““बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ और कौमार्य परिक्षण कराओ “
पिछले दिनों समाचार पत्र में “कौमार्य परिक्षण” से सम्बंधित ख़बर पढ़ी। निश्चित रूप से एक बारगी तो ज़ोर का झटका ज़ोर से ही लगा। एक तरफ़ हम बड़े फ़र्क के साथ ये बताने में हर्ष महसूस करते हैं कि हम 21वीं सदी में प्रवेश कर कर गये हैं ,विश्व बिरादरी में भारत में पांचवें सबसे ज्यादा रिचेस्ट पर्सन रहते हैं ,भारत विश्व पटल पर सबसे ज्यादा युवाओं का देश है और दूसरी तरफ़ आज भी हम ऐसी सड़ी-गली मानसिकता में जी रहे हैं कि पूरा का पूरा गाँव विवाह से पूर्व लड़कियों का कौमार्य परिक्षण करवाता है और ये उनकी चॉइस नहीं है वरन ज़रूरी प्रथा है।
भारत के महाराष्ट्र के पुणे शहर एवं उसके आसपास रहने वाले कंजरभाट समुदाय में ये प्रथा जाने कब से चली आ रही है जहाँ विवाह के उपरांत लड़के एवं लड़की जब सुहागरात मनाते हैं तो अगले दिन उस बिस्तर पर बिछी हुई सफेद रंग की चादर (सुहागरात में सफेद चादर बिछाने का नियम ही है) पर जब तक घर के बड़े बुजुर्ग, गाँव के लोग और गाँव के पंच खून के धब्बे ना देख लें तक चैन की साँस नहीं लेते। अगर खून के धब्बे नहीं मिलते हैं तो मान लिया जाता है कि लड़की वर्जिन नहीं है और फ़िर उसके साथ मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का वो दौर शुरू होता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती । किन्तु एक हास्यस्पद बात भी है कि कौमार्य परिक्षण में फेल लड़की को तो प्रताडन झेलनी ही पड़ती है साथ ही उसके घर वालों को और कभी कभी तो गाँव तो प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। मामले का निपटारा भी बड़े ही हास्यस्पद तरीके से किया जाता है अगर लड़की वाला इस शादी को तोडना नहीं चाहता है तो उन पर जुल्मों सितम की इंतेहा के बाद आर्थिक जुर्माना भी लगाया जाता है और ये जुर्माना भरने के पश्चात् ही इस शादी को को मान्य किया जाता है। मतलब जो लड़का, उसके घर वाले और गाँव वाले जिनमें पांच भी शामिल थे कौमार्य परिक्षण में फेल लड़की को रखने के लिए सिर्फ़ इसलिए हामी भर लेते हैं ताकि उन्हें लड़की वालों की तरफ़ से जबर्दस्त आर्थिक अनुदान दिया जाता है ?
भारत में जब किसी लड़की का बलात्कार होता है तो पुलिस सबसे पहले उस लड़की को लेकर हॉस्पिटल जाती है और सबसे पहले उसका कौमार्य परिक्षण करने पर ज्यादा ज़ोर दिया जाता है ताकि ये पता चल सके कि लड़की बलात्कार से पहले सेक्स की आदी तो नहीं थी इससे पुलिस को एक मौका मिल जाता है दूसरी पार्टी से सौदेबाजी करने का। जहाँ तक कौमार्य परिक्षण का प्रश्न है तो भारत में आज भी टू फिंगर टेस्ट ज्यादा प्रचलित है। जिस पर सर्वोच्च न्यायालय कई बार अपनी तीखी टिपण्णी भी दे चुका है । किन्तु इस विषय में आज तक ज्यादा कुछ नहीं किया गया है। जस्टिस जे एस वर्मा समिति ने भी इसकी तीखी आलोचना की है। समिति ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर आपराधिक कानूनों के आलोक में २३ जनवरी २०१३ को सरकार को अपनी रिपोर्ट सौपीं थी जिसमें सेक्स को अपराध का विषय बताया गया है ना की मेडिका डायग्नोसिस का । रिपोर्ट में बताया गया है कि महिला की वजैना के लचीलेपन का बलात्कार जैसे घर्णित अपराध से कोई लेना देना नहीं है । इसी कानून में टू फिंगर टेस्ट को बैन करने की भी सलाह सरकार को दी गई थी । इसी रिपोर्ट में डॉक्टरों को यह पता लगाने से रोकने का प्रावधान करने की सिफारिश की गई थी जिसमें पीडिता के यौन संबधों में सक्रिय होने या नहीं होने की जानकरी सार्वजानिक दी जाती है।
आख़िर ये इसमें टू फिंगर टेस्ट है क्या? फ़्रांसीसी मेडिकल विधिवात्ता एल थोइनन्त ने 1898 के लगभग नकली और असली कुंवारी लड़कियों में फ़र्क करने के लिए ही इस प्रकार का टेस्ट इज़ाद किया था क्यों कि यह भी प्रचलित है कि कुछ महिला /लड़कियां किसी भी प्रकार की परेशानी से बचने के लिए विज्ञान का सहारा लेती है एवं नकली झिल्ली लगवा लेती हैं। ऐसा माना जाता है कि महिला के योनिद्वार में जो झिल्ली (योनिच्छद/Hymen) होती है वह केवल संभोग क्रिया के दौरान ही फटती है इसलिए जब भी कभी किसी महिला का टू फिंगर टेस्ट किया जाता है तो उसका मूल कारण सिर्फ़ यही होता है कि वह महिला या लड़की कुंवारी है या नहीं । नकली कुंवारी उस महिला को कहा जाता है जिसकी हैमन लचीलेपन के कारण सेक्स के बाद भी नहीं टूट पाती । भारत में मेडिकल विधिशास्त्र की लगभग हर पुस्तक में TFT को बढ़ावा दिया जाता है । इस विषय में जयसिंह पी मोदी की पुस्तक “A Text book of medical jurisprudence & technology” भी शामिल है। देश में प्रचलित दो ऊँगली टेस्ट से बलात्कार पीड़ित महिला की वजैना के लचीलेपन की जाँच की जाती है । उँगलियों को वजाइना के अन्दर डालकर ये मालूम किया जाता है कि लड़की कुंवारी है या नहीं अगर दो से अधिक ऊँगली वजाइना के अन्दर प्रवेश करती हैं तो लड़की कुंवारी नहीं है मान लिया जाता है भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है, जो डॉक्टरों को ऐसा करने के लिए कहता है।किन्तु फ़िर भी ये प्रक्रिया धडल्ले से भारत भर में जारी है।
ऐसा नहीं है कि कौमार्य परिक्षण सिर्फ़ भारत में ही कराये जाते हैं पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा रहे जर्फिया में भी इस प्रकार की प्रथा रही है जिस्मने दुल्हन को कौमार्य परीक्षण से गुजरना पड़ता है। ये विषय अगर है की वहां पर इस परिक्षण की फ़ीस कुछ ज्यादा ही ज्यादा है एक टेस्ट की कीमत लगभग 6 से 7 हजार बैठती है वहीँ अगर इस टेस्ट को जल्दी करवाना है तो ये फेस लगभग दोगुनी होती है। प्राचीन काल में अफ्रीकी देशों में कौमार्य परीक्षण के लिये यह परीक्षण महिलाओं द्वारा किया जाता था। कई देशों में जहां वर्जिनिटी टेस्ट आम बात है, इसी टेस्ट से वर्जिनिटी टेस्ट किया जाता है।2014 में हुमर राइट्स वाच ने एक रिपोर्ट जारी कर ये बताया था कि इंडोनेशिया में महिलाओं को पुलिस प्रवेश से पूर्व अपना कौमार्य परिक्षण करवाना ही पड़ता है । इसी प्रकार जुलू सभ्यत में एक उम्र की लड़कियों को राजा के समने नृत्य करना पड़ता है।लेकिन उन नृत्यांगनों के लिए पहली शर्त टू फिंगर टेस्ट ही होती है अगर उसका कौमार्य सुरक्षित पाया गया, तो उसे सम्मानित किया जाता है, लेकिन अगर कौमार्य भंग हो गया है, तो पिता पर जुर्माना ठोका जाता है।
अब आते हैं महाराष्ट्र के पुणे के उस युवक के विद्रोह पर जिसने इस घिनौनी प्रथा पर चोट करने की पहल की है इस युवक का नाम है विवेक तमिचकर जिसने अपनी शादी तय होने पर ये घोषणा कर दी कि वो इस घिनौनी प्रथा का पालन करने के लिए अपनी होने वाली पत्नी को नहीं कहेगा । उसके इस दुस्साहस के लिए उसे अपने घरवालों गाँव वालों और गाँव के पंचों तक से लोहा लेना पड़ा लेकिन वो अपनी इस प्रतिज्ञा पर अडिग रहा ।विवेक की शादी मई में होनी है किन्तु उसने जो भीष्म प्रतिज्ञा कर ली है उसका पालन वह हर हाल में करना चाहता है । इस घिनौनी प्रथा को जड़ से समाप्त करने के लिए विवेक ने “STOP THE RICHUALS” नामक एक व्हाट्स-अप ग्रुप भी बनाया है । शुरू शुरू में तो इसमें कुछ दिनों में मात्र 10 ही लोग जुड़े किन्तु धीरे धीरे ये संख्या अब 50 पार कर चुकी है।एक अच्छी बात यह भी है कि इस ग्रुप में 15 लड़कियां भी शामिल हो गई हैं जो इस प्रथा के विरुद्ध खड़ी हैं। ये ग्रुप सिर्फ़ यहीं तक सिमित नहीं रहा इसने कुछ शादियों में इस प्रथा के विरुद्ध पुलिस में भी शिकायत दर्ज करायी किन्तु पुलिस का उचित सहयोग नहीं मिल पाया है । इसी ग्रुप के एक सदस्य प्रशांत की शादी भी अप्रैल में हैं और वो भी इस गली सड़ी प्रथा के विरोध में खड़े हो गए हैं जिसका प्रतिकूल प्रभाव भी उनके परिवार पर पड़ रहा है किन्तु वे टस से मस होने को तैयार नहीं दीखते। प्रशांत बताते हैं कि महाराष्ट्र सरकार के कानून के मुताबिक पंच कोई भी फ़ैसला नहीं कर सकते और ना ही उनके द्वारा दिए गए किसी फ़ैसले को मानने के लिए कोई बाध्य है यहाँ तक कि उस फ़ैसले को अदालत में चुनौती दी जा सकती है किन्तु इन सब के बावजूद अभी तक ये प्रथा जारी है। एक तरफ़ सरकार बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ के अभियान में दम ख़म ठोक रही है वहीँ इस तरह की घटनाएँ पुरे देश को शर्मिंदा कर रहीं हैं ।
-प्रदीप भट्ट- शनिवार ,फ़रवरी 17,2018-
अपनी बेबाक राय अवश्य रखे किन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि आपकी बेबाक राय से व्यक्ति विशेष के सम्मान को ठेस न लगे । हम अपनी स्व्तंत्रता के प्रति सजग रहे किन्तु दूसरों कि स्वतन्त्रता मे बाधक भी न बने ।
Saturday, 17 February 2018
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ कौमार्य परिक्षण भी करवाओ
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