शिवमोहन सिंह थे। सम्मान समारोह की अध्यक्षता डॉ सरस ने की, मुख्य अतिथि डॉ वीणा दाढ़े और विशिष्ट अतिथि श्री एस पी सिंह थे।कार्यक्रम में प्रो विशंभर शुक्ल, रवि शुक्ल, मुकेश सिंह, विभा प्रकाश की पुस्तकों का लोकार्पण हुआ।विभिन्न सत्रों का संचालन क्रमशः रामकृष्ण वि सहस्रबुद्धे, अविनाश बागड़े और डॉ चंद्रिका प्रसाद मिश्र ने किया। इसी अवसर पर संस्था की ओर से साहित्यकारों को विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर मुझे भी यानि प्रदीप DS भट्ट को शब्द शिल्पी सम्मान से सम्मानित किया गया। प्रथम सत्र में एक मोहतरमा जो इस बात से नाराज़ हो गईं कि मेरा परिचय क्यूँ नहीं दिया सो झटके से उठीं ऐंकर से माइक छीना फ़िर अपनी साहित्यिक यात्रा /गतिविधियों पर जबरदस्ती दर्शकों को फ़ोकस करने पर मज़बूर किया फ़िर बड़बड़ाती हुईं धम्म से कुर्सी पर पसर गईं। मुझे बेसाख्ता अपना शाहकार शेर याद हो आया सो मैंने उसे पब्लिक में धीरे से उछाल दिया। जिन्होंने सुना और समझा उन्होंने बढ़िया है👌👌👌👌👌 का इशारा कर दिया और बाक़ी अज्जि छड्डो भी ...😜

"ख़ुद को ख़ुश रखने की तरक़ीब यूँ निकाल ली 
 ख़ुद ही ख़रीदी फ़ूल माला, ख़ुद ही गले में डाल ली" 

अंतिम सत्र में बीकानेर से पधारे वरिष्ठ ग़ज़ल गो रवि शुक्ल की अध्यक्षता में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में कृष्ण कुमार द्विवेदी, अर्चना अर्चन, पूनम मिश्रा, हेमलता मिश्रा मानवी, अरुण नामदेव, रूबी दास, प्रभा मेहता, मुकेश सिंह, बृजेश गुप्त,जयश्री कांत, धारा वल्लभ पांडे, मंजूषा किंजवादेकर अनिल मालोकर , रामकृष्ण सहस्र बुढ्ढे ,माधुरी मिश्र, बालकृष्ण महाजन,अमिता शाह सहित उपस्थित कवियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। मैंने भी अपनी एक ग़ज़ल पढ़कर वाहवाही लूट ली।

“मेरे अपने मिटाने पर तुले हैं”

सखा सब आजमाने पर तुले हैं
नया कुछ गुल खिलाने पर तुले हैं

जनम से नूर आँखों में नही है
मगर दर्पण दिखाने पर तुले हैं

कोई खतरा नही है मुझसे फिर भी
मुझे झूठा बताने पर तुले हैं

न जाने कौन आया ज़िंदगी में
जो सब मुझको हराने पर तुले हैं

कमी क्या रह गई मेरी वफा में
सभी जो भूल जाने पर तुले हैं

ज़रा सा सच ही तो बोला था मैंने
मेरे अपने मिटाने पर तुले हैं

कोई गल्ती नही है मेरी फिर भी
मेरा सर सब झुकाने पर तुले हैं

न जाने क्या है उनकी बेबसी भी
मरे को फिर जिलाने पर तुले हैं

के उनके दिल में क्या है वो ही जाने
मुझे सूरज बताने पर तुले हैं

कोई हो एक गर समझाऊँ उसको
सभी दिल को दुखाने पर तुले हैं

किसी का क्या बिगाडा बोलो मैंने
जो सब मुझको गिराने पर तुले हैं

मैं मुंसिफ हूँ मगर तुम ‘दीप’ देखो
मुझे मुज़रिम बताने पर तुले हैं

सबसे अच्छी बात ये रही कि कार्यक्रम 5 बजे की टाइम लाइन में ही पूर्ण हो गया जब कि ऐसा अक्सर होता नहीं है। एक बात जिस पर प्रिय सौम्या को विचार करना चाहिए कि हर सत्र में मुख्य अतिथि एवम् विशिष्ट अतिथि अलग अलग होने चाहिए। नीरसता से मुक्ति मिलेगी। शुक्ल पक्ष को अहमियत दीजिए लेकिन कृष्ण पक्ष को भी अहमियत मिलनी चाहिए। भगवान कृष्ण कृष्ण पक्ष में ही अवतरित हुए हैं। एंकर को डायस पर विराजमान होते देखकर आश्चर्य लगा। इन विसंगतियों से बचा जाना चाहिए। प्रिय सौम्या जो कि युगधारा की राष्ट्रीय महासचिव हैं की सौम्यता देखिए कि वे आपने भाई प्रणव के साथ लगभग पूरे कार्यक्रम में सबसे पीछे बैठी रहीं ।उससे भी बड़ी बात वरिष्ठ ग़ज़ल गो रवि त्रिपाठी भी छटी पंक्ति में ही बैठे रहे। ख़ैर व्यवस्थाएं हैं आगे दुरुस्त होंगी ऐसा मेरा अंतर्मन कहता है। 

अगले दिन की शुरुआत धारा वल्लभ पाण्डेय एवम् उनकी श्रीमती,मैं और मित्र सहस्र बुड्डे जी ने ज़ीरो प्वाइंट की visit से की। यहीं वो स्थान है जहाँ से भारत वर्ष के सभी शहरों की नपाई शुरू होती है,फ़िर शहीद स्मारक तदुपरांत राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का म्यूजियम फ़िर कार्यालय देखने जा पहुँचे। बड़ी ही आत्मियता से हमारा परिचय लेकर सेक्यूरिटी चैक कराने से लेकर अंदर कार्यालय में छुड़वाया गया। लगभग एक घण्टे हमने उस स्थान को देखा समझा जाना लगभग सौ वर्षो का इतिहास समेटे म्यूज़ियम को अपने नज़रिये से समझा।  वापसी में बेहतरीन चाय पी फ़िर वापिस होटेल। थोड़ा आराम किया और फ़िर चल पड़े स्टेशन की ओर बिलासपुर नई दिल्ली राजधानी के सफ़र के लिए। ट्रेन 15 मिनिट पहले ही आ पहुँची। B-2/65 में जा पहुँचे। खाना खाया और सो गये। अगले दिल उठे तो पाया ट्रेन लेट है। शायद कहना चाह रही थी कि राजधानी हैं तो क्या हुआ कोहरा हमें भी सताता है जी। लगभग डेढ़ बजे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन फ़िर मेट्रो बस का सफ़र करते हुए सायं 5:45 मेरठ।  चलो जी एक और साहित्यिक यात्रा पूरी हुईं। सियावर रामचंद्र की जय।।

प्रदीप DS भट्ट -6224

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