Monday, 30 November 2015

जूती खाए कपाल




“ रहिमन जिव्हा बावरी कह गई सरग पाताल
आप  कह भीतर  भाई जूती खाये कपाल
    रहीम दस जी ने सेकड़ों वर्षो पूर्व जो अपने अनुभव से लिखा उस पर आज के मौहल  मे ज्यादा तवाव्ज्जो दिये जाने की जरूरत है । जिसे भी देखिए बिना किसी विषय की जानकारी के अनाप-शनाप बके जा रहा है, और आजकल तो समाजपरक माध्यम (Social media) का चलन हमारे रोज़मर्रा के जीवन में कुछ इस कदर हो गया है कि यंग जेनेरेशन सुबह का सूरज देखे न देखे अपने एलेक्ट्रोनिक गजेट्स मुंह अंधेरे ही देखने की  आदि हो चुकी है । घर से बाहर पाँव निकालने से पहले अगर कोई एक वस्तु कि उन्हे सबसे ज्यादा चिंता होती है तो वह है चलायमन/भ्रमणकारी/चपल/चर/जंगम न न घबराइए नहीं ये एक ही गजेट्स Mobile” के हिन्दी नाम हैं। खैर बदलाव प्रकर्ति का नियम है। बदलाव हो रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे।

     अब बात करते हैं दो विशेष घटनाओ कि कल एक मौलवी  साहब (नाम याद नहीं आ रहा, वैसे भी ऐसे लोगो का नाम याद भी क्यों रखना)TV पर गला फाड़ –फाड़ कर चिल्ला रहे थे कि औरतें तो बच्चा पैदा करने कि मशीन मात्र है । स्त्री और पुरुष कि बराबरी कभी नहीं हो सकती। निश्चित  रूप से उन्होने इसके आगे और पीछे भी कुछ कहा होगा जो कर्णप्रिय तो कदापि नहीं होगा । अब प्रश्न ये है कि परसो से आज तक किसी भी माध्यम मे किसी भी बुद्धिजीवी ने ,मुस्लिम धर्म गुरुओ ने,साहित्यकारों ने अपना विरोध दर्ज क्यो नहीं कराया। किसी हिन्दू धर्म गुरु से इस पर टिप्पणी कि अपेक्षा तो मै वैसे भी नहीं कर रहा हूँ क्यो कि अगर ऐसा हुआ होता तो अब तक छ्द्म बुद्धिजीवी और साहित्यकार उनकी लानत-अमानत कर डालते। किन्तु सबसे ज्यादा आश्चर्य इस बात का हुआ शबाना आज़मी जो मशहूर शायर कैफ़ी आज़मी कि सुपुत्री हैं और मशहूर लेखक और गीतकार जावेद अख्तर कि बीवी हैं, ने भी अभी तक इस पर कोई टीका-टिप्पणी क्यों नहीं की जब कि वे इस तरह के ज्वलंत मुद्दे पर सदैव मुखर रही हैं। और भी न जाने कितने ऐसे महारथी है जिनहे इस भद्दी एवम बेहूदी बात के लिए उन मौलाना को  लताड़ा जाना चाहिए थे किन्तु ऐसा नहीं होने से  निश्चित रूप से एक सहिष्णु देश के बुद्धिजीवी,साहित्कारों, नेताओ और  महिला मोर्चा के केन्द्रीय व राज्य स्तरीय अधिकारियों ठंडे रवैये ने शर्मसार ही किया है। एक शेर याद आ रहा है :-
मुर्दा पड़े हैं लफ़्ज़ किताबों कि कब्र मे ।
लाशों का एक शहर है जो बोलता नहीं ।।

     अब बात दूसरी घटना की जो श्रीमान फारुख अब्दुल्लाह, पूर्व मुखमंत्री जम्मू एंड कश्मीर के एक बयान से उत्पन्न हुई । उनका ये बयान कि “ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर पाकिस्तान का हक है, जब कि जम्मू एंड कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है उनके इस वक्तव्य ने और आग मे घी का कम किया कि “भारत कि सारी सेना मिलकर भी आतंकवादियों का मुक़ाबला नहीं कर सकती।

     फारुख अब्दुल्लाह पहले भी ऐसे बयान देते रहे हैं या इसे इस तरह कहा जाए कि वे इस तरह के बयान देने के लिए ही जाने जाते हैं। किन्तु एक प्रश्न फिर खड़ा हो जाता है कि आखिर वो इस प्रकार के बयान देकर  साबित क्या करना चाहते हैं। जब जब भी कश्मीर मे कोई समस्या उत्पन्न होती है तो ज्ञात होता है कि फारुख अब्दुल्लाह साहब तो लंदन मे छूटियाँ माना रहे हैं और गोल्फ खेल रहे हैं । आश्चर्य इस बात का ज्यादा है कि वे भूल जाते हैं कि जिस आर्मी कि क्षमता पर वे सवालिया निशान खड़ा कर रहे हैं उसी आर्मी कि बदौलत ही आज कश्मीर फिर उठ खड़े होने कि चेष्टा कर रहा है। कौन भूल सकता है पिछले वर्ष की बाढ़ की भयावहता जब सारे रास्ते बंद हो रहे थे तब भारतीय सेना ने ही मोर्चा संभाला और कश्मीर के जन जन तक अपनी पहुँच ही नहीं बधाई वरन उनकी दुआएं भी लीं। तब ऐसी कर्मठ  सेना पर सवालिया निशान क्यों और उनकी हैसियत ही क्या है इस तरह का प्रश्न करने की ।

अंत मे उनके इस वक्तव्य पर एक बात अवश्य कि “ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर पर पाकिस्तान का हक है, जब कि जम्मू एंड कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है मुझे उनकी मानसिकता और साथ मे उनके दिमागी दिवालियेपन पर तरस आता हैं किन्तु इस तरह का बयान अगर एक राजनेता देता है तो ये सोचने का विषय है कि वो भारतीय  संविधान की शपथ लेकर इस प्रकार का देशद्रोह पूर्ण बयान कैसे दे सकता है, और भारत सरकार उनके इस बयान को कैसे ट्रीट करती है।

     उपरोक्त दोनों ही घटनाओ पर मै अपने रोष प्रकट करता हूँ।


:::::प्रदीप  भट्ट ::::30.11.2015

Thursday, 26 November 2015

आमिर खान






अतुल्य भारत को असहिष्णु और असंवेदनशील भारत
बनाने का कुत्सित प्रयास करते  कुछ पोंगा पंडित

     अब जब बिहार चुनाव खत्म हो चुके हैं तो  मुझे यही लगा कि चलो देश मे पिछले कुछ दिनो से जारी प्रलाप कि देश मे असहिष्णुता और असंवेदनशीलता बहुत है या बढ़ गई है जैसे मुद्दे गौण हो चुके होंगे किन्तु तभी गोयनका के एक मीडिया कार्यक्रम मे श्रीमान आमिर खान जिन्हे लोग वास्तविक बुद्धिजीवी और Mr. perfectionist  के नाम से  से भी पुकारते है ने सवाल जवाब के दौरान यह कहकर हंगामा खड़ा कर दिया कि उनकी दूसरी धर्मपत्नी किरण राव आजकल के (पिछले सात –आठ माह )  असहिष्णुता और असंवेदनशीलता माहोल मे समाचार पत्र पढ़ने से डरती है और उसे अपनी और बच्चो कि फ़िक्र रहती है साथ ही उन्होने किसी दूसरे देश मे शिफ्ट होने कि भी संभावना जताई। कुछ कहने सुनने से पहले आइये हम कुछ बातो पर गौर कर लेते हैं। प्रथम तो आमिर कि 1984 से आज तक कि स्थिति क्या है और दूसरे देश छोडने कि संभावना के बारे मे। क्यों कि भारत मे मुस्लिमो का आगमन 711 ईस्वी मे हुआ था । आइये प्रथम आमिर कि उपलब्धियों के विषय मे :-


     1984 मे केतन मेहता कि होली फिल्म से आमिर ने आगाज किया।1988 मे कयामत से कयामत तक से प्रसिद्धि का स्वाद चखा ।1989 के फिल्म राख के लिए उन्हे स्पेशल जूरी अवार्ड मिला । मोहम्मद आमिर हुसैन  खान  को अब तक 7 फिल्म फेयर अवार्ड और 4 बार नेशनल अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। 2003 मे पदमश्री  और 2010 मे  पदम विभूषण से भारत सरकार ने उन्हे सम्मानित किया है ।प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वच्छ भारत अभियान के प्रथम 9 राजदूतों मे उन्हे शामिल किया गया है । अतुलय भारत अभियान के ब्रांड एंबेसडर और जाने क्या क्या । अब बात करते हैं भारत छोडने के विषय कि तो पहले ये देख ले कि भारत मे मुस्लिम कब आए उनकी पहले और अब क्या स्थिति है।

भारत मे लगभग 711 ईस्वी मे मुसलमानो का प्रवेश हुआ। इसी वर्ष वे स्पेन मे भी दाखिल हुए ।उनके प्रवेश का कारण भी समुद्री लुटेरो के द्वारा उनके पानी  के जहाजो लूट लिया जाना था । जब सभी प्रयास विफल हो गए  तो बगदाद के हज्जाज बिन युसुफ ने एक छोटी सेना के साथ मोहम्मद बिन कासिम ने  राजा दहिर को हरा कर 713 ईस्वी मे जीत हासिल ही नहीं की वरन सिंध और  पंजाब के अनय राज्यो से लेकर कश्मीर तक अपना राजी स्थापित किया ।

     मलबार में ही एक कम्युनिटी ऐसी भी थी जो वहां चक्रवर्ती सम्राट फ़र्मस के हज़रत मुहम्मद (ईश्वर की उन पर शांति हो) के हाथों इस्लाम कुबुल करने के बाद से रह रही थी. सन् 713 CE से भारत में मुस्लिम साम्राज्य का आगाज़ हो चुका था जो की सन् 1857 तक जारी रहा, यह सफ़र कुछ ऐसे रहा कि कई और मुस्लिम शासक आये जो कि अपने ही मुस्लिम भाईयों से लड़े और अपना साम्राज्य फैलाया फिर चाहे वो मध्य एशिया के तुर्क हों,अफ़गान हों, मंगोल की संताने हों या मुग़ल. 

   
     ग्यारहवीं शताब्दी में मुस्लिम शासकों ने दिल्ली को भारत की राजधानी बनाया जो कि बाद में मुग़ल शासकों की भी देश की राजधानी रही और सन् 1857 तक रही जब बहादुर शाह ज़फर को अंग्रेजों ने पदच्युत कर दिया. अल्हम्दुलिल्लाह, दिल्ली आज भी हमारे वर्तमान भारत देश की राजधानी है. दो सदी पहले भारत के सम्राट अकबर के द्वारा कुछ अंग्रेजों को यहाँ रुकने की इजाज़त दी गयी थी. इसके दो दशक बाद ही अंग्रेजों ने भारत के छोटे छोटे राजाओं और नवाबों से सांठ-गाँठ कर ली और मुग़ल और मुग़ल शासकों के खिलाफ़ राजाओं और नवाबों की सेना की ताक़त बढ़ाने की नियत से उन पर खर्च करना शुरू कर दिया और मुग़ल शासक अंग्रेज़ों से दो सदी तक लड़ते रहे और आखिरी में सन् 1857 में अंग्रेज़ों ने मुग़ल साम्राज्य का अंत कर दिया.

     1947 मे अंग्रेज़ो द्वारा और कुछ फिरकापरस्त लोगो की महत्वकान्शओ के फलस्वरूप भारत वर्ष के धार्मिक आधार पर दो हिस्से हुए तत्पश्चात पाकिस्तान द्वारा पूर्वी पाकिस्तान के लोगो पर ज़ुल्म की इंतेहा की गई।लाखो की तादाद मे औरतों और बच्चियो के साथ पाशविक तरीके से बलात्कार किया गया मर्दो को सारे आम गोली से उड़ा दिया गया परिणाम स्वरूप 1971 मे पाकिस्तान के टूट कर बंगदेश नमक देश का जन्म हुआ । आज भी भारत मे मुसलमानो की दूसरी सबसे ज्यादा आबादी निवास करती है। पूरे विश्व मे भारत का मुसलमान ज्यादा अधिकार सम्पन्न ज्यादा स्वतंत्र व अपने आप को और कहीं से ज्यादा सुरक्षित महसूस करता है।

     अब बात करते हैं मोहम्मद आमिर हुसैन  खान की। आमिर खान ने जो भी कुछ कहा मुझे तो वो उनकी upcoming फिल्म दंगल  “ की पब्लिसिटी ज्यादा लगती है । क्यो की जो लोग उन्हे जानते हैं वो समझ सकते हैं आमिर अपनी फिल्म के लिए कोई भी रूप धारण कर लोगो के बीच पहुँच जाते हैं निश्चित रूप से अपनी फिल्मों को प्रमोट करने का उनका अपना अलग तरीका रहा है जिसमे आज तक वे कामयाब भी रहे हैं। किन्तु इस उनकी टाइमिंग गलत हो गई है । जिसका नतीजा तो उन्हे भुगतना ही पड़ेगा ।अब ऐसा तो हो नहीं सकता न कि मीठा मीठा गप्प गप्प और कड़वा कड़वा थू थू अब वो लाख कहते फिरे कि ये देश मेरा है, मै इसका हूँ और मै इसे छोडकर कही नहीं जाऊंगा ।

     जिस देश कि जनता ने उन्हे तीन दशको से सिर पर बैठकर रखा है वो एक ही झटके मे कैसे नीचे गिरती है उन्हे इसका भी तो अहसास होना चाहिए। उनका ये कहना कि मैंने तो अपने दिल कि बात कही उस पर इतना बवाल क्यों। अरे भाई जनता भी तो अपने दिल कि बात कह रही है फिर आपको इतना परेशान होने कि क्या ज़रूरत है।

     अंत मे उनकी मंद बुद्धि कि जानकारी के लिए कि भारत मे जब 1975 मे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इन्दिरा गांधी ने देश मे आपातकाल लगाया था तब उनके पुत्र स्वर्गीय संजय गांधी ने प्रसिद्ध गायक किशोर कुमार के गानो पर आकाशवाणी व दूरदर्शन पर पाबंदी लगा दी थी । तब थी  देश मे सही मायनों मे असहिष्णुता और असंवेदनशीलता।1984 मे जब सिक्खो को जिंदा ही जला दिया गया तब थी देश मे सही मायनों मे असहिष्णुता और असंवेदनशीलता।1988 से शुरुआत करते हुए लाखो कश्मीरी पंडितो को मार दिया गया उनकी बहू बेटियो कि इज्ज़त लूट ली गई उन्हे घर से बेघर कर दिया गया तब थी  देश मे सही मायनों मे असहिष्णुता और असंवेदनशीलता।

     कश्मीर कि विधानसभा पर हमला,13/12/2001 देश की संसद पर हमला, देश मे अलग अलग स्थानो पर बम धमाके,13/7/2006 मुंबई मे ट्रेन मे बम विस्फोट और 26/11/2008 मुंबई पर पाकिस्तान से आए 10 आतंकवादियो का हमला और अंतिम भारत की सीमा पर पाकिस्तनी सेना द्वारा अकारण फाइरिंग हमारे जवानो का सिर कलाम करना और भारत द्वारा प्रतिवाद न कर बातचीत के रास्ते तलाशना। इसे आप क्या कहेंगे महाराज ?


     अब आते हैं अंतिम बात पर आपने रीना दत्ता से जो की हिन्दू है शादी की उससे हुए दो बच्चो का हिन्दू नाम न रखकर मुस्लिम नाम रखा फिर रीना को तलाक देकर आंध्र प्रदेश की किरण राव से शादी की जिससे आपको एक संतान प्राप्त हुई । ये सब आप कर सके क्यों की आप भारत जैसे सहिष्णु एवम संवेदनशील देश मे पैदा हुए। अब असहिष्णुता और असंवेदनशीलता तो किरण राव के अंदर होनी चाहिए कि क्या पता आप उसे कब तलाक तलाक तलाक बोले और तीसरी ले आएँ। इसके बावजूद भी अगर आपको और किरण राव को ऐसा लगता है कि उन्हे भारतवर्ष छोड़ देना चाहिए तो छोड़ दें। जाने कितने लोग भारत वर्ष छोडकर विदेशो मे बस चुके हैं इसके लिए मीडिया के कार्यक्रम कि क्या ज़रूरत है। और हाँ देश छोडने से पहले ये विचार अवश्य कर ले कि अगर वहाँ जहां आप जाकर बसना चाहते हैं वास्तव मे महोल आपके अनुरूप न होकर असहिष्णुतादी और असंवेदनशीलता से लबरेज मिला तो आपकी स्थिति क्या होगी । “धोबी का ...... न घर का न घाट का “ अपने साथ सईद मिर्जा और महेश भट्ट जैसे पोंगा पंडितो को अवशय ले जाए ।



::: प्रदीप भट्ट :::: 26/11/2015

Monday, 9 November 2015

बीती ताहिं बिसार दे



“ बीती ताहीं बिसर दे आगे की सुध ले “
     चलिए पिछले कुछ दिनो से जारी महाभारत का आखिरकार पटापेक्ष हो ही गया । महागठबंधन ने 243 मे से 178 सीटें झटककर आने वाले दिनो मे देश की  राजनीति की कुछ कुछ दिशा और दशा दोनों ही बदलने के संकेत दिये हैं।

     आखिर बीजेपी से गलती कहाँ हो गई। शायद लोकसभा चुनाव जीतने के पश्चात बीजेपी मे कुछ लोगो को ये भरम हो गया है कि वो जो चाहें ,जैसा चाहे सबको तिगनी का नाच नाचते रहेंगे और और लोग लोकसभा कि तर्ज पर नाचते भी रहेंगे । किन्तु वे भूल गए कि राष्ट्रीय और प्रांतीय स्टार पर  होने वाले  चुनाव मे जमीन आसमान का अंतर होता है।  आश्चर्य तो इस बात का है कि वो दिल्ली मे लगभग सुपड़ा साफ होने के बाद भी बिहार चुनाव से पहले और चुनाव के दौरान भी वही सब गलतियाँ दोहराते रहे जिससे उन्हे बचने कि सख्त ज़रूरत थी।

     प्रशांत किशोर जिनहोने लोकसभा चुनाव मे यूएन कि सर्विस छोडकर श्री मोदी का पूरा साथ ही नहीं दिया वरन चुनाव कि पूरी व्हुहरचना रची उन्हे चुनाव उपरांत दूध मे से मक्खी कि तरह निकालकर फेंक दिया गया।जिसे बिहार चुनाव से पूर्व नितीश कुमार ने अपने गले लगा लिया । नतीजा सबके सामने है । लेकिन प्रशांत किशोर के रण–कौशल के अतिरिक्त भी नितीश कुमार कि जो अपनी छवि है कि वे बिहार मे विकास का रथ रुकने न देंगे का कथन महत्वपूर्ण रहा । जिनहोने भी 10 वर्ष पूर्व और हल के दिनो मे बिहार भ्रमण किया है उन्हे मानना पड़ेगा कि बिहार मे विकास का जो  रथ नितीश कुमार बीजेपी से साझीदार कि हैसियत से दौड़ा रहे थे उन्होने उसे बीजेपी से अलग होने के बाद भी मंथर नहीं पड़ने दिया ।

     राजनैतिक द्रष्टिकोण से असहिष्णुता और असंवेदनशीलता के मुद्दे को भले ही कुछ पार्टियो ने अपने –अपने फायदे के लिए भुनाया हो। किन्तु ये सही है कि वर्तमान मे या पिछले लगभग 18 माह मे देश का वातावरण ऐसा नहीं हुआ कि लोगो को अपनी बात कहने या लिखने मे परेशानी महसूस हुई हो। जिनको अपनी रोटियाँ सेकनी थी वो सेक चुके अब वो बीती बात हो जाएगी क्यो कि बिहार चुनाव समाप्त हो गया है ।
     बिहार चुनाव से बीजेपी को जो सबक लेने कि जरूरत है  वो है कि अनावश्यक रूप से अपने  सारे चैनल एक साथ न खोले क्यो कि आपके पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं। किसी भी चुनाव मे सरकारी कर्मचारी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जिनहे नज़रअंदाज़ करना ठीक नहीं है सातवें वेतन आयोग कि जो सिफ़ारिशे छन छन कर आ रही हैं उनसे आक्रोश ही बढ़ रहा है। दिल्ली और अब बिहार की शह उसका जीता –जागता उदाहरण है।

     लोकसभा चुनाव मे दागी लोगो को भविष्य मे खड़ा न करने का प्राण लेकर भी दिल्ली और अब बिहार चुनाव मे ज्यादा दागी लोगो को खड़ा करना क्या दर्शाता है । बिहार चुनाव मे वोटो के बदले स्कूटी या अन्य प्रलोभन देने की घोषणा करने से नुकसान ही हुआ है। 150 digital रथ अगर 75 सीटे भी न दिलवा सके तो ऐसे डिजिटलीकरण का क्या फायदा । फिर माझी जैसे साथी जो अपनी  सीट भी न  निकाल सके वो आपके किस का। 


     2016 मे पश्चिम बंगाल मे चुनाव है और 2017 मे उत्तर प्रदेश मे अब समय है ठंडे दिमाग से सही गुना भाग करने का सही  आकलन करने का कि कहाँ भूल-चूक हुई और भविष्य मे इससे कैसे निपटा जाये। तभी बीजेपी अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा बचाने मे सफल हो पायेगी।

Friday, 6 November 2015

माहौल ठीक है



“ गुलामो का हौसला तो देखिये कहते हैं मौहल ठीक नहीं है ” ?

भारतवर्ष ने जिस  तेजी से विश्व पटल पर जोरदार तरीके से अपनी उपस्थिती दर्ज कारवाई है । उससे कुछ देशो को अपने  पैरो के नीचे से ज़मीन ही खिसकती नज़र आ रही है। परिणाम स्वरूप कुछ देशो ने  असहिष्णुता और असंवेदनशीलता के मुद्दे पर भारत सरकार के विरुद्ध एक अभियान ही छेड़ दिया है जिसमे कुछ अहमक़ लोग उनका साथ देते दिखाई दे रहे हैं। निश्चित रूप से भारत सरकार के लिए ये एक चुनौती पूर्ण समय है जिससे वे देर सवेर  निकाल ही आएगी ।

       मुंबई मे पिछले दिनो जो  दो घटनाएं हुई, जाने अनजाने मे फालतू लोगों और संगठनों द्वारा दो धर्मो के मध्य  वैमनस्य फैलाने का और कुचक्र रचने का एक असफल प्रयास किया गया है। जिसे अभी तक असमाजिक तत्वो द्वारा ज्यादा हवा नहीं लग पाई या ये कहना ज्यादा उपयुक्त होगा की भारत सरकार/राज्य सरकार  ने ऐसे किसी भी प्रयास को फलीभूत नहीं होने दिया।

                     -खुर्शीद महमूद  कसूरी-

  पहली घटना श्रीमान खुर्शीद महमूद  कसूरी जो कि पाकिस्तान के पूर्व विदेशमंत्री रह चुके हैं की किताब  'Neither A Hawk Nor a Dove'.के विमोचन  की है जिसकी भारत मे समस्त तैयारियो को श्रीमान सुधिन्द्र कुलकर्णी  जो कि श्री अटल बिहारी बाजपई के नेत्रत्व मे बनी  एनडीए सरकार मे एक महतवपूर्ण पद पर आसीन रहे, देखरेख कर रहे थे, कुछ शिवसेनिकों ने उन पर स्याही फेंकी ही नहीं वरन स्याही मे उन्हे नहला ही दिया गया । आखिर ऐसा करने की उन्हे ज़रूरत ही  क्यों पड़ी, कारण स्पष्ट है। जब आपकी सरहद पर लगातार फायरिंग की जाती रही हो, आपके सैनिकों के सर कलाम किए जाते रहे हों  तो ये कैसे संभव है की भारत का आम आदमी चैन के साथ गुलाम अली की गजलों का लुत्फ उठाता रहे और श्रीमान कसूरी की किताब का विमोचन महज़ इसलिए करवाता रहे ताकि उन्हे भारत मे इस किताब की मार्केटिंग से धन की प्राप्ति हो सके । आखिर सहनशीलता की भी तो एक सीमा होती है ।


     दूसरी घटना  गुलाम अली जो पाकिस्तान नामक देश के गज़ल गायक हैं, का कार्यक्रम शिवसेना के विरोध के कारण रद्द कर दिया गया। इससे बस कुछ छद्म बुद्धिजीवियों और छद्म राजनैतिक पार्टियो को चिल-पों करने का अवसर मिल गया। ऐसा प्रतीत हुआ की यही वे  लोग हैं जो कलाकारों के क़द्रदान हैं। आनन फानन मे दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पश्चिम पंगल की सरकारों ने घोषणा कर दी की हम गुलाम अली के गज़ल कार्यक्रम को अपने – अपने प्रदेश मे करवाएँगे गोया वे ही सच्चे सहिष्णुता और संवेदनशीलता के धव्ज वाहक हों। इसी कडी मे 8 नवम्बर -2015 को दिल्ली मे  गुलाम अली का कार्यक्रम भी निश्चित कर दिया गया। किन्तु होनी को कौन टाल सकता है ।

      अब आप पाकिस्तान के गुलामो का हौसला  देखये जब तक भारत मे वे प्रवास पर थे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से मिलने पहुँच गए कि भैया हमारा गजल का प्रोग्राम करवा लो लेकिन जैसे ही वो वापिस पाकिस्तान पहुँच गए दिनक 4 नवम्बर -2015 को तुरंत  घोषणा कर दी कि भारत मे माहौल ठीक नहीं है। अतएव 8 नवम्बर 2015 को दिल्ली मे  होने वाला गजल का कार्यक्रम रद्द किया जाता है। अब इस स्थिति मे उन छद्म बुद्धिजीवियों और छद्म राजनैतिक पार्टियो के आला प्रवक्ताओ को निश्चित ही सुकून प्राप्त हुआ होगा क्यो कि वो यही तो चाहते हैं। मगर इससे भी ज्यादा कमाल ये जानकार हुआ कि 3 दिसम्बर -2015 को उत्तर प्रदेश सरकार  लखनऊ मे जनाब गुलाम अगली का गजल कार्यक्रम करवा रही है। इसका तरत्पर्य तो ये हुआ कि 3 दिसम्बर तक भारत मे असहिष्णुता और असंवेदनशीलता का मौहल खत्म हो जाएगा। अगर ऐसा है तो ये विचारणीय प्रश्न है कि कहीं वर्तमान माहौल को बिगड़ने मे कुछ असहिष्णुता और असंवेदनशीलता लगा का हाथ तो नहीं अगर ऐसा है तो मेरी आशंका सही है। क्यो कि ऐसे लोगों को  अपने देश कि इज्ज़त कि  चिंता न पहले थी न अब है।

     नित नये विवाद उत्पन्न करना कुछ लोगों का शगल बन गया है। दूसरों के इशारो पर चलने वाले इस देश मे पहले भी थे और अब भी बहुत हैं। ज़रूरत है ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार करने की।इस पुनीत कार्य मे मीडिया का सहयोग अत्यावश्यक है। क्यों कि वर्तमान समय मे अपने व्यकितगत अंतर्विरोधों को एक तरफ रखकर देश हित मे कार्य करना ही वक्त कि मांग है ।

::::प्रदीप भट्ट::::06.11.2015