Wednesday, 4 September 2024

"ज़रूरी नहीं कवि ही बनो "


         रिपोर्ताज 

        "ज़रूरी नहीं कवि ही बनो"  

        दादा 1 सितंबर को राब्ता प्राईम का कार्यक्रम रक्खा है। अब शिवम का फोन आया तो मना करने का प्रश्न ही नहीं फिर भी मैंने हँसते हुए पूछ ही लिया बालक वेन्यू तो पालम ही होगा मगर मेन्यू, अब 😁खिलखिलाने की बारी शिवम की थी बोला दादा मेन्यू बढ़िया ही होगा। शायद उसे भी समझ आ गया था कि भूखे पेट तो कविता पढ़ी न जाएगी। शाम को फिर मुबलिया घनघना उठा, दुष्यंत जी के अवतरण दिवस पर कार्यक्रम का निमन्त्रण था चूँकि समय मैच  नहीं हो  रहा था इसलिए विनम्रता से मना कर दिया। अपनी आदत अनुसार हम सुबह 6:15 एक गिलास दुग्ध और जन्माष्टमी के बचे लड्डू का भोग लगाकर निकल पड़े। 8 बजे की ब्ला ब्ला ली और सीधे आई पी एक्सटेंशन दिल्ली वहां से पिंक लाईन ली और दिल्ली कैंट 🤤 बस पूछो मति हुजूर भयंकर वाली गलती हो गई  होज ख़ास से मेट्रो चेंज करनी थी लेकिन.... अब दिल्ली कैंट से राजौरी गार्डन से पालम समय 11:15 यानि 15 मिनिट लेट 😱। अच्छी बात ये हुई कि कार्यक्रम भी 11 की जगह 11.30 हो गया इज्ज़त में दाग लगने से बच गया। ख़ैर हमने हॉल में अपने चरण रक्खे तो प्रिय  शिवम ने स्वागत किया साथ में नीलम 'बावरा मन' ज़ी से परिचय हुआ अलग से। 🫠

       पाँच मिनिट पाँच करते करते आख़िरकार 12:10 पर प्रिय शिवम ने माइक संभाला और पहला धमाका किया कि आज सूत्रधार की भूमिका मैं स्वयं वहन करूँगा तालियों की ध्वनि से अंदाज़ा हो गया कि उपस्थित सभी प्राईम मेंबर ने अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी है।  धीरे धीरे हॉल अपना आकार लेने लगा। शिवम ने राब्ता की अभी तक की जर्नी के विषय में बताया फिर उन चुनिंदा नामों जिक्र किया जो विपरित परिस्थितियों में भी शिवम के साथ खड़े रहे। निश्चित ये एक अच्छा अनुभव रहा। कार्यक्रम शुरू हुआ फिर धीरे धीरे लय पकड़ने लगा।एक के बाद एक बेहतरीन प्रस्तुतियां। लेकिन लेकिन लेकिन सिर्फ़ एक मोहतरमा की प्रस्तुति ने ये संदेश भी दिया कि लोग अभी भी उसी बने बनाए ढर्रे पर चल रहे हैं जहाँ किसी भी फिल्मी गाने पर अपने बेतुके शब्दों को चिपका दो फिर प्रोफेशनल गायक की तरह माइक पकड़ कर सारी गायिकी श्रोताओं पर उल्ट दो। निश्चित इससे कार्यक्रम की गरिमा के साथ साथ राब्ता की गरिमा भी kampromaiz 😡होती है। इसी तरह एक मोहतरमा बंगाल की बेटी पर एक लम्बी कविता पढ़ गईं । पढ़ी तो कोई बात नहीं लेकिन उस डॉक्टर बेटी का नाम लेने की क्या जरूरत थी उन्हें मालूम है कि सब रिकार्ड हो रहा है उनके खिलाफ़ एक्शन भी हो सकता है किन्तु ......। भविष्य में इस पर ध्यान दिये जाने की ज़रूरत है। वैसे भी ज़रूरी नहीं आप कवि ही बने कुछ और भी बनकर देख लो भाई !

        विवेक जी, राधा कौशिक अर्चना झा,अमृता अमृत, नवीन bagga,गोल्डी गीतकार, खुर्रम नूर, सुधा बसोर,दीपिका,पूनम सिंह, लीजा खान, प्रभा झा, नलिनी राज, स्नेह लता पाण्डेय, रंजना मजूमदार, एन सी खण्डेलवाल, प्रेम चौधरी, गुरमीत सिंह ढोट, अरुण श्रीवास्तव, रघुवर आनन्द, कुरुक्षेत्र हरियाणा से पधारे डॉक्टर सुभाष गर्ग और मेरठ से तशरीफ का टोकरा ले जाने वाले हम😝 तो bhaiyya सर्व प्रथम स्मरण कराया कि आज दुष्यंत जी का जन्म दिन है फिर उन्हीं को समर्पित अपनी ग़ज़ल की प्रस्तुति दी। आप यूँ न  कहो की झूठ बोल रिया हूं तो भैय्या जी पढ़ लो:-

ग़ज़ल 
1222   1222  1222 1222 

 " वो बरगद का शज़र देखो "

लिखा ज्यादा नहीं लेकिन, किया दिल पर असर देखो
कि हमसे भी जियादा, पारखी उनकी नजर देखो

वही चंदा वही तारे, नजारे भी वही लेकिन 
ग़ज़ल उसने कही सब पर,जिधर चाहे उधर देखो  

वो अपनी मौज़ का मालिक, धुआँ सब फ़िक्र कर डाला  
चुनी उसने अलग सबसे,वही तुम भी डगर देखो 

गरीबी में पला लेकिन, ठसक राजा के जैसी थी 
कि घर कवि राज का कैसा, ज़रा जाकर वो घर देखो 

रियाया दर्द को शब्दों में जिसने, ढाल कर रक्खा 
सियासत ने उन्हीं लफ़्ज़ों में देखा, अपना डर देखो 

ग़ज़ल कहते सभी लेकिन, अलग थी बात कुछ उसमें
वो गजलो का बना कैसे, ज़रा तुम चारागर देखो

अगर अब भी तुम्हें शक है, तो दूजा ढूंढ़ कर लाओ
वगरना बंद आंखें कर,जिगर उसके उतर देखो 

सभी कुछ ठीक था लेकिन,चली जाने हवा कैसी
कि उस मनहूस दिन हमको मिली, कैसी ख़बर देखो  

कहां आसान इतना 'दीप' है, 'दुष्यंत' हो जाना
कि हम सब पेड़ हैं केवल, वो बरगद का शज़र देखो

-प्रदीप देवीशरण भट्ट -9923

        लगभग साढ़े बजे सम्मान समारोह के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ और उसके बाद गर्मा गर्म भोजन। बस भैय्या आनन्द आ गया। पाँच बजे नीलम जी के साथ टैक्सी से निकले उन्होंने दिल्ली कैंट ड्रॉप किया हमने मेट्रो पकडी और सीधे आनन्द विहार वहाँ से मेरठ और फिर दस बजे घर। तो लो जी मना लिया अपने प्रिय कवि का जन्मदिन।


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