रिपोर्ताज
"कैसन बा नानी दमन"
हुआ यूं के "अखिल भारतीय सर्वभाषा, संस्कृति समन्वय समिति" अरे भाई गड्डी से भी बड़ा नाम लेने में गड़बड़ाने से अच्छा है ABS 4 से सम्बोधित कर लो। वो क्या है न कि जब तक इत्ता बड़ा नाम लिया जाएगा तब तक गड्डी दिल्ली से दमन पहुंच भी जाएगी।😜 ख़ैर जोक सपाट तो भईया जब लक्षद्वीप का प्रोग्राम किन्हीं कारणों से सिरे नहीं चढ़ा तो डॉक्टर खामोश भागिया, अजी वही जनाब खूबसूरत से आदमी और उस पर उनकी निहायत करीने से पैनी शेप में फ्रेंच कट दाढ़ी यानि🍟 "अहमदाबाद के कोहिनूर" जी के सुझाव पर अमल करते हुए स्थान परिवर्तन करते हुए दमन में 22वां अधिवेशन करने का फैसला हो गया। अब भैय्या हो गया तो हो गया। कुछ नवीन और कुछ प्राचीन साहित्य साधकों के साथ तेजस राजधानी 🚂 के A 1और A2 कूपों में उधम मचाते हुए दिल्ली और आसपास के साहित्यिक मनीषियों को लेकर "साहित्य का कारवां" 19 की सुबह 7.32 पर वापी में धम्म से उतर गया। धम्म से इसलिए भैय्या कि ससुरा दुर्ई मिनिट के स्टॉप में धम्म से ही उतरा कह लो धकेला कह लो ऊपर से बरखा रानी जो वडोदरा से शुरु हुई तो मुम्बई तक तेजस को छोड़ने अवश्य गई होंगी। उतरते ही ध्यान आया कि गुरुग्राम प्लेटफार्म नम्बर 2 पर धम्म से उतर चुका है, नोएडा भी दिल्ली भी और हम इकलौते मेरठ से भी लेकिन गाजियाबाद की धम्म से आवाज़ क्यूँ न आई अब तक। यही सोच रिए थे कि फोन घनघना उठा उधर दयावती जी थीं छूटते ही बोली प्रदीप सर हम ( बेटा और दयावती जी) तो ट्रेन में ही रह गए। जे कैसे हुए तो ख़ैर कई बार के वार्तालाप के बाद निश्चित हुआ कि बोरिवली उतरकर वापिस आ जाओ। वैसे है न मज़े की बात टिकिट वापी का और यात्रा मुम्बई तक की वो भी बिलकुल फ्री फ्री फ़्री। 😊 ख़ैर जैसे तैसे सभी लोग प्लेटफार्म नम्बर एक पर पहुंचे बारिश थी कि लगातार हुए जा रही थी हमने भगवन् ओ भई गॉड को फोन लगाया तो उन्होंने भी झट से उठा लिया हमने अनुनय विनय कि माहराज तनिक सांस तो लो वडोदरा से लगातार बरसे 🌧️ ही जा रिए हो कमसकम सुस्ता तो लो तनिक देर ठहर जाओ हम होटल 🏨 पहुंच जाएं तब खूब गरिया लेना। पर भगवन तो भगवन ठहरे एक दम आँखें तरेर कर बोले क्यों बे ये कोई ईरान इजरायल युद्ध हो रहा है या रूस= यूक्रेन युद्ध और हां भई तू पहले ये बता तू ख़ुद को क्या समझता है जब भी प्रोग्राम करने जाएगा मुझे फोन ज़रूर लगाएगा। कहीं तू ख़ुद को दूसरा मोदी तो नही समझने लगा है जो चलते युद्ध में फ्री वे ज़बरदस्ती ले लेता है बेटा कहीं तू भी इसी फ़िराक़ में तो नही है। भगवन की बात सुनकर एक बरगी तो अपनी भी..... 🤓आप समझ गए न फिर हिम्मत बांधकर बोले देखो भगवन हम मोदी तोन हैं न पर कुछ कम भी न हैं लेकिन तनिक हमारी अर्ज पर गौर फरमाओ। इत्ते सारे साहित्य साधक हमारे संग हैं हम तो ट्रेन में दो नम्बर से फारिग हो गए पर कई तो.... 🍯 भगवन् बीच में ही टोकते हुए बोले सुन बे लमंडीस 25 मिनिट का फ्री वे दे रिया हूं पतली गली से निकल लो 26वें मिनिट में पूरे लाव लश्कर के साथ लौटेंगे बेटा चलो अब फूटो जल्दी से। हमने दांत निपोरते हुए थैंक यू कहा और 6 लोगों के साथ झट से वैगन आर में घुस लिए। जौनपुर का ड्राइवर ऊबड़खाबड़ रास्तों को पार करते हुए दमन स्थित होटल सॉवरिन में, सामान उतारकर ड्राईवर का हिसाब किया उतरते उतरते गौर किया पारावर बस सौ मीटर दूर हमने खुदई हूं किया और लो जी भाईसाहब भगवान जी 30,40 की रफ़्तार के पानी बरसाते हुए आ धमके। हमने अपनी टाइटन ⌚ को पलटकर देखा पूरे छब्बीसवें मिनिट में बारिश ☔ आ धमकी थी, लगा तानसेन ने राग बारिश्वा छेड़ दिया है।
ख़ैर रूम एलाट करवाया और थोड़ी देर के लिए अपने आप को बेडवा पर धकेल दिया। तभी नॉक नॉक कौन है हुआ दरवज्जा खोला तो बाहर बिहार से ताल्लुक़ रखने वाला रुम ब्यॉय बोला सर ब्रेक फास्ट 10.30 ही मिलेगा, हमने उसे थैंक यू बोला और सवा नौ बजे तक फटाफट तैयार होकर आखिरी तल पर पहुंच गए, क्या ही बढ़िया मौसम 30,40 की स्पीड से चलती हवा और हवा के संग नैन मटक्का करती बारिश, सामने करीने से सजी हुई इडली, वडा, पोहा, ब्रेड 🥞 🥞 बटर और पता नही क्या क्या, तभी काउंटर पर धर्मेंद्र जी सपत्नीक दिखाई दिए कुछ असमंजस में लग रहे थे, पूछा तो ज्ञात हुआ नाश्ते का पैसा 260/= पर प्लेट लगेगा यानि कुल 520 का फटका। बारिश इत्ती कि बाहर जाकर नाश्ते का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। तभी अनिश्च के बादल में बिजली चमकी रस्ता पाया ( कविता की पंक्तियां याद हो आईं) हमने बड़े अदब से मैनेजर से बात की उन्हें बताया कि हम 22 की सुबह चैक आउट करेंगे और ये धर्मेंद जी पत्नी के साथ भी सो हमारे 22 जून के नाश्ते को एडजेस्ट कर लें, 😎😎😎😎अच्छी बात ये हुई मैनेजर ने हमारी बात मान भी ली और लो 780/= का फायदा हो गया। धर्मेंद्र जी बोले गुरु तुसी कमाल कर दित्ता। हमने भी कालर को सीधा किया और बोल दिया भईया ब्राह्मण बुद्धि है और बस भाई फिर ऊपर नलकी तक ठूस लिया फिर बाद में अपने साथियों से गुफ्तियाने बैठ गए। अपना फंडा सीधा है महाराज " भूखे भजन न होय गोपाला, पकड़ ये अपनी कंठी माला"। कुछ देर बाद अग्रज व मित्र डॉक्टर ख़ामोश भागिया से मुलाक़ात हुई, हम लगातार दयावती जी के सम्पर्क में थे वो पुत्र के साथ बोरीवली स्टेशन से वापिस लौट रही थीं। थोड़ी देर बाद नरसिंह पुर से शंकर सहर्ष जी कमरे में अवतरित हुए। तभी दयावती जी ने बताया कि वे होटल पहुंच गई हैं। मुम्बई से सागर त्रिपाठी जी एवम् अन्य मित्र बारिश का आनंद लेते हुए अंततोगत्वा 3 बजे होटल पहुंचे। कार्यक्रम का प्रथम दिन स्वागत सत्कार के बाद अपनी रवानी क़ायम करने लगा, पहले मधु मिश्र जी पर प्रज्ञान विश्वम के विशेष अंक का लोकार्पण हुआ तत्पश्चात बहुभाषीय कवि🥰🥰🥰 सम्मेलन। बाहर बारिश के रंग देखकर मेरे मुंह से निकला काश गर्म चाय के साथ गर्मा गर्म पकौड़े हो जाएं तो क्या कहने। सरस्वती जी तो वहीं विराजी हुई थीं सो तुरन्त फरमाइश पूरी हुई। साढ़े छः बजे कार्यक्रम ने जय राम जी की और उधर पकौड़ों की खुशबू ने नथूनो को ज़रूरत से ज़्यादा ही चौड़ा कर दिया सो भैय्या धन्यवाद शुक्रिया बाद में पहले पकौड़ों की क्लास ले ली फिर गर्मा गर्म चाय की सुड़कियां लेते हुए गापियाने बैठ गए और ये ग़पियाना धीरे धीरे नाच गाने और मस्ती में कब तब्दील हो गया पता ही नही चला। सो अगले दिन के नाश्ते की परिकल्पना में विचरते हुए कमरे में जा धमके और पसर गए बेड पर।😘
अगले दिन की सुबह वैसी ही थी जैसी बरसात के बाद होती है, उठे फ्रेश हुए घूमते हुए जलधी जा पहुंचे, पारावर को नमस्ते की फिर दो चार फुटवा लिए फिर ग्यारह नंबर की बस से वापिस होटल, नाश्ता ठोका और मीटिंग हॉल में। ठीक 10 बजे कार्यक्रम शुरु, पहले एक शेर फिर आगे:
"ख़ुद को खुश रखने की यूं, तरकीब एक निकाल ली
ख़ुद ही खरीदी फूलमाला, ख़ुद ही गले में डाल ली" 🥰🥰😛🤣😎
सो पहले सत्र में जो होना था हुआ फिर सम्मान प्रदान करने की रस्म अदायगी की गई फिर हुआ 4 मिनिट में एक कविता गीत ग़ज़ल पेश करने का सिलसिला। अब शुरु हुआ तो हुआ करे अब 4 मिनिट में कोई क्या ही पढ़ेगा सो जिसने जितना चाहा समय लिया और जो होना था वही हुआ। हमने भी एक ठो ग़ज़ल पढ़ दी। अब जे तो सुनने वाले ही जाने ग़ज़ल कैसी रही पर भैय्या हमने अपनी कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ी। यक़ीन नहीं आ रहा तो लो जी आप भी पढ़ लो।
ग़ज़ल
22 22 22 22 22 22 22 22
" रिश्तों की तुरपाई कर लूं "
रिश्तों की तुरपाई कर लूँ, थोड़ी और कमाई कर लूँ
लम्बा जीवन आस है छोटी, मैं पूरी भरपाई कर लूँ
किसकी खातिर ज़िंदा रहना, अपने लोग पराए निकले
फिर भी जी की यही तमन्ना, थोड़ी और भलाई कर लूँ
किसकी चाहत पूरी होती, जो मेरी भी हो जाएगी
फिर भी मरने से पहले मैं, जीवन आना पाई कर लूँ
लिख लिख कागज़ काले करना, तू भी कर ले मैं भी कर लूँ
अच्छा हो गर मैं भी अपनी, क़िस्मत को चुग़ताई* कर लूँ
इसकी उसकी छोड़ बुराई, इससे कुछ कब हासिल होगा
इससे तो ये बेहतर होगा, मैं भी राम दुहाई कर लूँ
वसन फटे हैं माना मेरे, पर किरदार बहुत है ऊंँचा
साथ अगरचे थोड़ा तुम दो, मैं इसकी रफूआई कर लूँ
पास तो हों पर पास नही हों, सोचो ये भी क्या जीवन है
इससे बेहतर नाम बदलकर, अपना नाम जुदाई कर लूँ
धूल जमी है जिन रिश्तों पर, आज नहीं तो कल उतरेगी
मन के जालों की मैं पहले, थोड़ी आज सफ़ाई कर लूँ
प्यार बहुत है उससे लेकिन, छुप छुप मिलना ठीक नही
उसकी बदनामी से बेहतर, मैं उससे कुड़माई कर लूँ
मिलती कब सपनों की रानी, कैसे अब यह जीस्त कटेगी
सोच रहा हूंँ कुछ भी करके, जीवन फिर तरुणाई कर लूँ
सुख दुःख पल दो पल का मेला, आज नही तो कल आएगा
पास बिठाकर सुख को अपने, ख़ुद अपनी परछाईं कर लूँ
जीवन के इस चक्रव्यूह से, पार सभी को होना ही है
सोच रहा हूं इससे पहिले, रुपया एक दहाई कर लूँ
अपनी मैं में चूर रहा हूँ , कभी किसी को कुछ कब समझा
इससे पहले ज्यादा बिगड़े, बातों में नरमाई कर लूँ
'दीप' की क़िस्मत रात अमावस, बोलो जी क्या हो सकता है,
रब की मेहर मिले तो मैं भी, रोशन रात सवाई कर लूँ✅
प्रदीप डीएस भट्ट=16062025
*सफ़ेद
रात के प्रोग्राम से आज हमने दूरी बना ली और सागर जी के साथ उनके रुम में जबरदस्त गुफ्तियाए, अगला दिन आया ही चाहता था सो कमरे में एंट्री ली और सो गए। ट्रिन ट्रिन हुई तो देखा माया मेहता मुम्बई वाली का कॉल, हमने ऊंघते हुए हेलू हेलू कहा ही था कि तुरन्त होटल की छत पर आने का आदेश हुआ। पहली बार मुलाकात हुई थी सो मना करना मुनासिब नहीं लगा और पहुंच गए ऊपर। हमें देखकर कुछ के चेहरे खिले🧐 और........ अंताक्षरी चालू आहे, कुछ देर आनंद लिया फिर गीत सुने गाए, है न बढ़िया बात आज भी जब इस तरह का प्रोग्राम हो तो गाने सभी 60,70,80 के ही गाते हैं। Old is वास्तव में रियल 🪙। रात्रि 1.30 पर वापिस कमरे में और खर्राटों के कंप्टीशन में भागीदारी करते हुए निंद्रा रानी की गोद में सुबह नाश्ते की वैरायटी के बारे में सोचते हुए लेटमलेट।
अंतिम दिन में नानी (छोटा) दमन और बड़े दमन में घूमना फिरना फिर कुछ लोकल आइटम को वोकल का टच देकर उसे ग्लोबल स्वाद देते हुए वापिस रुम में सो गए अगले दिन जल्दी उठने के लिए आख़िर 8.15 की ट्रेन जो पकड़नी थी। मैं और भागिया जी समय से स्टेशन पहुंचे आख़िर बरखा रानी का डर जो था न महाराज। ट्रेन ली और पहुंच गए वडोदरा शाम को एक प्रोग्राम में चीफ़ गेस्ट जो थे भाई।🫠🫠 सो होटल palm में डेरा डाला, सुबह से पेट खाली था सो 3 बजे नाश्ते के रूप में स्वयं को खिचड़ी का भोग लगाया और मिश्र जी के साथ कार्यक्रम स्थल। बिना किसी तामझाम के अच्छा प्रोग्राम कैसे किया जा सकता है उसकी अच्छी बानगी देखी। सभी को यथोचित सम्मान, आलू के पराठे के साथ छाछ और शायद वेज बिरयानी (पर सब्जी तो न थी चलो जी नमकीन चावल ही कह लेते हैं🥰) , आनन्द आ गया। कई बार बड़ोदरा आना हुआ लेकिन लक्ष्मी विलास महल न देखा न ही लाइब्रेरी और न ही म्यूजियम वगैरह वगैरह। अफसोस दिल गड्ढे में सोमवार होने के कारण सभी बंद थे फिर भी सेंट्रल लाइब्रेरी को बाहर से ही देख लेने का लोभ संवरण नहीं कर पाया लेकिन आश्चर्य भैय्या लाइब्रेरी मरम्मत के कारण खुली मिली सो अच्छी तरह से देखा और समझा भी जानकार आश्चर्य भी हुआ कि गुजरात के लोग इतना पढ़ते हैं। औसत 30,35 हज़ार पुस्तकें 📚 📚 📚 📚 लोग थेलों में भरकर प्रतिमाह ले जाते हैं। "इसकी रपट फिर कभी" रात्रि तेजस ट्रेन ली और सीधे दिल्ली होते हुए मेरठ। शुक्र ये रहा कि मेरठ पहुंचने तक बादल उमड़ते घुमड़ते तो रहे किंतु बरसे नही। थैंक यू भगवन।
विशेष: धन्यवाद रश्मि रंजन जी "सृजन साहित्य मंच" बिना किसी तामझाम के अच्छा प्रोग्राम करने के लिए।🌹🌹🌹🌹🌹🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙌🙌🙌🙌
प्रदीप डीएस भट्ट: 28625