Friday, 28 April 2017

कव्वा चला हंस की चाल अपनी चाल भी भूला



कव्वा चला हंस की चाल अपनी चाल भी भूला
 -अरविन्द केजरीवाल यानि अति महत्वकाशां का शिकारव्यक्ति-


बचपन से एक कहावत सुनते आ रहे है कि चौबे जी छब्बे जी बनने चले थे दूबे जी बनकर लौटे कुछ ऐसा ही हाल वर्तमान में श्रीमान अरविन्द केजरीवाल का हुआ था। डेल्ही की तीनों नगरपालिकाओं के हुए चुनाव में उन्हें करारी शिकस्त झेलनी पड़ी ये और बात के वो पहली बार अपनी पार्टी का भाग्य आजमा रहे थे किन्तु उनके द्वारा लगातार दिए जा रहे अनाप- शनाप  बयानों से डेल्ही की जनता ये सोचने पर मजबूर होती दिखाई दी कि जिस व्यक्ति की क़ाबलियत को देखकर उन्होंने डेल्ही विधानसभा चुनाव में पहली बार कुल 70 28 और दूसरी बार 67 सीटें आम आदमी पार्टी को सौंपी क्या वो इसके लायक है? निश्चित रूप से केजरीवाल डेल्ही वालों की कसौटी पर खरे उतरने में नाकामयाब रहे। आख़िर ऐसा क्या हुआ कि जिस डेल्ही ने उनके लिए पलक पावंडे बिछाए थे उसी डेल्ही ने मात्र दो वर्षो में उन्हें उनकी औकात दिखा दी। केजरीवाल की वर्तमान हालात का बयां करने के लिए ये शेर सबसे उपयुक्त है।

      तुमने मुझे इस बुलंदी तक नवाज़ा क्यूँ था
गिर के मैं टूट गया कांच के बर्तन की तरह

अन्ना हजारे महाराट्र में काफ़ी लोकप्रिय हैं। वे नेता नहीं हैं किन्तु उनकी बातों को लोग गंभीरता से लेते हैं उन्हें ही लोकपाल आन्दोलन की शुरुआत का श्रेय जाता है शुरू शुरू में अन्ना हजारे के साथ सद इच्छा   से लोग इनके साथ जुड़े और डेल्ही में धरना प्रदर्शन तक किया उन्हीं लोगों में से एक अरविन्द केजरीवाल भी थे जो कि काफ़ी महत्वकांशी थे किन्तु शुरुआत में उनकी इस महत्त्वकांशा का लोग समझने में और विशेष रूप से अन्ना हजारे अन्यथा क्या कारण रहा कि जिस व्यक्ति ने अन्ना हजारे के कंधे पर चढ़कर डेल्ही के  मुख्यमंत्री का पद प्राप्त किया वही उनकी विचारधारा को आगे ना बढ़ाकर स्वमं अपनी ही विचारधारा को जिसे डिक्टेटरशिप कहाँ ज्यादा उपर्युक्त होगा सभी पर थोपने लगा और रिजल्ट सामने है। जो व्यक्ति दो वर्ष पहले तक डेल्ही वालों की पहली पसंद था वही आज उनकी दुत्कार का खा रहा है। अन्ना हजारे कभी नहीं चाहते थे कि उनके प्लेटफार्म का राजनीती के लिए इस्तेमाल हो इसलिए वो राजनैतिक लोगों से मिलते ज़रूर रहे लेकिन राजनीती से सदा उन्होंने एक हाथ की दुरी बनाकर रखी।


आम आदमी पार्टी का उद्भव 2011 में  इण्डिया अगेंस्ट करप्शन द्वारा अन्ना हजारे के नेतृत्व में चलाये गये   तथा बाद में जन लोकपाल आन्दोलन के समापन के दौरान हुआ।  चूँकि अन्ना हजारे बार बार डेल्ही जाकर इस आन्दोलन को धार दे रहे थे और कुछ लोग तत्कालीन सरकार के रवैय्ये से नाखुश थे अतएव राजनीतिक विकल्प की तलाश की जाने लगी थी। अन्ना हजारे भ्रष्टाचार विरोधी जनलोकपाल आन्दोलन को राजनीति से अलग रखना चाहते थे किन्तु  अरविन्द केजरीवाल आन्दोलन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये एक अलग पार्टी बनाकर चुनाव में शामिल होने के पक्षधर थे।इसमें इनका साथ किरण बेदी भी दे रहीं थे और किरण बेदी चाहती थीं कि अलग पार्टी ना बनाकर भाजपा का साथ दिया जाये जो प्रमुख विपक्षी पार्टी थे जब कि अरविन्द केजरीवाल ऐसा नहीं चाहते थे।  19 सितम्बर 2012 को अन्ना और अरविन्द इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि उनके राजनीति में शामिल होने सम्बन्धी मतभेदों का दूर होना मुश्किल है। इसलिये उन्होंने समान लक्ष्यों के बावजूद अपना रास्ता अलग करने का निश्चय किया। जन लोकपाल आन्दोलन से जुड़े प्रशांत भूषण योगेन्द्र यादव और अरविन्द केजरीवाल के साथ शुरू से खड़े रहे मनीष सिसोदिया ने 2 अक्टूबर 2012 को राजनीतिक दल बनाने की घोषणा की। इस प्रकार भारतीय संविधान की वर्षगांठ के दिन 26 नवम्वर (2012) को औपचारिक रूप से आम आदमी पार्टी का गठन हुआ। इसके बाद इसी उद्देश्य के तहत पार्टी पहली बार दिसम्बर 2013 में डेल्ही विधानसभा  में झाड़ू चुनाव चिन्ह के साथ चुनावी मैदान में उतरी।पार्टी ने चुनाव में 28 सीटों पर जीत दर्ज़ की और कांग्रेस  के समर्थन से दिल्ली में  सरकार  बनायी। अरविन्द केजरीवाल ने 28 दिसम्बर  2013 को दिल्ली के 7वें मुख्य मन्त्री पद की शपथ ली। 49 दिनों के बाद 14 फ़रवरी 2014 को विधान सभा द्वारा जन लोकपाल विधेयक प्रस्तुत करने के प्रस्ताव को समर्थन न मिल पाने के कारण अरविंद केजरीवाल की सरकार ने त्यागपत्र दे दिया। तब भारत सरकार ने डेल्ही में राष्टपति शासन लगा दिया कुछ समय बाद जब पुन चुनाव हुए तो अप्रयाषित रूप से आम आदमी पार्टी ने अभूतपूर्व प्रदर्शन करते हुए कुल जमा 70 में से 67 विधानसभा सीटों पर कब्ज़ा कर लिया भाजपा को जहाँ 3 सीटों से संतोष करना पड़ा वहीँ सत्ताधारी कांग्रेस का डेल्ही से सूपड़ा ही साफ़ हो गया।

दिल्ली चुनाव के पहले पार्टी को कई विवादों का सामना करना पड़ा। भारत सरकार के गृहमन्त्री, सुशील कुमार शिंदे  ने पार्टी के विदेशी दान की जाँच कराने की बात कही। पार्टी ने दान राशि का सम्पूर्ण ब्यौरा पार्टी वेवसाइट पर पहले से ही सार्वजनिक होने की बात कही और अन्य राजनीतिक दलों को भी अपने चन्दे को सार्वजनिक करने की चुनौती दी।दिल्ली विधान सभा चुनाव के कुछ पहले एक मीडिया पोर्टल द्वारा आम आदमी के विधायक पद के उम्मीदवारों का स्टिंग ऑपरेशन सामने आया जिसमें उन पर ग़ैर-इमानदार होने के आरोप लगाये गये। आम आदमी पार्टी ने एक प्रेस कांफ्रेंस कर स्टिंग वीडियो में कई महत्वपूर्ण भागों को काट-छाँट कर प्रस्तुत करने का आरोप लगाया और मीडिया पोर्टल के खिलाफ मानहानि की याचिका दायर की।

ये अरविन्द केजरीवाल की महत्वकाशां ही थी जिसने उन्हने डेल्ही की जनता से किये गए वादों को पूरा न कर लोकसभा चुनाव -2014 में सीधे प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेन्द्र मोदी को चुनौती दे डाली और डेल्ही की समस्याओं को छोड़कर सीधे बनारस मोदी के ख़िलाफ़ खड़े हो गए। नतीज़ा तो सर्विदित है किन्तु ये महाराज फिर भी नहीं माने और डेल्ही के उपराज्यपाल से जब तब लड़ते रहे और अपना मुकाबला सीधे प्रधानमंत्री मोदी से करना शुरू कर दिया गोया डेल्ही या देश की किसी भी समस्या का समाधान मोदी के विषय में अपशब्द बोलने भर से हो जायेगा। जब सभी पासे फेल हो रहे थे तो इन्हें समझ जाना चाहिए था किन्तु इन्होने फ़िर 5 राज्यों के चुनाव में दमखम ठोक दिया और इतने आत्मविश्वास से भर उठे कि पंजाब और गोवा में सरकार बनाने की क़वायद तक शुरू कर दी लेकिन जब रिजल्ट आया तो हाथों के तोते ही उड़े पाए। फिर मायावती की तर्ज पर ई वी एम् एक पक्षीय निर्णय कर रही है इल्जाम लगा दिया। इस पूरे प्रकरण में वो ये भूल गए कि अप्रैल में डेल्ही में 3 नगरपालिकाओं के चुनाव भी हैं इसलिए जब तक ये जागते काफ़ी देर हो चुकी थे। तब आनन फानन में डेल्ही की जनता को ही धमकी दे डाली कि अगर भाजपा आई तो ये हो जायेगा वो जायेगा और साथ ही ये भी बोल गए कि अगर हम हारे तो ई वी एम् के कारण ही हारेंगे और जीते तो अपने 2 वर्षो में किये गए कार्यों की बदौलत और जब 26 अप्रैल को रिजल्ट आया तो एक बार फिर आप के हाथ के तोते उड़े हुए थे। भाजपा जहाँ 182 सीटें लेकर शीर्ष पर थी वहीँ आम आदमी पार्टी को 48 ,कांग्रेस को 29 और निर्दलीय 11 सीटें हासिल हुईं।



  -प्रदीप भट्ट – 28,April,2017

Saturday, 22 April 2017

कैराना



कैराना



पिछले कुछ दिनों से कैराना फिर चर्चा में आया जब ज्ञात हुआ कि जो 252 लोग कैराना से अन्यत्र पलायन कर गये थे उनमें से दो परिवार वापिस कैराना लौट आये हैंजानकर अच्छा लगा कि चलो उत्तर प्रदेश में सरकार के बदलते ही कैराना में भी बदलाव आ रहा है इसका श्रेय लेने की अभी तक तो होड़ नहीं मची है, किन्तु जिन पस्थितियों में 252 परिवार अपने जान-मॉल की रक्षा करने नहीं हो पाने के कारण कैराना से पलायन कर गए थे वो उत्तर प्रदेश सरकार के लिए एक प्रश्नचिन्ह अवश्य छोड़ गया कि समाजवादी पार्टी की मुस्लिम तुष्टिकरण की निति और क्या गुल खिलाएगी। उत्तर प्रदेश चुनाव के परिणामों ने लेकिन एक बात अवश्य साबित कर दी कि उत्तर प्रदेश की जनता किसी भी बड़बोले और नाकारा लोगों को एक ही झटके में कैसे सत्ता से उठाकर बहार का रास्ता दिखा देती है। निति और अनिती में यही एक फर्क है वैसे भी आज तक उत्तर प्रदेश में कोई भी पार्टी पु:न चुनकर सत्ता पर काबिज नहीं हो पाई है। पहले बसपा ने उत्तर प्रदेश में जिन्दा लोगों से ज्यादा पत्थर की मूर्तियों को ज्यादा तरजीह दी साथ ही दलित दलित का राग अलापकर भिखारी की स्थिति का एक परिवार कैसे सत्ता प्राप्त करते ही दिन दूनी रात चौगुनी रफ़्तार से करोड़ों अरबों के वारे न्यारे करने में कामयाब रहा यह किसी से छिपा नहीं है। जिस गरीब और दलित के नाम पर बसपा सत्ता हथियाती है फ़िर उसी जनता पर जुल्मों सितम की इंतेहा भी करती है। समाजवादी पार्टी को तो लोग गुंडों और डाकुओं का गिरोह कहते ही हैं जहाँ तक कांग्रेस का प्रश्न है वो तो तीन में है न तेरह में लेकिन इसके बावजूद भी उनके नेता नवाबों की तरह पेश आते हैं या ये कहना ज्यादा उपयुक्त होगा कि उनका व्यवहार आज भी सामंतवादी है आइये कैराना के इतिहास पर कुछ नज़र डालते हैं:-  


डेल्ही से 129 K.M. दूर मुजफ्फरनगर जिले से लगभग 50 K.M. दूर आजकल शामली जिले की एक तहसील है और हरियाणा से लगा हुआ लगभग एक लाख की आबादी वाला कैराना प्राचीन काल में में कर्णपुरी के नाम से प्रसिद्ध था, जो कि समय के साथ बिगड़ता बिगड़ता ये किराना (उत्तर प्रदेश में किराना से तात्पर्य किराना दुकान जिसमें घर के रोज़ मर्रा के सभी सामान बिकते हों) और फिर कैराना के नाम से जाना जाने लगा। यह कहानी भी कम प्रचलित नहीं है कि कैराना का नाम कै और राणानाम के राणा चौहान गुर्जरों के नाम पर पड़ा और माना जाता है कि राजस्थान के अजमेर से आए राणा देव राज चौहान और राणा दीप राज चौहान ने कैराना की नींव रखी।  कैराना के आस-पास कलश्यान चौहान गोत्र के गुर्जर समुदाय के 84 गांव हैं। सोलहवीं सदी में मुग़ल बादशाह जहांगीर ने अपनी आत्मकथा तुज़ुक-ए-जहांगीरी में कैराना की अपनी यात्रा के बारे में लिखा है।


किराना घराना भारतीय शास्त्रीय संगीत और गायन की खयाल गायकी की परंपरा वाले हिंदुस्तानी घरानों में शामिल है की स्‍थापना शास्त्रीय गायक अब्दुल करीम खान ने की थी। इस घराने से गंगूबाई हंगल, सवाई गंधर्व, रोशन आरा बेगम जैसे नाम भी जुड़े रहे हैं। किसी जमाने में पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कैराना भारतीय शास्त्रीय संगीत के मशहूर किराना घराना के लिए जाना जाता था, जिसकी स्थापना महान शास्त्रीय गायक अब्दुल करीम खां ने की थी। पंडित भीमसेन जोशी और शास्‍त्रीय गायक अब्‍दुल करीब खान का नाम यहां से जुड़ा है। ये दोनों ही किराना घराना से थे, जिसकी नींव यूपी के इसी शहर में पड़ी थी। एक बार जब अपने समय के महान गायक मन्ना डे जब किसी काम से कैराना पहुंचे थे तो कैराना की सीमा में घुसने से पहले इस क्षेत्र का सम्मान करने के लिए उन्होंने अपने जूते उतारकर हाथों में पकड़ लिए थे। इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि यह धरती महान संगीतकारों की है और इस धरती पर वो जूतों के साथ नहीं चल सकते। ये मन्ना डे दा का संगीत के प्रति वास्तविक प्रेम और आदर प्रदर्शित करता है।

पिछले दिनों कैराना किसी संगीत समारोह या किसी राजनितिक वजह से नहीं वरन वहां पर रहने वाले हिन्दू परिवारों के पलायन से चर्चा में आया।चर्चा भी ऐसी कि कुछ लोगों को ये अंदेशा भी हुआ कि कहीं कैराना दूसरा कश्मीर बनने की राह पर तो नहीं चल पड़ा है। ऐसा इसलिए भी कि जिस प्रकार वहां दिन-दहाड़े विजय नामक एक व्यापारी युवक की गोली मार कर हत्या कर दी गई,सरे आम स्कूल कॉलेज जाने वाली लड़कियों के साथ अभद्र व्यवहार किया जाने लगा छांट छांट कर हिन्दू परिवारों को निशाना बनाया जाने लगा उससे वहां स्थिति इतनी जयादा असहज हो गई कि हिन्दू परिवारों ने वहां से पलायन करना ही बेहतर समझा कुछ पत्र पत्रिकाओं ने इसे 1990 की पुनरावृत्ति तक बता डाला। ऐसा इसलिए भी कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और उस सरकार की शुरू से मुस्लिम तुष्टिकरण और गुंडागर्दी की ही USP रही है। प्रकरण भी स्थानीय बीजेपी सासंद हुकुम सिंह 346 हिंदू परिवारों की सूची सौंपते हुए यह आरोप लगाया कि कैराना को कश्मीर बनाने की कोशिश की जा रही है। हुकुम सिंह ने कहा कि यहां हिंदुओं को धमकाया जा रहा है, जिससे हिंदू परिवार बड़ी संख्या में पलायन कर रहे हैं। हुकुम सिंह के इतना कहते ही बीजेपी अखिलेश सरकार पर हमलावर हो गई। बीजेपी ने न सिर्फ अखिलेश सरकार के कानून व्यवस्था पर सवाल उठाए बल्कि इसे सोची समझी रणनीति भी करार दिया। इसके जबाव में अखिलेश और मायावती ने बीजेपी पर जमकर हमला बोला।

  
इसी बीच डिप्टी जनरल ऑफ़ पुलिस श्री ए के राघव ने अपनी रिपोर्ट में बीजेपी और स्थानीय सांसद पर यह आपोप लगाया कि उत्तर प्रदेश के चुनाव नजदीक आ रहे हैं इसलिए ये सब बखेड़ा किया जा रहा है। किन्तु कुछ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों का मानना था कि यह पूर्ण सत्य नहीं है और वास्तव में कैराना में 81 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है और हिन्दूओं की महज 18 प्रतिशत इसलिए वहां के गुंडों जिनमें फुरकान प्रमुख है। सिर्फ़ हिन्दुओं को ही चिट्ठी भेजकर रकम की मांग की जा रही है इससे एक प्रश्न उभरता है कि क्या कैराना में सिर्फ़ हिन्दू ही पैसे वाले हैं मुस्लिम नहीं ? किन्तु सच्चाई यही है कि कैराना में मुस्लिम गुंडों की गुंडागर्दी के कारण और उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार द्वारा उनको संरक्षण दिए जाने के कारण ही वहां से हिन्दुओं के 250 से ज्यादा परिवारों ने पलायन करना ही बेहतर समझा अन्यथा क्या कारण है कि फुरकान गैंगस्टर जेल में बंद है और वो खुले आम जेल से ही फिरोती के पत्र भेज रहा है।ये तो भला हो नेशनल ह्यूमन राईट कमीशन का जिसने अपनी रिपोर्ट में इस बात को बड़ी बेबाकी से रखा कि कैराना में मुस्लिमों से अपने जान मॉल के नुकसान को देखते हुए ही 250 से ज्यादा हिन्दुओं ने पलायन किया है साथ ही नेशनल ह्यूमन राईट कमीशन से इस बात पर ही जोर दिया है कि उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था पुलिस न चलाकर वहां गुंडे माफ़िया चला रहे हैं और उनको उत्तर प्रदेश की सरकार का मौन समर्थन प्राप्त है,जिससे उत्तर प्रदेश में कैराना जैसी दूसरी घटना भी हो सकती है जो कि लोकतंत्र के लिए मनासिब नहीं है।
आज जब उत्तर प्रदेश के चुनाव सम्पूर्ण हो चुके हैं और उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को अभूतपूर्व जनादेश मिला है जिससे उत्तर प्रदेश में रहने वालों को ये आस जग गई है कि कम से कम राज्य में कानून व्यवस्था कुछ तो सुधरेगी किन्तु भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने जिस प्रकार प्रान्त में पांच बार के गोरखपुर से सांसद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया है उससे उत्तर प्रदेश में हर्षोल्लास का माहौल छा गया है क्यों कि योगी आदित्यनाथ सख्त किस्म के हैं चूँकि वो साधु हैं अतएव उन्हें दिन दुनियां की मोह माया का ज़रा भी चाहत नहीं है अतएव पुरे उत्तर प्रदेश में ही नहीं वरन पूरे देश में एक साफ़ और सकारात्मक सन्देश चला गया है कि उत्तर प्रदेश में अब गुण्डाराज तो नहीं चलने वाला। मुख्यमंत्री के पद पर आसीन होने ही जिस प्रकार योगी ने 300 से अधिक फ़ैसले लिए हैं उनसे उनके इरादे साफ़ झलकते हैं। उत्तर प्रदेश में सुशासन देर से आये किन्तु गुंडाराज तुरंत विदा हो जाये ये योगी की प्रथम प्राथमिकता है निश्चित रूप से ये उत्तर प्रदेश के भविष्य के लिए एक सोचा समझा और नीतिगत फैसला भारतीय जनता पार्टी ने लिया है जिससे सब कुछ अच्छा होने की ही कामना की जा सकती है   
-प्रदीप भट्ट – 22,April,2017


Wednesday, 12 April 2017

फ़ितरत

इसकी फ़ितरत बदली है, न है ये कभी बदलने वाली
  पूंछ कुत्ते की है, ये तो सीधी नहीं होने वाली




कुलभूषण जाधव जो कि एक पूर्व भारतीय नेवी सैन्य कमांडर रहा है और रिटायर्मेंट के पश्चात् अपना खुद का व्यापर कर रहा है पाकिस्तान की कुख्यात ख़ुफ़िया एजेंसी ISI द्वारा ईरान से अपहरण कर लिए जाता है और ये घोषित कर दिया जाता है कि वो एक भारतीय जासूस है जो कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान सरकार के ख़िलाफ़ काम कर रहा है इस विषय में जो पाकिस्तान सरकार ने सबुत मुहैय्या कराएँ हैं वो सिरे से हास्यास्पद है जैसे कि ये कहना कि उसके पास भारतीय पासपोर्ट है? क्या कोई भी ऐसा व्यक्ति जो जासूसी जैसे कार्य में हो वो कभी अपनी पहचान इस प्रकार से जग जाहिर करेगा और तो और वो अपने ही देश का वैध पासपोर्ट अपने पास रखेगा कदापि नहीं? उसकी एक मात्र जो विडियो क्लिप दिखाई जा रही है उसको डोक्टार्ड विडियो कहते हैं जिसमें कम से कम 50 कट की पुष्टि होती हैआइये कुछ और तथ्यों पर प्रकाश डालते हैं:-
कुलभूषण जाधव एक रिटायर्ड नौसेना अधिकारी हैं, जिन्हें रॉ का एजेंट बताया जा रहा है। अप्रैल, 2016 में पाक सरकार ने उन पर आतंकवादी और तोड़फोड़ की कार्रवाइयों में लिप्त होने का आरोप लगाया था। इसी वर्ष  इसी वर्ष मार्च में विदेशी मामलों पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के सलाहकार सरताज अजीज ने सीनेट में घोषणा की थी कि जाधव को भारत को वापस नहीं किया जाएगा। पाकिस्तान ने कुलभूषण जाधव को भारतीय दूतावास के किसी भी अधिकारी से संपर्क तक नहीं करने दिया गया है, मूल प्रश्न ये है कि अंतर्राष्टीय पंचाट के सन्दर्भ में देखे तो पायेगें कि यदि किसी व्यक्ति पर जासूसी का आरोप लगता है तो यदि उसके पास साधारण उस देश का पासपोर्ट है तो उस पर सैनिक अदालत में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता किन्तु पाकिस्तान तो पाकिस्तान है उसे अंतर्रराष्ट्रीय कानूनों के कहाँ पड़ी है उसका सिर्फ़ एक ही मकसद है कि 29 सितम्बर-2016 को जो सर्जिकल स्ट्राइक भारतीय सेना द्वारा पाक अनधिकृत कश्मीर में कि गई है उसका बदला कैसे लिया जाये सो उसने जाधव को ईरान से किडनैप करके और सिर्फ़ एक ही दिशा में सैनिक अदालत में कार्यवाही कराकर ये निश्चित करने का प्रयास किया है कि जाधव को फंसी दे दी जाये ताकि नवाज़ शरीफ़ अपने देश में अपनी कुछ इज्ज़त बचा पायें क्यों कि जबसे  भारतीय सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक की है वो पाकिस्तान में किसी को मुहं दिखाने के लायक नहीं रह गए हैं

ये कैसा विरोधाभास है कि कुलभूषण जाधव का अपहरण ईरान में मार्च-2016 में किया गया और बताया गया कि कुलभूषण जाधव बलूचिस्तान में विध्वंसक कार्यवाहियों को अंजाम दे रहा था किन्तु दिसम्बर 2016 में ही पाकिस्तान के प्रधान मंत्री के विदेशी मामलों के सलाहकार मियां सरताज अजीज ने साफ शब्दों में इस बात को स्वीकार था कि  जाधव के पास से बरामद डोजियर में कुछ भी आपत्ति जनक नहीं पाया गया है न ही जाधव के खिलाफ़ उन्हें कोई सबूत ही मिला है फिर ये सब अचानक सैन्य अदालत में पेशी और फंसी कि सजा यही दर्शाती है कि पाकिस्तान अपने आप को ही बेनकाब करना चाहता है ताकि अंतर्रराष्ट्रीय स्तर पर उसका रसूख और घट जाये
कल यानि 11 अप्रैल को नयी डेल्ही में इंडो पाक सेमिनार में जब एक महिला पत्रकार ने कसूरी पर जाधव से संबधित प्रश्नों के बौछार कर दी तो वो बगले झाँकने लगे लेकिन ज्यादा तकलीफ़ देह स्थिति तो तब उत्पन्न हो गई जब बेहुदे मणिशंकर अय्यर (ये वाही महानुभाव है जो पाकिस्तान जाकर वहां एक चैनल से चर्चा के दौरान ये कहते हैं कि आप मोदी को हटायें) उस महिला पत्रकार के सवालों पर झुंझलाए और उसे नसीहत देने की कोशिश करते नज़र आये अब इस आदमी को कोई कैसे और क्यों समझाएं कि अगर उसे पाकिस्तान से इतनी ही मुहब्बत है तो वही जाकर बस जाएँ कम से कम हमें इस आदमी का बेशर्म चेहरा तो नहीं देखना पड़ेगा एक दूसरी घटना में नॅशनल कांफ्रेंस जिसके अध्यक्ष जनाब फारुख अब्दुल्लाह जो भारत का खाते हैं भारतीय गाने गाते हैं ठुमके भी भारतीय अंदाज़ में लगते हैं किन्तु इनके लहू में पाकिस्तानी बहता है, के एक और छुटभैय्ये नेता मुस्ताफ्फ़ कमाल जाधव केस को पाकिस्तानी कानून के दायरे में बताते नज़र आते हैं समझ नहीं आता हम लोग मणि शंकर अय्यर,मुस्तफा कमाल,फारुख अब्दुलाह,दिग्विजय सिंह जिन्हें दिग्भ्रमित कहना ज्यादा उचित होगा और न जाने कितने छद्म सकुलरों को झेलने के लिए अभिशप्त हैं

ये तो भला हो गृहमंत्री और विदेश मंत्री का जिन्होंने कल संसद में कल कुलभूषण जाधव को फांसी दिये जाने का सख्त लहजे में विरोध प्रकट किया और पाकिस्तान को कड़े शब्दों में चेतावनी भी जारी कर दी कि अगर पाकिस्तान एक तरफा कार्रवाई से बाज नहीं आया तो उसे इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे वैसे भी विदेश सचिव एस जयशंकर ने पुरजोर शब्दों में जाधव के खिलज जो प्रकिया अपने जा रही है और उसे हास्यास्पद करार देते हुए कहा है कि बिना किसी पुख्ता साबुत के जो प्रकिया अपनाकर फांसी कि सजा जाधव को सुनाई गई है वह अंतर्राष्टीय कानून के विरुद्ध है  एस जयशंकर ने दिमश्रे (Diplomatic Demand Letter) जरी करते हुए कड़े शब्दों में कहा कि अगर इस मामले में न्याय और क़ानूनी प्रकिया का पालन नहीं किया जाता है तो भारत के लोग जाधव कि फांसी को सुनोयिजित हत्या मानेगें

ये हमारे ही देश में संभव है कि कश्मीर में सरे आम सैनिकों को ठोकरों से मारा जाता है उन पर पत्थर फेंके जाते हैं और हमारे वीर सैनिक सम्पूर्ण धैर्य धारण करते हुए कुछ नहीं बोलते हमारे सैनिक जिन कश्मीर के लोगों कि हर तरह से मदद करते हैं चाहे वो बाढ़ हो चाहे या कोई अन्य प्रकार कि मदद किन्तु कश्मीर के लोग इतने ना शुक्रे हैं कि जो सेना इनकी मदद करती है उसी के काफ़िले पर हमला करती हैं सरे आम सेना को बेज्जत करती रहती है और हमारे देश के अवार्ड वापसी गैंग, आतंकवादियों के मरने पर छाती पीटने वाले छद्म नेता और बिका हुआ मिडिया उस सैनिक के विषय में कुछ बोलते हैं और न ही कुछ दिखाते हैं जिससे ये साबित होता है कि इन लोगों के खाले मगरमच्छ से भी ज्यादा मोटी हैं जिसमें देशभक्ति के लिए कोई जगह नहीं नहीं उन्हें सिर्फ़ उन्हीं विषयों पर बोलना और दिखाना है जिन में नकारात्मकता झलकती हो क्यों कि सकारात्मक ख़बर से तो इन सब जाहिल लोगों को सख्त एलर्जी है पहले सरबजीत अब कुलभूषण जाधव इनके साथ कुछ भी हो इन जाहिल लोगों को इससे कोई सरोकार नहीं है और हाँ वो मोमबत्ती गैंग भी तभी एक्टिव होता है जब कोई मर जाता है तो उसकी याद में मोमबत्ती लेकर जगह जगह मार्च निकालने लगते हैं ताकि साबित किया जा सके कि उनमे कितनी ज्यादा देशभक्ति है
अब अंत में एक विश्लेषण भारतीय राजनीती के आज के हालत पर- आवश्यक यह  है कि ऐसे दोगले लोगों को तुरंत प्रभाव से समुद्र में उठाकर फ़ेंक देना चाहिए आखिर हम कैसे देश में रह रहे हैं जहाँ हिन्दू अपने त्यौहार नहीं मना सकते उन्हें अदालत की शरण लेनी पड़ती है (पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी या मुन्न्व्वरा बानो) रामनवमी मनाने के लिए अदालत की दरकार हनुमान जन्मोत्सव मनाने की कोशिश करे तो पुलिस लाठी चार्ज करती है। हम भारत में रह रहे हैं या पाकिस्तान में केरल में सरे आम आरएसएस कार्यकर्ताओं को मारा जा रहा है विपक्ष मुहं में दही जमकर बैठ जाता है क्यों? ये राजनीती का कौन सा रूप है भाई? 125 करोड़ भारतवासियों में से 22 करोड़ मुसलमानों के लिए ज़मीन आसमां एक क्यों किये दे रहीं हैं ममता बनर्जी या केरल के मुख्यमंत्री क्यों नहीं 22 करोड़ मुसलमानों को भारत में रहने वाले अन्य लोगों के मानिंद ही सभी नियम क़ायदे मानने को कहा जाये। उत्तर प्रदेश उत्तराखंड के चुनाव से भी क्या इन जाहिल राजनीतिज्ञों ने कुछ नहीं सिखा वो दिन हवा हुए जब तुष्टिकरण की राजनीती करते हुए कांग्रेस देश पर 60 साल राज्य कर जाती है उत्तर प्रदेश उत्तरखंड के चुनाव परिणाम यही बताते हैं कि 125 करोड़ में से 103 करोड़ लोगों के बनिस्पत अगर २२ करोड़ का ख़याल ज्यादा रखा गया तो 2025 आते आते कहीं सांसद और राज्य विधान सभा में  विपक्ष में बैठने के लिए कोई एक सांसद या विधयक  भी न मिले।

-प्रदीप भट्ट – 12,april,2017