Tuesday, 20 June 2017

मौका गंवा दिया न




मौका मौका करते करते मौका ही गँवा दिया
चैम्पियन ट्राफी




इस बार जब बड़े जोशों खरोश से चैम्पियन ट्राफी का आगाज़ 4 जून -2017 को इंग्लैंड में हुआ तो भारत का पहला मुकाबला ही अपने चिरपरिचित प्रतिद्वंदी पाकिस्तान के साथ हुआ। इस मैच से पहले इस मैच को लेकर जितना हो हल्ला सोशल मीडिया पर हुआ और इंडिया न्यूज़ पर तो भारत-वर्ष और पाकिस्तान के मध्य बाकायदा तेज और बेमतलब की बहस छेड़ी गई जिसमें दोनों तरफ़ के कुछ कविओं तक ने अपनी अपनी टीम को न केवल चियर किया बल्कि टीम के लिए अपनी भावनाएं कविताओं और शेरों के माध्यम से व्यक्त भी की गई। इस सबका कोई नतीज़ा तो निकलने वाला नहीं था लेकिन दोनों ही तरफ़ के मीडिया हाउस अपनी टी आर पी बढ़ाने में अवश्य कामयाब हो गए और ये सिलसिला 18 जून तक हर मैच से पहले लगभग हर चैनल पर होता रहा। मेरी व्यक्तिगत राय में भारत और पाकिस्तान के मैच को इतनी तव्वकों देने की ज़रूरत नहीं थी लेकिन आदत है न जाते जाते ही जाती है ये बात और किसी विषय में भले ही लागू हो जाये लेकिन भारत-पाक क्रिकेट मैच में तो बिलकूल भी और कभी भी लागू नहीं होने वाली।


जब चैम्पियन ट्राफी की घोषणा हुई थी तब भारत अकेला देश था जिसने इस चैम्पियन ट्राफी में भेजने के लिए टीम की घोषणा ही नहीं की।  शायद बी सी सी आई भारत सरकार के रुख का इंतजार कर रहा था कि कहीं वो टीम की घोषणा करे और भारत सरकार बॉर्डर पर पाकिस्तानी बैट (बॉर्डर एक्शन टीम,टीम जिसमें ज्यादातर आतंकवादी शामिल हैं) टीम द्वारा भारत के सैनिकों के सर काटे जाने की घटना को गंभीरता से लेते हुए पाकिस्तान के साथ क्रिकेट न खेलने का फ़ैसला कर ले तब ऐसी स्थिति में बी सी सी आई की स्थिति उस सांप जैसी हो जाती जिसने छछूंदर निगलने की कोशिश की और वह उसके हलक में अटक गया था अब अगर वो छछूंदर को बाहर उगल दे तो अँधा हो जाये और अगर निगल ले तो मर जाये। खैर काफ़ी उहापोह के पश्चात् बी सी सी आई ने मई के अंतिम सप्ताह में टीम की घोषणा कर दी और उसे चैम्पियन ट्राफी के लिए लंदन रवाना भी कर दिया गया। शुरुआत में भारतीय टीम ने अपने दो प्रैक्टिस मैच भी खेले ताकि वहां के माहोल में ढला जा सके ताकि पाकिस्तानी टीम को 4 जून के मुक़ाबले में हराया भी जा सके।


अप्रत्याशित तौर पर अफ़गानिस्तान क्रिकेट टीम जो अभी अपने शैशव काल में ही है ने अधिकारिक तौर पर ये घोषणा कर दी कि चूँकि पाकिस्तान अफ़गानिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है जिससे उसे सपने देश में शांति स्थापित करने में अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पढ़ रहा है अतएव अफ़गानिस्तान की सरकार ने इन परिस्थितियों में पाकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने से इंकार कर दिया। है न आश्चर्य ? भारत पाकिस्तान के बीच जो तनाव चल रहा है उसकों देखते हुए लोग ये अपेक्षा कर रहे थे कि भारत देर सवेर ज़रुर ये घोषणा करेगा कि वो चैम्पियन ट्राफी में पाकिस्तान के साथ क्रिकेट नहीं खेलेगा लेकिन हुआ इसके बिलकुल विपरीत। निश्चित रूप से पैसा देश की भावनाओं पर ज्यादा भारी पड़ गया। लेकिन शायद भारत के लोग भी बॉर्डर पर जो स्थिति है उसमें भारतीय सेना द्वारा दिए जा रहे जवाब से संतुष्ट नहीं है इसलिए लोग ऐसा सोचते हैं कि क्यों न खेल के मैदान पर ही पाकिस्तान को पटकनी दे दी जाये। और ऐसा हो भी गया चैम्पियन ट्रॉफी के आगाजी मैच में ही भारत ने पाकिस्तान को बुरी तरह हरा दिया किन्तु अगले ही मैच में वो श्रीलंका से हार भी गया किन्तु उसका इतना हो हल्ला नहीं हुआ क्यों कि बांग्लादेश को हराकर भारत ने फाइनल में अपनी जगह पक्की कर ली और इससे पहले अप्रत्याशित तौर पर पाकिस्तान ने इंग्लैंड को सेमेफिनल में हराकर फाइनल में अपनी जगह पक्की कर ली और ये निश्चित हो गया कि फाइनल का मुकाबला भारत और पाकिस्तान के बीच ही होगा क्यों की बांग्लादेश को हराना भारत के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं था और ऐसा हुआ भी।


 लेकिन पाकिस्तान के हाथों इंग्लैंड की पिटाई ये किसी से हजम नहीं हो रही थी तभी पाकिस्तान के एक पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी ने घोषणा कर दी कि पाकिस्तान और इंग्लैंड के बीच खेला गया फर्स्ट सेमिफिनल फिक्स्ड था। इसके उपर हो हल्ला तो हुआ लेकिन जितना अपेक्षित था उतना नहीं किन्तु लोगों ने अपने अपने कयास लगाने शुरू कर दिए कि चूँकि आई सी सी को मालूम है कि फाइनल मुकाबला अगर और किन्हीं दो देशों के बीच खेला गया तो स्टेडियम खाली ही रहने वाला है और अगर ये मुकाबला भारत पाकिस्तान के मध्य हुआ तो पैसा कमाने के मामले में आई सी सी की बल्ले बल्ले हो जानी है। और देखिये 18 जून 2017 को पूरा का पूरा स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था अगर दोनों टीमों के सपोटर्स की बात करें तो जहाँ भारत के सपोटर्स 70-75 प्रतिशत रहे वहीँ पाकिस्तान के ज्यादा से ज्यादा 15-20 प्रतिशत। ये भी जगजाहिर है कि भारत के सपोटर्स पूरी दुनियां में फैले हुए हैं और वे महंगी से महंगी टिकेट लेकर भी दूर दूर से भारत का मैच देखने आते हैं।


18 जून 2017 को जो फाइनल हुआ उसमें भारत के टॉस जितने के बावजूद कोहली का पाकिस्तान टीम को पहले बल्लेबाजी करने का निमंत्रण देना लगभग सभी की समझ से परे था माना कि कोहली की इमेज चेज़र की है लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि परिस्थितियां सदैव आपके अनुकूल ही रहने वाली हैं। अच्छी टीम और अच्छे खिलाड़ी की पहचान तो विपरीत परिस्थितियों में भी असाधारण प्रदर्शन कर अपने देश को विजयी करवाने में है न कि परिस्थितियों के अनुकूल होने की प्रतीक्षा करने में। कई बार ज्यादा समझदार आदमी भी गलती करता है और कोहली ने उस दिन फाइनल में यही गलती की। जब आप पहले बैटिंग करते हैं तो आपके ऊपर कोई दबाव नहीं रहता है और चेज़ करने में हमेशा ये दबाव रहता है कि अब अगर रनगति नहीं बढाई तो मैच हाथ से जा सकता है। इस तरह के पल इस तरह के महत्वपूर्ण मैच में आते ही रहते हैं

बीती ताहिं बिसार दे,आगे की सुध लेअब कोहली और भारतीय टीम के लिए यही बेहतर है कि वो इस हार को एक हार की तरह लें और 23 जून से शुरू हो रहे वेस्टइंडीज़ के विरुद्ध एक दिवसीय मैचों की तरफ़ अपना ध्यान लगाये। एक मैच हारने से ज़िन्दगी ख़त्म नहीं हो जाती और एक मैच जितने भर से ज़िन्दगी सम्पूर्ण नहीं हो जाती। ये तो जीवन है और हार जीत तो लगी रहती है किन्तु महत्पूर्ण मैच हो तो अपने सभी वरिष्ठों से सलाह मश्विरा किया जा सकता है जो कि व्यक्तिगत तौर पर भले ही अच्छा ने लगे किन्तु देशहित में वो सर्वोपरि होता है।

-प्रदीप भट्ट –
Tuesday, June 20, 2017


Monday, 12 June 2017

टीम इंडस




हर इंडियन का मून शॉटयानि

टीम इंडस



हमारे देश में प्रतिभाओं की कभी कमी नहीं रही। अलबत्ता उन प्रतिभाओं को निखरने और अपनी चमक बिखेरने का मौका कम ही मिलता है शायद इसका कारण यह है कि हमारे देश में रिसर्च एंड डेवलपमेंट की भयंकर कमी है निजी कंपनीज हों या सरकार सब बस एक ही बात पर ध्यान देती हैं कि हम जो घोषणाएं करने ब्यूरोक्रेट या उन कंपनी के कर्मचारी बस उसका अक्षरश: पालन करें।उनका इस बात से कोई भी लेना देना नहीं होता कि जो चीज एक राज्य या जिले के लिए लाभकारी है वो चीज दूसरे राज्य या अन्य जिलों के लिए कैसे लाभकारी हो सकती है। किन्तु ये बात आज तक तो किसी की समझ में न आई और न जाने कब तक ऐसे ही ये सब चलता रहेगा। किन्तु उम्मीद पर दुनियां कायम है और देशी में भी कुछ नयी नयी सी हवा बहना शुरू हुई है जिसके कुछ सार्थक परिणाम भी आने शुरू हो गए हैं। ज्यादा मात्र में न सही किन्तु इक्का दुक्का प्रयास ये सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि हमारे देश में प्रतिभाओं की तो कमी नहीं हैं और कुछ कमी है तो उन्हें निखारने की या निखरने देने की। ये तो संभव नहीं है कि इस प्रकार की सभी गतिविधिओं के लिए सारे प्रयास सरकार ही करेगी कितु अगर कुछ प्रयास सरकार करे और कुछ हमारे अपने देश के ओद्योगिक घराने तो निश्चित ही सफ़लता की दर काफी हद तक बढ़ सकती है। क्या आप इस बात की कल्पना कर सकते हैं कि कोई प्राइवेट एजेंसी चन्द्रमा पर अपना यान उतारे। किन्तु ऐसा होने जा रहा है और सबसे अच्छी और रोचक बात यह है कि उन चंद चयनित टीमों में भारत की भी एक टीम है जिसका नाम है टीम इंडस । पिछले दिनों मैं एक ऐसे ही प्रयास के विषय में पढ़ रहा था तो सोचा आप सबको भी इस भागीरथ प्रयास के विषय में कुछ जानकारी दे दूँ। किन्तु इससे पूर्व ये जानना जरुरी है कि कौन कौन से देश आज तक अन्तरिक्ष में अपना परचम फ़हरा चुके हैं।

चन्द्रमा पर अपने लूना-२ मिशन को सबसे पहले सोवियत संघ ने भेजा था ये सिलसिला १९७६ तक जारी रहा । इसके पश्चात् अमेरिका ने फर्स्ट चन्द्रमा रिसर्च 1964 में उसके बाद लगातार 30 मिशनों ने कामयाबी के झंडे गाड़े। अमेरिका का ये सिलसिला 1964 से 1996 तक चलता रहा ।जहाँ तक जापान का प्रश्न है तो उसने चंद्रमा की कक्षा में  अंतरिक्ष यां एवं 2009 में सेलें ऑर्बिटर/इम्पैक्टर  भेजा ,यूरोपीय अन्तरिक्ष एजेंसी ने 2006 में स्मार्ट-१ लूनर अनुसन्धान ऑर्बिटर/इम्पैक्टर भेजा। चीन 2008 में चेंज-1 ऑर्बिटर, 2013 में  चेंज लैंडर अंतरिक्ष में भेजकर तीसरा देश बना। जहाँ तक भारत का प्रश्न है भारत ने चंद्रयान-प्रथम को 8 नवम्बर,2008 को एवं 14 नवम्बर,2008 को इम्पैक्टर को चन्द्रमा पर उतारकर विश्व का पांचवा देश होने का गौरव प्राप्त किया। भारत 2018 में चंद्रयान-2 ऑर्बिटर,लैंडर और रोवर को चंद्रमा पर उतारने की तयारी कर रहा है।



2007 में गूगल और लूनर ने दुनियां भर के engineers,Industrials and new startups  को निजी क्षेत्र के आर्थिक सहयोग के सहारे रोबोट से अंतरिक्ष की सस्ते और कम लागत के द्वारा खोज की जा सके साथ ही स्थापित एजेंसी गूगल लूनर एक्स प्राइस  के हिस्सा लेने के लिए दुनियां भर के देशों की निजी कंपनीज ने कुल ३२ आवेदन भेजे थे जो चयन प्रकिया के दौरान मात्र १६ ही रह गए और अंत में गूगल लूनर की शर्तों पर केवल पांच देशों के निजी संसथान ही खरे उतरे जिनमें मून एक्सेस (अमेरिका), स्पैसेल (इसराइल),हाकुतों (जापान),सिनर्जी मून (जो कि एक अंतर्राष्ट्रीय कांसोशिर्यम या संघ)। इस प्रतियोगिता का मकसद बड़ा ही साफ सुथरा है कि विश्व में कार्य कर रहे सभी अभियंता उद्यमियों और नवोंमेशियों (स्टार्टअप) को निजी क्षेत्रों के धन एवं साधनों के द्वारा पोषित किया जाए उनकी मदद से रोबोट अन्तरिक्ष की खोज को कम लगत में तैयार करने के तरीके आजमाए जा सके। इस पुरे मिशन की एक महत्वपूर्ण शर्त सिर्फ़ यही है कि प्रतिभागी टीमों को यदि इनाम की रकम जितनी है तो उन्हें चन्द्रमा पर एक यान न केवलउतारना होगा बल्कि उसे चद्रमा की सतह पर 500 मीटर की दुरी तक चलवाना भी होगा उस यान की खिचीं हुई तस्वीरें और विडोस धरती पर वापस भी मंगवाने होंगे। साथ ही ये भी साबित करना होगा कि यान पर आने वाला 50 प्रतिशत खर्च निजी सोत्रों से जुटाया गया है। इनाम की राशी भी काफ़ी कम महत्वपूर्ण नहीं है। जहाँ पहला इनाम २ लाख डॉलर का है वहीँ दूसरे इनाम की राशी 50 लाख डॉलर है। ये विषय अलग है कि टीम इंडस जो यान बना रहा है उसकी लगत लगभग 450 करोड़ रूपये बैठती है

राहुल नारायण जिन्हें बचपन में स्टार ट्रैक सीरियल ज्यादा पसंद था।1995 में IIT डेल्ही  से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने एक सॉफ्ट वेयर कंपनी बनाई किन्तु उनके हाथ असफलता ही लगी लेकिन वे बैचेन नहीं हुए तभी उन्होंने एक लेख पढ़ा जिसमें लुनर एक्स प्राइस के बारे में था उन्हें ये पढ़कर बड़ी हैरानी हुई कि इस प्रतियोगिता में भारत की तरफ़ से कोई एंट्री क्यों नहीं कर रहा बस यहीं से उनकी ज़िंदगी ने टर्न ले लिया और उन्होंने तुरंत अपने कुछ ख़ास दोस्तों से इस विषय में बात की और तय किया कि वे इसमें हिस्सा लेंगें और कुल जमा 50,000 डॉलर यानि करीब 35 लाख रूपये एकत्र करने के बाद इस प्रतियोगिता के ऐलान के तीन साल बाद 2010 के आख़िर में टीम इंडस ने अपना नाम रजिस्टर्ड करवाया। धीरे धीरे इस प्रोजेक्ट का आकर बढ़ता गया साथ ही कुछ लोगों की सलाह से इसरों के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर कस्तूरीरंगन को टीम इंडस का मार्गदर्शक बनने के लिए तैयार करना पड़ा। उन्हीं की सलाह के बाद इस प्रोजेक्ट को डेल्ही से बंगलौर शिफ्ट किया गया उनके प्रोजेक्ट की सहायता के लिए National Arospace Laboratory (NAL) ने अपना गेस्ट हाउस दे दिया साथ ही अन्य सहायता ही मुहैया कराई। सस्केन के अध्यक्ष राजीव मोदी ने अपना परिसर ही टीम इंडस को लीज पर नहीं दिया वरन प्रोजेक्ट में रकम भी निवेश की।इसी प्रकार Nivesh Global Mobile Adversing and tech platform inmobi के संस्थापक नवीन तिवारी और E tailer flipcart के संस्थापक सचिन और बिनी बंसल ने भी इसमें निवेश का फ़ैसला किया। टीम इंडस की ख़ुशी का तब ठिकाना नहीं रहा जब नंदन नीलकेनी और रतन टाटा ने भी इस प्रोजेक्ट में निवेश का फ़ैसला किया।

आज टीम इंडस में 100 से ज्यादा लोग कार्य कर रहे हैं जिनमें इसरों से रिटायर्ड लोग भी काम कर रहे हैं जिनकी औसत उम्र महज 26 वर्ष है। टीम इंडस से जुड़ने का उत्साह देखिये मुंबई में मैनेजमेंट कंसल्टेंट जैसा महत्वपूर्ण पद त्याग कर बंगलौर शिफ्ट करने वाली शालिका रविशंकर  जिन्होंने टीम इंडस के हर कर्मचारी और अधिकारी के लिए पोस्ट के हिसाब से स्टार वार्स किस्म के नाम सोचे जिनमें जेदी निंजा और स्क्यवाकर हैं। राहुल नारायण को फ्लीट कमांडर नाम दिया गया है। अगर इस पूरी कवायद का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि जब आप कुछ अच्छा नहीं कर रहे हों तो कुछ बेहतरीन करने की इच्छा ह्रदय में हिलोरें मारती रहती हैं। जो लोग इस दुविधा से पार पा लेते हैं वो दुनियां के लिए एक मिसाल या नजीर बन जाते हैं। टीम इंडस उसी आशा और विश्वास का एक नाम है जिसके लिए प्रत्येक भारतीय ह्रदय से यही सदिच्छा रखता है कि टीम इंडस ये प्रतियोगिता अवश्य जीते।
-प्रदीप भट्ट –

Monday, June-12-2017