-दृश्यम -
छाए बादल नभ में जितने भी
कभी ये रोक न हमको पाएंगे
चाहे ऊँची हों कितनी अट्टालिकाएं
हम रोशनी फ़िर भी लाएंगे
हम तो आग का दरिया ठहरे
बहना ही बस है काम हमारा
स्वयं जला कर रोशन कर देना
कर्म हमारा और धर्म हमारा
देखो तुम जल में छाया मेरी
ये दृश्य अलग दिखलाती है
जल में रहने वाली मत्स्यों को
राह प्रतिदिन दिखलाती है
- प्रदीप देवीशरण भट्ट -
04:07:2020
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