दी कश्मीर फाईल्स पर बात
करने से पहले हम थोडा कश्मीर के विषय में जान लेते हैं। ऋषि कश्यप के नाम पर इस प्रदेश
का नाम कश्मीर पडा। यहाँ के रमणीय स्थल पूरे विश्व में प्रसिद्ध थे। आप सोचिये ऋषि
वाग्भट्ट ने यहीं पर रहकर आयुर्वेद की रचना की। इसी कश्मीर में बौद्धों ने ज्ञान गंगा
के दर्शन किये इसी कश्मीर में आदि शंकराचार्य ने विहार किया एवम अनमोल पुस्तकें लिखी
और न जाने कितने महापुरूषों ने लोगों के कल्याण के लिए कार्य किये किंतु हर अच्छी चीज़
के बाद कुछ ऐसा हो जाता है जो किसी भी प्रकार से प्रिय नही कहा जा सकता। बकौल सुशील
पण्डित- लगभग 1315 के आस पास शमीर ने स्वात में अपने पिता को सत्ता से बेदखल करने का
एक असफल प्रयास किया परिणाम स्वरुप उसके पिता ने उसे देश निकाला दे दिया। जब वो भयातुर
होकर कश्मीर में दाखिल हुआ तो उसकी आप बीती सुनकर कश्मीर के हिंदू राजा ने उसको 1315अपने
राज्य में शरण दी। उसी शमीर ने 1339 में उसी हिंदू राजा को मौत के घाट उतार दिया और
कश्मीर का सुल्तान बन बैठा। उस नराधम शमीर ने पूरे कश्मीर में हजारों की संख्या में
मंदिर तोड डाले। तलवार की नोक पर हजारों स्त्रियों का शील भंग ही नही किया वरन लाखों
हिंदुओं को तलवार की नोक पर ही इस्लाम स्वीकार कराया। इस कार्य में उसका साथ दिया चकों ने, शियाओं
ने और पठानों ने। लगभग 480 वर्ष तक कश्मीर के हिंदुओं का कत्लेआम होता रहा। हालात यह
हो गई कि जो कश्मीर हिंदुओं का देश था उसमें सिर्फ 10 से 15 % हिंदू ही जिंदा बचे।
1846 ईस्ट इंडिया कम्पनी से डोगरा महाराजा ने 86 लाख देकर उन हिंदुओं की जान बचाई। किंतु वे फिर
भी उन हिंदुओं को सताते रहे तब महाराजा रणजीत सिंह ने पठानों से सीधे टक्कर ली और उन्हें
अनेकों बार युद्द के मैंदान में धूल चटाई।
अपनी बेबाक राय अवश्य रखे किन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि आपकी बेबाक राय से व्यक्ति विशेष के सम्मान को ठेस न लगे । हम अपनी स्व्तंत्रता के प्रति सजग रहे किन्तु दूसरों कि स्वतन्त्रता मे बाधक भी न बने ।
Monday, 14 March 2022
रिपोतार्ज़ "दी कश्मीर फाइल्स"
“दी कश्मीर फाईल्स”
(असलियत से सामना)
कल अचानक 11:15 पर सुहास भटनागर का फोन आया। रविवार का दिन होने के कारण मैं आराम से कमरे में ही टहल रहा था इस आशय से कि “लामाकान” के प्रोग्राम में तो सांय:16:00 जाना है। फोन उठाते ही कहने लगे आपने व्हाट्सअप नही देखा अभी तक? मैंने कहा हुज़ूर प्रोग्राम में तोशाम को जाना है क्या कोई तबदीली हुई है। फिर कहने लगे नहीं, “दी कश्मीर फाईल्स”देखनी है न मैंने कहा निश्चित तौर पर मैं तो इंतेज़ार कर रहा हूँ। उन्होंने बात बीच में काटते हुए कहा 12:30 तक नारायणगुडा स्थित “INOX Maheshwari Parmeshwari” पहुँचो। मैंने कहा ठीक है और तुरत फुरत तैय्यार होकर मेट्रो पकडकर पहुँच गये । 1:10 पर शो शुरु होना था और हम वहाँ पहुँचे 12:50 टिकिट विंडो पर बैठी हुई लडकी ने टका सा जवाब दे दिया सॉरी सर आज इस फिल्म का एक भी टिकिट बचा नही है ,टोटल फुल है सर्। मैं रास्ते में सुहास जी को “Buddha in Traffic Jam”, “The Tashkent Files” के बारे में बताता हुआ आ रहा था और उन्हें कहा भी कि आप ये दोनों फिल्में भी ज़रुर देखें। खैर इस स्थिति की कल्पना न तो मैंने की थी न ही सुहास जी ने दोनों ने एक दूसरे का मुँह देखा और बाहर आकर बैठ गये। पिछले तीन चार दिन से गर्मी ने अपना रंग दिखाना शुरु कर दिया है सो पसीना आना स्वाभाविक था। अचानक सुहास जी बोले भाई 15:15 का “गंगू बाईकठियावाडी” का टिकिट ले लेता हूँ। तब तक कुछ खा भी लेते हैं। मैंने एक उचटती हुई निगाह उन पर डाली और कहा “ “ठंड रखो हुज़ूर ठंड” और मैंने गन्ने के जूस के दो ग्लास का आर्डर दे दिया, सुहास जी- भाई भूख लग रही है ये गन्ने के जूस से थोडे मिटेगी? मैंने फिर वही दोहराया “ठंड रखो हुज़ूर ठंड” तब तक जूस वाला दो ग्लास दे गया। मैंने बडे ही दार्श्निक अंदाज़ में कहा देखो सुहास जी मैं ठहरा दिल्ली वाला हार तो मानूँगा नहीं ठंड रखो कोई न कोई रास्ता निकल जाएगा वो मेरी बात बीच में ही काटते हुए बोले भाई ब्लैक भूल जाओ अब वो जमाने गये मैंने फिर वही जुमला दोहरा दिया “ठंड रखो हुज़ूर ठंड”। जूस वाले को पैसे देकर सीढियों से लगभग उछलते हुए उन्हें अपने पीछे आने का इशारा कर दिया। लोग टिकिट दिखाकर लाइन से अंदर जा रहे थे मैं वहीं खडा हो गया, तभी एक सज्जन ने कहा मेरा साथी नही आ रहा अगर आप चाहें तो... मैंने बडी विनम्रता से उन्हें बताया हम दो हैं जनाब तभी एक व्यक्ति ने हाँ भर दी और वे अंदर चले गये।
गिरिजा टिक्कू
सुहास जी फिर बोले भाई कुछ नही होगा तभी फिर एक टिकिट ऑफर हुई सुहास जी ने कहा आप देख लो मैं वापिस घर जाता हूँ । इस बार मैंने चिपरिचित वाक्य दोहराया नही बल्कि हाथ का इशारा कर दिया। अब लगभग 1:20 हो गये थे। सुहास जी कुछ परेशान से थे तभी एक यंग बॉय बोला मेरे दो लोग नही आए आप.... मैंने कहा कितने पैसे हुए, उसने कहा बाद में मैंने कहा अभी ले और हम स्क्रीन नम्बर में दो में एंटर हो गये। मुझे ये देखकर अत्यधिक प्रसन्नता हुई कि जिसने हमें टिकिट ऑफर की थी वो लगभग 20 लोगों का ग्रुप था और सभी की उम्र 20-25 के लगभग थी जिससे यंग जैनरेशन का इस फिल्म में दिलचस्पी का पता चलता है। पूरा हॉल खचाखच भरा हुआ। कोई शोर शराबा नही सिवाय फिल्म देखने आने वाले लोगों के अतिरिक्त अन्यथा “ PIN DROP SILENCE” कभी कभी कोई सुबकी लेने की आवाज़ तंत्रा अवश्य भंग कर रही थी। फिल्म समाप्त हुई। हम दोनों बाहर निकले और घर प्रस्थान करने से पह्ले रेस्टरुम का रुख किया ।निफराम होकर बाहर आया तो देखा एक 35-40 के मध्य की महिला रोये जा रही थीं, मैं सब कुछ समझ गया था किंतु फिर भी ढांढस बढाने के उद्देश्य से उन्हें सांत्वना देने लगा। फिर मैंने उनके पहनावे को देखकर उनसे पूछा कि You are from Kashmir” क्यूँ कि उन्होंने कान में जिस ढंग से कुण्डल पहन रखे थे वो स्टाइल सामान्यत: जम्मू काश्मीर की महिलाओं को ही पहनते देखा है। उन्होंने ना कहा और बताया कि वे यहीं हैदराबाद से ही हैं और एक हिंदू सनातनी परिवार से आती हैं। तभी मैंने पास ही में खडी एक 2—21 साल की लडकी को देखा जो मुझे कुछ चिंतित मुद्रा में लगी मैंने पूछा क्या हुआ बच्चा शायद मुझसे ऐसे सम्बोधन की उस लडकी को कतई उम्मीद नही थीं। बिलकुल रुआँसे अंदाज़ में बोली सर क्या काश्मीर में ये सब हुआ है तो फिर हमें ये सब क्यूँ नही मालूम। मैं सामान्यत: ज़ियादा भावूक नही होता हूँ किंतु उस लडकी के प्रश्न ने मुझे अंदर तक हिला दिया यकायक मेरा हाथ उसके सर पर चला गया ,थपकी देते हुए कहा बेटा जो तुमने फिल्म में देखा है वो तो 0.01 प्रतिशत भी नही है जो नंगा नाच उन चंद दिनों में काश्मीर में हुआ है वो सिर्फ वही लोग समझ सकते हैं जो इन स्थितियों से गुजरे हैं “जिस तन लागी वो तन जानी” और ऐसा पहली बार नही बल्कि पूरी एक सदी हम सनातनियों ने झेला है। किंतु फिर भी किसी एक ने भी कभी भी तलवार तो क्या पत्थर भी अपने हाथों में नही उठाया क्यूँ कि हम सनातनी लोग हैं, अगर ज़मीन पर चींटी भी दिख जाए तो उससे बचकर या फंलाग कर चले जाते हैं, मारने का विचार भी कभी मन में नही आता क्यूँ कि जीव छोटा हो बडा है तो जीव ही, जिसने उसे जन्म दिया है वही उस की समय आने पर मृत्यु भी निश्चित करता है। मैंने और भी बहुत सी बातें उस लडकी और महिला को बताईं। और ये सब रेस्टरुम के दरवाजे के सामने।
अब बात करते हैं “दी कश्मीर फाईल्स” की बिना किसी लाग लपेट के कहूँ तो दर्शन कुमार ने पहली बार सिद्ध किया कि वे एक अच्छे अभिनेता हैं और उनमें अच्छा बनने की अपार सम्भावनाएं मौज़ूद हैं बशर्ते निर्देशक अतुल अग्निहोत्री जैसा हो। मिथुन दा का अभिनय देखकर मुझे फिल्म मृगया में निभाया गया उनका किरदार याद हो आया। इस किरदार के लिए उन्हें नेशनल अवार्ड मिला था। मिथुन दा त्वाडा जवाब नही! अनुपम खेर के विषय में कुछ कहना सूर्य को दीपक दिखाने के बराबर होगा। अगर एक पंक्ति में कहूँ तो वे सारांश के किरदार से बहुत बहुत आगे निकल आएं हैं। मृणाल कुलकर्णी ने सिद्ध किया कि वो एक बेहतरीन अदाकारा हैं ।।भाषा सम्बली के अभिनय ने मुझे चौंका दिया।दिया।चिन्मय मांडलेकरलेकर बिट्टा के किरदार में जान फूँकने में कामयाब रहे। एक आँख बंद करके डॉयलाग बोलकर उन्होंने मुझे गुलशन ग्रोवर की याद दिला दी। प्रकाश बेलवादी डॉकटर महेश के किरदार में अपना काम कर गये। पुनीत इस्सर तो खैर पुनीत इस्सर ठहरे, बलशाली कद काठी बहुत कुछ कह जाती है। अतुल श्रीवास्तव विष्णु के किरदार को जीने में कामयाब रहे। प्रकाश बेलवादी और अतुल के बीच का झग़डा ये बताता है कि जब हम सिस्टम के आगे लाचार हो जाते हैं तब हम अपना गुस्सा अपनों पर ही निकालते हैं। अब बात करता हूँ फिल्म के एक किरदार राधिका मेनन की। एक अभिनेता या अभिनेत्री अपने अभिनय से दर्शकों को रुला सकती है, बेचारगी के दर्शन करा सकती है किंतु नफरत पैदा कराना इतना आसान नही होता। पलल्वी जोशी के अभिनय देखकर एक क्षण में मुझे “भारत एक खोज” सीरियल याद हो आया जिसमें उन्होंने कई किरदार निभाए थे किंतु गुर्जरनी का किरदार WOW, डॉयलाग डिलिवरी ऐसी गज़ब कि मन करे कि एक ताली तो बनती है बॉस्। खैर यही एक किरदार और अभिनेता या अभिनेत्री की जीत है किंतु पर्दे पर राधिका का किरदार देखकर मैं भूल गया था कि मैं एक फिल्म देख रहा हूँ बस मन किया कि राधिका पास हो तो दो चार घूँसे इसके चेहरे पर रसीद कर दूँ।लेकिन मेरे दिल में ये ख्याल आना ही तो उस किरदार की जीत है। एक बात और जीवन के न जाने कितने बसंत बीत गये फिल्में देखते देखते। शिक्षाप्रद फिल्म में भी लम्बे लम्बे डॉयलाग फिल्म की रफ्तार कम कर देते हैं अभी अभी अमिताभ और हाशमी की चेहरे देखी, क्लाइमेक्स में अमिताभ का भाषण इतना ज्यादा बोर करता है कि........ बस क्या कहूँ। ये फिल्म अभी तक उन सबसे अलग रही। दर्शन कुमार का अभिनय तो था ही किंतु वो भाषण कभी भी कहीं से भी भटकता हुआ नही लगा और इस फिल्म की सफलता का ये में कारण भी है। जैसे कोई गृहणी अपनी मन पसंद डिश बनाए और उसमें बिलकुल स्वादानुसार ही मसालों का प्रयोग करे।एक बात दिमाग से निकल गई, "दि कपिल शर्मा शो" भाई विवेक, इसकी क्या गारंटी है कि जिन फिल्मों का प्रमोशन वहाँ होता है वो सब हिट हो जाती है। सिर्फ दिमाग का वहम है जितनी जल्दी हो सके इसे निकाल दें। वैसे भी कॉमेडी के नाम पर वहाँ क्या परोसा जा रहा है हम सभी भली भाँती जानते हैं इसलिए उस पर बात करके उसको भाव मत दो।
"चाह जीने की अगर तुझमें पनपती है प्रबल।
रास्ता रोकेगा कैसे फिर तुम्हारा दावानल॥
कर नही पाएगी तुझको कोई भी मुश्किल विकल ।
गर इरादे तेरे होंगे आसमाँ जितने अटल ॥
तू अगर सच्चा है तो फिर डर तुझे किस बात का।
मंज़िलों की जस्तुजू में हौसले लेकर निकल।।"
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-
और अंत में प्रिय विवेक अग्निहोत्री तुमने और ज़ी स्टूडियो ने अपना काम ईमानदारी से कर दिया है और निश्चित मानो इस बार ये खास जनता भी अपना काम बखूबी करेगी। परिणाम दिखने शुरु हो भी गये हैं। एक सीन अवश्य खटका जब सब कौल साहब के घर पर जमा हैं (पुरुष,महिलाएं, बच्चे बच्चियाँ , तभी खट खट की आवाज़ सुनकर एक लडकी कहती है आतंकवादी आतंकवादी और खिडकी से बाहर छलांग लगा देती है, कैमरा उस लडकी को नीचे ज़मीन पर पडा दिखाता है और कैमरे एक एक कोण दर्शाता है कि खिडकी में एक सरिया अभी भी मौजूद है। सरिये तोडकर तो लडकी नही गिरेगी न फिर वो सरिया भले ही लकडी का हो) खैर दक्षिण भारत के शहर हैदराबाद में ““दी कश्मीर फाईल्स” की” इतनी अच्छी ओपनिंग ये दर्शाती है कि लोग ईमादार लोगों की ही नही वरन ईमानदार काम की भी कद्र करना सीख गये हैं। वरना प्रभास की राधेश्याम के टिकिट मिल रहे हैं और “दी कश्मीर फाईलस की” के नही। एक विषेश बात आप फिल्म फेयर जैसे फालतू के अवार्ड की चिंता न करे निश्चित ही “दी कश्मीर फाईल्स” राष्ट्रीय पुरुस्कार की हकदार है। हिंदी फिल्म उद्योग में कुछ लोग अपना घर और करियर चलाने के लिए बिकने को तैय्यार खडे हैं और बिक भी गये हैं{“ बिकने हूँ तैय्यार खरीदार नही है/ज़्यादा जीऊँ ऐसे मेरे आसार नही हैं- प्रदीप देवीशरण भट्ट) तभी तो उल जलूल फिल्में बन रही हैं,पिट रही हैं लेकिन उन्हें हिट करार दिया जा रहा है। शायद वे लोग नही जानते “साँच को आँच नही होती” खैर अनेको नेक शुभकामनाएँ इस आशय से कि जल्दी ही हम “ नेता जी फाईलस”, चंद्रशेखर आज़ाद फाईलस” और हाँ गाँधी जी फाईल्स”से भी रुबरू होंगे।
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-
हैदराबाद (तेलांगना)
13:03:2022
No comments:
Post a Comment