Tuesday, 10 January 2017

आखिर इस मर्ज़ की दवा क्या है




आख़िर इस मर्ज की दावा क्या है




कल ट्विटर पर एक खबर ट्रोल होती रही कि कोलकत्ता स्थित टीपू सुल्तान मस्जिद के शाही ? इमाम सैय्यद मौहम्मद नुरुर रहमान बरकती ने प्रधानमंत्री मोदी के विषय में बहुत ही अभ्रद टिपण्णी की
क्या बात सिर्फ अभद्र टिपण्णी तक कि है या ये इससे कुछ ज्यादा ही थी खैर शाम को ९ बजे ज़ी टी वी  पर पूरा मामला समझ में आया कि कैसे एक कुएं का मेढ़क चिल्लाकर कोलकाता की एक मुख्य मस्जिद के इमाम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ फतवाजारी करते हुए आरोप लगाया कि मोदी ने नोटबंदी के जरिए लोगों को ठगाहै। भाजपा ने इमाम की गिरफ्तारी की मांग की है।  इस दौरान स्टेज पर तृणमूल कांग्रेस के सांसद इदरीस अली उनके बगल में बैठे थे और तालियाँ बजाकर उस बदतमीज इमाम की हौसला अफजाई कर रहे थे।
  आखरी ये कैसे संभव है कि भारतवर्ष के ३० राज्यों में से एक की मुख्यमंत्री देश के प्रधानमंत्री के विषय में अनाप-शनाप बोले और उन्हीं की तर्ज पर एक अदना सा इमाम  
दिसंबर के पहले हफ्ते में मेरे पास व्हाट्सअप एक लगभग ५ मिनिट का विडियो आया जिसमें बताया गया कि एक मारवाड़ी लड़की ने एक मुस्लिम से शादी की है और उस मारवाड़ी लड़की ने बुर्का न पहनने का फैसला किया जिसके विरोध में उसके ससुराल वाले,उसका अपना पति भी इस बात से खफ़ा था कि वो बुर्का क्यों नहीं पहन रही है और इसी बहस में उसे घर से बाहर लाकर भीड़ के सामने उसे मारा पिटा गया और अंत में जलाकर मार दिया गया उस विडियो में दिखाया गया था कि कैसे एक लड़की को पहले मारा पिटा जा रहा है फिर एक आदमी (पिशाच कहना ज्यादा उपयुक्त होगा)उस लड़की पर पेट्रोल डाल देता है वो लड़की चीख-चिल्ला रही है और गिर जाती हैं फिर एक दूसरा  नर- पिशाच  कैसे उस जलती हुई लड़की पर दुबारा पेट्रोल डाल देता है वह पुन: चीखती है और फिर शांत हो जाती है उस विडियो में हजारों की भीड़ बस तमाशबीन बनी रहती है कोई क्यों कुछ नहीं बोलता या करता शायद उस निर्मम दृश्य और नर-पिशाचों के आगे सब अपने आप को असहाय महसूस करते होंगे किन्तु यही वाकया यदि उनकी अपनी बेटी या पत्नी के साथ होता तो ?यदि इसका जवाब हाँ है तो ये एक ज्वलंत प्रश्न हो जाता है कि क्या कलियुग वास्तव में अपनी दस्तक दे चुका है या अपने पुरे यौवन पर हैआगे बढने से पहले मै आपको पश्चिम बंगाल में लगातार हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों की ख़बरों से रूबरू कराना चाहता हूँ
सितम्बर-2010 में उत्तरी 24 परगना जिले में तेगंगा ब्लाक के आठ गांवों में सांप्रदायिक हिंसा कि घटनाएँ हुई इस घटना में हिन्दुओं के साथ मुस्लिमों ने कैसे अत्याचार किये उसे सिर्फ एक ही नाम से पहचाना जा सकता है विभत्सतता। उस समय वहां CPM सत्ता में थी। लगभग 2 वर्ष पूर्व भी मुर्शिदाबाद के नवदा थाना में छोपुर गाँव में जमकर हिंसा में और हिन्दुओं को न केवल मारा पिटा गया  वरन उनके घरों को भी जला दिया गया उसके बाद तारानगर में भी यही हाल हुआ तारापुर में तो पुरुषों के साथ साथ महिलाओं के साथ ज्यादती की गई  19 फरवरी-2016 को मुस्लिम कट्टरपंथिओं ने चार गांवों पर न केवल हमला किया गया वरन 250 से अधिक हिन्दू परिवारों के घरों को चुन चुन कर जलाया गया फिर 14 मई -2016 को 24 परगना जिले के तर्नाग्र और रूपनगर नामक दो गांवों में जमकर उत्पात मचाया गया बंगाल की पूर्ववर्ती और तत्कालीन सरकारें ऐसी घटनाओं को हमेशा से दबाती आई हैं क्योंकि ये उनके हित में हैं। इसी से ये लोग अपनी राजनीति चमका रहे हैं। बंगाल की मीडिया भी बंगाल में लगातार बढ़ रही सांप्रदायिक हिंसा की खबरों को सामने नहीं लाने दे रही हैं। सरकार, प्रशासन और मीडिया की निष्क्रियता का ही नमूना है कि 19 तारीख को कलकत्ता से मात्र 60 किमी की दूरी पर ही कैनिंग थाने के 4 गांवों में पहले हिंदू घरों को लूटा और फिर जलाया गया। पीड़ितों औऱ स्थानीय लोगों ने बताया कि कलकत्ता से करीब 150 ट्रकों में मुस्लिम दंगाई आए थे। किसी ने भी उन्हें नहीं रोका। दंगाइयों ने पहले जमकर लूटपाट की और जो भारी समान लूट नहीं सके जैसे धान आदि को पेट्रोल छिड़क के आग लगा दी गई। पुलिस मूक दर्शकों की तरह यह सब होता हुआ देखती रही। बंगाल की पूर्ववर्ती और तत्कालीन सरकारें ऐसी घटनाओं को हमेशा से दबाती आई हैं क्योंकि ये उनके हित में हैं।
कलकत्ता पोर्ट एरिया के डिप्युटी कमिश्नर विनोद मेहता की बहुत ही नृशंसता के साथ हत्या कर दी थी। उसके बाद उनके शरीर के टुकड़े टुकड़े किए, उनका लिंग काट लिया और शरीर को सिगरेट से दागा था। इतनी नृशंस हत्या के बाद भी इसको दबाया गयाइस विषय में ये विशेष है कि बदरुद्दीन अजमल जो की महाराष्ट में रहता है और अपनी राजनीती चमकाने और अपनी पार्टी को लॉन्च करने के लिए के लिए वो कलकत्ता गया । बंगाल के एक और सांप्रदायिक मुस्लिम नेता है, उनका नाम है पी डी चौधरी है। उन्होंने एक पार्टी बनाई थी जिसे उन्होंने बदरुद्दीन अजमल की पार्टी में विलीन कर दिया था लेकिन इस घटना में जो तृणमूल और सीपीएम में जो बड़े मुस्लिम नेता हैं, ये उनका षड़यंत्र है।  और तो और स्वयं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जो स्वयं को सेकुलर कहती हैं, हिजाब पहन के नमाज़ पढ़ने जाती हैं। मुस्लिम छात्रों के लिए अलग से स्टाईपेंड, साइकिल, इमाम भत्ता और आदि सुविधाएं देती हैं, जो अन्य वर्गों को नहीं दी जा रही है। हाल ही में हुए जहरीली शराब कांड के पीछे भी घोरा बादशाह जो की एक असामाजिक तत्व था और  जो शराब का अवैध व्यापार कर रहा था। हादसे के बाद तृणमूल सरकार ने ऐसे असामाजिक तत्वों को 2-2 लाख रुपये का मुआवजा दिया है।
उपरोक्त घटनों पर पश्चिम बंगाल और आन्ध्र प्रदेश की सरकार ने क्या कार्रवाई की और भारत सरकार ने क्या किया। कहीं भी किसी भी प्रिंट या इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर ये खबर क्यों कर नहीं आयी या आने नहीं दिया गया। मैंने हैदराबाद की घटना को फ़ेस बुक पर भी पोस्ट किया लेकिन किसी ने भी इतनी ज़हमत नहीं उठाई कि उस घटना पर अपना कोई नजरिया ही रख देते।आखिर हिंदुस्तान में क्या सिर्फ़ मुस्लिम मानसिकता ही चलेगी आखिर वोट वोट और सिर्फ़ वोट के लिए तो हिन्दुओं के लिए क्या फर्क रह जायेगा कि केंद्र और राज्य में किस पार्टी की सरकार है । जिसे भी देखो वो मुस्लिम तुष्टिकरण में लगा हुआ है। तो हिन्दू और भारत में रहने वाली अन्य जातियां और समुदाय कहाँ जाएँ। मुस्लिम तुष्टिकरण की इंतेहा तो पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और उत्तर प्रदेश में सपा ने वैसे ही कर रक्खी है जितने क़ायदे कानून हैं सिर्फ़ हिन्दुओं के लिए मुसलमानों के लिए कुछ भी नहीं। यकीं नहीं आता तो पश्चिम बंगाल में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों की खबरों से करे वैसे तो ज़ी टीवी को छोड़कर कोई भी इस तरह की कवरेज दिखाने से बचना चाह रहा है गोया के अगर उन्होंने हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों पर कोई ख़बर प्रचारित या प्रसारित कर दी तो देश में असहिउष्णता फ़ैल जायेगी।
भारतीय मीडिया गुजरात दंगों पर एक तरफा रिपोर्ट करती है और दूसरी तरफ बंगाल में लगातार हो रहे हिंदू विरोधी दंगों पर कोई कवरेज नहीं कर रही, क्या मीडिया के ये दोहरे मापदंड नहीं  दरअसल मीडिया कवरेज नहीं करने का जो कारण ये मीडिया संसथान दे रहे हैं  वह ये है कि इसको राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित करने से दंगे भड़क सकते हैं। मीडिया का कहना है कि वह रेगुलेशन के तहत कवरेज नहीं कर रही है। वैसे मीडिया से ये पूछना चाहिए कि रेगुलेशन किसकी है। प्रेस कॉन्सिल ऑफ इंडिया भारत सरकार के अंतर्गत काम कर रही है या पश्चिम बंगाल सरकार के मीडिया ये झूठ कह रही है, कोई रेगुलेशन नहीं आई है। घटना को रिपोर्ट करना आपका नैतिक उत्तरदायित्व है पर भारतीय मीडिया ने नहीं किया है। मीडिया भी मुसलमानों और तत्कालीन सरकार के प्रभाव में है। जो बंगाल का लीडिंग मीडिया संस्थान आनंद बाजार पत्रिका का रुख हमेशा से हिंदू विरोधी रहा है। वह बहुसंख्यक आबादी की आस्था पर लगातार कुठाराघात करने वाले देवी-देवता विरोधी लेख लिखते रहते हैं, लेकिन किसी मीडिया की मुस्लिम धर्म के विरूद्ध लिखने की हिम्मत नहीं होती है। बंगाल मीडिया उनकी लगातार गलत हरकतों को दबाता आया है।  

और अंत में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक व्यक्ति ने टीवी पर कहा कि उसका बस चले तो वो ओबामा को जान से मार दे और आप को इस बात पर यकींन करना पड़ेगा कि अगले एक घंटे में वो व्यक्ति फेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन की कैद में था। जब कि अमेरिका विश्व का दूसरा लोकतान्त्रिक देश हैं और भारत प्रथम पायदान पर और अंतर आप स्वम देख लीजिये । आखिर क्या कारण है कि कोई भी ऐरा गैर टुच्चा सा इमाम इतना साहस कर लेता है कि वो १३२ करोड़ भारतीय लोगों के प्रधानमंत्री को अभद्र टिपण्णी से नवाजता है और कोई कुछ नहीं कहता। क्यों नहीं उस सैय्यद मौहम्मद नुरुर रहमान बरकती की दाढ़ी नोचकर उसके पिछवाड़े में चिपका देता क्या भारत सरकार भी पश्चिम बंगाल सरकार की तरह ही बर्ताव करेगी?


::: प्रदीप भट्ट :::

                                                     10.01.2017

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