“कमल का कमाल” या
“गोलमाल”
कमल कीचड़ में ही खिलता है ?
और
तिमिर पर प्रकाश का ही राज होता है ?
लोग अपनी महत्त्वकांशाओं को अमली
जामा पहनाने को लेकर इतने सजग हैं कि वे ये भी नहीं देखना चाहते कि इसके
दुष्परिणाम क्या क्या हो सकते हैं ऐसे लोग सिर्फ़ और सिर्फ़ अपनी अपनी अति
महत्त्वकांशाओं के मारे हुए होते हैं इसका जीता जागता उदाहरण कुछ दिनों पूर्व
दक्षिण के अभिनेता प्रकाश राज के द्वारा 5 सितम्बर -2017 को 55 वर्ष की गौरी
लंकेश की हत्या पर दिए गए बयान कि “प्रधानमंत्री मोदी एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी उनसे भी
बड़े अभिनेता हैं एवम दोनों ही ने गौरी लंकेश की हत्या पर अपनी अपनी आँखे बंद की
हुई हैं। प्रकाश राज के
इस बयान पर लखनऊ में उनके विरुद्ध एक मुकदमा दर्ज हो गया है।
अभी ये सब कहानी चल ही रही थी के परसों
ही दक्षिण के ही नामचीन अभिनेता कमल हासन ने तमिल पत्रिका ‘आनंद विकटन’
के हालिया अंक में
अपने स्तंभ में आरोप लगाया कि दक्षिण पंथी संगठनों ने अपने रुख में बदलाव किया है, वे पहले के मुक़ाबले तर्क को तरजीह न देकर
हिंसा का रास्ता अपना रहे हैं जो ग़लत है तमिल पत्रिका
को दिए गए एक साक्षात्कार में कमल ने किसी
भी हिंदू संगठन का नाम तो नहीं लिया अलबत्ता उन्होंने “हिंदू आतंकवाद” कहकर एक तरह से भारतीय राजनीती में एक नया शिगूफा छोड़ दिया। इससे पूर्व
तमिल फिल्म अभिनेता ने
लिखा, ‘चरमपंथ किसी भी तरीके से उनके लिये
सफलता या विकास का मानक नहीं हो सकता जो खुद को हिंदू कहते हैं।
हाल ही में केरल के
मुख्यमंत्री पिनराई विजयन से मुलाकात करने वाले हासन ने मार्क्सवादी नेता द्वारा
उठाये गये उस सवाल का जवाब भी दिया जिसमें उन्होंने पूछा था कि अभिनेता ‘हिंदूवादी ताकतों द्वारा धीमी घुसपैठ के जरिये द्रविड
संस्कृति को कमजोर करने
के बारे में क्या
सोचते हैं। विजयन ने कहा हाल के समय में हम
देख सकते हैं कि नस्ली भेदभाव और प्रतिक्रियावाद तमिलनाडु में अपने पांव जमाने की
कोशिश कर रहा है।अभिनेता ने जवाब दिया कि सत्य की जीत होने के विश्वास
का दरकना और ताकत सफल हो जायेगी और हम सबको बर्बर बना देगी।एक वक्त दार्शनिक
अंदाज में हासन ने कहा, ‘परिवर्तन अपरिवर्तनीय है।
हिंदू
आतंक पर बयान देने के मामले में अभिनेता कमल हासन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता
(आईपीसी) की धारा 500, 511, 298, 295 (ए) और 505
(सी) के तहत मामला दर्ज किया गया है. वाराणसी की एक अदालत
अभिनेता कमल हासन के खिलाफ हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को कथित रूप से आहत करने
वाली टिप्पणी के खिलाफ एक शिकायत पर सुनवाई आज यानि शनिवार (4 नवंबर)
को होगी। अर्जी दाखिल करने वाले वकील कमलेश चंद्र
त्रिपाठी ने शुक्रवार (3 नवंबर) को बताया कि अतिरिक्त
मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीजेएम) की अदालत ने शिकायत पर सुनवाई करने का निर्णय
लिया है। अधिवक्ता कमलेश ने वाराणसी न्यायालय के एसीजेएम
की अदालत में एक याचिका दायर कर के कमल हासन के ऊपर धार्मिक भावनाओं को आहत करने
का आरोप लगाया है।आख़िर कमल हासन को इस सब की क्या ज़रूरत थी ।
कमल दक्षिण के सुपर स्टार हैं और कुछ हद तक वे हिंदी फिल्मों में भी सफल रहे हैं
फ़िर ऐसी क्या ज़रूरत आ पड़ी की उन्हें इस तरह का बयान देना पड़ा। चलिए पहले कुछ कमल
हासन के विषय में जान लेते हैं।
जब
कमल हासन जो कि एक भारतीय फिल्म अभिनेता हैं कुछ ऐसा कहे जिससे पूरे देश में
भूचाल आ जाये तो यह सोचने का विषय है कि वे ऐसा क्यों कह रहे रहें हैं।
अभिनय और निर्देशन के अलावा,
वह एक पटकथा लेखक, गीतकार, पार्श्व गायक और कोरियोग्राफर भी हैं। उनका जन्म 7
नवम्बर 1954 को परमकुडी, मद्रास जिसे अब चेन्नई के नाम से जाना जाता है में हुआ। वर्ष 1978 में कमल
हासन ने ‘वाणी गणपति’ से विवाह कर
लिया, किंतु दस साल बाद ही 1988 में
इन दोनों का रिश्ता टूट गया। इसके बाद कमल हासन ने सारिका से शादी कर ली। वाणी गणपति से जहाँ श्रुति
हासन है वहीँ सारिका से अक्षरा हासन। साल 2004 में कमल
हासन और सारिका ने तलाक ले लिया। कमल हासन ने अपने सिने करियर की शुरुआत बतौर बाल कलाकार 1960 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘कलाधुर
कमन्ना’ से की। वर्ष 1975 में
प्रदर्शित फ़िल्म ‘अपूर्वा रंगनागल’ में
मुख्य अभिनेता के रूप में निभाए गए किरदार से उन्हें पहचान मिली। 1977 में प्रदर्शित फ़िल्म ’16 भयानिथानिले’ की व्यावसायिक सफलता के बाद कमल हासन
स्टार कलाकार बन गए. निर्माता एल.वी. प्रसाद की फ़िल्म ‘एक
दूजे के लिए’ में अभिनय किया। फ़िल्म में कमल हासन ने अपने
अभिनय से दर्शकों का दिल जीत लिया। 1982 कमल हसन की
एक और सुपरहिट तमिल फ़िल्म ‘मुंदरम पिरई’ रिलीज़ हुई, 1985 में कमल हासन रमेश सिप्पी के
फिल्म ‘सागर’ में ऋषि कपूर और डिंपल
कपाडिया के साथ नज़र आये। 1985 में कमल
हासन की एक और सुपरहिट फ़िल्म ‘गिरफ़्तार’ प्रदर्शित हुई, जिसमें उन्हें सुपरस्टार अमिताभ
बच्चन के साथ काम करने का उन्हें मौका मिला। वर्ष 1983 में सदमा
शीर्षक से यह फिल्म हिंदी में रिलीज हुई जिसके कई दृश्य में कमल हसन ने एक ऐसे
युवक कि भूमिका निभाई, जो एक युवती कि याददाश्त खो जाने के
बाद उसे सहारा देता है और बाद में उससे प्यार करने लगता है, लेकिन बाद में जब युवती कि याददाश्त लौट कर आ जाती है तो वह उसे भूल
जाती है और इस सदमें को कमल हसन सहन नहीं कर पाते हैं और पागल हो जाते हैं.
हालांकि फिल्म टिकट खिड़की पर असफल हुई, लेकिन सिने दर्शक
आज भी ऐसा मानते हैं कि कमल हसन के सिने कैरियर कि यह सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में
से एक है। पुरस्कारों की दृष्टि से पद्मश्री धारक कमल हासन, भारतीय
सिनेमा के इतिहास में सबसे अधिक सम्मानित अभिनेता हैं। उनके नाम सर्वाधिक
राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार
तथा सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार पाने वाले अभिनेता होने का रिकॉर्ड दर्ज है। इसके
अतिरिक्त कमल हासन, पांच भाषाओं में रिकॉर्ड फ़िल्मफ़ेयर
पुरस्कार धारक हैं और उन्होंने 2000 में नवीनतम पुरस्कार
के बाद संगठन से ख़ुद को पुरस्कारों से मुक्त रखने का आग्रह किया।
चूँकि कमल हासन की पीछले कुछ
वर्षो में बनाई गई फ़िल्में बॉक्स ऑफिस पर अपना कमाल नहीं दिखा पा रहीं थी तो
उन्होंने सोचा क्यों न राजनीती में अपने मुकद्दर को आजमाया जाए और उन्होंने पहले
डेल्ही के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से मुलाकात की फ़िर कुछ अन्य नेताओं से
इन्हीं नेताओं में से केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन से मुलाकात के दौरान वो यह
कहना नहीं भूले कि केरल में राज्य सरकार अच्छा कार्य कर रहीं है जब वास्तविक
स्थिति इसके बिलकुल विपरीत है। केरल में लव जिहाद अपने पांव जमा
चुका है जिस पर देश का सर्वोच्च न्यायलय अपनी चिंता व्यक्त कर चुका है और इसकी
जाँच राष्ट्रीय जाँच एजेंसी से कराने की
सिफारिश भी कर चुका है इसके अतिरित्क जिस प्रकार केरल में हिन्दुओं की भावनाओं
को ठेस पहुंचाई जा रही है और हिंदू नेताओं की
बर्बर तरीके से हत्या की जा रही है वह चिंताजनक है किन्तु कमल हासन को
वहां सब कुछ अच्छा दिखाई दे रहा है तो वह कैसे?
पिछले ही वर्ष जवाहर लाल नेहरु विश्विद्यालय में जिस प्रकार भारत विरोधी नारे लगाये गए क्या कमल उन्हें भी सहीं ठहराना चाहते हैं आख़िर सिर्फ़ राजनीती में अपना भविष्य ढूंढने को लेकर उत्साहित कमल हासन किसी भी हद तक जा सकते हैं। स्वंय हिंदू होकर वे हिंदू धर्म को नहीं समझ पाए तो वे औरों को क्या समझा पाएंगे। आख़िर कोई व्यक्ति इतना नीचे कैसे गिर सकता है। देश से बड़ा तो कुछ भी नहीं है।फ़िल्मी बातें और वास्तविकता में इतना गहरा और काला अंतर कैसे हो सकता है। ये किसी भी व्यक्ति या किसी भी समाज के लिए अच्छा नहीं हो सकता। हमें ऐसी बीमार मानसिकता वाले लोगों की ज़रूरत नहीं है जो अपने स्वार्थ के लिए पाताल से भी नीचे गिर जायें। ऐसे वहशी और चालक लोगों की सज़ा उनके कद को छोटा करने से ही पूरी हो जाएगी। लेकिन दक्षिण के लोग तो भावुकता में मुर्खता में सर्वश्रेष्ठ साबित होते हैं। नेताओं और अभिनेताओं के मंदिर बनवाना ये निपट मुर्खता ही है इनकी एक आवाज पर आपराधिक कृत्य करना और अपनी जान तक दे देना यही दक्षिण की परिणिति रही है। |
-प्रदीप भट्ट-
Satarday 04,November-2017
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