Friday, 24 January 2025

" नज़्म ग़ज़ल का कॉकटेल"

रिपोर्ताज 

          "नज़्म ग़ज़ल का कॉकटेल" 

         आजकल प्रयागराज में महाकुंभ चल रहा है। 144 वर्ष के बाद पुनः महाकुंभ का संयोग बनेगा तब तक गंगा यमुना और सरस्वती में कितना जल बह जाएगा किसी को नहीं पता। लगभग 40,45 करोड़ भक्तों के स्नान की संभावनाएं जताई जा रही हैं। मैंने अभी तक मात्र नाशिक के कुम्भ में ही स्नान का पुण्य प्राप्त किया है वो भी अंतिम दिन जब गोदावरी मैय्या आराम के मूड में थीं मुझे याद है हमने जैसे ही गोदावरी में स्नान हेतु प्रवेश किया तो तुरन्त नदी से आवाज़ आई "अबे आलसी आज आखिरी दिन तो मुझमें पाप मत छोड़" मैंने इधर उधर देखा तो आवाज़ पुनः गूंजी अबे नदीवाणी हूं कोई आकाशवाणी नहीं जो इधर उधर देख रहा है, चल जल्दी से बाहर निकल।  तेरे स्नान का तुझे मैं तुझे कितना पुण्य दे पाऊंगी ये तो पता नहीं लेकिन बेटा ज़्यादा डुबकियां मारने के चक्कर में कहीं तू औरों के छोड़े हुए पापों के साथ घर पहुंच जाइयो। मैं तो नदी हूं मेरा सीधा फंडा है पुण्य हो या पाप मैं तो अपने फुफेरे भाई समुद्र को अर्पण कर देती हूं। समझा या नहीं पगले चल बाहर निकल अब मुझे आराम करने दे। हम धीरे से बाहर आए पेट पूजा की और शाम की ट्रेनवा पकड़क सीधे मुंबई। रास्ते भर यही सोचते रहे 2025 के महाकुंभ में जाएंगे कि नहीं अलबत्ता 2024 के "ग़ज़ल कुम्भ" जो कि संन्यास आश्रम मुम्बई में आयोजित हुआ था में हमने साहित्यिक डुबकी अवश्य लगाई थी। 

         ख़ैर प्रयागराज का महाकुंभ तो फरवरी तक है कभी भी जा सकते हैं इसलिए गत वर्ष की भांति ही इस वर्ष भी हरिद्वार में आयोजित होने वाले सोहलवें ग़ज़ल कुम्भ में हमने साहित्यिक डुबकी लगाने का प्रण किया और 18 जनवरी की सुबह दो ब्ला ब्ला की बुकिंग कैंसिल होने के बावजूद जोश कम न हुआ और अपनी पुरानी साथी रोड़वेज बस की सवारी का आनंद लेते हुए 10.30 बजे निष्काम सेवा ट्रस्ट भूपतवाला में एंट्री कर ली। दीक्षित जी से सामना हुआ आंखों आंखों में बात हुई और पहले से ही इंतज़ार कर रहे राम देव छाता वाले के साथ हमने तुम नम्बर 21 में प्रवेश किया हमारे पीछे पीछे सत्य त्यागी मेरठ और कृष्ण गौतम ने भी। दस मिनिट के लिए महफ़िल जमी एक दूसरे का परिचय हुआ और आदतानुसार हमने हवा में दो चार शेर उछाल दिए फ़िर बर्फ़ में जमे जैसे हाथों को गर्म करने के लिए निष्काम के सामने वाले टी स्टॉल पर चाय की चुस्की ली पैसे पूछे तो टी स्टॉल वाला इशारे से बतियाने लगा हमें लगा मुंह में कुछ दबाए हुए होगा बाद में पता चला........ ख़ैर वापिस रूम में पहुंचे, फ्रेश हुए और फिर महफ़िल जम गई। अब ससुरा दूसरा कोई काम भी तो न था इसलिए सुबह 5.30 की दो पूरियों के सहारे फिर से शेर ओ शायरी। 12.30 लंच किया और मीटिंग हॉल में जैसे कि हर कार्यक्रम में होता है तो यहां भी थोड़ी देर यानि 2.00 बजे विधिवत कार्यक्रम शुरु। दीक्षित जी जो मुंबई बताए थे यहां भी बता रहे थे Do's & Don't  but but but साहिब सुनता कौन है?  करेंगे वही जो इन शायरों ? को करना है भले ही आपका पैर तारों में उलझकर आपको बढ़िया वाला शेर सुनाकर धड़ाम से गिरा दे लेकिन हम न सुधरेंगे कि तर्ज़ पर बेजा हरकतें जारी रहेंगी। लेकिन ये भी ठीक नहीं कि जब दीक्षित जी पटल पर सख़्ती से लिख चुके थे कि पहले हमें पढ़वाईए की कोई भी रट ने लगाए फ़िर बाद में स्वयं ही लिख दिया जिसे जल्दी जाना है वे अपना नाम XYZ को लिखवा दें। मर्यादा का पालन सभी को करना चाहिए। एक सज्जन परेशान कि मुझे कल एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम में शिरकत करनी है हमने पूछा तो बताया दिल्ली में दिल्ली में ....... शिरक़त करने जाना आवश्यक है। हमने उन्हें नीचे से ऊपर घूरा तो उन्हें 377 का डर लगा हमने कहा न हुज़ूर न हमें ऐसा वैसा न समझें हम बड़े काम की चीज़, फ़िर बताया देखिए आपने निश्चित अपने बच्चों को दो नावों की सवारी के लिए मना किया होगा उन्होंने हां में मुंडी हिलाई अब हम फट पड़े अबे कभी ख़ुद पे भी तो अमल किया करो मियां हमें भी बुलाया है पर हमने साफ़ मना कर दिया।

         अतिथियों में अशोक मिज़ाज बद्र अम्बर खरबंदा, उषा उपाध्याय, इम्तियाज वफ़ा, ऊर्दू अकादमी नेपाल, राजेंद जैन, शलभ, महेंद्र सिंह होश जी डॉक्टर इरशाद अहमद शरर, विज्ञान व्रत एवं प्रतापगढ़ से पधारी नाम भूल गया....कार्यक्रम की शुरुआत हो चुकी थी अल्का शरर जी ने माइक संभाला और एक एक कर शायरों को अदब से दावत ए सुखन पेश करने लगीं ये उनका अंदाज़ है। पहले शायर वो ही थे जिन्हें अगले दिन महत्वपूर्ण कार्यक्रम में पहुंचना था अब वो क्या पढ़ कर गए वो तो अल्का जी बेहतर जान सकती हैं। मुम्बई कार्यक्रम में एक मोहतरमा नज़्म पढ़ गई थीं और ये साहब ग़ज़ल नज़्म की कॉकटेल। नेपाल से पधारे उद्योगपति शायर और एक अच्छे इंसान बसंत चौधरी जी के अतिरिक्त कुछ और भी अतिथि नेपाल से पधारे जिनका यथोचित सम्मान दीक्षित जी के द्वारा किया गया। बसंत चौधरी जी ने अपने व्यवहार और सादगी ये एक मैसेज छोड़ा कि इंसान को डाउन टू अर्थ ही होना चाहिए वरना तो.... कुछ सो कॉल्ड शायर दो दिवसीय 16 वें ग़ज़ल कुम्भ में ऐसा प्रदर्शित कर रहे थे वे बहुते ज़्यादा व्यस्त हैं उनके हाव भाव से ऐसा प्रतीत होता लगा जैसे कहना चाह रहे हों कि ग़ज़ल पढ़कर वे ग़ज़ल कुम्भ पर अहसान कर रहे हैं, भैय्या जी में तो आया कि उनकी..........

"पंजों के बल पर खड़े हो गए 
वो कहते हैं हम भी बड़े हो गए "

         ये सिलसिला यूं ही चलता रहा 5 बजे ☕ फिर 7 बजे डिनर 8 बजे दूसरा सत्र 11 बजे फिर 🍵 साथ में गर्मा गरम दुग्ध। अब ये वो समय होता है जब ज़्यादातर लोग बिस्तरों में होते हैं यहां भी इंतजाम था न दोनों तरफ़ 5,5 कुर्सियां बीच में कालीन पर मसनद तकिए और रजाई। 1 बजते लोगों ने कुर्सियां छोड़ी और सीधे तकिए को तकिया मसनद को भी तकिए में तब्दील किया और आधे लेटे आधे बैठे कुछ देर बाद पूरे लेटम लेट। शरीर है भई इतना माल मसाला खाने के बाद यही हाल होना था सो जनाब अपना नंबर आया 19 की प्रातः 3 बजे जब कि लिस्ट में हमने 18 जनवरी लिखवाया था। बेसाख्ता याद आया मियां शादी में भी तो यही होता है न शादी 18 की फिक्स होती है लेकिन फेरे 19 में पड़ते हैं सो राम का नाम लेकर अपने तेवर वाला कलाम पेश कर दिया वो भी तीन मिनिट से भी कम समय में। वैसे अंतिम शायर ने अपना कलाम 4 बजे के लगभग पढ़ा। वैसे असर जी की ग़ज़ल कई लोगों पर असर कर गई जहां तक मंच सञ्चालन का प्रश्न है तो अल्का शरर के अतिरिक्त दीक्षित दनकौरी जी, निरुपमा चतुर्वेदी, फरीद आलम कादरी एवम् अली अब्बास। नौगांवी जी ने इसे बेहतरीन तरीके से अंजाम दिया।, बसंत चौधरी की दो पुस्तकों का लोकार्पण भी इस मौके पर हुआ साथ ही ग़ज़ल :

"सामने सबके न बोलेंगे हमारा क्या है 
 छुप के तन्हाई में रो लेंगे हमारा क्या है "

और हमारे तेवर की ग़ज़ल ये रही 

“ ऐसा फायर समझो “ 

हम सहिष्णु हैं, अर्थ नहीं तुम, कायर समझो 
भस्म करे जो पल में, ऐसा फायर समझो

अंतिम पल तक रण भूमि में कहर मचाये
रण बाँकुर तुम राजपूत वो, नायर समझो

इश्क़ विश्क के गीत नहीं मैं, लिख सकता सुन  
देश प्रेम की अलख जगे , वो शायर समझो

मीठी मिसरी सी बातों से मन भरमाए 
ऐसे हरिक शख़्स को निश्चित,लायर समझो

बूढों, बच्चों, पर हर्गिज़ हम  वार न करते
उस जल्लाद के जैसा मत तुम , डायर समझो

आग का हम इक दरिया हमसे, बच के रहना
नही पतंग में उलझा कोई तुम वायर समझो

साँसों का व्यापार कभी भी, हम न करते 
गैरों की खुशियों का लेकिन, बायर समझो

मैं ही केवल सच्चा, बाक़ी सब झूठे हैं 
ख़ुद पर इसको तीखा, एक सटायर समझो 

तुमने बात अगर अपनी ये , ‘दीप’ न मानी  
खुद के ऊपर  एक मुकदमा, दायर समझो

© प्रदीप देवीशरण भट्ट -                                       

         4.30 सोए फिर 8 बजे उठे फ्रेश हुए और ये लीजिए हुज़ूर 9 बजे नाश्ते की टेबिल पर हाज़िर। जैसे ही प्लेट उठाई तो वहां करीने से सजे दोने से आवाज़ आई अरे ओ भुक्कड़ प्लेट नहीं हमें उठाओ कचौरी तोड़ो फिर उसमें आलू की सब्ज़ी या छोले गिराओ और फिर मजे लेकर खाओ। क्षुधा शांत हुई तो थोड़ी मटर ग़श्ती कर डाली साथ में दो चार लोगों से परिचय भी मस्त मौला डॉक्टर मनीषा मनी, संजीव जैन, राघव, अनुश्री, पूजा अरोड़ा, अम्बर खरबंदा, संगीता शर्मा कुंद्रा, मनोरमा, अनिल शर्मा,गार्गी कौशिक और एक नाम जो भूल गया अब क्या करें दो कचौरी में तो इत्ता ही याद रहने वाला है बाबू। 12 बजे लंच लिया और फ़िर एक ठो टैक्सी जिसे 16.30 आना था। प्रोग्राम अटेंड किया और तभी मुबलिया बजा उधर टैक्सी वाला था sry सर कहकर उसने तो पिण्ड छुड़ा लिया पर अब हम क्या करें तभी अनिल शर्मा से बात हुई जो मनोरमा जी व संगीता जी के साथ चंडीगढ़ जा रहे थे तो बस कुल्हड़ वाली चाय पी और निकल लिए। तय हुआ कि वे सहारनपुर ड्रॉप कर देंगे लेकिन लेकिन लेकिन। मंदसौर से यू टर्न लिया और शायद झबरेड़ा निकला ही था नथुनों में अजीब सी महक भर गई बाक़ी ने भी इसे महसूस किया तभी देखा बाईं ओर लाइन से क्रेशर चल रहे थे गुड़ राब आह वाह करते झटपट 🚗 रोकी और जा पहुंचे, कुछ खाया कुछ खरीदा और चल पड़े आगे हमने भी एक किलो गुड़ खरीदकर सभी को जता दिया कि हमारी परचेसिंग पॉवर कितनी है।  सहारनपुर से आठ किलोमिटर पहले हाइवे आया तो हम उतर गए लेकिन ये क्या पान वाले ने बताया हुज़ूर आप गलत उतर गए हैं आठ KM तो टपरी जंक्शन है हम भीतर ही भीतर ख़ूब मुस्कुराए ऑटो लिया टपरी फिर सहारनपुर फिर बस सेमुजफ्फर नगर फिर टैक्सी से मेरठ और रात्रि मात्र 12 बजे घर। अब आप सोच रहे होंगे ये तो बेवकूफी थीं जी नहीं हुज़ूर ईश्वर सब सोच समझकर करता है। अब आप खुदई सोचिए उस गुड़ वाले को 50 रुपए देने थे तो थे पिछले जन्म का उधार होगा भई ऑटो वाले को, बस वाले को और फिर टैक्सी वाले को । अब ज़्यादा दिमाग़ मत लगाइए मियां " मन चाहा होता नहीं प्रभु चाहें तत्काल" समझे के नाही। 

विशेष: अगर मंच पर आमंत्रित अतिथि यदि किसी कारणवश न आएं हों तो औरों को भी मौका दीजिए हुज़ूर आख़िर ग़ज़ल कुम्भ में आने वाले क्या इत्ते गए बीते हैं कि उन्हें मंच पर भी आमंत्रित भी न किया जा सके। दो सत्रों के बाद वही मंच वही चेहरे जे अच्छी बात न है जी कुछ जम भी न रिया है।
तनिक सोचिए ज़रूर हुज़ूर 

प्रदीप डीएस भट्ट:27012025





                                                                                                                                                                               




         

         

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