“मरता है कोई तो मर जाए हम अपना निशाना क्यूँ छोड़े”
(अंकित सक्सेना जघन्य हत्याकांड)
अंकित सक्सेना जिसकी उम्र मात्र 23 वर्ष थी और उसका कुसूर मात्र इतना कि वो एक मुस्लिम लड़की सलीमा से प्यार करता था और ये प्यार एक तरफ़ा तो बिलकुल भी नहीं था। प्रेम का अंकुर दोनों के दिलों में ही अंकुरित हुआ। दोनों ने निश्चित ही प्यार में साथ जीने और मरने की क़समें भी खायी होंगी । किंतु फ़िर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हुई और 1 फ़रवरी -2018 को सरेआम सलीमा के माँ ,बाप,मामा और उसके अंडर एज भाई ने मिलकर डेल्ही के ख़याला गाँव में सारे आम उसकी निर्मम हत्या कर दी और वहां उपस्थित भीड़ सिर्फ़ तमाशबीन बनी रही? आख़िर ऐसा क्यों और कब तक ?
अब हम बात करते हैं बड़े-बड़े शब्दों का इस्तेमाल करने वाले और सेकुलरिस्म - सेकुलरिस्म खेलने वाले लोगों की। जिनमें डेल्ही के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी शामिल हैं। कोई भी ऐसी घटना जिसमें व्यक्ति विशेष या समुदाय विशेष के साथ कोई दुर्घटना होती है तो उस व्यक्ति का घर, घर ना होकर एक तीर्थस्थल में तब्दील कर दिया जाता है और वहां पर अपना मत्था टेकने की होड़ सी लग जाती है । इन सबका एक ही उद्देश्य होता है कि आम जन देखें और महसूस करें कि हम मुस्लिमों/दलितों के प्रति कितनी सहृदयता रखते हैं अगर इनमें से किसी को भी एक खरोच आ जाए तो ये सभी विपक्षी नेता विक्षप्त हो जाते हैं और लगते हैं प्रलाप करने। अब एक और होड़ मच जाती है कि उन्हें किस तरह सहायता दी जाए ताकि समाज में हमारी वाह वाही हो ,ये सहायता 5 लाख से शरू होते हुए 1 करोड़ तक पहुँच जाती है एक ही विशेष परिवार को 4-4 फ्लैट तक उपहार में दे दिए जाते हैं।और ये बड़े बड़े सो कॉल्ड नेता अभिनेता लिँचिँग गैंग, ,मुशायरा गैंग,अवार्ड वापसी गैंग और शोभा डे जैसी शख्सियत जिनका एक मात्र बोलने का उद्देश्य ही यही होता है कि लोग उनकी बातें सुने और उस पर अपनी प्रतिक्रिया दें।किंतु ऐसा भी केवल व्यक्ति विशेष या समुदाय विशेष के प्रति ही अन्यथा ये लोग किसी खोह में जाकर बैठ जाते हैं।
•अगर किसी हिंदू की हत्या हो तो ज़ोर ज़ोर से चिल्लाओं हम तो बरसों से गंगा जमुना संस्कृति के वाहक रहे हैं ।
•हत्या किसी मुस्लिम की हो तो ज़ोर ज़ोर से चिल्लाओं कि देश का लोकतंत्र ख़तरे में है।
•किसी हिंदू की हत्या हो तो उसे जाति में विभाजित कर दो कि ये तो दलित था या महादलित था। सार ये कि वो ये साबित करने का आख़िरी समय तक प्रयास करते रहते हैं कि वो एक हिंदू नहीं था वरन फलां जाति से था जिसके ऊपर सदियों से बड़ी जातियों ने अत्याचार किये हैं।
•इनकी नजर में हिंदू तो विभिन्न जातियों के चक्रव्यूह में फंसा हुआ है।
मैं यहाँ केरल,पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में हो रही राजनैतिक हत्याओं को बीच में नहीं लाना चाहता किन्तु ये भी तो सत्य है कि हैदराबाद में रमेश को तड़पा तड़पा कर मार दिया जाता है,मंजुनाथ की बंगलोर में गला काटकर हत्या कर दी जाती है,संतोष की भी बंगलौर में गोली मरकर हत्या कर दी जाती है आख़िर ये सब हत्याएं क्या बयां करती हैं। किन्तु भारत में जितने भी सो कॉल्ड सेकुलर गैंग अपनी रोजी रोटी चला रहे रहें उन्हें इन हत्याओं से कुछ लेना देना नहीं हैं। किन्तु अगर हत्या या हत्या का प्रयास किसी मुस्लिम या दलित के विरुद्ध किया गया हो तो फ़िर आप कल्पना भी नहीं कर सकते ये सारे गैंग कैसे समूचे भारत को बंधक तक बनाने से बाज़ नहीं आते। उस समय ऐसा लगता है कि इस एक हत्या या उसके प्रयास भर से भारत का मजबूत लोकतंत्र तुरंत खतरे में आ जाता है ये ख़तरा कुछ कुछ ऐसा दर्शाया जाता है जैसे कि बात बात में मुस्लिम संगठन इस्लाम को ख़तरे में आया बताने लगते हैं। आख़िर ऐसे लोगों या गैंग से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है जिनका नज़रिया ही सेलेक्टिव हो।
आजकर इस गैंग ने एक नया पैतरा लागू किया है हिंदू की हत्या हो तो उसे दलित या महादलित के नाम से संबोधित करों ताकि हिन्दुओं का जाति आधारित विभाजन किया जा सके।उत्तर प्रदेश के कासगंज में 17 वर्ष के चन्दन की हत्या 26 जनवरी को तिरंगा यात्रा के दौरान कर दी गई। क्रोध तब आता है जब लोग बेसिरपैर के बयान देने लगते हैं कि “ तिरंगा यात्रा के लिए पुलिस से पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी ,अरे भैय्या कौन सी दुनियां में रहते हो क्या भारत में गणतंत्र दिवस के मौके पर भी तिरंगा यात्रा के पुलिस से अनुमति लेनी पड़ेगी ?हम लोकतंत्रन्तिक देश में रहते हैं जहाँ तिरंगा फ़हराने के किसी की भी अनुमति लेनी आवशयक है और स्वत्रन्त्र दिवस और गणतंत्र दिवस पर तो बिलकुल भी नहीं । उपरोक्त सभी गैंग इस बात से ज्यादा खुश होते हैं कि भारत में रहने वाले समस्त हिन्दुओं पर दमनात्मक कार्रवाई होती रहे जिनमें दलित भी शामिल हों किन्तु मुस्लिम को छोड़ दिया जाए। अगर किसी मुस्लिम पर कार्यवाही होगी तो ये अपना गला फाड़ फाड़ कर चिल्लाना शुरू कर देंगे फ़िर वो लेफ्ट हों या राइट।
अंत में मुझे एक गीत की दो पक्तियां याद आ गई “मरता है कोई तो मर जाए हम अपना निशाना क्यूँ छोड़े” और इनका निशाना वर्तमान बी जे पी सरकार है ये इतना हो हल्ला मचाएंगे जैसे 1947 से 2014 तक भारत में राम राज्य था यहाँ दुध घी की नदियाँ बह रहीं थीं “अत्र कुशलम तत्रास्तु “ हम कुशल से हैं आशा हैं आप भी कुशल से होंगे की तर्ज पर किन्तु सत्यता इसके बिलकुल उलट है।पिछले लगभग चार वर्षों में भारत राष्ट्रिय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जितना मजबूत हैं उतना पहले कभी नहीं था। अंकित सक्सेना की हत्या ने लोगों के दिलों में इतना रोष भर दिया है कि विपक्षी पार्टियाँ सहम सी गई हैं और बी जे पी हो या कांग्रेस या फ़िर डेल्ही पर राज कर रही “आप” सबको डर सताने लगा है कि अगर वे सेलेक्टिवेनेस दिखाएंगी तो अगले चुनाव में उनका सुपडा साफ़ भी हो सकता है। और एक यक्ष प्रश्न यह भी है कि किसी भी राज्य में संसद सदस्य से लेकर कार्पोरेटर तक का चुनाव जनता क्यों करती हैं इसलिए कि वे सेलेक्टिव्नेस दिखाएँ इंसान इंसान में फ़र्क दिखाएँ अगर सरकारें ही पक्ष-पात करेंगी तो आम-जन क्या करेगा उसे तो संस्कृत का वही श्लोक याद आएगा ना कि “यथा राजा तथा प्रजा” तो फ़िर इसके बाद की स्थिति की भयावता का अंदाज आप स्वंय लगा लें।
-प्रदीप भट्ट- मंगलवार,फ़रवरी 06,2018
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