Tuesday, 26 April 2022

"मैं हूँ न"

       
       
            "मैं हूँ न"
 
अकेला ख़ुद को न समझो 
लो थामो हाथ तुम मेरा 
जहाँ तुम उँगली रख दोगे 
लगा लेंगे वहीं डेरा 

हैं रिश्ते और भी लेकिन 
नहीं मित्रों का कुछ सानी 
अगर हिचकी भी आ जाए 
तुरत पकड़ाते ये पानी 

अगर मुश्किल कभी आए 
तो पीछे ये नहीं हटते
मदद कर जाते हैं हँसकर 
नहीं अहसां कभी रटते 

यकीं मुझ पर नहीं जो ग़र
शहर में घूमकर पूछो 
अकेला हूँ मैं अवनि पर
नहीं मुझसा कोई दूजो  

है वादा 'दीप' का तुमसे 
कभी तन्हा न छोड़ेगा 
अगर आई कभी मुश्किल 
तो जड़ से उसको तोड़ेगा

-प्रदीप देविशरण भट्ट - 
27:04:2022

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