" मैं भी मिट्टी तू भी मिट्टी"
मैं भी मिट्टी तू भी मिट्टी, लेकिन मुझमें श्वाँस है
तू भी एक दिन बोल पड़ेगी, मुझको ये विश्वास है
तन की सुंदरता सब देखें, मन में झाँक के देखे कौन
इसलिए ऐसे लोगों का, होता निश दिन ह्रास है
ग़लत नहीं कुछ किया अगरचे, फ़िर क्यूँ डरना लोगों से
त्रास भी मिलता जीवन में,कभी मिलता जी परिहास है
दरिया की मौजे जब तेरे, पैरों को टच करती हैं
तुझको देख के लगता लेती, तू गहरी उच्छ्वास है
नहीं मुस्व्विर हूँ मैं माना,कोशिश में कुछ हर्ज़ नहीं
देख तुझे अब लगता जैसे, रचना आसम पास है
भाग्य बदा वो होकर रहता,करो जतन तुम कितने भी
जब तक प्राण बसे हैं तन में,तब तक मन में आस है
कुछ तो अलग करो जिससे कि,दुनियाँ तुमको याद करे
वरना 'दीप' कहाँ बनता जी,कभी किसी का ख़ास है
-प्रदीप DS भट्ट -151123
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