“सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है”
साठ- सत्तर के दशक में हम जितने भी लोग पैदा हुए हैं और जिनके सर पर हिंदी फिल्मों का भूत सवार हुआ है उन्हें कालीचरण फिल्म का ये संवाद बखूबी याद होगा। उस समय गली मुहल्ले के छोटे या फिर बडे बच्चे भी अपने अपने ग्रुप में यही सब करते थे। कोई शत्रुघन सिन्हा बन जाता और कोई अजीत (हामिद अली खान) और ये सिलसिला जब तक चलता रहता था जब तक कोई दूसरी फिल्म में इससे भी ज़ियादा दमदार संवाद न हो। मुझे याद है अगर मैं अपनी याददाश्त पर जोर डालूँ तो सोहराब मोदी, चंद्र मोहन, राज कुमार, पृथ्वीराज कपूर, देव आनंद,प्राण ( लटके झटके के साथ) अजीत (खलनायिकी की पारी में ) दुर्गा खोट,राजेश खन्ना, सुनील दत्त, शत्रुघन सिन्हा और अंत में अमिताभ बच्चन एवम अमरीश पुरी। जहाँ तक अमजद खां का प्रश्न है उनके संवाद केवल शोले फिल्म में ही हिट हुए। इसी तरह प्रेम चोपडा ने न जाने कितनी फिल्मों में काम किया किंतु जो प्रसिद्धि उन्हें बॉबी के सिर्फ एक संवाद “ प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपडा” से मिली लोग जीवन भर इसके लिए उनसे रश्क कर सकते हैं। लोग नायक नायिका,खलनायक को भले ही याद न करें किंतु उनके द्वारा बोले गये संवाद को सदैव याद रखते हैं। हामिद अली खाँ उर्फ अजीत भी हीरों के रुप में वो प्रसिद्धि न पा सके जो उन्होंने फिल्म कालीचरण के एक संवाद “ सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है” से मिली।
सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है...और इस शहर में मेरी हैसियत वही है, जो जंगल में शेर की होती है
25 बरस देल्ही, 12 बरस मुम्बई और पिछ्ले तीन बरस से खूबसूरत शहर हैदराबाद में हूँ। शुक्रवार, 25 फरवरी-2022 को मुझे भी हिंदी फिल्म इंड्स्ट्री के कुछ चुनिंदा खलनायकों में से एक अजीत “ दि लॉयन “ के बारे में जानने समझने का सुअवसर प्राप्त हुआ। मौका था अजीत पर एक कॉफी टेबल बुक (English) के लोकार्पण का जिसे इकबाल रिज़वी (देल्ही) ने लिखा है। कार्यक्रम “निज़ाम क्ल्ब ऑफ हैदराबाद” के प्रांगण में आयोजित किया गया। मैंने जैसे ही अपने मित्र सुहास व संजय के साथ वहाँ प्रवेश किया तो देखा अजीत साहब के बडे साहबज़ादे शाहिद अली खान, बडी ही आत्मियता के साथ लोगों का स्वागत कर रहे हैं। जहाँ कुछ उनके परिचित हैं वहीं कुछ मुझ जैसे अपरिचित भी किंतु मेरे नमस्कार करने पर गर्दन को थोडा सा झुकाकर उन्होंने मेरे अभिवादन का उत्तर दिया। खूबसूरत वातावरण में हरियाली घास पर कई गोल टेबल लगे हुए थे और उन पर कुछ लोग बातों में मश्गूल थे। मैंने उचटती सी एक नज़र अपने आस पास डाली तो पाया कि जहाँ मेरे पैरों के नीचे हरियाली थि वहीं आसमान में भी बादल के छोटे- छोटे टुकडे इधर उधर छितरे हुए थे जो शायद अजीत साहब को सलामी देने आये लगते थे। कुछ देर यूँ ही इधर उधर बतियाते हुए एक कट ऑउट पर निगाह गई जिसमें अजीत साहब बडे ही शान से खडे थे मैं उसके साथ एक फोटो लेने का मोह न छोड सका। तभी किसी ने मेरे काँधे पर हाथ रखकर बडे ही अदब के साथ हाई टी लेने का नुरोध किया। बेहतरीन मेहमान नवाज़ी।
लगभग सात बजे कार्यक्रम की शुरुआत हुई, प्रेरणा जो कि एंकरिंग कर रही थी ने बडे ही सधे हुए लहज़े में कार्यक्रम के चीफ गेस्ट जो कि जयेश रंजन, IAS का परिचय दिया तदुपरांत अजीत साहब के तीनों साहबज़ादों शाहिद अली खान, ज़ाहिद अली खान और आबिद अली खान का परिचय दिया, फिर इकबाल रिज़वी जो इस पुस्तक के लेखक हैं को मंच पर आमंत्रित किया। उन्होंने किताब लिखने की प्रेरणा अपने अनुभव वहाँ उपस्थित लोगों के साथ साझा किये। फिर बारी थी थियेटर की जानी मानी शख्सियत विनय वर्मा की, जिन्होंने अपने अंदाज़ में अजीत साहब का परिचय, उनके बचपन की खट्टी मिठी यादें, उनका हैदराबाद से मुम्बई का सफरनामा, वहाँ कि जद्दोजहद का खुबसूरत चित्रण किया। इसके बाद पाटनी जी, मजूमदार जी ने भी अपने अनुभव साझा किये। और अंत में एंकर ने सूचना दी कि अब जयेश रंजन जी अजीत साहब पर लिखी गई कॉफी टेबिल बुक (अंग्रेजी संस्करण) का लोकार्पण करेंगे। एक बेहतरीन शाम का अंत बेहतरीन ढंग से हुआ किंतु एक कसक रह गई। अजीत साहब जो कुछ भी थे या हम सबकी यादों में हैं वो हिंदी फिल्म इंड्स्ट्री की वजह से हैं फिर टैक्स बुक के रुप में उनकी कहानी हिंदी में दो महीने बाद क्यूँ और अगर हिंदी में दो माह बाद तो उर्दु में । ये मानसिकता क्यूँ और कब तक भई।
-प्रदीप देवीशरण भट्ट-
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