“क्या
पाकिस्तान एक और बांग्लादेश चाहता है”
5-1(बांग्लादेश)
=4 -1(बलूचिस्तान) =3 ?
पिछले कुछ महीनों से मैं tweeter पर
फातिमा बलोच और अन्य के ट्वीट देख रहा था साथ मे कुछ हृदय विदारक तस्वीरें भी
पोस्ट की गई थीं जिनमे आदमी औरतों के अतिरिक्त मासूम बच्चों की पाकिस्तानी सैनिकों
द्वारा की गई ज्यादती की तस्वीरें साफ बयान कर रही थी कि बलोचियों के साथ
पाकिस्तान की सरकार और सेना किस तरह दुर्व्यवहार करती है। निश्चित रूप से इस
प्रकार की तस्वीरें देखकर शैतान की भी रूह काँप जाए। किन्तु पाकिस्तानी सेना किस
वहशियाना तरीके से मासूम बलोच लोगों के साथ पेश आ रही है वो जुल्मों सितम की
इंतेहा है। इतने भयावह दौर से गुजर रहे बलोचियों के साथ कौन खड़ा है ये एक सोचनीय
प्रश्न है साथ ही ये भी शक दूर हो गया कि वहाँ का और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया और
मानवाधिकार उन पर वो तव्व्जो नहीं दे रहा जैसी कि वो अन्य जगह दे रहा है। क्या ये
सब किसी साजिश का हिस्सा है अगर ऐसा है तो भारत को समय रहते इस पर विचार अवश्य कर लेना
चाहिए क्यों कि पाकिस्तान और उसकी निरंकुश सेना इतिहास को दोहरने का प्रयास कर रही
या वही भूल कर रही है जैसी भूल वो बांग्लादेश के स्वतंत्र होने से पहले कर रही थी।
तब भी वहाँ बड़े पैमाने पर पाकिस्तानी सेना द्वारा पूर्वी पाकिस्तान मे रहने वाले
आम नागरिकों के साथ बर्बर व्यवहार किया जाता था ।जवान ही नहीं बल्कि मासूम
बच्चियों के साथ कई कई सैनिकों द्वारा बलात्कार करना आम बात थी। आम जन को सारे आम
गोली से उड़ा देना पाकिस्तानी सैनिकों के लिए एक शगल से ज्यादा कुछ नहीं था। इतिहास
गवाह है जब जब जुल्म की ऐसी आँधी चली है तब तब आम नागरिक अपने ऊपर हो रहे
अत्याचारों से आजिज़ आकार स्वतन्त्रता की आवाज उठाने पर मजबूर हुआ है। आखिर आजाद
होने से पूर्व पाकिस्तान भी तो भारत का ही अभिन्न अंग था। पाकिस्तान ने धर्म के
आधार पर अलग देश “पाकिस्तान” बनाकर क्या हासिल कर लिया। 24 वर्ष भी वह अपने
आप को संभाल नहीं पाया और 1971 मे अलग देश के रूप मे विश्व को एक नया राष्ट्र “बांग्लादेश”
मिला। वर्तमान घटनाक्रम बार बार इतिहास की ओर संकेत कर रहा है कि अगर सब कुछ
ठीक ठाक नहीं रही तो पाकिस्तान से कटकर एक नया देश ‘बलूचिस्तान
‘ और बन जाएगा। बलूचिस्तान कहाँ है उसकी ऐसी स्थिति क्यों है
इस पर एक प्रकाश डालते हैं:-
बलूचिस्तान की सुंदरता
सन
654 तक बलूचिस्तान का वह भाग जो की आज के पाकिस्तान में हैं रशिडून साम्राज्य के
अन्दर आ गया था। खलीफ अली के समय तक पूरा बलूचिस्तान प्रान्त रशिडून साम्राज्य के
आधीन हो चूका था बाद के सत्ता संगर्ष में बलूचिस्तान में एक साम्राज्य शासन नहीं
रहा।कुछ ही सालों में कासिम को बगदाद वापस भेज दिया गया जिसके बाद इस्लामी
साम्राज्य दक्षिण एशिया में सिंध और दक्षिणी पंजाब तक ही सिमित रह गया। ऐतिहासिक इस्लामी
दस्तावेज़ “फतह-नामा-सिंध के अनुसार सान 711 मे दमसकुस के उम्मयड खलिफ ने देब्यूल
जो की आज कराची शहर के निकट है समुद्री डाकुओं को सबक सिखाने के लिए सिंध और
बलूचिस्तान के लिए दो अभियानो हेतु प्रयास किए किंतु वे दोनों ही प्रयास विफल रहे।
ऐसा इसलिए भी क्यों कि समुद्री डाकू अरबी व्यापारियों के जहोजो को लूट लिया करते थे।
ऐसा कहा जाता है कि सिंध के राजा अधीर उस समय उन समुद्री डाकुओं को संरक्षण प्रदान
कर रहे थे। एक लंबे समय के पश्चात लगभग 17 वर्षों के मुहम्मद बिन कासिम ने तीसरे
अभियान का नेत्रत्व किया जिसने सिंध और बलूचिस्तान को ही नहीं जीता व्रण मूलतन तक
अपना साम्राज्य स्थापित किया। सान 712 मे कासिम कि सेना ने आज के हैदराबाद (सिंध)
मे राजा दहिर सी सेना पर विजय प्राप्त की।अरब मुस्लिमों और बाद के मुस्लिम राजाओं
के सिंध और पंजाब मे आने से दक्षिण एशिया मे राजनैतिक रूप से बहुत बड़ा परिवर्तन
आया जिसने आज के पाकिस्तान और भारतीय उन महाद्वीप मे इस्लामी शासन की नीव को रखने
मे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
बलूचिस्तान की सुंदरता
इसके पूर्वी किनारे पर सिंधु घाटी सभ्यता का उद्भव हुआ। कुछ
विद्वानों का मानना है कि सिंधु घाटी सभ्यता के मूल लोग बलूच ही थे। पर इसके साक्ष्य नगण्य हैं। सिंधु घाटी की
लिपि को न पढ़े जाने के कारण संशय अब तक बना हुआ है। पर सिंधु सभ्यता के अवशेष आज
के बलूचिस्तान में कम ही पाए जाते हैं।बलूची लोगों का माना है कि उनका मूल निवास सीरिया के इलाके में थे और उनका मूल समेटिक (अफ़्रो-एशियाटिक)
है। आज का दक्षिणी बलूचिस्तान ईरान के कामरान
राज्य का हिस्सा था जबकि उत्तर पूर्वी भाग सिस्तान का अंग। सन् 652 में
मुस्लिम खलीफ़ा उमर ने कामरान पर
आक्रमण के आदेश दिए और यह इस्लामी ख़िलाफ़त का अंग बन गया पर उमर ने अपना
साम्राज्य कामरान तक ही सीमित रखा। अली के खिलाफ़त में पूरा
बलूचिस्तान, सिंधु नदी के पश्चिमी छोर तक, खिलाफत के तहत आ गया।
इस समय एक और विद्रोह भी हुआ था। सन 663 में हुए विद्रोह में कलात राशिदून खिलाफ़त के हाथ से निकल गया। बाद में उम्मयदों ने इसपर कब्जा कर लिया।
इसके बाद यह मुगल हस्तक्षेप
का भी विषय रहा पर अंत में ब्रिटिश शासन में शामिल हो गया। 1944 में इसे स्वतंत्र
करने का विचार भी अंग्रेज़ों के मन में आया था पर 1947 में यह स्वतंत्र पाकिस्तान
का अंग बन गया।
बलूचिस्तान की सुंदरता
उस समय भारत के
गवर्नर लॉर्ड Mountbatten ने जब जल्दबाज़ी मे भारत का भोगोलिक विभाजन किया तब पाकिस्तान के हिस्से
मे गिलगित,बाल्टिस्तान और बलोचिस्तान हिस्से मे आए। वर्तमान
मे बलूचिस्तान पाकिस्तान का पश्चिमी प्रांत है यह ईरान (सिस्टन और बलूचिस्तान
प्रांत) एवं अफगानिस्तान से सटे हुए
क्षेत्रों मे बटा हुआ है। इसकी राजधानी क्वेटा है और यहाँ के लोगों की प्रमुख भाषा
बालूच है जिसे बलूची भी कहा जाता है।ब्रिटिश शासन के जनरल मनी को 1944 मे
बलूचिस्तान को एक अलग राष्ट्र का विचार आया था जिसे 1947 मे आखिरकर पाकिस्तान मे
सम्मालित कर लिया गया।1970 मे जब पूर्वी पाकिस्तान मे पाकिस्तान की सेना क़त्ल-ए-आम
मचा रही थी तभी बलोच लोगों को अपने लिए एक अलग राष्ट्र की आवशयकता महसूस हुई ऐसा
इसलिए भी कि पाकिस्तान की सरकार पूर्वी पाकिस्तान और बलोचिस्तान को छोड़कर हर जगह
विकास कर रही थी उसमे भी सिंध और पंजाब मे विशेषकर इसलिए अपनी दिन-ब-दिन होती
दुर्गति और पक्षपात को देखते हुए एक अलग
बलोच राष्ट्रवाद का उदय हुआ।
काराकोरम
राजमार्ग के
साथ साथ हुंजा एवं
शातियाल के
बीच लगभग दस मुख्य स्थानों पर पत्थरों के काट कर और चट्टानों को तराश कर बनाये गये
लगभग 20000 कला के नमूने मिलते हैं। इनको मुख्यत इस व्यापार मार्ग का प्रयोग करने
वाले हमलावरों, व्यापारियों और तीर्थयात्रियों के साथ साथ स्थानीय
लोगों ने भी उकेरा है। इन कला के नमूनों में सबसे पुराने तो 5000 और 1000 ईसा
पूर्व के बीच के हैं। इनमें अकेले जानवरों, त्रिकोणीय
पुरुषों और शिकार के दृश्यों को जिनमें जानवरों का आकार अमूमन शिकारी से बड़ा है,
को उकेरा गया है। पुरातत्वविद कार्ल जेटमर ने इन कला के नमूनों के
माध्यम से इस पूरे इलाके के इतिहास को अपनी पुस्तक रॉक कार्विंग एंड
इंस्क्रिपशन इन द नॉर्दन एरियास ऑफ पाकिस्तान में
दर्ज किया है। इसके बाद उन्होने अपनी एक दूसरी पुस्तक बिटवीन गंधारा एंड
द सिल्क रूट–रॉक कार्विंग अलोंग द काराकोरम हाइवे को
जारी किया।
15 अगस्त1947 मे जब भारत अँग्रेजी दासता से
मुक्त हुआ उसी दिन पाकिस्तान भी एक अलग राष्ट्र के रूप मे जन्मा ।पाकिस्तान की
स्वतंत्रता और 1947 में भारत के विभाजन से पहले, महाराजा हरी सिंह ने अपना राज्य गिलगित और बल्तिस्तान तक बढ़ाया था। विभाजन के बाद,
संपूर्ण जम्मू और कश्मीर, एक स्वतंत्र राष्ट्र
बना रहा। 1947 के भारत पाकिस्तान युद्ध के अंत में संघर्ष विराम रेखा (जिसे अब नियंत्रण रेखा कहते हैं) के उत्तर और पश्चिम के कश्मीर के भागों को के उत्तरी भाग को उत्तरी क्षेत्र (72,971 किमी) और दक्षिणी भाग को पाक अनधिकृत कश्मीर (13,297
किमी) के रूप में विभाजित किया गया। उत्तरी क्षेत्र नाम का प्रयोग सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर के उत्तरी भाग की व्याख्या के लिए किया। 1963 में उत्तरी
क्षेत्रों का एक छोटा हिस्सा जिसे शक्स्गम घाटी कहते हैं, पाकिस्तान द्वारा अंतिम रूप से जनवादी चीन गणराज्य को सौंप दिया
गया।वर्तमान में गिलगित-बल्तिस्तान, सात ज़िलों में बंटा हैं,
इसकी जनसंख्या लगभग दस लाख और क्षेत्रफल 28,000
वर्ग मील है। इसकी सीमायें पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान और भारत से मिलती हैं। इस दूर दराज के क्षेत्र के लोगों को
जम्मू और कश्मीर के पूर्व राजसी राज्य के डोगरा शासन से 1 नवम्बर 1947 को बिना
किसी भी बाहरी सहायता के मुक्ति मिली और वे एक छोटे से समयांतराल के लिए एक
स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिक बन गए। इस नए राष्ट्र ने स्वयं के एक आवश्यक प्रशासनिक
ढांचे के आभाव के फलस्वरूप पाकिस्तान की सरकार से अपनी सरकार के मामलों के संचालन
के लिए सहायता मांगी। पाकिस्तान की सरकार ने उनके इस अनुरोध को स्वीकारते हुए
उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत से सरदार मुहम्मद आलम खान जो कि एक अतिरिक्त सहायक
आयुक्त थे, को गिलगित भेजा। इसके पहले नियुक्त
राजनीतिक एजेंट के रूप में, सरदार मुहम्मद आलम खान ने इस
क्षेत्र का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।स्थानीय, उत्तरी
लाइट इन्फैंट्री, सेना की इकाई है और माना जाता है कि 1999
के करगिल युद्ध के दौरान इसने पाकिस्तान की सहायता की और संभवत: पाकिस्तान की ओर से युद्ध
में भाग भी लिया। करगिल युद्ध में इसके 500 से अधिक सैनिक मारे गये, जिन्हें
उत्तरी क्षेत्रों में दफन कर दिया गया। ललक जान , जो यासीन घाटी का
एक शिया इमामी इस्माइली मुस्लिम (निज़ारी) सैनिक था, को करगिल
युद्ध के दौरान उसके साहसी कार्यों के लिए पाकिस्तान के सबसे प्रतिष्ठित पदक निशान –ए- हैदर से सम्मानित किया गया।
गिलगित-बल्तिस्तान –पाक-अनधिकृत के भीतर एक स्वायत्तशासी क्षेत्र है
जिसे पहले उत्तरी क्षेत्र या शुमाली
एरिया के नाम से जाना जाता है। इसमे कुल 7 जिले हैं। यहाँ उर्दू ,शीना बुरुश्की बाल्ती
(तिबत्ती )और वाखी भाषये बोली जाती हैं। इस राज्य की स्थापना 1 जुलाई 1970 को
हुई।इसकी राजधानी भी गिलगित है।इसका कुल क्षेत्रफल 72 981 किलोमीटर है।पाकिस्तान
की उत्तरतम राजनैतिक इकाई है। इसकी सीमायें पश्चिम में खैबर- पख्तूनख्वा से,
उत्तर में अफगानिस्तान के वाखान गलियारे से उत्तर पूर्व मे चीन के शिंजियांग राज्य से, दक्षिण में पाक-अनधिकृत और
दक्षिणपूर्व में भारतीय जम्मू कश्मीर राज्य से लगती हैं।
गिलगित-बल्तिस्तान का कुल क्षेत्रफल 72,971 वर्ग किमी (28,174 मील) और अनुमानित जनसंख्या लगभग दस लाख है। इसका प्रशासनिक केन्द्र गिलगित शहर है, जिसकी जनसंख्या लगभग ढाई लाख के करीब है।1970
मे "उत्तरी क्षेत्र” नामक यह प्रशासनिक
इकाई, गिलगित एजेंसी,
लद्दाख़ वज़ारत का बाल्टिस्तानहुंजा और नगर नामक राज्यों
के विलय के पश्चात अस्तित्व में आई थी। पाकिस्तान इस क्षेत्र को विवादित कश्मीर के
क्षेत्र से पृथक क्षेत्र मानता है जबकि भारत और यूरोपियन संघ के अनुसार यह कश्मीर के वृहत विवादित
क्षेत्र का ही हिस्सा है। कश्मीर का यह वृहत क्षेत्र सन 1947 के बाद से ही भारत और
पाकिस्तान के बीच विवाद का विषय है।29 अगस्त 2009 को गिलगित-बल्तिस्तान अधिकारिता और स्व-प्रशासन आदेश
2009, पाकिस्तानी मंत्रिमंडल द्वारा पारित किया गया था और
फिर इस पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति द्वारा हस्ताक्षर किए गए। यह आदेश
गिलगित-बल्तिस्तान के लोगों को एक लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गयी विधानसभा के माध्यम
से स्वशासन की आज्ञा देता है। पाकिस्तानी सरकार के इस कदम की पाकिस्तान, भारत के अलावा गिलगित-बल्तिस्तान में भी आलोचना की गयी है साथ ही पूरे
इलाके में इसका विरोध भी किया गया है।गिलगित-बल्तिस्तान संयुक्त-आंदोलन ने इस आदेश
को खारिज करते हुए नए पैकेज की मांग की है,
जिसके अनुसार गिलगित-बल्तिस्तान की एक
स्वतंत्र और स्वायत्त विधान सभा,
भारत पाकिस्तान हेतु संयुक्त राष्ट्र आयोग (UNCIP)-प्रस्ताव के अनुसार स्थापित एक आधिकारिक स्थानीय सरकार के साथ बनाई जानी
चाहिए, जहां गिलगित-बल्तिस्तान के लोग अपना राष्ट्रपति और
प्रधानमंत्री खुद चुनेंगे।सितम्बर 2009 की शुरुआत में, पाकिस्तान ने चीन के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं और इसके अनुसार
चीन गिलगित-बल्तिस्तान में एक बड़ी ऊर्जा परियोजना लगाएगा जिसके अंतर्गत अस्तोर
जिले में बुंजी पर 7,000 मेगावाट के बांध का निर्माण किया जायेगा। इस
परियोजना का भारत ने विरोध किया है पर पाकिस्तान ने इस विरोध को यह कह कर खारिज कर
दिया कि, भारत सरकार के विरोध का कोई वैधानिक आधार नहीं है।
गिलगित की सुंदरता -ग्वादर पोर्ट जो चाइना बना रहा है
इसी प्रकार बलूचिस्तान
मे भी कुल 27 जिले (अवरान,केच,मुसाखेल,बरखान,खरान, नसीरबाद, बोलान,कोहलू, नौशिकी,चागई,खजुदार,पंजगुर,डेरा बुगती, पिशिन,किला
अब्दुल्ल्हा,ग्वादर,किलासैफुल्लाह,क्वेटा,जफराबाद,लासबेला,सिबी,झालमागसी,लोरालाई,झोब,कलात,मास्तंग,ज़ियारत)हैं और पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का लगभग 44 प्रतिशत हिस्सा
अकेला बलूचिस्तान मे पड़ता है यहाँ कुदरत की बहुत मेहरबानी है। यहाँ पर प्रचुर
मात्र मे खनिज सम्पदा भरी पड़ी है जिस पर पाकिस्तान के अतिरिक्त चीन की भी नज़र है
इसी बदनीयती के चलते पाकिस्तान ने चीन को ग्वादर बन्दरगाह बनाने की अनुमति दे दी
है। वैसे ये पाकिस्तान की मजबूरी भी है क्यों कि आज कि तारीख़ मे पाकिस्तान के ऊपर
चीन के अतिरिक्त कोई भी अन्य देश विश्वास नहीं करता और चीन भी उस खनिज संपदा के
दोहन के लिए ही पाकिस्तान की तरफ झुका हुआ है ताकि ग्वादर गलियारा बन जाने पर चीन
को बेरोकटोक ईरान से गैस की आपूर्ति निर्बाध रूप से पाइप के जरिये जो सकेगी जिसकी
लागत और किसी भी तरीके से बहुत ही सस्ती पड़ेगी। पाकिस्तान ने चीन को तो आमंत्रण व
प्रवेश इस बिनाह पर दिया ताकि चीन उसकी धव्स्त होती अर्थव्यवस्था को कुछ सहारा दे
सके लेकिन चीन का इतिहास है कि वो अपने अतिरिक्त किसी का सच्चा दोस्त नहीं है । जब
चीन शांति पूर्वक प्रदर्शन कर रहे अपने ही नागरिकों पर थ्यान-अमान चौक पर टेंकों
से हमला कर मरवा सकता है तो फिर पाकिस्तान तो पाकिस्तान है वर्तमान स्थिति मे कोई
भी दोस्त नहीं है और वो भी तो अपने ही बलोच नागरिकों पर एफ़-16 लड़ाकू विमानों से
हमले कर उन्हें मार देता है। पाकिस्तान की सेना दानवीय प्रवतियों से भरी पड़ी है जो
सारे आम लूट खसोट करते हैं।प्रदर्शन कर रहे मासूम बलोच लोगों पर एक साथ 10-15
गोलियां दाग देते हैं, उनके अंग भंग कर देते हैं। ये कैसी
सेना है भई ? 790 किलोमीटर के समुद्र तट वाले ग्वादर इलाके
पर चीन की हमेशा से नजर रही है। पाकिस्तान को साथ समझौता होने के बाद चीन ग्वादर
पोर्ट का विकास कर रहा है। दावा ये कि ग्वादर पोर्ट बनने के बाद पूरे पाकिस्तान की
अर्थव्यवस्था संभल जाएगी। लेकिन इन दावों की पोल बलूचिस्तान के लोग खोल रहे हैं।
बलूचिस्तान के लोगों का आरोप है कि ऐसे में बलूचिस्तान के लोग और नेता लगातार अपने
आंदोलन को धार देते जा रहे हैं। आजादी की लड़ाई के दौरान भी बलूचिस्तान के स्थानीय
नेता अपना अलग देश चाहते थे। लेकिन जब पाकिस्तान ने फौज और हथियार के दम पर
बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया तो वहां विद्रोह भड़क उठा था। वहां की सड़कों पर अब भी
ये आंदोलन जिंदा है।बलूचिस्तान में आंदोलन के चलते पाकिस्तान ने विकास की हर डोर
से इस इलाके को काट रखा है। लोगों के दिन की शुरुआत दहशत के साथ होती है। करीमा
बलूच की तरह की यहां के कई नेता विदेश में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं और वहीं
रहकर पाकिस्तान से आजादी की मांग उठा रहे हैं। अब जब पाकिस्तान में सियासी हालात
बिगड़ रहे है तो इन नेताओं ने अपना आंदोलन तेज करते हुए दुनिया भर के देशों से
तुरंत बलूचिस्तान से मदद की गुहार लगाई है। मदद की सबसे ज्यादा उम्मीद बलूचिस्तान
को भारत से है।
इससे ज्यादा भयानक तस्वीरें पाकिस्तानी सेना द्वारा किए जा रहे अत्याचार को बयां करती हैं किन्तु ये इतनी वीभत्स हैं कि मैं इन्हें पोस्ट करने का साहस नहीं जूता पा रहा
और इस लेख के लिखते लिखते
प्रधानमंत्री मोदी ने लालकिले की प्राचीर
से 15 अगस्त को राष्ट्र को अपने 94 मिनिट के सम्बोधन मे खुलकर गिलगित और
बलूचिस्तान के लोगों पर पाकिस्तानी सेना द्वारा किए जा रहे जुल्मो सितम को देखते
हुए खुले हृदय से भारतीय जन मानस की भावनाओ को अपने भाषण के दौरान उकेर ही दिया ।
इससे न केवल भारतीय बल्कि पूरे विश्व के मीडिया और मानवाधिकार संगठनो को पाकिस्तान
द्वारा बलूचिस्तान मे मानवाधिकार हनन की बढ़ती घटनाओं को एक अलग चशमे से देखने पर
मजबूर कर दिया बल्कि गिलगित मे पाकिस्तान
और चीन की साज़िश को भी एक अलग नजरिये से देखने पर मजबूर कर दिया है।
पाकिस्तान एक लंबे समय से
कभी कश्मीर मे कभी पंजाब मे और भी देश के कई हिस्सों मे अपनी सेना के शय से पलते
गर्दुल्लों (मेरी नज़र मे आतंकवादियों और नशेड़ियों मे ज्यादा अंतर नहीं है) को समय
रहते रोक लेना ही ठीक होगा अन्यथा वो जो बीज वो बो चुका है उसकी दुर्गति यही गर्दूल्ले (मोहम्मद हाफ़िज़
मौलाना मसूर अजहर) कुछ गर्दूल्ले कश्मीर मे भी है हराम का खा खा कर मोटा गए हैं और
कश्मीर के आम आदमी का चैन से जीना दूभर किए हुए हैं कहीं भस्मासुर सी न हो जाए. ।
::: प्रदीप भट्ट ::::
17.08.2016
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