कितना अच्छा लगता है न आप सुबह सोकर उठे और आपको खुशखबरी मिले कि भारत में निर्मित आर आर आर और एलिफेंट व्हिस्पर्स को ऑस्कर मिल गया है। निश्चित मन गदगद हो जाता है। लेकिन ऐसा हर बार नहीं होता कि आप सुबह सोकर उठे और आपको खुशखबरी ही मिले कभी कभी उल्टा भी हो जाता है। 25 जून-1975 में इमर्जेंसी की खबर कुछ ऐसी ही थी। 31 जुलाई-1980 मोहम्म्द रफी के निधन की खबर ऐसी ही थी। 13 अक्टूबर-1987 को सोकर उठा तो पता चला किशोर कुमार, नहीं रहे| इसी प्रकार 21 मई- 1991 में मैं उदयपुर में था सोकर उठा तो पता चला कि राजीव गाँधी नहीं रहे। निश्चित ही ये ऐसी तारीखें हैं जिन्हें कोई भी याद नहीं रखना चाहेगा। मैं उन दिनों भूटान में था जब 21 मई-1994 की सुबह खबर मिली कि सुष्मिता सेन मिस यूनिवर्स बन गई हैं। मैं टी वी पर ये न्यूज़ देखते ही उछल पडा था। फिर यही अनुभूति 19 नवम्बर-1994 को हुई जब ऐश्वर्य राय विश्व सुंदरी चुनी गई। 17 नवम्बर-1966 रीटा फारिया जो कि आज के गोवा राज्य से थीं पहली एशियाई मूल की सुंदरी थी जिन्होंने विश्व सुंदरी का ताज पहना था। मुझे याद है सुष्मिता सेन और ऐश्वर्य राय को दिल्ली में राष्ट्रपति की बग्गी में बिठाकर घुमाया गया था। आप इसी बात से अंदाज़ा लगा सकते हैं कि पूरे 28 वर्षो के बाद 1994 में भारत की दो सुंदरियों ने पहली बार मिस यूनिवर्स एवम विश्व सुंदरी जैसे खिताब जीतकर भारत की साख बढाई थी। इसके पीछे के कारणों पर फिर कभी प्रकाश डालूँगा लेकिन सफलता तो सफलता है फिर वो किसी भी रुप में मिले।
2008 में स्लमडॉग मिलेनियर के गाने को ऑस्कर मिला लेकिन वो खुशी बस खानापूर्ति वाली ही थी। किंतु इस बार की खुशी वास्तविक एवम दोगनी रही। आर आर आर एक बेहतरीन फिल्म बनी है जो कि हैदराबाद के मुक्ति संग्राम पर आधारित है जिस काल का इसमें चित्रण किया गया है उस समय हैदराबाद स्टेट में रजाकारों का जुल्म अपने पूरे जोरों पर था। उस समय दो नाम बेहद सुर्खियों में रहे। कोमाराम भीम जो कि आदीवासी थे और हैदराबाद के मुक्ति संग्राम में उनका बहुत बडा योगदान है (मैंने अभी हाल ही में इनके ऊपर एक आलेख उस्मानिया यूनिवर्सिटी में पढा था) के अतिरिक्त अल्लूवरी सितारमा राजू। कोमाराम भीम के करेक्टर को फिल्म में जूनियर एन टी आर ने निभाया है अजीब बात ये कि कोमाराम भीम एक हिंदू करेक्टर था किंतु निर्माता निर्देश्क ने उस करेक्टर पर अनाव्श्यक रुप से मुस्लिम मुल्म्मा चढा दिया गया जिसकी कोई ज़रुरत नहीं थी,ये प्रश्न विचारणीय है। इसी प्रकार 2007 में आई फिल्म चक दे इंडिया के करेक्टर पर भी मुस्लिम मुलम्मा चढा दिया गया था जब कि वास्तविक रुप में चक दे इंडिया फिल्म मीर रंजन नेगी (हॉकी प्लेयर) पर बनी थी। अभिवय्क्ति की आजादी का बेज़ा इस्तेमाल कैसे किया जाता है इसे फिल्म उद्योग में आसानी से देखा जा सकता है। वैसे मेरी नज़र में ये एक बीमार मानसिकता से ज्यादा कुछ नहीं है। पिछ्ले कुछ दिनों से हिंदी फिल्म उद्योग के पतन के कारणों में अत्यधिक नग्नता परोसने के अतिरिक्त ये भी एक कारण रहा है।
आर आर आर(रौद्रम रानम रुधिराम)
ये ठीक है कि नाटू नाटू गाने की सफलता इस समय पूरे विश्व में अपना परचम फैहरा रही है जिससे द एलीफेंट व्हिस्पर्स जैसी शार्ट फिल्म को उतनी तव्ज्जो नहीं मिली जितनी की वह हकदार है किंतु मेरा मानना है धीरे धीरे ही सही लोग अब इस फिल्म की चर्चा करने लगे हैं। द एलीफेंट व्हिस्पर्स एक खूबसूरत फिल्म है लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि आर आर आर फिल्म का बस गाना ही बढिया बन पडा है। नहीं हुज़ूर! बल्कि पूरी फिल्म जिस भव्य स्तर पर बनाई गई है वो लाजवाह है। हमारे यहाँ (नोर्थ ) में एक कहावत काफी प्रचलित है कि नाचने वाले के पैर नहीं रुकते और कहने वाले की ज़ुबान नहीं रोक सकते। तो नाटू नाटू गाना कुछ ऐसा ही बन पडा है कि जैसे ही ये बजेगा आपके पैर खुद ब खुद थिरकने को मजबूर हो जाएगें। 2011 में एक गाने ने बडी धूम मचाई थी, कुछ याद आया, नहीं तो हम याद दिला देते हैं। “ व्हाय दिस कोलावरी डी” उस गाने की लोकप्रियता ऐसी थी कि लोग ट्रेन में हों या बस में, ड्राइंग रुम में हों या बॉथरुम में, सडक पर हों या ऑफिस में बस यही एक गाना लोगों की ज़ुबान पर चढा हुआ था। मुझे याद है मैं उस समय मुम्बई में पोस्टिड था एक नायिका ने कहा क्या करूँ ये गाना मेरे दिमाग में घर कर गया है बाहर निकलता ही नहीं। सामान्यत: हिंदी फिल्म के पुराने गाने लोग आज भी गुनगुनाते मिल जाएंगे शादी विवाह में पंजाबी सॉन्ग की धूम रहती है। मुझे ये कहने में कोई संकोच नहीं कि आने वाले एक आध साल तक नोर्थ हो या साउथ सब जगह शादियों में इसी गाने नाटू नाटू की धूम मचने वाली है। एस एस राजमौली का निर्देशन (मक्खी, बाहुबली सीरिज़) और अब आर आर आर बस नाम ही काफी है। राजमौली की सफलता की कहानी उनके द्वारा निर्देशिल फिल्में खुद बयाँ करती है निश्चित हिंदी फिल्म निर्देशको को इससे जलन हो सकती है। जूनियर एन टी आर हों या राम चरण तेजा ( दोनों ने अपने पिता की विरासत को अच्छे से आगे बढाने का काम किया है) संगीत निर्देश्क एम एम किरवानी जो अपने संगीत से कितनी ही फिल्मों में लोहा मनवा चुके हैं। गीतकार चंद्रबोस वाह क्या कहने। इस गाने की सफलता का सबसे बडा कारण इसका डांस जिसके बिना इतना बडा हिट हो ही नहीं सकता था। कोरिओग्राफर प्रेम रक्षित जिन्होंने कुल 110 डांस स्टेप्स तैय्यार किये जिसमें से लगभग 40 को गाने में इस्तेमाल किया गया।
अंत में दोनों ही फिल्मों की पूरी टीम बधाई की पात्र है। उनके अथक प्रयास से ही आज भारत की झोली में दो ऑस्कर आए हैं। मैं इन्हें सिर्फ पुरुस्कार नहीं मानता वरन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढती भारत की साख मानता हूँ। पूरे विश्व में सिर्फ एक ही चीज़ कॉमन है और वह है बिजनेस्। मैं बार बार कहता रहा हूँ कि इस विश्व को लगभग दो हजार पॉवरफुल लोग चला रहे हैं जिसमें बिजनेस ही सर्वोपरि हैं। वे ही तय करते है कि किस देश से किसको कितना फायदा होगा उसी अनुसार फिर राजनीति तय की जाती है। ये काफी बडा विषय है इसलिए फिर कभी। फिलहाल तो आनंद के सागर में गोते लगाते रहिए।
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-17.03.2023
हैदराबाद (भारत)
बहुत ही बढ़िया।
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