पूरब से पश्चिम के द्वार तलक
सूरज तुम प्रतिदिन जाते हो
तुम अंधकार से लड़ते-लड़ते
क्या प्रतिदिन थक न जाते हो
बस सीखा तुमने जलते जाना
प्रतिदिन पथ पर चलते जाना
नहीं तिमिर से कोई भी झगड़ा
बस कर्तव्य प्रकाश है फ़ैलाना
ठहरो कुछ विश्राम तो ले लो
सेवा का कुछ अवसर दे दो
तुमसा तो तेज नहीं है फ़िर भी
मुझको भी कुछ क्षण जलने दो
- प्रदीप देवीशरण भट्ट -
16:04:2020
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