“ हिंदी मीडियम ”
भारत विश्व में अकेला ऐसा देश है जहाँ हर वर्ष
सितम्बर माह की 14 तारीख़ से प्रत्येक सरकारी कार्यालय,बैंक में “हिंदी पखवाड़ा” मनाये जाने की परंपरा अभी तक
बदस्तूर जारी है। पिछले इतने वर्षो से जारी इस परंपरा के
लिए बजट आवंटित करते हुए कभी भी वित्त मंत्रालय ने कोई टिका टिप्पणी नहीं की। अन्यथा हर मंत्रालय एवं
उनके अंतर्गत आने वाले सभी डिपार्टमेंट को हर वर्ष टारगेट तो बढ़ा कर दिए जाते हैं
किन्तु वित्त में हर वर्ष कटौती कर दी जाती है। ये बात अभी तक तो मेरी समझ में नहीं आयी कि भारत
सरकार या राज्य सरकार विकास कार्य के लिए कौन सा पैमाना अपनाती है जहाँ टारगेट
ज्यादा और खर्च कम में काम किया जा सकता हो। यहाँ यह उल्लेख करना भी
जरुरी है कि भारत विश्व में अपनी राष्ट्र भाषा और राज्य भाषा दोनों के लिए ही विरोध
भी जब-तब झेलता रहता है फ़िर वो चाहे राजनैतिक ही क्यों न हों।
अंग्रेजीदा लोगों के साथ सबसे बड़ी दिक्कत ये होती है कि वे इस भाषा का
इस्तेमाल ऐसे लोगों के सामने ज्यादा करते हैं जो इस भाषा से बिलकुल या अनभिग्य हैं
या कामचलाऊ अंग्रेजी ही जानते हैं। ऐसे लोगों का सिर्फ़ एक ही दर्शन होता है कि
सामने वाले को उसके अंग्रेजी ना जानने की सजा दी जाये उसे नीचा दिखाया जाये ताकि
उसमें अंग्रेजी ना जानने के कारन हीन भावना उत्पन्न हो और वह अपना सारा काम धाम छोड़कर
बस अंग्रेजी का रट्टा मारने को विवश हो जाये। आज जो हम कस्बे और शहर की
हर पांचवी गली में अंग्रेजी मीडियम के स्कूल देखते हैं ये उसी हीन भावना से उपजे
रोष की भरपाई करते नज़र आते हैं। एक आम माध्यम वर्ग और अब
तो निम्न आय वर्ग का व्यक्ति भी ये सोचता है कि भले ही कुछ भी हो जाये उसे अपने
बच्चे को अंग्रेजी मीडियम स्कूल में ही पढाना है ताकि वो भी अंग्रेजी में गिटर-पिटर
कर सके। इसी भारतीय मानसिकता का
परिणाम है कि अंग्रेजी मीडियम के स्कूल कुकुरमुत्ते की तरह उग आये हैं।
जहाँ तक इन अंग्रेजी मीडियम स्चूलों के सञ्चालन का प्रश्न है तो
ज्यादातर स्कूल उन निरे निपट हिंदी मीडियम
में पढ़े लिखे लोगों ने खोल रखे हैं जो अंग्रेजी भाषा के ज्यादा जानकर नहीं हैं बस
उनका एक ही मकसद है कि स्वम जैसे हीन भावना से गर्सित लोगों के अन्दर पनप रहे रोष
का फायदा कैसे उठाया जाये। 1000
से लेकर 3000 या ज्यादा से ज्यादा 5000 हजार तक के टीचर रखकर
कैसे संभव है कि उन बच्चों को अच्छी शिक्षा वो भी अंग्रेजी माध्यम से दी जा सकती
है। ज्यादातर स्कूलों में
बच्चों को पढ़ाने वाली टीचर को खुद ही प्रश्नों के उत्तर नहीं आते और जहाँ तक
सामान्य ज्ञान का प्रश्न है उसकी तो बात न ही की जाये तो अच्छा है। ९० प्रतिशत टीचरों को तो
ये तक नहीं पता होता है कि उस राज्य की राजधानी क्या है,उस राज्य का मुख्मंत्री
कौन है,राज्यपाल कौन है ये आर्टिकल लिखने का ख्याल भी इसलिए आया कि इसी सप्ताह एक खूबसूरत
फिल्म “हिंदी मीडियम” रिलीज हुई है जो कि असली भारतीय मानसिकता का वास्तविक चित्रण करती है। जो लोग खुद ज़िन्दगी भर
हिंदी मीडियम में पढ़े हैं वो अपने बच्चे से ये अपेक्षा जरुर करते हैं कि वो उनके
सामने और घर में आने वाले मेहमानों के सामने अंग्रेजी बोलकर उनका जीवन कतार्थ कर
दे किन्तु होता ऐसा बिलकुल भी नहीं। राज हट स्त्री हट और
सबसे सशक्त बाल हट सबसे प्रसिद्ध है। बच्चा वही करता है जो वो करना चाहता है,इस फिल्म
में बाल हट की एक ऐसी ही झलक देखने को मिलती है। पूछने पर मुख्यमंत्री की
जगह प्रधानमंत्री और राजपाल की जगह राष्ट्रपति या इसके उल्ट भी उत्तर आपको प्राप्त
हो सकते हैं ये आर्टिकल लिखने का ख्याल भी इसलिए आया कि इसी सप्ताह एक खूबसूरत
फिल्म “हिंदी मीडियम” रिलीज हुई है जो कि असली भारतीय मानसिकता का वास्तविक चित्रण करती है। जो लोग खुद ज़िन्दगी भर
हिंदी मीडियम में पढ़े हैं वो अपने बच्चे से ये अपेक्षा जरुर करते हैं कि वो उनके
सामने और घर में आने वाले मेहमानों के सामने अंग्रेजी बोलकर उनका जीवन कतार्थ कर
दे किन्तु होता ऐसा बिलकुल भी नहीं। राज हट स्त्री हट और
सबसे सशक्त बाल हट सबसे प्रसिद्ध है। बच्चा वही करता है जो वो करना चाहता है,इस फिल्म
में बाल हट की एक ऐसी ही झलक देखने को मिलती है।
ये आर्टिकल लिखने का ख्याल भी इसलिए आया कि इसी सप्ताह एक खूबसूरत
फिल्म “हिंदी मीडियम” रिलीज हुई है जो कि असली भारतीय मानसिकता का वास्तविक चित्रण करती है। जो लोग खुद ज़िन्दगी भर
हिंदी मीडियम में पढ़े हैं वो अपने बच्चे से ये अपेक्षा जरुर करते हैं कि वो उनके
सामने और घर में आने वाले मेहमानों के सामने अंग्रेजी बोलकर उनका जीवन कतार्थ कर
दे किन्तु होता ऐसा बिलकुल भी नहीं। राज हट स्त्री हट और
सबसे सशक्त बाल हट सबसे प्रसिद्ध है। बच्चा वही करता है जो वो करना चाहता है,इस फिल्म
में बाल हट की एक ऐसी ही झलक देखने को मिलती है। किस प्रकार माँ बाप मेहमानों के सामने
अपने बच्चों को कार्टून तक बना डालते हैं अगर वो उनकी बात न माने तो कहेंगे आज
इसका मूड ठीक नहीं है वरना अपनी बुआ के आगे तो इसकी जुबान कैंची की तरह चलती है।
मतलब बच्चों को बच्चों की तरह ट्रीट न करके उससे अपेक्षा करेंगे कि वह एक समझदार
व्यक्ति की तरह बर्ताव करे जब कि वो खुद इसके उलट व्यव्हार कर रहे होते हैं।
“हिंदी मीडियम” फ़िल्म देखते हुए सहसा ही मुझे लखनऊ में बिताया अपना बचपन याद आ गया जब
प्रथम कक्षा में मेरा एडमिशन करने से पूर्व मुझे 20 तक पहाड़े,100 तक गिनती (हिंदी
वाली),अंग्रेजी वर्णमाला के २६ अक्षर साथ ही अंग्रेजी भाषा के छोटे छोटे शब्द जैसे
CAT, RAT, Name of colour, etc.हिंदी
वर्णमाला के सभी अक्षर। किंतु आज की तारीख़ में जब बच्चा पैदा होता है तो माँ बाप उसको
हिंदी की कविता याद करने के लिए नहीं कहते बल्कि उसे अंग्रेजी की पॉएम याद करने और
सबको सुनाने के लिए मजबूर करते हैं और दूसरी सबसे सबसे ज्यादा टेंशन उसके पहले
प्ले स्कूल फ़िर प्रेप एडमिशन को लेकर ज्यादा रहती है और जैसा कि फिल्म में दिखया
गया है कि नायक और नायिका डेल्ही के सभी नामचीन स्कूल की खाक छानते फ़िर रहे हैं इस
चित्रण से कम से कम मुझे तो ऐसा अहसास हुआ और महाभारत की एक कहानी याद आ गई कि “जब महाभारत का युद्ध अवशम्भावी हो गया तो भगवन श्रीकृष्ण और विदुर को
ये जिम्मेदारी दी गई कि वो ऐसे स्थान का चयन करे जिससे 27 अक्षोहणी सेना युद्ध कर
सके और दोनों ने मिलकर कुरुक्षेत्र (हरियाणा) का चयन किया था ” आजकल के समय में भी हर तीसरे माँ बाप की यही समस्या है 2 से 5 साल के बच्चे के दिमाग
पर इतना बोझ डाल देते हैं जैसे वो पढने नहीं बल्कि महाभारत का युद्ध लड़ने जा रहा
है।
आप सब इस बात स्वम अंदाजा लगाइए जो बच्चा अभी सिर्फ़ दो या ढाई वर्ष का ही
है माँ बाप उससे क्या-क्या अपेक्षाएं पाल रहे हैं वे स्वम उसे सामान्य ज्ञान तक नहीं देना चाहते शायद इसका कारण भी ये है कि उन्हें उनके माँ बाप
ने भी सामान्य ज्ञान नहीं दिया जब कि शास्त्रों में लिखा है कि बच्चे की प्रथम
गुरु माँ होती है। लेकिन आजकल ज्यादातर माओं को इतनी फुर्सत कहाँ है की वो बच्चे की
देखभाल पर ध्यान दे सके फ़िर प्रथम ज्ञान देने की बात तो दूसरी है। जहाँ तक फिल्म “हिंदी मीडियम”
का प्रश्न है तो मुंबई के जिस PVR में
मैं फिल्म देख रहा था तो हॉल में हर पंच लाइन पर जबरदस्त तालियाँ बज रही थीं उन
तालियों की गडगडाहट में मुझे तो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि आज हॉल में आया प्रत्येक
माँ बाप सुबह होते ही अपने बच्चे के स्कूल पहुँच जायेंगे और प्रिंसिपल से कहेंगे
कि हमें नहीं पढाना तुम्हारे इस स्कूल में अपने बच्चे को। किन्तु ये कभी न हो
पायेगा।
-प्रदीप भट्ट –
Satarday, May-25-2017
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