क्या एक दूसरा कालाहांडी बनने कि राह पर अग्रसर है “बुंदेलखंड”
इससे पहले कि मै आज के
बुंदेलखंड की दशा पर कुछ लिखूँ मेरे लिए यह आवश्यक है की मै बुंदेलखंड की शान मे
लिखी गई व सत्य को उकेरती एक कवि कि कविता को यहाँ स्थान दूँ साथ ही बुंदेलखंड के वृहत इतिहास पर थोड़ा प्रकाश डालूँ ताकि आपको ज्ञात
हो सके कि जिस स्थान पर झाँसी कि रानी लक्ष्मी बाई सरीखी योद्धा का जन्म हुआ वहाँ आज
क्या हालत हैं। झाँसी कि रानी लक्ष्मी बाई कि वीरता के विषय मे तो किसी को कोई शक शुभहा
नहीं होगा उनकी वीरता के किस्से आज भी बड़े जोश-ओ-खरोश से सुने-सुनाये जाते हैं। “बुंदेले हर बोलो के मुह हमने सुनी कहानी
थी खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी”। आज वही बुंदेलखंड एक दूसरा
कालाहांडी बनने कि रह पर है।
यह
बुन्देलखण्ड की धरती है, हीरे उपजाया
करती है।
कालिन्दी शशिमुख की वेणी, चम्बल, सोन खनकते कंगना।
विन्ध्य उरोज साल बन अंचल, निर्मल हंसी दूधिया झरना।
केन, धसान रजत कर धौनी, वेत्रवती साड़ी की सिकुड़न।
धूप छांह की मनहर अंगिया, खजुराहो विलास गृह उपवन।
पहिन मुखर नर्मदा पैंजनी, पग-पग शर्माया करती है।
यह बुन्देलखण्ड की धरती, हीरे उपजाया करती है।
परमानन्द दिया ही इसने, यहीं राष्ट्रकवि हमने पाया।
इसी भूमि से चल तुलसी ने, धर-धर सीताराम रमाया।
चित्रकूट देवगढ़ यहीं पर, पावन तीर्थ प्रकृति रंगशाला।
झांसी के रण-बीचि यहीं पर, धधकी प्रथम क्रान्ति की ज्वाला।
पीछें रहकर यह स्वदेश को, नेता दे जाया करती है।
यह बुन्देलखण्ड की धरती, हीरे उपजाया करती है।
कालिन्दी शशिमुख की वेणी, चम्बल, सोन खनकते कंगना।
विन्ध्य उरोज साल बन अंचल, निर्मल हंसी दूधिया झरना।
केन, धसान रजत कर धौनी, वेत्रवती साड़ी की सिकुड़न।
धूप छांह की मनहर अंगिया, खजुराहो विलास गृह उपवन।
पहिन मुखर नर्मदा पैंजनी, पग-पग शर्माया करती है।
यह बुन्देलखण्ड की धरती, हीरे उपजाया करती है।
परमानन्द दिया ही इसने, यहीं राष्ट्रकवि हमने पाया।
इसी भूमि से चल तुलसी ने, धर-धर सीताराम रमाया।
चित्रकूट देवगढ़ यहीं पर, पावन तीर्थ प्रकृति रंगशाला।
झांसी के रण-बीचि यहीं पर, धधकी प्रथम क्रान्ति की ज्वाला।
पीछें रहकर यह स्वदेश को, नेता दे जाया करती है।
यह बुन्देलखण्ड की धरती, हीरे उपजाया करती है।
बुंदेलखंड अतीत मे शबर, किरात,पुलिंद, कोल और निषदों
का प्रदेश रहा है जब आर्यों ने मध्य देश ने प्रवेश किया तो वहाँ स्थित जन जातियो
ने उनका पुरजोर तरीके से विरोध किया। लगभग दो हज़ार वर्ष के इतिहास मे कई जातियो और
राजवंशो ने राज किया और अपनी सामाजिक व सांस्कृतिक जन चेतना से सभी जातियो
को प्रभावित ही नहीं किया वरन उनके मूल संस्कारो को भी प्रभावित किया। जिन लोगो ने
यहाँ राज किया उनमे मुख्यरूप से मौर्य,नाग, संग,शक,बघेल, कुषाण। वकातक, गुप्त,कलचूरी,चंदेल, अफगान, मुग़ल, गौर,मराठा हैं।321 ईस्वी पूर्व तक वैदिक काल से
मौर्यकाल का इतिहास बुंदेलखंड का “पौराणिक इतिहास माना जाता है।
समस्त भारतीय इतिहासों में
"मनु'
मानव समाज के आदि पुरुष हैं। इनकी ख्याति कोसल देश
में अयोध्या को राजधानी बनाने और उत्तम-शासन व्यवस्था देने में है। महाभारत और
रघुवंश के आधार पर माना जाता है कि मनु के उपरांत इस्वाकु आऐ और उनके तीसरे पुत्र
दण्डक ने विन्धयपर्वत पर अपनी राजधानी बनाई धी । मनु के समानान्तर बुध के पुत्र
पुरुखा माने गए हैं इनके प्रपौत्र ययति थे जिनके ज्येष्ठ पुत्र यदु और उसके पुत्र
कोष्टु भी जनपद काल में चेदि (वर्तमान बुंदेलखंड) से संबंद्ध रहे हैं। एक अन्य
परंपरा कालिदास के "अभिज्ञान शाकुंतल' से
इस प्रकार मिलती है कि दुष्यंत के वंशज कुरु थे जिनके दूसरे पुत्र की शाखा में
राजा उपरिचर-वसु हुए थे । इनकी ख्याति विशेष कर शौर्य के कारण हुई है। इनके
उत्रराधिकारियों को भी चेदि, मत्स्य आदि प्रांतो से संबंधित माना गया है। बहरहाल
पौराणिक काल में बुंदेलखंड प्रसिद्ध शासकों के अधीन रहा है जिनमें चन्द्रवंशी
राजाओं की विस्तृत सूची मिलती है। पुराणकालीन समस्त जनपदों की स्थिति बौद्धकाल में
भी मिलती है। चेदि राज्य को प्राचीन बुंदेलखंड माना जा सकता है। बौद्धकाल में
शाम्पक नामक बौद्ध ने बागुढ़ा प्रदेश में भगवान बुद्द के नाखून और बाल से एक स्तूप
का निर्माण कराया था। वर्तमान मरहूत (वरदावती नगर) में इसके अवशेष विद्यमान हैं।
बौद्ध कालीन इतिहास के संबंध में
बुंदेलखंड में प्राप्त तत्युगीन अवशेषों से स्पष्ट है कि बुंदेलखंड की स्थिती में
इस अवधि में कोई लक्षणीय परिवर्तन नहीं हुआ था। चेदि की चर्चा न होना और वत्स, अवन्ति
के शासकों का महत्व दर्शाया जाना इस बात का प्रमाण है कि चेदि इनमें से किसी एक के
अधीन रहा होगा। पौराणिक युग का चेदि जनपद ही इस प्रकार प्राचीन बुंदेलखंड है।
चन्देल काल में बुंदेलखंड में
मूर्तिकला,
वास्तुकला तथा अन्य कलाओं का विशेष विकास हुआ।
"आल्हा'
के रचयिता जगीनक माने जाते हैं। ये चन्देलों के
सैनिक सलाहकार भी थे। पृथ्वीराज से चन्देलों से संबंध भी आल्हा में दर्शाये गये
हैं। सन् ११८२-८३ में चौहानों ने चन्देलों को सिरसागढ़ में पराजित किया था और
कलिन् का किला लूटा था।
चन्देलों की कीर्ति के अनेक
शिलालेख हैं। देवगढ़ के शिलालेख में चन्देल वैभव इस प्रकार दर्शाया है - "$ नम:
शिवाय। चान्देल वंश कुमुदेन्दु विशाल कीर्ति: ख्यातो बभूव नृप संघनताहिन पद्म:।' चन्देलों
के प्रमुख स्थान खजुराहो,
अजयगढ़, कलिंजर, महोबा, दुधही, चांदपुर
आदि हैं।
पुरकाल
से अब तक बुंदेलखंड अनेक शासको के अधीन रहा इसलिए उसके नाम समय समय पर बदलते रहे
जैसे कि पुरंकल मे यह छेड़ी जनपद तो साथ मे दस नदियो वाला दशार्ण प्रदेश भी कहा
गया।विनधाय पर्वत कि श्रेणियों से आवेशित होने के कारण इसे विंध्यभूमि या विन्ध
निलय “विनधाय पार्श्व ‘ आदि संगाएँ भी मिलती
रही हैं चूंकि बुंदेलखंड कि दक्षणी सीमा रेवा (नर्मदा) के द्वारा बनती है अतएव इसे
“रेवा’ का उत्तर प्रदेश भी माना जाता है। बुंदेलखंड मे
पुलिंद जाती और शबरों का अनेक अनेक समय तक निवास्क रहने के कारण कतिपय इसे “पुलिंद
प्रदेश या “शबर क्षेत्र भी कहा। बुंदेलखंड राजनेटिक इतिहास मे दसवीं शताब्दी के
बाद ही अपने संज्ञा को सार्थक करता रहा है।चँदेली शासन मे यह क्षेत्र “जूझेती के
नाम से जाना जाता था किन्तु जब पंचम सिंह बुंदेल के वंशजो ने प्रथ्वीराज के खंगार
सामंत को कुंडरा मे हरा दिया
पिछले कुछ समय से
बुंदेलखंड बड़ा चर्चा मे आ रहा है न न वह किसी अच्छी बात के लिए नहीं वरन वहाँ के
लोगो द्वारा अन्यत्र पलायन किए जाने से संबन्धित है। पिछले 4-5 वर्षों से वहाँ
आकाल पड़ रहा है। बच्चों को दुध मयस्सर नहीं है बड़ो को रोजी-रोटी नसीब नहीं है।
खेतो को पानी नसीब नहीं हो रहा तो जानवरो को चारा और पानी कि अनुपलब्धता से मरने
को मजबूर होना पड़ रहा हैं। हालत इतने विकट हो गए हैं कि किसान /लोग न अपने बच्चो को मारता हुआ देख पा
रहे हैं न ही अपने जानवर जिन पर गाँवो कि आधी अर्थवयवस्था टिकी होती है।
बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश का अहम हिस्सा है
लेकिन आजकल के ताज़ा हालत को देखते हुए लगता है कि ये राजनीति के हिसाब से/ वोटो के
हिसाब से अन्यथा जब बुंदेलखंड त्राहि त्राहि कर रहा है तब प्रदेश कि समाजवादी ? सरकार मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन मनाने मे मसरूफ़ है “सफाई उत्सव” मनाने
मे करोड़ो अरबों रुपयो का बंटाधार करने मे व्यस्त है । एक ऐतिहासिक घटना याद हो आई
कि रोम जल रहा था और नीरो बंसारी बजा रहा था।
ऐसा भी नहीं कि बुंदेलखंड मे कम
ताकतवर नेता हुए हैं वर्तमान मे उमभारती जो कि बीजेपी कि कड़दावर नेता है भी
वर्तमान बुंदेलखंड कि समस्याओ से क्यूँ मुह मोड़े हुए हैं समझना कठिन है।लोग पलायन
को मजबूर हैं क्यो कि उनके पास खाने को दाने नहीं पीने को पानी नहीं यहाँ तक कि
बच्चो को दूध भी नसीब नहीं हो रहा है। सवाल एक यही है कि इस अवस्था तक बुंदेलखंड
का जन –मानस पहुंचा कैसे इसके लिए कौन जिम्मेदार है। अगर प्रदेश सरकार इस सबसे
अंजान है तो ये विषय आश्चर्य जनक होगा।
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