“हर इंडियन का मून शॉट” यानि
“टीम इंडस”
हमारे देश में प्रतिभाओं की कभी कमी नहीं रही। अलबत्ता उन प्रतिभाओं को निखरने और अपनी
चमक बिखेरने का मौका कम ही मिलता है शायद इसका कारण यह है कि हमारे देश में रिसर्च
एंड डेवलपमेंट की भयंकर कमी है निजी कंपनीज हों या सरकार सब बस एक ही बात पर ध्यान
देती हैं कि हम जो घोषणाएं करने ब्यूरोक्रेट या उन कंपनी के कर्मचारी बस उसका
अक्षरश: पालन करें।उनका इस बात से कोई भी लेना देना नहीं होता कि जो चीज एक राज्य
या जिले के लिए लाभकारी है वो चीज दूसरे राज्य या अन्य जिलों के लिए कैसे लाभकारी
हो सकती है। किन्तु ये बात आज तक तो किसी की समझ में न आई और न जाने कब तक ऐसे ही
ये सब चलता रहेगा। किन्तु उम्मीद पर दुनियां कायम है और देशी में भी कुछ नयी नयी
सी हवा बहना शुरू हुई है जिसके कुछ सार्थक परिणाम भी आने शुरू हो गए हैं। ज्यादा
मात्र में न सही किन्तु इक्का दुक्का प्रयास ये सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि
हमारे देश में प्रतिभाओं की तो कमी नहीं हैं और कुछ कमी है तो उन्हें निखारने की
या निखरने देने की। ये तो संभव नहीं है कि इस प्रकार की सभी गतिविधिओं के लिए सारे
प्रयास सरकार ही करेगी कितु अगर कुछ प्रयास सरकार करे और कुछ हमारे अपने देश के ओद्योगिक
घराने तो निश्चित ही सफ़लता की दर काफी हद तक बढ़ सकती है। क्या आप इस बात की कल्पना
कर सकते हैं कि कोई प्राइवेट एजेंसी चन्द्रमा पर अपना यान उतारे। किन्तु ऐसा होने
जा रहा है और सबसे अच्छी और रोचक बात यह है कि उन चंद चयनित टीमों में भारत की भी
एक टीम है जिसका नाम है “टीम इंडस” । पिछले दिनों मैं एक ऐसे ही प्रयास के
विषय में पढ़ रहा था तो सोचा आप सबको भी इस भागीरथ प्रयास के विषय में कुछ जानकारी
दे दूँ। किन्तु इससे पूर्व ये जानना जरुरी है कि कौन कौन से देश आज तक अन्तरिक्ष
में अपना परचम फ़हरा चुके हैं।
चन्द्रमा
पर अपने लूना-२ मिशन को सबसे पहले सोवियत संघ ने भेजा था ये सिलसिला १९७६ तक जारी
रहा । इसके पश्चात् अमेरिका ने फर्स्ट चन्द्रमा रिसर्च 1964 में उसके बाद लगातार 30 मिशनों ने कामयाबी के झंडे गाड़े। अमेरिका
का ये सिलसिला 1964 से 1996 तक चलता रहा ।जहाँ तक जापान का प्रश्न है
तो उसने चंद्रमा की कक्षा में अंतरिक्ष
यां एवं 2009 में सेलें ऑर्बिटर/इम्पैक्टर भेजा ,यूरोपीय अन्तरिक्ष एजेंसी ने 2006 में स्मार्ट-१ लूनर अनुसन्धान ऑर्बिटर/इम्पैक्टर भेजा।
चीन 2008 में चेंज-1 ऑर्बिटर, 2013 में
चेंज लैंडर अंतरिक्ष में भेजकर तीसरा देश बना। जहाँ तक भारत का प्रश्न है भारत
ने चंद्रयान-प्रथम को 8 नवम्बर,2008 को एवं 14 नवम्बर,2008 को इम्पैक्टर को चन्द्रमा पर उतारकर विश्व
का पांचवा देश होने का गौरव प्राप्त किया। भारत 2018 में चंद्रयान-2 ऑर्बिटर,लैंडर और रोवर को चंद्रमा पर उतारने की तयारी कर
रहा है।
2007 में गूगल और लूनर ने दुनियां भर के engineers,Industrials and new startups को
निजी क्षेत्र के आर्थिक सहयोग के सहारे रोबोट से अंतरिक्ष की सस्ते और कम लागत के
द्वारा खोज की जा सके साथ ही स्थापित एजेंसी गूगल लूनर एक्स प्राइस के हिस्सा लेने के लिए दुनियां भर के देशों की
निजी कंपनीज ने कुल ३२ आवेदन भेजे थे जो चयन प्रकिया के दौरान मात्र १६ ही रह गए
और अंत में गूगल लूनर की शर्तों पर केवल पांच देशों के निजी संसथान ही खरे उतरे
जिनमें मून एक्सेस (अमेरिका), स्पैसेल (इसराइल),हाकुतों (जापान),सिनर्जी मून (जो
कि एक अंतर्राष्ट्रीय कांसोशिर्यम या संघ)। इस प्रतियोगिता का मकसद बड़ा ही साफ सुथरा
है कि विश्व में कार्य कर रहे सभी अभियंता उद्यमियों और नवोंमेशियों (स्टार्टअप)
को निजी क्षेत्रों के धन एवं साधनों के द्वारा पोषित किया जाए उनकी मदद से रोबोट
अन्तरिक्ष की खोज को कम लगत में तैयार करने के तरीके आजमाए जा सके। इस पुरे मिशन
की एक महत्वपूर्ण शर्त सिर्फ़ यही है कि प्रतिभागी टीमों को यदि इनाम की रकम जितनी
है तो उन्हें चन्द्रमा पर एक यान न केवलउतारना होगा बल्कि उसे चद्रमा की सतह पर 500 मीटर की दुरी तक चलवाना भी होगा उस यान की खिचीं हुई
तस्वीरें और विडोस धरती पर वापस भी मंगवाने होंगे। साथ ही ये भी साबित करना होगा
कि यान पर आने वाला 50 प्रतिशत खर्च निजी सोत्रों से जुटाया गया
है। इनाम की राशी भी काफ़ी कम महत्वपूर्ण नहीं है। जहाँ पहला इनाम २ लाख डॉलर का है
वहीँ दूसरे इनाम की राशी 50 लाख डॉलर है। ये विषय अलग है कि टीम इंडस
जो यान बना रहा है उसकी लगत लगभग 450 करोड़ रूपये बैठती है।
राहुल
नारायण जिन्हें बचपन में स्टार ट्रैक सीरियल ज्यादा पसंद था।1995 में IIT डेल्ही से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने एक सॉफ्ट
वेयर कंपनी बनाई किन्तु उनके हाथ असफलता ही लगी लेकिन वे बैचेन नहीं हुए तभी
उन्होंने एक लेख पढ़ा जिसमें लुनर एक्स प्राइस के बारे में था उन्हें ये पढ़कर बड़ी
हैरानी हुई कि इस प्रतियोगिता में भारत की तरफ़ से कोई एंट्री क्यों नहीं कर रहा बस
यहीं से उनकी ज़िंदगी ने टर्न ले लिया और उन्होंने तुरंत अपने कुछ ख़ास दोस्तों से
इस विषय में बात की और तय किया कि वे इसमें हिस्सा लेंगें और कुल जमा 50,000 डॉलर यानि करीब 35 लाख रूपये एकत्र करने के बाद इस
प्रतियोगिता के ऐलान के तीन साल बाद 2010 के आख़िर में टीम इंडस ने अपना नाम
रजिस्टर्ड करवाया। धीरे धीरे इस प्रोजेक्ट का आकर बढ़ता गया साथ ही कुछ लोगों की
सलाह से इसरों के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर कस्तूरीरंगन को टीम इंडस का मार्गदर्शक बनने
के लिए तैयार करना पड़ा। उन्हीं की सलाह के बाद इस प्रोजेक्ट को डेल्ही से बंगलौर
शिफ्ट किया गया उनके प्रोजेक्ट की सहायता के लिए National
Arospace Laboratory (NAL) ने अपना गेस्ट हाउस दे दिया साथ ही अन्य सहायता ही
मुहैया कराई। सस्केन के अध्यक्ष राजीव मोदी ने अपना परिसर ही टीम इंडस को लीज पर नहीं
दिया वरन प्रोजेक्ट में रकम भी निवेश की।इसी प्रकार Nivesh Global Mobile Adversing and tech platform inmobi
के
संस्थापक नवीन तिवारी और E tailer flipcart के संस्थापक सचिन और बिनी बंसल ने भी
इसमें निवेश का फ़ैसला किया। टीम इंडस की ख़ुशी का तब ठिकाना नहीं रहा जब नंदन
नीलकेनी और रतन टाटा ने भी इस प्रोजेक्ट में निवेश का फ़ैसला किया।
आज
टीम इंडस में 100 से ज्यादा लोग कार्य कर रहे हैं जिनमें
इसरों से रिटायर्ड लोग भी काम कर रहे हैं जिनकी औसत उम्र महज 26 वर्ष है। टीम इंडस से जुड़ने का उत्साह देखिये मुंबई में
मैनेजमेंट कंसल्टेंट जैसा महत्वपूर्ण पद त्याग कर बंगलौर शिफ्ट करने वाली शालिका
रविशंकर जिन्होंने टीम इंडस के हर
कर्मचारी और अधिकारी के लिए पोस्ट के हिसाब से स्टार वार्स किस्म के नाम सोचे
जिनमें जेदी निंजा और स्क्यवाकर हैं। राहुल नारायण को “फ्लीट कमांडर” नाम दिया गया है। अगर इस पूरी कवायद का विश्लेषण करें तो
पाएंगे कि जब आप कुछ अच्छा नहीं कर रहे हों तो कुछ बेहतरीन करने की इच्छा ह्रदय में
हिलोरें मारती रहती हैं। जो लोग इस दुविधा से पार पा लेते हैं वो दुनियां के लिए
एक मिसाल या नजीर बन जाते हैं। टीम इंडस उसी आशा और विश्वास का एक नाम है जिसके
लिए प्रत्येक भारतीय ह्रदय से यही सदिच्छा रखता है कि टीम इंडस ये प्रतियोगिता
अवश्य जीते।
-प्रदीप भट्ट –
Monday, June-12-2017
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