Saturday, 7 October 2017

स्वच्छ भारत अभियान यानि भागीरथी प्रयास





 ‘‘स्वच्छ भारत अभियान’’
-एक भागीरथी प्रयास -


भारत सरकार की कुछ महत्वाकंशी योजनाओं में से एक महत्वपूर्ण योजना है।जिसका नाम है “स्वच्छ भारत अभियान “ 15 अगस्त 2014 को  स्वतंत्रा दिवस पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इस अभियान की शुरुआत की।धीरे धीरे ही सही लोग इससे योजना को समझने लगे हैं और कहीं ना कहीं लोगों के दिमाग में ये बात भी घर करने लगी है कि इस योजना से आख़िर असली फ़ायदा तो स्वंम उनका ही होना है।
कुछ लोग पहले इस योजना को ज्यादा तव्वजो देने के मूड में नहीं थे क्यों कि इतिहास बताता है कि सरकारी योजनाएं जिस गरीब और मज़लूम के नाम पर जारी की जाती है उन तक उन योजनाओं का लाभ कभी नहीं पहुँच पाता ।किन्तु पीछले तीन वर्षो में वर्तमान सरकार ने इस योजना को प्रचार के हर माध्यम से फ़िर चाहे वो प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक या फ़िर तेजी से उभरते सोशल मीडिया का सही और उचित तरीके से इस्तेमाल करते हुए अपनी बात लोगों तक पहुँचाने में सफ़लता पाई है और लोगों को इसमें भागीदारी करने का एक नायब मौका भी प्रदान किया है।
स्वच्छता की आवश्यकता को महात्मा गाँधी ने समय रहते ही पहचान लिया था इसी कारण उन्होंने स्वच्छता पर विशेष ज़ोर दिया और हरिजन सेवक संघ के माध्यम से स्वच्छता के महत्व को जन जन तक पहुँचाने का बीड़ा उठाया। 1932 अस्पर्श्यता निवारण संघ के रूप में हुई किन्तु बाद में  13 सितम्बर 1933 को इसका नाम हरिजन सेवक संध रखा गया। इसके प्रथम अध्यक्ष घनश्यामदास बिड़ला और सचिव के रूप में अमृत लाल विठ्ठल दास ठक्कर ने इसकी देख रेख की। इसका मुख्यालय किंग्सवे कैंप डेल्ही में है । भारत के ज्यादातर शहरों में इसकी शाखाएँ विद्यमान हैं। आज भी इस मिशन के प्रति उतना ही गंभीर है जितना वह गाँधी जी के समय में था।
स्वच्छता से तात्पर्य सिर्फ़ शरीर की स्वच्छता ही  नहीं अपितु हमारे घर की, हमारे परिसर की, गाँव की और आजकल तो वातावरण की भी स्वच्छता अति आवश्यक है क्यों की हम जाने अंजाने ही सही अपने वातावरण को भी दूषित कर रहे हैं जिसके परिणाम अच्छे नहीं आ रहे हैं। लेकिन अच्छी बात यह है कि आज की युवा पीढ़ी इस विषय में सकारात्मक सोच रखती है। ये युवा शक्ति ही है जो कि सोशल माध्यम से भिन्न भिन्न वीडियोस बनाकर आम लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने का सफ़ल प्रयास कर रही हैं।निश्चित रूप से ये  भविष्य के लिए एक शुभ संकेत है
आपने देखा होगा कि गणेश विसर्जन हो या दुर्गा माँ का विसर्जन, विसर्जन के अगले ही दिन कुछ स्वंम सेवक , स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थी विसर्जन के स्थान पर पहुँच जाते हैं और साफ सफ़ाई में बिना किसी भेद भाव के अपना योगदान देते हैं। किन्तु इसका एक दूसरा पक्ष यह भी है कि कुछ लोग अपने घर का कचरा दूसरे के घर या आंगन में फ़ेंककर स्वच्छता अभियान की इतिश्री कर देते हैं ।किन्तु हमें इन बातों से हतोस्साहित नहीं होना चाहिए क्यों कि शुरुआत में कोई भी अच्छा कार्य करने में तमाम दिक्कतों का सामना करना ही पड़ता है किन्तु यदि मनुष्य इस प्रयास को भागिरिथि प्रयास में तब्दील कर देता है तो प्रतिकूल प्रतिस्थिथि भी धीरे धीरे अनुकूल होने लगती है। ज़रूरत सिर्फ़ धैर्य रखने की है। इसका उदाहरण जब तब मीडिया के माध्यम से लोगों के सामने आना भी शुरू हो गया है जब हम लोग पढ़ते हैं कि फलां गाँव,क़स्बे में दुल्हन ने शौचालय न होने पर शादी करने से इंकार कर दिया तो इस मिशन की सार्थकता समझ में आती है। हिंदी फिल्म उद्योग भी इस विषय पर सार्थक प्रयास करता नजर आ रहा है इसी प्रयास के तहत “टॉयलेट एक प्रेम कथा” इसका उदाहरण है।

 







प्रधान मंत्री के इस भागिरिथि प्रयास को सफ़ल बनाने के लिए जहाँ भारत के  विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि हिंदी फ़िल्म उद्योग से नामचीन हस्तियों को इस मिशन से जोड़ा गया वहीँ खेलों से भी, इसी के साथ अनेक उद्योगपति इस मिशन से जुड़े वहीं अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों के प्रतिष्ठित लोगों ने भी इसमें अपनी भागीदारी सुनिश्चित की है जो कि एक शुभ संकेत है। भारत सरकार के सभी मंत्रालयों, डिपार्टमेंटस ,बैंकस ने भी इसमें बढचढ कर हिस्सा लिया है। गाँधी जी की स्मृति में बनाए गये खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने भी ‘‘स्वच्छ भारत अभियान’’ में ज़ोर शोर अपनी सहभागिता दी  है ।खादी और ग्रामोद्योग आयोग के केन्द्रीय कार्यालय के अतिरिक्त पूरे भारत वर्ष में कार्य कर रहे कुल 75 कार्यालयों में सफाई अभियान ज़ोर शोर से चलाया गया।

 
प्रधानमंत्री का ये उदघोष कि “देवालय से पहले शौचालय आवशयक है” हालांकि समाज के कुछ तबकों के गले नहीं उतरा किन्तु फ़िर भी इसे गाँव, कस्बों और शहरों में भी जिस प्रकार का प्रतिसाद मिला है वह स्वागत योग्य है। लोग अब स्वंम इसको गंभीरता से लेने लगे हैं। स्वच्छता मिशन धीरे धीरे सही राह पर चल पड़ा है  ज़रूरत है इसमें बस निरंतरता बनाए रखने की।


                                                                                    -प्रदीप भट्ट-


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