"प्रधानमंत्रीे ने शेर पढ़ा है भई"
प्रदेश सरकार की साहित्य अकादमी द्वारा साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले कवियों,लेखकों, शायरों हेतु विभिन्न श्रेणियों के लिए पुरूस्कार घोषित किए जा चुके थे। यूँ तो प्रविष्टियां हर साल मंगवाई जा रही थीं किन्तु मुख्यमंत्री कार्यालय अगले साल अगले साल कहकर पत्रावली विभाग को वापिस लौटा देता था। चूँकि इस साल चुनाव होने थे तो पिछले पाँच सालों के लिए एक साथ प्रविष्टियां मंगवाई गईं और आनन फानन में पुरुस्कारों की घोषणा भी कर दी गई। पुरस्कृत होने वालों की सूची प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में आते ही चर्चाओं का केंद्र बन चुकी थीं । पुरूस्कार प्राप्त करने वाले सभी के मोबाईल पर बधाइयों का तांता लगा हुआ था। कुछ साहित्यकार इस सम्मान से फूले नहीं समा रहे थे तो कुछ पुरुस्कार न मिलने की पीड़ा से व्यथित हुए जा रहे थे। कुछ ऐसे भी थे जिनका सूची में नाम आ चुका था किन्तु वे दूसरे की सम्मान राशि को लेकर दुःखी थे कि हाय हमें इतनी और उसे उतनी क्यूँ मिली। चूँकि प्रदेश में कुछ ही दिनों में चुनावों की तारीखों का ऐलान होने वाले था अतएव मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से प्राप्त संदेश के दबाव में प्रदेश साहित्य अकादमी ने घोषणा के एक हफ़्ते के भीतर ही सम्मान समारोह की घोषणा भी कर दी।
आख़िर वो दिन भी आ पहुँचा जब प्रदेश की राजधानी के प्रतिष्ठित गाँधी सदन में पुरूस्कार समारोह आयोजित हुआ। सभी लेखक शायर कवि विभिन्न वेशभूषाओं से सुसज्जित साथ में थोड़ी सी ठसक के साथ में हॉल में प्रवेश करते जा रहे थे। कार्यक्रम शुरु होने के कुछ देर बाद ही मुख्यमंत्री ने एक एक करके सभी काव्य मनीषियों को सम्मानित किया। अब बारी थी मीडिया से मुखातिब होने की। प्रश्नों की बौछारों के बीच एक पत्रकार ने पूछ ही लिया एक साथ पाँच सालों के पुरूस्कार घोषित करने का मतलब कहीं राजनैतिक फायदा उठाना तो नहीं मुख्यमंत्री महोदय । प्रश्न सुनकर मुख्यमंत्री महोदय थोड़ा मुस्कुराए फिर पलटवार बोले चुनाव भी तो पाँच सालों के लिए होते हैं बन्धु! अभी मुख्यमंत्री महोदय अपनी मुस्कुराहट समेट भी नहीं पाए थे तभी एक गुगली प्रश्न ने मुख्यमंत्री को विचलित कर दिया। प्रश्न था "शहबाज़ सिद्दीकी जिनकी अभी सिर्फ़ एक पुस्तक आई है उनका चयन किस आधार पर किया गया जब कि साहित्य के लिए अपना जीवन खपा देने वालों की एक लम्बी फ़ेहरिस्त है बता सकते हैं कि कुल जमा तीन सालों में उन्होंने ऐसा क्या कारनामा किया है वरिष्ठों को छोड़कर उन्हें चुना गया है"। आख़िर पुरस्कारों की बंदर बांट के निर्धारण का कोई तो मापदण्ड होगा।संयत होते हुए मुख्यमंत्री महोदय ने फिर अपनी कुटिल मुस्कान को समेटा और बोले क्या आपको पता नहीं कि "शहबाज़ सिद्दीकी का शेर माननीय प्रधानमंत्री जी ने सदन में पढ़ा है इससे ज्यादा बड़ा और क्या मापदंड होगा बताइए, बोलिए!!!!! सभी को अवाक स्थिति में छोड़कर मुख्यमंत्री विजयी मुस्कान बिखेरते हुए बाहर की ओर इस डर के साथ खिसक लिए कि कहीं कोई पत्रकार हरभजन की तरह सवालों का "दूसरा" डालकर उनके विकेट के तीनों डंडे ही न उखाड़ दे।
प्रदीप डीएस भट्ट-21012025
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